Meaning of Company member( कंपनी के सदस्य ):- कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(55) के अनुसार कंपनी के सदस्य से आशय ऐसे लोगों से है जिन्होंने कंपनी के सीमा नियमों पर दस्तखत किए हुए या जिसका नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में सदस्य के रूप में प्रविष्ट किया गया हो अर्थात प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जिसने लिखित रूप में कंपनी का सदस्य बनने के लिए सहमति दी हो तथा जिसका नाम उस कंपनी के सदस्यों के रजिस्टर में दर्ज कर लिया गया हो कंपनी का सदस्य कहते हैं.
सदस्य बनने के लिए प्रक्रिया( procedure of acquiring membership):
(a) लिखित आवेदन द्वारा सदस्यता: कंपनी के अंश क्रय करने के लिए संविदा अधिनियम की प्रस्ताव और स्वीकृति संबंधी औपचारिकताओं का पालन करना जरूरी होता है।अंशों के क्रय हेतु किया गया लिखित आवेदन संविदा अधिनियम के अनुसार प्रस्ताव के समान होगा और उसके आधार पर किया गया अंशों का आवंटन स्वीकृति माना जाएगा। स्वीकृति संबंधी औपचारिकताओं की पूर्ति के पश्चात ही उस अंश धारी के नाम को कंपनी के सदस्य रजिस्टर में सदस्य के रूप में दर्ज कर लिया जाएगा और रजिस्टर में उसका नाम लिखे जाने के दिन से ही वह उस कंपनी का सदस्य माना जाएगा।
(b) कंपनी के समामेलन के पूर्व सीमा नियम पर हस्ताक्षर द्वारा सदस्यता: प्रत्येक कंपनी का सीमा नियम रजिस्ट्रार के पास तभी रजिस्टर किया जाता है जब कुछ सदस्य उस पर इससे से हस्ताक्षर करें कि वह मिलकर एक कंपनी के निर्माण में संयुक्त रूप से योगदान देना चाहते हैं। न्यू को सीमा नियम में अपने नाम के आगे अपना पता व्यवसाय तथा उनके द्वारा कंपनी के कितने अंश खरीदे जाएंगे आदि लिखवा कर अपने हस्ताक्षर करने होते हैं। इस तरह कंपनी के सीमा नियम पर हस्ताक्षर करने के पश्चात भी व्यक्ति निगमन की तिथि से उसके वैधानिक सदस्य माने जाएंगे फिर चाहे उन्हें अंशों का आवंटन किया गया हो या नहीं।
शासकीय परिसामपक बनाम सुलेमान भाई,A.I.R.1995, M.B.166 के मामले में एक व्यक्ति ने किसी कंपनी के सीमा नियम में 200 अंशों को खरीदने का वचन दिया था तथा उस पर अपने हस्ताक्षर किए थे। कंपनी का विधिवत समामेलन हो गया तथा उस कंपनी ने वास्तव में केवल 20 अंश ही खरीदें। न्यायालय द्वारा भी निश्चित किया गया कि वह व्यक्ति कंपनी के परिसमापन पर 200 अंशों की राशि का भुगतान करने का दायी था चाहे उसने वास्तव में उतने अंश नहीं खरीदे थे।
(c) उत्तराधिकार द्वारा सदस्यता: कंपनी के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उसके अंश निष्पादक को अंतरित हो जाते हैं जिसके अधिकार तथा दायित्व अंश धारियों के समान ही होते हैं। निष्पादक कंपनी के अंश धारी के रूप में रजिस्टर्ड किए जा सकते हैं। इसी तरह कंपनी के किसी मृत सदस्य का उत्तराधिकारी अपना नाम मृतक के स्थान पर कंपनी के सदस्य रजिस्टर में दर्ज करवा सकता है परंतु इसके लिए उसे कंपनी का प्रोवेट अथवा प्रशासन पत्र प्रस्तुत करना होगा। परंतु यदि मृत सदस्य के अंश पूर्णतया चुकता ना होने के कारण मृतक का निष्पादन या उत्तराधिकारी अपना नाम उस कंपनी के सदस्य रजिस्टर में लिखवाना नहीं चाहता है तो कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 56 के अनुसार उसे मृतक के अंशों को किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित करने का अधिकार होगा।
(d) अंशों के अंतरण द्वारा सदस्यता: कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 56 के अनुसार अंतरण विलेख अंश प्रमाण पत्रों के साथ कंपनी को प्रेषित किए जाते हैं। यदि कंपनी अंतरण स्वीकार कर लेती है तो वह अंतरिति का नाम सदस्य रजिस्टर में दर्ज कर लेगी और उसी समय से अंतरीती को कंपनी की सदस्यता प्राप्त हो जाती है। यदि जाली अंतरण के परिणाम स्वरूप कंपनी किसी सदस्य का नाम सदस्य रजिस्टर से काट देती है तो उस स्थिति में उस व्यक्ति की सदस्यता समाप्त हुई नहीं मानी जाएगी तथा वह कंपनी का नियमित सदस्य बना रहेगा। उल्लेखनीय है कि कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 18 के अनुसार कंपनी का सदस्य रजिस्टर उसके सदस्य की सदस्यता का प्रथम दृष्टा यत्ता साक्ष्य होता है ना कि निश्चायक साक्ष्य ।
(e) मौन सहमति द्वारा सदस्यता: यदि किसी व्यक्ति का नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में भूलवश लिख गया हो परंतु फिर भी वह व्यक्ति इस संबंध में कोई आपत्ति प्रेषित नहीं करता है तथा अपना नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में बने रहने देता है या स्वयं को उस कंपनी का सदस्य कहलाने पर आपत्ति नहीं करता है तो वह व्यक्ति कंपनी की देयता के लिए कंपनी का सदस्य माना जाएगा। यदि किसी व्यक्ति ने कंपनी में सदस्यता के अधिकार का अर्जन किया हो तो वह कंपनी का सदस्य माना जाएगा चाहे भले ही उसका नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में दर्ज ना हो। इसी प्रकार कोई व्यक्ति जिसका नाम कंपनी के सदस्य रजिस्टर में दर्ज है कंपनी का सदस्य नहीं माना जाएगा यदि उसने सदस्य बनना लिखित में स्वीकार नहीं किया हो या वह सदस्य की हैसियत स्वीकार नहीं करना चाहता हो।
क्या कंपनी का सदस्य अवयस्क हो सकता है?( what minor eligible for the membership of a company):
कोई भी अवयस्क किसी कंपनी का सदस्य नहीं बन सकता है।भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क द्वारा की गई संविदा को पूर्ण रूप से शून्य प्रभावी माना जाता है। यदि कंपनी के निर्देशक किसी अवयस्क व्यक्ति द्वारा कंपनी की सदस्यता के लिए आवेदन किए जाने पर उस व्यक्ति की अवयस्कता की जानकारी ना होने के कारण उसे सदस्य के रूप में रजिस्टर कर लेते हैं तो ऐसी स्थिति में कंपनी को ऐसी अवयस्कता की जानकारी होने पर उसकी सदस्यता को निराकृत करना होगा तथा उसका नाम रजिस्टर से काटते हुए उस अवयस्क से ली गई समस्त धनराशि लौटा नी होगी।
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