अकेक्षक की नियुक्ति शक्तियां तथा कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। describe the appointment power and duties of auditor
कंपनी अकेक्षक की नियुक्ति( appointment of an auditor)
सामान्यतः प्रत्येक कंपनी अपने अंतर नियमों में लेखा परीक्षकों की नियुक्ति से संबंधित व्यवस्था रखती है परंतु लेखा परीक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताओं एवं अनर्हताओं तथा उसके अधिकारों कर्तव्य एवं दायित्व के विषय में विधिक व्यवस्थाएं कंपनी विधि करती है। अधिनियम 2013 की धारा 139 लेखा परीक्षकों की नियुक्ति के संबंध में उप बंध किए गए हैं। किस अधिनियम की धारा 139(1) में उप बंधित किया गया है कि प्रत्येक कंपनी अपनी प्रथम वार्षिक सभा में किसी व्यक्ति या फर्म को लेखा परीक्षक के पद पर नियुक्त करेगी जो इस सभा की अगली निरंतर 6 वार्षिक सभाओं तक अपने पद पर बना रहेगा।अंकेक्षक संपरीक्षक का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। लेखा परीक्षक की नियुक्ति कंपनी की वार्षिक सभा में की जाती है जिसका अनु समर्थन कंपनी के सदस्यों द्वारा किया जाना आवश्यक होता है। ऐसा नियुक्ति से पूर्व लेखा परीक्षक से उसकी सहमति तथा अहर्ता से संबंधित प्रमाण पत्र का लिया जाना जरूरी होता है। इस अधिनियम की धारा 139(2) के अनुसार कोई भी सूचीबद्ध कंपनी या किसी वर्ग विशेष की कंपनी जैसा की विधित हो
(a) किसी व्यक्ति को 5 वर्ष तक की अवधि से अधिक के लिए अंकेक्षक के पद पर नियुक्त किया पुनर्नियुक्ति नहीं करेगी।
(b) किसी ऑडिट फर्म को 5 वर्ष की दो कालावधियों से अधिक के लिए नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति नहीं करेगी।
कंपनी के प्रथम लेखा परीक्षक की नियुक्ति कंपनी के पंजीकरण की तिथि से 30 दिन के अंदर कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा की जाएगी अनु समर्थन कंपनी की प्रथम वार्षिक सभा में कंपनी के सदस्यों द्वारा किया जाना आवश्यक होगा।
( धारा 139(6))
केंद्रिय सरकार अथवा राज्य सरकारों के स्वामित्व एवं नियंत्रणाधीन कंपनियों के लिए लेखा परीक्षकों की नियुक्ति भारत के महालेखा परीक्षक द्वारा की जाती है। ऐसी नियुक्ति वित्तीय वर्ष के प्रारंभ की तिथि से 180 दिनों में कर दी जानी चाहिए तथा इस प्रकार नियुक्त किया गया लेखा परीक्षक कंपनी की वार्षिक सभा संपन्न होने तक की अवधि के लिए अपने पद पर बना रहेगा तथा वार्षिक सभा में अगले 5 वर्ष की कालावधि के लिए लेखा परीक्षक की नियुक्ति की जाएगी।
कोई भी ऐसा फार्म जिसका साझेदार भारत में व्यवसाय करता हो तथा संपरीक्षक की नियुक्ति के लिए पात्र हो अपने नाम पर अपने किसी साझेदार को किसी कंपनी का संपरीक्षक नियुक्त कर सकती है।
अकेक्षक प्रमुख कर्तव्य( duties of an auditor)
(1) यदि कंपनी के अंकेक्षक लेखा परीक्षण के आधार पर तनिक भी यह संभावना प्रतीत होती है कि कंपनी के विरुद्ध कोई कपट पूर्ण अथवा अनियमितता पूर्ण कार्य होने जा रहा है तो उसका यह कर्तव्य है कि इसकी सूचना तुरंत ही केंद्रीय सरकार को दे दे। यदि इस कपट पूर्वक प्रत्यय में कंपनी के किसी कर्मचारी अधिकारी अथवा मुख्य प्रबंधकीय कार्मिक के लिप्त होने की आशंका हो तो लेखा परीक्षक को इस तथ्य का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में करना चाहिए।
(2) अकेक्षक कर्तव्य केवल कंपनी के लेखाओ का परीक्षण करके यह पता लगाना होता है कि कंपनी की वास्तविक वित्तीय स्थिति क्या है। उसे कंपनी की व्यापारिक नीति से अथवा इस बात से कोई संबंध नहीं होना चाहिए कि कंपनी का व्यापार उचित है अथवा अनुचित है
(3)अकेक्षक को लेखा परीक्षण करते समय केवल तुलन पत्र तथा रोकड़ बही में दर्शाए गए आंकड़ों या प्रविष्टियों पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए बल्कि इनकी सत्यता एवं वास्तविकता की तरफ भी ध्यान देना चाहिए।
(4)अकेक्षक को लेखा परीक्षण करने में यदि यह ज्ञात होता है कि कंपनी के प्रबंधकों ने कंपनी के कोष एवं संपत्तियों का दुरुपयोग किया है तो उसे इसका उल्लेख अपनी रिपोर्ट में करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसे कर्तव्य भंग के लिए दोषी माना जाएगा
(5)अकेक्षक का यह भी कर्तव्य है कि उसे अपनी नियुक्ति होते ही उस कंपनी के अंतर नियमों में उल्लेखित लेखा परीक्षकों के कार्यों तथा कर्तव्यों से स्वयं को अवगत करा लेना चाहिए।
(6)अकेक्षक का मुख्य कर्तव्य है कि वह कंपनी के वित्तीय विवरण लेखाओं तथा तुलन पत्र का लेखा परीक्षण करके उस पर अपनी रिपोर्ट तैयार करें तथा उसे कंपनी के अंश धारी सदस्यों को प्रेषित करें।
(7)अकेक्षक का यह भी कर्तव्य है कि वह कंपनी के वित्तीय विवरण लाभ हानि लेखा तथा संतुलन पत्र का लेखा परीक्षण इस पूर्व दुर्भावना से प्रेरित होकर न करे कि इसमें कुछ मिथ्या कथन कपट अथवा अनियमितता अवश्य ही की गई होगी।
(8)अकेक्षक को अपना कार्य निष्पक्षता पूर्वक तथा सावधानीपूर्वक करना चाहिए क्योंकि यदि लेखा परीक्षक अपना कार्य उचित सावधानी बुद्धिमानी एवं इमानदारी से नहीं करते हैं तो वह कंपनी तथा उसके अंश धारियों को होने वाली हानि के लिए दायित्वाधीन होंगे। सावधानी से कर्तव्य ना पूरा किया जाने पर लेखा परीक्षक को उपेक्षा के लिए दोषी ठहराया जा सकता है तथा पीड़ित पक्ष उससे क्षतिपूर्ति वसूल कर सकता है।
(9)अकेक्षक को यदि लेखा परीक्षण करते समय किसी प्रविष्ट की सत्यता के बारे में विश्वास नहीं होता है उसे यह प्रमाण पत्र कदापि नहीं देना चाहिए कि प्रविष्ट सत्य है। किसी प्रविष्ट के बारे में यदि उसे जरा सा भी संदेह हो तो उसका परीक्षण अतिरिक्त सतर्कता से करना चाहिए यदि किसी संबंध में विशेषज्ञ की राय आवश्यक हो तो उसका सहयोग लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। लेखा परीक्षक विशेषज्ञ द्वारा दी गई राय को सही मानते हुए उस पर विश्वास कर सकते हैं।
(10)अकेक्षक को लेखा परीक्षण करते समय लेखाओं की गलतियों गड़बड़ियों पर अनियमितताओं को सतर्कता पूर्वक पकड़ना चाहिए तथा इस कार्य में उसे आशंका एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।
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