Skip to main content

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS 2023) की धारा 100 क्या है । विस्तृत जानकारी दो।

ऋण पत्र की विशेषता एवं प्रकारों को समझाइए. ऋण पत्र धारी के उपचारों का वर्णन कीजिए. State the characteristics and kinds of debenture. Discuss the remedies of debenture holders.

ऋण पत्र की परिभाषा एवं अर्थ( meaning and definition of debenture)

पापर के अनुसार ऋण पत्र कंपनी का सीलयुक्त एक ऐसा प्रपत्र होता है जो कंपनी के ऋणी होने की स्वीकृति के प्रमाण स्वरूप कंपनी द्वारा उसके ऋण दाता को दिया जाता है।


न्यायाधीश चिट्टी के अनुसार ऋण पत्र का तात्पर्य ऐसे दस्तावेज से है जो या तो कोई ऋण उत्पन्न करता हो या उसकी अभिस्वीकृति करता हो और यदि कोई दस्तावेज इनमें से किसी भी श्रेणी को पूरा करता है तो वह ऋण पत्र है।

टाॅपहेम के अनुसार ऋण पत्र एक कंपनी द्वारा ऋण के साक्ष्य स्वरूप धारक को दिया गया एक दस्तावेज है जो सामान्यतः  एक ऋण पत्र से उत्पन्न होता है और अधिकतर भार के द्वारा उसकी प्रतिभूति दी जाती है।


न्यायालय ने लक्ष्मण भरामजी बनाम सम्राट A.I.R. 1946,Bom.18 के मामले में निर्धारित किया है हमारी समझ  में इसके मुख्य गुण निश्चयात्मक रूप से यह सिद्ध करते हैं कि ये बाण्ड्स  वास्तव में ऋण पत्र है. इनमें ऋण  की धनराशि लौटाए जाने का वचन दिया गया है उसमें तथ्य भी विद्यमान है कि वे क्रम संख्या रखने वाले एक श्रेणी के हैं।


ऋण पत्र की विशेषताएं( characteristics of debenture):

  • ऋण पत्रों के लिए कंपनी प्रायः  अपनी संपत्ति पर स्थाई या चल जमानत देती है लेकिन बिना प्रभार वाले ऋण पत्र भी वैद्य होते हैं .

  • (2)   ऋण पत्र में प्राय यह भी उप बंधित होता है कि मूल धनराशि का भुगतान किए जाने तक ब्याज का भी भुगतान किया जाएगा परंतु यह भी आवश्यक नहीं है कि व्याज अनिश्चित प्रकार की घटना के अधीन दिए हो।

  • सामान्यतः  ऋण पत्र कंपनी के व्यवसाय या उसकी किसी प्रकार की संपत्ति या उसके लाभ के किसी अंश पर प्रभार उत्पन्न करता है। यदि किसी ऋण पत्र में ऐसा नहीं है तो वह पूर्णतया वैद्य होगा।

  • कंपनी ऋण पत्र धारी की ऋणी होती है ना की कंपनी का सदस्य

  • एक निश्चित धनराशि की ऋण के रूप में प्राप्ति की स्वीकृति ऋण पत्र है।

  • ऋणपत्रों को निश्चित क्रम में जारी किया जाता है परंतु यदि ऋण एक ही व्यक्ति को जारी किया गया हो तो एक अकेला ऋण पत्र भी जारी किया जा सकता है।

  • इसमें भुगतान की निश्चित अवधि के बीच में एक निर्धारित ब्याज दर से निर्दिष्ट मध्यांतरों पर ब्याज चुकाने का वचन दिया जाता है परंतु यह सदैव आवश्यक नहीं है क्योंकि कंपनी शाश्वत  ऋण भी जारी कर सकती है ।कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 71 में यह स्पष्ट उल्लेख है कि केवल मोचनीय होने मात्र से किसी आकस्मिक घटना के घटित होने के कारण मोचनीय हो जाने से ऋण पत्र अवैध नहीं हो जाएगें ।


यह कम्पनी के सार्वमुद्रा (Common seal) के अधीन निर्मित किया जाता है क्योंकि वह कंपनी ऋण के लिए जाने के प्रमाण  पत्र के रूप में होता है।



डिवेंचरों के भेद( kinds of debentures):

ऋण पत्रों के निर्गमित करने की शर्तों के आधार पर उन्हें भिन्न-भिन्न वर्गों में बांटा जा सकता है यह आधार निम्नलिखित होते हैं

(1) स्वामित्व एवं हस्तांतरणीयत्ता के आधार पर: ऐसे ऋण पत्र दो प्रकार के होते हैं

(a) रजिस्टर्ड ऋण पत्र: वे ऋण पत्र जिनके धारकों के नाम पते व अन्य विवरण कंपनी द्वारा रखे गए ऋण पत्र धारियों के रजिस्टर में लिखे हुए होते हैं रजिस्टर्ड ऋण पत्र कहलाते हैं. इन पर मूल धन या ब्याज का भुगतान रजिस्टर्ड धारक को ही किया जाता है ।इनका हस्तांतरण कंपनी द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार ही हो सकता है ।ऐसे हस्तांतरण का रजिस्टर में अंकन होना आवश्यक है अतः यह विनिमय साक्ष्य प्रलेख नहीं है।

(b) वाहक ऋण पत्र: रजिस्टर्ड ऋण पत्र की कठिनाइयों से बचने के लिए कंपनी वाहक ऋण पत्र भी जारी करती है. ऐसे ऋण पत्र धारियों का कंपनी के पास कोई विवरण नहीं होता है. इसका मूल धन एवं ब्याज वाहक को दिए होता है. ब्याज के भुगतान के लिए कूपन संलग्न होते हैं. इनका हस्तांतरण केवल परिदान मात्र से ही हो जाता है। निर्धारित शुल्क सहित आवेदन करने पर वाहक ऋण पत्रों को रजिस्टर्ड ऋण पत्रों में परिवर्तित किया जा सकता है। यह विनिमय साक्ष्य प्रलेख होते हैं।


(2) प्रतिभूति के आधार पर: इस आधार पर भी ऋण पत्र दो प्रकार के होते हैं

(a) साधारण या असुरक्षित ऋण पत्र: ऐसे ऋण पत्रों के लिए कंपनी की किसी भी संपत्ति पर बंधक या प्रभार नहीं होता इसमें केवल ऋण की स्वीकृति मात्र होती है। कंपनी के परी समापन की दशा में इनके धारकों की स्थिति सामान्य लेन दारों की ही भांति होती है।

(b) सुरक्षित ऋण पत्र: इन ऋण पत्रों का भुगतान कंपनी की संपत्ति प्रबंधक या प्रभार द्वारा सुरक्षित होता है यदि कंपनी ऋण पत्र पर अंकित राशि का भुगतान समय पर नहीं करती है तो धारकों को प्रभार मुक्त संपत्ति को बेच कर ऋण के भुगतान का अधिकार प्राप्त होता है।


(3) शोध नीयता(मोचनीयता) के आधार पर: इस श्रेणी के ऋण पत्र दो प्रकार के होते हैं

(a) शोध्य (मोचनीयता) ऋण पत्र: यह इस प्रकार के ऋण पत्र है जिनका रेल पत्र में उल्लेखित अवधि की समाप्ति पर मूलधन का भुगतान करना पड़ता है सामान्यतः कंपनियां इसी प्रकार के ऋण पत्र निर्गमित करती हैं।


              कंपनी अधिनियम धारा 71 के अनुसार अंतर नियमों में कोई व्यवस्था ना होने पर कंपनी द्वारा इन विमोचित किए गए ऋण पत्रों को पुनः जारी किया जा सकता है कंपनी या तो इन्हीं ऋण पत्रों को पुनः जारी कर सकती है या इनके स्थान पर नए ऋण पत्र जारी कर सकती है।


(b)अशोध्य(अमोचनीयता) ऋण पत्र इस प्रकार के ऋण पत्रों में मूलधन के भुगतान का समय निर्धारित नहीं होता इसके धारक कंपनी के जीवन काल में शोधन करने के लिए कंपनी की बात भी नहीं कर सकते इसलिए इसे सास्वत ऋण पत्र भी कहते हैं ऐसे ऋण पत्रों के मूलधन का भुगतान कंपनी की इच्छा पर निर्भर करता है किंतु यदि कंपनी इन ऋण पत्रों पर दिए ब्याज का भुगतान समय पर नहीं करती है तो यह ऋण पत्र धारियों की इच्छा अनुसार शोध्य  बन जाते हैं'  ।


            परंतु कंपनी( संशोधन) अधिनियम 1988 के पारित होने के परिणाम स्वरूप मूल कंपनी अधिनियम 1956 में एक नई धारा80A दी गई जिसके अनुसार कंपनियों द्वारा सास्वत ऋण पत्र जारी किए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. संशोधन अधिनियम 1988 की धारा 12 तथा 13 के अधीन अब सभी अविमोचनीय पूर्वाधिकार प्राप्त अंश 5 वर्ष की अवधि में विमोचनीय माने जाएंगे।

(4) अन्य प्रकार: ऋण पत्र निम्नलिखित प्रकार के भी हो सकते हैं

(a) अंशों  में परिवर्तनीय ऋण पत्र: कंपनी द्वारा ऋण पत्रों के मोचन का एक तरीका यह भी है कि ऋण पत्र कुछ समय बाद कंपनी के अंशों में परिवर्तित हो जाते हैं. यदि कोई कंपनी 1 वर्ष के लिए ऋण पत्र जारी करती है तथा 1 वर्ष के बाद ऋण पत्र की राशि के मूल्य के बराबर अंश ऋण पत्र धारकों को जारी कर देती है तो ऐसी स्थिति में ऋण पत्र धारक स्वता ही कंपनी के अंश धारी बन जाते हैं. इस प्रकार के परिवर्तनीय ऋण पत्र को राशि के बदले में जब अंश दिए जाते हैं और उन अंशों का मूल्य बाजार से अधिक होता है तो उन्हें बेचने पर अत्यधिक लाभ होता है यदि अंश धारी उन अंशों को बेचने के बजाय अपने पास भी रखे रहता है तो उन्हें लाभांश प्राप्त होता रहता है।


(b) राइट्स ऋण पत्र: जब कंपनियों को ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है तो वह प्रायः  अपने ही विज्ञापन साम्य अंश धारकों को ऋण पत्र के आधार पर कंपनी को ऋण के रूप में राशि देने के लिए प्रस्ताव करती है। इसी प्रकार कंपनी के विद्यमान ऋण पत्र धारियों को भी उनके द्वारा लिए गए ऋण पत्रों के अतिरिक्त और अधिक संख्या में ऋण पत्र साम्यिक आधार पर आवंटित किए जाते हैं। अंश धारियों को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह कंपनी द्वारा प्रस्तावित ऋण पत्रों को स्वयं ना लेकर किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम पर आवंटित किए जाने हेतु कंपनी को निर्देशित करें।


ऋण पत्र धारियों को प्राप्त उपचार( remedies available to debenture holders):

अगर कोई कंपनी ऋण पत्र धारकों को ऋण पत्रों पर देय मूलधन अथवा ब्याज की राशि का भुगतान नहीं करती है तो प्रभावित( पीड़ित) ऋण पत्र धारक को निम्नलिखित उपचार प्राप्त होते हैं

(1) यदि अगर डिबेंचरों के निर्गमन पर कम्पनी  की कोई संपत्ति प्रभारित ना हो तो ऐसे ऋण पत्र धारक कंपनी के असुरक्षित लेनदार होंगे तथा उन्हें सामान्य लेनदार ओ की भांति ऋण का भुगतान न करने वाली कंपनी के विरुद्ध राष्ट्रीय कंपनी लाॅ अधिकरण में वाद प्रस्तुत करने का अधिकार होगा। राष्ट्रीय कंपनी लाॅ अधिकरण द्वारा उस कंपनी के लिए प्रापक या प्रबंध नियुक्त किया जा सकता है तथा वह उन ऋण पत्रों को कंपनी की संपत्ति पर प्रभार माने जाने की घोषणा भी कर सकता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय कंपनी लाॅ अधिकरण यह जांच भी करा सकता है कि कौन कौन से व्यक्ति कंपनी के ऋण पत्र धारक है वह कंपनी की संपत्ति के विक्रय का आदेश भी कर सकता है।

(2) उपयुक्त के अतिरिक्त ऋण पत्र धारक कंपनी के विरुद्ध राष्ट्रीय कंपनी लाॅ अधिकरण में कंपनी के विमोचना अधिकार के संपर्क हरण के लिए भी वाद प्रस्तुत कर सकता है परंतु उसके लिए कंपनी के समस्त ऋण पत्र धारकों को अनिवार्य रूप से पक्षकार बनाया जाएगा।

(3) यदि डिवेंचरों की शर्तों के अधीन ऋण पत्र धारक को अधिकृत किया गया है तो अपने ऋण पत्रों की सुरक्षा हेतु वह कंपनी की प्रभावित संपत्ति पर स्वयं ही प्रापक की नियुक्ति कर सकता है।


(4) यदि कंपनी दिवालियापन की स्थिति में आ जाती है तो ऋण पत्र धारक कंपनी द्वारा रखी गई प्रतिभूति का मूल्यांकन कराकर ऋण पत्रों  पर देय राशि का भुगतान प्राप्त कर सकता है। परंतु यदि कोई ऋण पत्र धारक कंपनी का रेडी है और उसने ऋण की अदायगी नहीं की है तो वह कंपनी द्वारा ऋण पत्रों पर देय राशि के विरुद्ध मुजराई(Set off) की मांग नहीं कर सकता है बल्कि उसे पहले अपना ऋण कंपनी को चुकाना होगा तथा उसके बाद वह कंपनी से अपने ऋण पत्रों पर देय भुगतान  की मांग कर सकता है।


नरोत्तमदास टोपाणी बनाम बंबई ड्राइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड(1986)3Comp.L.J. 179(Bom.) मामले में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा आधारित किया गया यदि ऋण पत्रों के संबंध में कंपनी ने कोई न्यास विलेख निष्पादित किया है तो उस दशा में ऋण पत्र धारकों की प्रास्थिति हितग्राही के समान होगी अतः ऋण  पत्रों पर देय राशि के भुगतान हेतु न्यायालय( अब अधिकरण)से उपचार प्राप्त  करने का अधिकार न्यासियों का होगा ना कि व्यक्तिगत रूप से ऋण पत्र धारक को।


(5) ऋण पत्र धारक कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 272 के अंतर्गत राष्ट्रीय कंपनी लाॅ अधिकरण में दोषी कंपनी के परी समापन के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।


(6) यदि ऋण पत्र धारक को न्यास विलेख द्वारा अधिकृत किया गया है तो वह न्यासी के माध्यम से कंपनी की संपत्ति का विक्रय करा कर अपने ऋण पत्रों पर  देय राशि का भुगतान कंपनी से प्राप्त कर सकता है।



    

Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...