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कंपनी के सदस्यों के अधिकार एवं दायित्व( describe in detail liabilities and rights of member of a company)

कंपनी के सदस्यों के दायित्व( Liabilities  of a company members)

(1 )अंशों  का हस्तांतरण करते समय भी अंश धारी देय राशि  के लिए उस समय तक उत्तरदाई रहेगा जब तक कि दूसरे पक्ष का नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में अंकित नहीं कर लिया जाता।


(2) कंपनी के परिसमापन की दशा में उसका दायित्व परिसमापन की तिथि से 1 वर्ष तक निरंतर प्रभावी रहता है।

(3) असीमित दायित्व वाली कंपनी में प्रत्येक सदस्य सदस्यता की अवधि में लिए जाने वाले सभी ऋणों  के भुगतान के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदाई होता है।


(4) प्रतिभूति द्वारा सीमित कंपनी में परी समापन की दशा में प्रत्येक सदस्य सीमा नियम में दायित्व खंड में निर्धारित धनराशि के भुगतान को ही बाध्य होता है।


(5) अंशों  द्वारा सीमित कंपनी में प्रत्येक सदस्य का दायित्व अपने अंशों पर अंकित मूल्य तक ही सीमित होता है। प्रत्येक अंश धारी की अपने अंशों  की  संपूर्ण देय राशि का प्रकार भुगतान करना आवश्यक है जैसे कि वह व्यक्तिगत रूप से लिए गए ऋणों के लिए करेगा।


कंपनी सदस्यों के अधिकार( rights of company members)

(1) नए अंशों को लेने में प्राथमिकता का अधिकार: कंपनी अधिनियम की धारा 62 के अनुसार यदि कंपनी नए अंश निर्गमित करके अपनी पूरी बढ़ाने की योजना बनाती है तो उसके सदस्यों को इन अंशों  को लेने के लिए  अधिमान्यता दी जानी चाहिए क्योंकि यह उनका ऐसा सांविधिक अधिकार है जिसका प्रयोग वे व्यक्तिगत रूप से कर सकते हैं।


(2) कंपनी की पुस्तकों( रजिस्टर आदि) का निरीक्षण का अधिकार: कंपनी के रजिस्टरों अथवा लेखों व रिकार्डों को देखने तथा उन में दी गई जानकारी से अवगत कराने का अधिकार भी प्रत्येक सदस्य को प्राप्त है।


(3) अंश अंतरण का अधिकार: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 56 के अनुसार प्रत्येक सदस्य को यह अधिकार है कि वह अंतर नियम में दिए गए नियमों के अनुसार अपने अंशों  का अंतरण कर सकता है।

(4) कंपनी के परिसमापन पर शेष बचे वित्त में हिस्सा  पाने का अधिकार: निस्तारण के समय कंपनी का वित्त( assets) उसके ऋण दाताओं में वितरित कर दिए जाने के बाद शेष बचे वित्त में से प्रत्येक सदस्य को उसके अंशों  के अनुपात में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है।
(5) सभा सम्बन्धी अधिकार: कंपनी की सभा से संबंधित सभी अधिकार प्रत्येक कंपनी के सदस्य को प्राप्त हैं। इसी प्रकार वह कंपनी के चुनाव में निदेशक  पद के लिए प्रत्याशी हो सकता है।

(6) अंकेक्षक की नियुक्ति के लिए नामांकित करने का अधिकार: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 139 के अनुसार यदि कंपनी ने अपनी आमसभा में किसी अंकेक्षक की नियुक्ति नहीं की है ,तो उसके सदस्य केंद्रीय सरकार से अंकेक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकता है।


(7) निस्तारक( परिसमापक) की नियुक्ति के आवेदन का अधिकार: कंपनी के ऋण  दाताओं द्वारा स्वेच्छा से परिसमापन कराने की स्थिति में सदस्यगण राज्यीय कंपनी विधि अधिकरण में यह आवेदन कर सकते हैं कि उस कंपनी के लिए परिसमापक(Liquidator) की नियुक्ति की जाए।


(8) पार्षद सीमा नियम अंतर नियम आदि की प्रतिलिपियां या निवेदन पर  पाने का अधिकार: प्रत्येक सदस्य को कंपनी के सीमा नियम, अंतर नियम तथा प्रबंधनकर्ता आदि से की गई संविदा की प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार होता है। इसी तरह कंपनी अधिनियम की धारा 46 के अनुसार वह अंश  प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकारी होता है तथा उसी कंपनी की समान सभाओं की कार्यवाही व वितरण प्राप्त करने के अधिकार भी धारा 96 के अंतर्गत प्राप्त है।


(a) लाभांश का अधिकार: कंपनी के सदस्यों को लाभांश प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है।

(b) विधिक(अथवा) कानूनी अधिकार: इस श्रेणी में इस प्रकार के अधिकारों का समावेश है जो कंपनी के सदस्यों का सामान्य विधि के अंतर्गत प्राप्त है। उदाहरण के लिए संविदा से संबंधित अधिकार या समामेलित  संस्था के प्रति अधिकार आदि।

(c)  प्रलेखात्मक का अधिकार: यह ऐसे अधिकार होते हैं, जो सदस्यों को कंपनी के सीमा नियम अथवा अंतर नियम के अंतर्गत प्राप्त होते हैं।

(d) सांविधिक अधिकार: सांविधिक अधिकार ऐसे अधिकार होते हैं जिन्हें कंपनी अपने दस्तावेजों में परिवर्तन करके बदल नहीं सकती है। उदाहरण के लिए अंश धारियों को प्राप्त अंश अन्तरण का अधिकार जो उन्हें कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 44 के अंतर्गत प्राप्त है या सदस्यों का अंशों  के लिए अंश प्रमाण पत्र करने का अधिकार जो उन्हें कंपनी अधिनियम की धारा 46 के अंतर्गत प्राप्त है या  कंपनी द्वारा नए अंशों का निर्गमन किए जाने पर उसके वर्तमान सदस्यों को नए अंशों को खरीदने की प्राथमिकता का अधिकार जो इन्हें कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 62 के अंतर्गत प्राप्त है। यह अधिकार कंपनी द्वारा अपने दस्तावेजों में परिवर्तन करके बदले नहीं जा सकते हैं। इसी प्रकार कंपनी की बैठकों में मतदान तथा प्रस्ताव पारित करा लेने के लिए सूचना प्राप्त करने संबंधी सदस्यों का अधिकार भी कंपनी द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।


               कंपनी के सदस्यों को प्राप्त कंपनी संबंधी अधिकारों का प्रयोग उनके द्वारा सामूहिक रूप से नहीं किया जाता है वरन्  कुछ ऐसे अधिकार होते हैं जिनका प्रयोग में स्वतंत्र रूप से व्यक्तिगत तौर पर भी कर सकते हैं।

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