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अंश की परिभाषा( definition of shares):

अंश की परिभाषा( definition of shares):अंश शब्द को कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(34) में स्पष्ट किया गया है जिसके अनुसार अंश कंपनी की पूंजी एक हिस्सा है जिसमें स्कंध भी सम्मिलित है जब तक कि अंश एवं स्कंध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अंतर ना किया गया हो।

      अंश कंपनी की पूंजी के एक निश्चित भाग को अभिव्यक्त करने वाली एक अविभाज्य इकाई है जिसका निश्चित मूल्य होता है और जिस आधार पर अंश धारी कंपनी के लाभों के भागी होने का अधिकार प्राप्त होता है।

         अंश कंपनी के अंश धारी के ऐसे हित को कहा जाता है जो प्रथमतया उसके दायित्व हेतु तथा द्वितीयतया उसके हित के लिए मुद्रा की राशि के द्वारा मापा जाता है।

          अंशों के आबंटन से आशय कंपनी के द्वारा कंपनी आवेदकों में अंशों के बांटने से है। आवेदकों में अंशों का आवंटन करने के पूर्व कंपनी को कुछ  नियमों का पालन करना नितांत जरूरी होता है वह इस प्रकार है

            अगर कंपनी ने विवरण पत्रिका( prospectus) जारी किया है तो उसे कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 39 में वर्णित व्यवस्था के अनुसार कार्यवाही करनी होगी।

        धारा 39 के अनुसार वैद्य आवंटन के लिए प्रथम आवश्यकता यह है कि अंशों  पर न्यूनतम अभिदान होना अनिवार्य है। न्यूनतम अभिदान कंपनी की विवरण पत्रिका में दी गई वह राशि है जो निर्देशकों  उनकी राय में अंश जारी करके निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए पूंजी जुटाने हेतु जरूरी है

(a) कंपनी द्वारा खरीदी गई या खरीदी जाने वाली संपत्ति का मूल्य चुकाने के लिए

(b) कंपनी के प्रारंभिक व्यय तथा अंश  निर्गमन आदि पर कमीशन देने के लिए

(c) उक्त कार्य हेतु कंपनी द्वारा लिए गए ऋणों को अदायगी करने के लिए

(d) कंपनी के कार्यशील पूंजी के लिए तथा

(e) अन्य ऐसे व्ययों के लिए जिनके प्रयोजन स्वरूप एवं अनुमानित राशि के विषय में कंपनी की विवरण पत्रिका में स्पष्ट उल्लेख किया गया हो।

         कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 39 के अनुसार विवरण पत्रिका में केवल न्यूनतम अभिदान की राशि का उल्लेख मात्र कर देना ही पर्याप्त नहीं होता है बल्कि उसके उद्देश्य के संबंध में भी स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए। न्यूनतम अभिदान की समस्त राशि अंशों पर नकदी के रूप में प्राप्त होनी चाहिए ।कंपनी अपने अंशों  का आवंटन तब तक नहीं कर सकती जब तक कि न्यूनतम अभिदान राशि प्राप्त नहीं हो जाती है।

         अगर कंपनी द्वारा विवरण पत्र का जारी किए जाने के बाद 30 दिन की अवधि तक न्यूनतम अभिदान की राशि पूरी नहीं हो पाती है तो निर्देशकों का यह कर्तव्य है कि वे अंशों पर प्राप्त आवेदन राशि को संबंधित आवेदकों की बिना ब्याज के लौटा दे परंतु यदि यह राशि आवेदकों को यथा समय नहीं लौटाई जाती तो निवेशकों को इस राशि पर निर्धारित दर से ब्याज भी देना होगा परंतु यदि वे यह सिद्ध कर दे की राशि वापसी में देरी उनके दुराचरण या असावधानी के कारण नहीं हुई है तो उन्हें इस दायित्व से मुक्त किया जा सकता है अगर कंपनी तथा उसका कोई अधिकारी धारा 39 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है जो भी इस व्यतिक्रम के लिए दोषी हो ₹1000 प्रतिदिन के हिसाब से व्यतिक्रम जारी रहने तक या  एक लाख रुपए इनमें से जो भी कम हो तक के अर्थदंड से दंडित किया जाएगा।

             न्यूनतम अभिदान की सर्च तथा अनशन पर प्राप्त न्यूनतम आवेदन राशि की किसी अनुसूचित बैंक में जमा कर देने पर भी अधिनियम द्वारा निर्धारित अवधि समाप्त हो जाने के पूर्व कंपनी अपने अंशों को आवंटित नहीं कर सकती है। यह अवधि विवरण पत्रिका की तिथि से 5 दिन या विवरण पत्रिका में निर्दिष्ट कोई अन्य अवधि हो सकती है तथा कंपनी अपने अंशों  का आवंटन इस अवधि के समाप्त होने से पूर्व नहीं कर सकती है।

            अगर विवरण पत्रिका में यह उल्लेखित किया गया है कि कंपनी किसी अधिकृत शेयर बाजार( stock Exchange)में अंशों  के लेनदेन के लिए आवेदन द्वारा अनुमति प्राप्त कर रही है तो कंपनी द्वारा ऐसा आवेदन विवरण पत्रिका प्रकाशित होने की तिथि से उस दिन की अवधि में किया जाना चाहिए अन्यथा आवंटन रद्द माना जाएगा।



अंशों के लिए आवेदन पत्र इकट्ठे हो जाने पर उन्हें छठ लिया जाता है। तथा इनकी जांच करने के बाद इन्हें अंश आवेदन एवं आवंटन सूची में क्रमवार दर्ज कर लिया जाता है। इसके पश्चात आवंटन संबंधी शर्तों को ध्यान में रखते हुए कंपनी का निर्देशक मंडल इन आंसुओं को आवंटित करने की कार्यवाही प्रारंभ करता है। यदि कंपनी को प्राप्त आवेदनों की संख्या उसके द्वारा जारी किए गए अंशों के बराबर या कम होती है तो आवंटन में किसी प्रकार की परेशानी तथा कठिनाई नहीं होती है तो यह कहा जाता है कि कंपनी के अंशों का अति अभिदान हुआ है। ऐसी स्थिति में कंपनी को अंश आवंटन के लिए निम्नलिखित कार्यवाही करनी होती है


(a) आवंटन समिति का गठन: निदेशक मंडल अपने कुछ सदस्यों को उप समिति नियुक्त करेगा जो अंश आवेदनों की छानबीन करेगी तथा यह निश्चित करेगी कि आवंटन के आधार पर किया जाए.

(b) निदेशक मंडल द्वारा आवंटन समिति की रिपोर्ट पर विचार: आप समिति सभी आवेदनों का अध्ययन करने के पश्चात आवंटन के लिए श्रेष्ठ  आधार क्या हो इस विषय में निदेशक मंडल को सूचित करेगी। इस समिति को सिफारिश से सहमत होने पर निदेशक मंडल समिति द्वारा तैयार की गई आवंटन सूची की कर देगा तथा निदेशक मंडल उस पर हस्ताक्षर कर देगा। निदेशक मंडल द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पास किया जाएगा जो कि आवंटन संबंधी उसके निर्णय की विधिक मान्यता प्रदान कर देता है।


(c) आवंटन का प्रारंभ: किसी कंपनी द्वारा विवरण पत्रिका जारी किए जाने के तुरंत बाद ही अंशों का आवंटन नहीं किया जा सकता है। यदि कंपनी ने विवरण पत्रिका जारी करके अंश अभिदान की मांग की है तो वह ऐसी विवरण पत्रिका जारी किए जाने के दिनांक से 5 दिन के समाप्त होने से पूर्व  अंशों का आवंटन नहीं कर सकेगी। ऐसी कोई कंपनी जिसने विवरण पत्रिका के स्थानापन्न विवरण पत्रिका जारी करके अंशों  के क्रय करने के लिए याचना की है  उक्त विवरण पत्रिका को प्रस्तुत करने की तिथि से 3 दिन बीत जाने के पूर्व अंशों का आवंटन नहीं कर सकेगा। इन नियमों का उल्लंघन किए जाने पर ऐसा आवंटन आबंटिती के विकल्प पर शून्य करणी होगा।

(d) आवंटन पत्र: निदेशक मंडल की सभा में आवंटन संबंधी प्रस्ताव पारित हो जाने पर कंपनी का सचिव आवेदकों को आवंटन पत्र भेजने की व्यवस्था करता है। यह पत्र छपे हुए फार्म पर भेजे जाते हैं। आवंटन पत्र में आवेदन फार्म की क्रम संख्या प्रार्थित तथा आवंटित अशों की संख्या आवंटन की राशि तथा उसके भुगतान की स्थिति आदि का स्पष्ट उल्लेख किया जाता है।

        अभी दान की स्थिति में कंपनी के लिए यह संभव नहीं होता है कि वह प्रत्येक अंश आवेदक को आवंटन कर सके। इस प्रकार की स्थिति में उन आवेदकों को जिनके अंश आवेदन स्वीकार नहीं किए जाते हैं ।कंपनी की तरफ से खेद पत्र भेजा जाता है खेद पत्र के साथ कंपनी चेक के द्वारा आवेदक की राशि भी वापस लौटा देगी। कंपनी( संशोधन) अधिनियम 1988 के संशोधन द्वारा कंपनी के लिए यह अनिवार्य होगा कि जिन आवेदकों के अंश आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सके हैं उनके द्वारा जमा की गई राशि को उन्हें वापस लौटाने में हुए विलंब के लिए उस राशि पर विहित दर से ब्याज का भुगतान भी करें।


    

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