Skip to main content

भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

किन दशाओं में निजी कंपनी सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तित की जा सकती है?In a feature situation a private company converted into public company?

कंपनी की परिभाषा (definition of company)

 कंपनी को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है -

कंपनी व्यक्तियों का एक ऐसा संघ है जो किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठित हुआ हो।

                              (न्यायधीश जेम्स)


          कंपनी स्वभाव से ही एक ऐसा कृत्रिम व्यक्ति है जो किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए राज नियम द्वारा अधिकृत या स्थापित किया जाता है।

                       (किम्बाल एवं किम्बाल)


               कंपनी शब्द का आशय सामान्य उद्देश्यों के लिए निर्मित बहुत से व्यक्तियों के एक संघ से है ।उनमें दो महत्वपूर्ण तत्व समाविष्ट हैं प्रथम यह कि संघ के सदस्य इतने अधिक होते हैं कि उसे सही अर्थ में फर्म या साझेदारी नहीं जा सकता है और दूसरे प्रत्येक संघ में अपने हित व अन्य सदस्यों की सहमति के बिना हस्तांतरित कर सकता है। ऐसे संघ को कानून के अनुसार नियमित किया जा सकता है ।जिसके फलस्वरूप वह एक नियमित संस्था हो जाती है जिसे सामान्यतः स्थाई अस्तित्व वाली सार्व मुद्रा युक्त निगम कहा जाता है ।इसके पश्चात वह अपने सदस्यों से पृथक एवं वैधानिक व्यक्ति माना जाता है। परंतु यदि उसका इस प्रकार निगमन नहीं हुआ हो तो उसे कोई अस्तित्व प्राप्त नहीं होता और वह विधि के अंतर्गत अपने सदस्यों के पृथक नहीं माना जाता है।

                 श्री. एस .एम .शाह


             कंपनी का आशय इस अधिनियम के अंतर्गत निर्मित कंपनी अथवा किसी विद्यमान कंपनी से है। इसी उप धारा के अनुसार विद्यमान कंपनी का आशय किसी ऐसी कंपनी से है। जिसका निर्माण तथा पंजीयन पिछले कंपनी अधिनियमों में से किसी के अधीन हुआ हो। तात्पर्य  यह है कि केवल ऐसे संघ जिनका निर्माण अथवा रजिस्ट्रेशन भारतीय कंपनी अधिनियमों में से किसी के अंतर्गत हुआ हो कंपनी कहे जा सकते हैं तथा अन्य किसी संघ को कंपनी नहीं कहा जा सकता है।


                      - कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (20)



लोक एवं व्यक्तिगत कंपनी में अंतर (Difference between public and private company)


निजी कंपनी (private company)


( 1) निजी company अपने अंशों का आवंटन जनता को नहीं कर सकती है।

( 2) निजी कंपनी के कम से कम 2 और अधिक से अधिक 20 सदस्य हो सकते हैं।

( 3) निजी कंपनी में कम से कम ₹100000 की प्रदत्त पूंजी होनी चाहिए।

( 4) निजी कंपनी को वैधानिक सभा बुलाना अनिवार्य नहीं है।

( 5) निधि कंपनी समामेलन पत्र के प्राप्त करते ही व्यापार प्रारंभ कर सकती है।

( 6) निजी कंपनी प्रविवरण जारी नहीं कर सकती है।

( 7) निजी कंपनी के अंश हस्तांतरित नहीं किए जा सकते हैं।

( 8) निजी कंपनी समामेलन के तुरंत बाद अंशों का आवंटन कर सकती है।

( 9) निजी कंपनी के नाम के अंत में प्राइवेट लिमिटेड शब्द लगाना अनिवार्य है।

( 10) निजी कंपनी में कम से कम 2 संचालक अवश्य होने चाहिए।

( 11) कंपनी के पार्षद सीमा नियम पर कम से कम 2 व्यक्तियों के हस्ताक्षर होने चाहिए।



सार्वजनिक कंपनी (public company)

( 1) सार्वजनिक कंपनी अपने अंशों का आवंटन जनता को कर सकती है।

( 2) सार्वजनिक कंपनी में कम से कम 7 और अधिक से अधिक असीमित सदस्य हो सकते हैं।

( 3) सार्वजनिक कंपनी में कम से कम ₹500000 की प्रदत्त पूंजी होनी आवश्यक है।


( 4) सार्वजनिक कंपनी को वैधानिक सभा बुलाना अनिवार्य है।

( 5) सार्वजनिक कंपनी तब तक व्यापार प्रारंभ नहीं कर सकती है जब तक उसे व्यापार प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता है।


( 6) सार्वजनिक कंपनी को पूरा विवरण जारी करना आवश्यक है।

( 7) सार्वजनिक कंपनी के अंश हस्तांतरित किए जा सकते हैं।

( 8) सार्वजनिक कंपनी न्यूनतम अभिदान प्राप्त होने के बाद ही अंशों का आवंटन कर सकती है।

( 9) सार्वजनिक कंपनी के नाम के अंत में लिमिटेड शब्द लगाना अनिवार्य नहीं है।


( 10) सार्वजनिक कंपनी में कम से कम 3 संचालक अवश्य होने चाहिए।

( 11) सार्वजनिक कंपनी के पार्षद सीमा नियम पर कम से कम 7 व्यक्तियों के हस्ताक्षर होने चाहिए।


निजी कंपनी को सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तन (conversion of private company into public company)

किसी भी निजी कंपनी को सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तित किया जा सकता है ।ऐसा परिवर्तन करने हेतु निम्नांकित कदम उठाने होते हैं


( 1) संचालक मंडल की सभा बुलाना एवं आयोजित करना: - निजी कंपनी को सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तित करने के लिए सर्वप्रथम संचालक मंडल की सभा बुलाई जाती है तथा निम्नांकित निर्णय लिए जाते हैं

(a) कंपनी को सार्वजनिक कंपनी में परिवर्तित करने का निर्णय।

(b) ऐसे परिवर्तन के कारण धारा 2 (68) की शर्तों को अंतर्नियमों से हटाने का निर्णय।

(c) कंपनी की प्रदत अंश पूंजी यदि ₹500000 से कम है तो उसे कम से कम ₹500000 करने का निर्णय।


(d) यदि कंपनी में संचालकों की संख्या 3 से कम है तो कम से कम एक संचालक और नियुक्त करने का संकल्प पारित करने का साधारण सभा को सुझाव देना।

( 2) साधारण सभा की सूचना भेजना: - तत्पश्चात सदस्यों को कंपनी की साधारण सभा की सूचना दी जाती है। इसी के साथ कार्यावली तथा सभा के विशेष कार्यों के संबंध में व्याख्यात्मक विवरण भी भेजा जाता है।


( 3) प्रस्ताव पारित करना - विधिवत रूप से आयोजित साधारण सभा में निम्न से संबंधित प्रस्ताव पारित किए जाते हैं -

(a) इस प्रस्ताव को क्रियान्वित करने हेतु अंतर्नियमों से धारा 2 (68) की शर्तों हटाने का प्रस्ताव।

(b) यदि आवश्यक हो तो कंपनी में एक और संचालक नियुक्त करने का प्रस्ताव।

(c) आवश्यक हो तो इस सभा में अधिकृत पूंजी में वृद्धि करने हेतु प्रस्ताव पारित करना।

( 4) अंतर नियमों में परिवर्तन: - कंपनी की सभा में सभी आवश्यक संकल्पों के पारित हो जाने के बाद कंपनी के अंतर्नियमों में आवश्यक परिवर्तन करना होता है ।फलतः धारा 2 (68) की अनुपालना मे अंतर्नियमों में जोडे हुए प्रावधान हटा दिए जाते हैं।

( 5) सदस्य की संख्या में वृद्धि: - यदि कंपनी की सदस्य संख्या 7 से कम है तो इसे बढ़ाकर कम से कम 7 भी किया जाता है।

( 6) संचालकों की संख्या में वृद्धि: - तत्पश्चात कंपनी के संचालकों की संख्या को कम से कम तीन करने हेतु आवश्यक हो तो कम से कम एक संचालक की नियुक्ति भी की जाती है ।यदि कंपनी की सभा में इस आशय का संकल्प पारित नहीं किया गया है तो संचालक मंडल अतिरिक्त संचालक की नियुक्ति करके इस आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं।

( 7) रजिस्ट्रार के प्रलेखों की सुपुर्दगी: - अगले चरण में कंपनी को परिवर्तन संबंधी संकल्प पारित करने के 15 दिनों के भीतर निम्नांकित प्रलेख रजिस्ट्रार को फाइल करने होते हैं

(a) कम्पनी की साधारण सभा द्वारा पारित विशेष संकल्प।

(b) कंपनी के परिवर्तित अंतर्नियमों की मुद्रित प्रतिलिपि।

( 8) निजी कंपनी की समाप्ति: - जब कंपनी अपने अंतर्नियमों में सभी परिवर्तन कर लेती है तो ऐसे परिवर्तन करने की तिथि से ही उस निजी कंपनी को समाप्त माना जाता है।


Comments

Popular posts from this blog

असामी कौन है ?असामी के क्या अधिकार है और दायित्व who is Asami ?discuss the right and liabilities of Assami

अधिनियम की नवीन व्यवस्था के अनुसार आसामी तीसरे प्रकार की भूधृति है। जोतदारो की यह तुच्छ किस्म है।आसामी का भूमि पर अधिकार वंशानुगत   होता है ।उसका हक ना तो स्थाई है और ना संकृम्य ।निम्नलिखित  व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आसामी हो गए (1)सीर या खुदकाश्त भूमि का गुजारेदार  (2)ठेकेदार  की निजी जोत मे सीर या खुदकाश्त  भूमि  (3) जमींदार  की बाग भूमि का गैरदखीलकार काश्तकार  (4)बाग भूमि का का शिकमी कास्तकार  (5)काशतकार भोग बंधकी  (6) पृत्येक व्यक्ति इस अधिनियम के उपबंध के अनुसार भूमिधर या सीरदार के द्वारा जोत में शामिल भूमि के ठेकेदार के रूप में ग्रहण किया जाएगा।           वास्तव में राज्य में सबसे कम भूमि आसामी जोतदार के पास है उनकी संख्या भी नगण्य है आसामी या तो वे लोग हैं जिनका दाखिला द्वारा उस भूमि पर किया गया है जिस पर असंक्रम्य अधिकार वाले भूमिधरी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं अथवा वे लोग हैं जिन्हें अधिनियम के अनुसार भूमिधर ने अपनी जोत गत भूमि लगान पर उठा दिए इस प्रकार कोई व्यक्ति या तो अक्षम भूमिधर का आसामी होता ह...

पार्षद अंतर नियम से आशय एवं परिभाषा( meaning and definition of article of association)

कंपनी के नियमन के लिए दूसरा आवश्यक दस्तावेज( document) इसके पार्षद अंतर नियम( article of association) होते हैं. कंपनी के आंतरिक प्रबंध के लिए बनाई गई नियमावली को ही अंतर नियम( articles of association) कहा जाता है. यह नियम कंपनी तथा उसके साथियों दोनों के लिए ही बंधन कारी होते हैं. कंपनी की संपूर्ण प्रबंध व्यवस्था उसके अंतर नियम के अनुसार होती है. दूसरे शब्दों में अंतर नियमों में उल्लेख रहता है कि कंपनी कौन-कौन से कार्य किस प्रकार किए जाएंगे तथा उसके विभिन्न पदाधिकारियों या प्रबंधकों के क्या अधिकार होंगे?          कंपनी अधिनियम 2013 की धारा2(5) के अनुसार पार्षद अंतर नियम( article of association) का आशय किसी कंपनी की ऐसी नियमावली से है कि पुरानी कंपनी विधियां मूल रूप से बनाई गई हो अथवा संशोधित की गई हो.              लार्ड केयन्स(Lord Cairns) के अनुसार अंतर नियम पार्षद सीमा नियम के अधीन कार्य करते हैं और वे सीमा नियम को चार्टर के रूप में स्वीकार करते हैं. वे उन नीतियों तथा स्वरूपों को स्पष्ट करते हैं जिनके अनुसार कंपनी...

कंपनी के संगम ज्ञापन से क्या आशय है? What is memorandum of association? What are the contents of the memorandum of association? When memorandum can be modified. Explain fully.

संगम ज्ञापन से आशय  meaning of memorandum of association  संगम ज्ञापन को सीमा नियम भी कहा जाता है यह कंपनी का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। हम कंपनी के नींव  का पत्थर भी कह सकते हैं। यही वह दस्तावेज है जिस पर संपूर्ण कंपनी का ढांचा टिका रहता है। यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह कंपनी की संपूर्ण जानकारी देने वाला एक दर्पण है।           संगम  ज्ञापन में कंपनी का नाम, उसका रजिस्ट्री कृत कार्यालय, उसके उद्देश्य, उनमें  विनियोजित पूंजी, कम्पनी  की शक्तियाँ  आदि का उल्लेख समाविष्ट रहता है।         पामर ने ज्ञापन को ही कंपनी का संगम ज्ञापन कहा है। उसके अनुसार संगम ज्ञापन प्रस्तावित कंपनी के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण अभिलेख है। काटमेन बनाम बाथम,1918 ए.सी.514  लार्डपार्कर  के मामले में लार्डपार्कर द्वारा यह कहा गया है कि "संगम ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य अंश धारियों, ऋणदाताओं तथा कंपनी से संव्यवहार करने वाले अन्य व्यक्तियों को कंपनी के उद्देश्य और इसके कार्य क्षेत्र की परिधि के संबंध में अवग...