अंकेक्षक के विविध दायित्वों का उल्लेख कीजिए तथा अंकेक्षक प्रहरी है ,प्रहारी नही इसका विवेचन कीजिए। describe the different liabilities of an auditor and discuss on auditor is a watchdog but not a bloodhound.
अंकेक्षक के दायित्व( liabilities of an auditor)
अंकेक्षक के निम्नलिखित प्रमुख दायित्व हैं
(a) लापरवाही के लिए दायित्व( liability for negligence): लापरवाही के लिए दायित्वों को सिविल दायित्वों की श्रेणी में रखा जाता है एवं इनके अंतर्गत क्षतिपूर्ति करना होता है। यदि लेखा परीक्षक ने अपना कार्य बुद्धिमानी, उचित सावधानी, ईमानदारी तथा परवाह के साथ नहीं किया है अर्थात लापरवाही से किया है तथा इस कारण अंश धारियों को हानि उठानी पड़ी है, तो कंपनी द्वारा इस लापरवाही के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किए जाने पर अंकेक्षक को उत्तरदाई होना पड़ेगा परंतु यदि लेखा अंकेक्षक ने लापरवाही तो की है लेकिन इस कारण किसी अंश धारी को कोई हानि ना हुई हो तो अंकेक्षक उत्तरदाई नहीं होगा और अगर बिना लापरवाही के भी अंश धारियों को हानि हो जाए तो भी अंकेक्षक उत्तरदाई नहीं होगा।
अंकेक्षक के निम्नलिखित कार्यों को दायित्व में लापरवाही वाले कार्य कहा जाएगा
(a) खुदरा रोकड़ बही के बाकी का सत्यापन ना करना लापरवाही है
(b) अंतर नियमों को ना देखना तथा पूंजी में से लाभ बांटने पर विरोध न करना भारी लापरवाही है।
(c)अप्राप्य ऋण व उसके संचय की पूर्ण जांच ना करना लापरवाही है।
(d) त्रुटियों व कपटों का पता ना लगाना लापरवाही है।
(e) संदेहात्मक स्थिति की कमी में विश्वसनीय अधिकारों के प्रमाण पत्र के आधार पर जांच ना करना लापरवाही।
(b) अपकरण अथवा कर्तव्य भंग के लिए दायित्व(Liability for misfeasance or breach of Duty)
इस प्रकार के दायित्वों को भी सिविल दायित्वों की श्रेणी में रखा जाता है।अपकरण को कर्तव्य पालन की सामान्य त्रुटि नहीं समझा जाता है। बल्कि यह कर्तव्य भंग, न्यास भांग के वर्ग की त्रुटि है तथा इसमें सद्भाव और सत्य निष्ठा संदिग्ध होती है। अगर कर्तव्य भंग के कारण कंपनी को हानि होती है, तो कंपनी अपने जीवन काल में लेखा परीक्षक के विरुद्ध मुकदमा चला सकती है और छतिपूर्ति प्राप्त कर सकती है। यदि कंपनी परिसमापन में चली गई है तो लेखा परीक्षक के कर्तव्य भंग के विरुद्ध अपने निस्तारक अथवा लेनदार या अंश धारी द्वारा मुकदमा चलवा सकती है।
अंकेक्षक के निम्नलिखित कार्यों को कर्तव्य भंग कहा जाएगा
(a) कंपनी की सही स्थिति पर प्रकाश ना डालना कर्तव्य भंग है।
(b) लेखा परीक्षक की हैसियत से अतिरिक्त आय तथा अन्य प्रकार से मिली हुई आयों में गड़बड़ी करना कर्तव्य भंग है।
(c) प्रतिभूतियों(Securities) की सूक्ष्म जांच ना करना कर्तव्य भांग है।
(d) संतुलन पत्र की सही सूचना अंश धारियों को ना देना कर्तव्य भंग है।
(f) भुगतानों की भलीभांति जांच ना करना कर्तव्य भंग है।
(c) आपराधिक कार्यों के लिए दायित्व( liability for criminal act)
अंकेक्षक द्वारा लेखाओं के लेखा परीक्षण के दौरान किए गए आपराधिक कृत्यों के लिए कंपनी अधिनियम के अंतर्गत दंड की व्यवस्था की गई है। लेखा परीक्षण के दौरान लेखा परीक्षक के दायित्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है
(a) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 147 के अनुसार यदि कोई लेखा परीक्षक लेखा परीक्षण करने में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 143 एवं 145 में उल्लेखित प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए जानबूझकर अपनी गलत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तो उसे 1 वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदंड से जो कम से कम ₹100000 तथा अधिक से अधिक 2500000 रुपए तक हो सकेगा , दण्डित किया जाएगा।
(b) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 147 के अनुसार अगर केंद्रीय सरकार के निरीक्षक द्वारा कंपनी की जांच के समय लेखा परीक्षक उसे आवश्यक पुस्तकें तथा प्रपत्र नहीं देता है तो उसे 1 वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदंड से जो कम से कम ₹100000 तक तथा अधिक से अधिक 2500000 रुपए तक हो सकेगा दंडित किया जाएगा
(c) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 449 के अनुसार लेखा परीक्षक कंपनी के किसी विवरण रिपोर्ट या प्रमाणपत्र आदि पर जानबूझकर गलत या झूठी विवरण देता है या आवश्यक विवरण जानबूझकर नहीं देता है तो उसे 1 वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।
(d) यदि अंकेक्षक का शपथ पर दिया गया बयान झूठा पाया जाता है तो उसे कंपनी अधिनियम 2013 की धारा449 के अंतर्गत 7 वर्ष तक के कारावास तथा ₹1000000 तक के अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।
(e) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 337 के अनुसार यदि कंपनी के परिसमापन के समय किसी व्यक्ति को धोखा देने के आशय से कंपनी के अधिकारी अथवा लेखा परीक्षक ने किसी रिकॉर्ड को नष्ट किया अथवा उसमें जानबूझकर हेरफेर करने का प्रयत्न किया है या उसे मिटाया या छुपाया है तो उसे 7 वर्ष के कारावास तथा अर्थदंड से दंडित किया जा सकता है।
(f) अधिनियम 2013 की धारा 300 के अनुसार यदि किसी कंपनी का परिसमापन अधिकरण के आदेश अनुसार होता है तथा शासकीय परिसमापक अधिकरण को यह सूचित करता है कि कंपनी के किसी अधिकारी ने कंपनी की स्थापना के समय से ही छल या कपट पूर्ण व्यवहार किए हैं तो ऐसी सूचना प्राप्त होने पर अधिकरण उस कंपनी के अधिकारी का खुला न्यायालयीन परीक्षण करा सकता है।
(g) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 340 के अनुसार यदि किसी कंपनी के परिसमापन के समय यदि कंपनी के किसी अधिकारी ने कंपनी की पूंजी का अपव्यय या दुर्विनियोग किया है या वह कंपनी के प्रति न्यास भंग का दोषी है तो शासकीय परिसमापन या किसी लेनदार द्वारा आवेदन किए जाने पर अधिकरण उस अधिकारी के आचरण का परीक्षण करेगा तथा उसे कंपनी की पूंजी या संपत्ति को वापस करने का अधिकार देगा।
(h) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 299 के अनुसार यदि किसी कंपनी के परी समापन के समय अधिकरण को यह आशंका हो कि कंपनी के किसी अधिकारी( जिसमें अंकेक्षक भी शामिल है) के पास कंपनी से संबंधित कोई संपत्ति रजिस्टर या अन्य दस्तावेज है तो उसे उन अधिकारियों का शपथ पर परीक्षण करने एवं उनसे कंपनी की संपत्ति या रिकॉर्ड स्वयं के अधिकार में लेने का अधिकार होगा।
(i) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 342 के अनुसार किसी कंपनी के अनिवार्य परि समापन के समय यदि अधिकरण को कंपनी के किसी भूत पूर्व या वर्तमान अधिकारी( जिसमें अंकेक्षक भी शामिल है) के संबंध में यह आशंका हो कि वह कंपनी के कार्यों के संबंध में किसी प्रकार से दोषी है तो अधिकरण परिसमापक को संबंधित अधिकारी के विरुद्ध अभियोग चलाने तथा मामले को कंपनी रजिस्टर्ड को सुपुर्द करने का आदेश देगा। इस संबंध में सूचना प्राप्त होने पर कंपनी रजिस्ट्रार उसे केंद्रीय सरकार के पास भेजेगा जो उस मामले की जांच कराएगी।
(d) निवेशकों के प्रति दायित्व( liability to investors):अंकेक्षक के उपयुक्त दायित्वों के अतिरिक्त कंपनी में निवेश करने वाले निवेशकों के प्रति भी कुछ दायित्व होते हैं। कंपनी के निवेशकों के प्रति अंकेक्षक के दायित्वों को रेखांकित करते हुए कोर्ट ऑफ अपील ने अंग्रेजी मामले केपारो इंडस्ट्रीज बनाम डिक्सन(1990)1All.E.R. 568 के मामले में आधारित किया कि निम्नलिखित परिस्थितियों में अंकेक्षक को कंपनी के निवेशकों के प्रति दायित्वाधीन ठहराया जाएगा।
(a) अगर लेखा परीक्षक को यह ज्ञात है कि लेखा परीक्षण में उसकी असावधानी उपेक्षा के कारण जो व्यक्ति उसकी लेखा परीक्षा रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए कंपनी के साथ सम व्यवहार करता है तथा धन हानि होती है तो वह दायित्वाधीन होगा।
(b) निवेशकों के साथ उसके संबंध न्यासवत् होने के कारण लेखा परीक्षण में उपेक्षा के लिए वह न्यास भंग का दोषी होगा।
(c) लोकहित में अंकेक्षक को उसकी असावधानी या उपेक्षा के कारण निवेशकों को क्षति कारित होने के लिए उसे दायी ठहराया जाना न्यायोचित होगा।
संपरीक्षक प्रहरी है, प्रहारी नही (The Auditor is a watch dog but not blood hound)
संपरीक्षकों के उपयुक्त वर्णित सामान्य कर्तव्यों में मुख्य विषय बिंदु है उनकी ईमानदारी तथा समुचित सावधानी। यदि उसने कर्तव्यों के अनुसार कार्य कर लिया है तब उससे इससे अधिक की अपेक्षा करना व्यर्थ है। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय है
(1)संपरीक्षक अपनी रिपोर्ट देते समय इस बात की कतई गारंटी नहीं देता कि कोई कपट नहीं हुआ है क्योंकि वह बीमादाता नहीं है।
(2)संपरीक्षक का कंपनी के नीति विषयक मामलों या व्यवसाय प्रबंध व्यवस्था से कोई सरोकार नहीं होता।
(3)संपरीक्षक जासूस नहीं होता जो यह मानते हुए कार्य आरंभ करें कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। के दौरान यदि शंकाएं उठे तब वह अवश्य पूरी छानबीन करें किंतु उसे संकालु प्रवृत्ति का नहीं होना चाहिए। इसलिए परीक्षकों के संबंध में न्यायाधीश लोप्स ने कहा है कि लेखा परीक्षक की भूमिका एक सतर्क कुत्ते जैसी होती है ना की शिकारी कुत्ते जैसी हाथ लेखा परीक्षक प्रहरी होता है ना कि एक प्रहारी।
अंकेक्षक की विधिक स्थिति( legal position of auditor): अंकेक्षक के अधिकारों एवं कर्तव्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह कहा जा सकता है कि कंपनी प्रशासन में अंकेक्षक एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(59) के अनुसार लेखा परीक्षक कंपनी का ना तो अधिकारी होता है और ना कंपनी का अभिकर्ता.अंकेक्षक किस संबंध में कंपनी के अंश धारियों के प्रति न्यास वत होते हैं अतः उसका यह परम कर्तव्य है कि वह कंपनी के अंश धारी सदस्यों को कंपनी की सही एवं वास्तविक वित्तीय स्थिति से अवगत कराएं तथा उनके हितों से संबंधित सभी तथ्यों की पूर्ण जानकारी उन्हें दे। लेखा परीक्षक की विधि स्थिति के संबंध में इनरि. ट्रांसप्लांटर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड,(1985) IW.L.R के मामले में अवलोकित किया गया कि अंकेक्षक कंपनी के अंश धारियों का अभिकर्ता नहीं होता इसलिये लेखा परीक्षण के दौरान अंकेक्षक की जानकारी में आए हुए तथ्यों की अन्वायिक सूचना अंश धारियों को थी ऐसा कहना गलत होगा।ऋणों की अभिस्वीकृति के प्रयोजनों के लिए भी उसे कंपनी का अभिकर्ता नहीं माना जा सकता है।
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