COMPANY अधिनियम 2013 के प्रमुख लक्षण एवं विशेषताएं (give the main characteristics of Company Act 2013.)
Main characteristic of company act 2013 (कंपनी अधिनियम 2013 की प्रमुख विशेषताएं)
कंपनी अधिनियम 2013 में कुल मिलाकर 29 अध्यायों में से 470 धाराएं शामिल है तथा इनमें 7 अनुसूचियां भी दी गई है ।इस प्रकार इस अधिनियम द्वारा कंपनी अधिनियम 1956 की कुल 658 धाराओं की संख्या को घटाकर 470 धाराओं तक सीमित रखा गया है अर्थात 188 धाराएं कम की गई है। अनुसूचियों की संख्या 5 से बढ़ाकर 7 कर दी गई है ।इस नए अधिनियम द्वारा कंपनी विधि में निम्नलिखित परिवर्तन किए गए हैं -
( 1) कंपनी अधिनियम 2013 का मूल उद्देश्य कंपनियों से संबंधित विधि को पूर्णतया संशोधित तथा समेकित कर के वर्तमान विश्व बाजार व्यवस्था में उद्यमियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना तथा उनकी कानूनी समस्याओं का निवारण करना है ।इसके साथ ही इस ओर भी यथेष्ट ध्यान दिया गया है कि नई कंपनी कानून व्यवस्था यथासंभव पारदर्शी तथा जवाब देह हो तथा निवेशकों तथा कंपनियों से संव्यवहार करने वाले व्यक्तियों के हितों की संरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
( 2) कंपनी अधिनियम 2013 की एक विशिष्टता यह है कि इसके द्वारा एकल व्यक्ति कंपनी की संकल्पना को लागू किया गया है जिसका आशय यह है कि अब किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में केवल एकमात्र सदस्य भी हो सकता है।
( 3) 2013 के नए कंपनी अधिनियम की धारा 2 जो की परिभाषा ओं से संबंधित है मे 30 नई परिभाषाओं का समावेश करके कंपनी विधि में प्रयुक्त किए जाने वाली विभिन्न अभिव्यक्तियों (पदावलियों) के निश्चित आशय एवं अर्थ को स्पष्ट किया गया है ताकि इनके निर्वचन में आने वाली कठिनाइयों का निवारण हो सके।
( 4) इस अधिनियम 2013 की एक विशेषता यह भी है कि इसके द्वारा कतिपय अपवादों को छोड़कर सभी कंपनियों के लिए एक समान वित्तीय वर्ष विहित किया गया है ।जो प्रत्येक वर्ष के 1 अप्रैल से प्रारंभ होकर 31 मार्च को समाप्त होगा ।इसके फलस्वरूप कंपनियों को वित्तीय संगणना एवं लेखाकरण में सुविधा होगी।
( 5) नये कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत अब किसी प्राइवेट कंपनी की अधिकतम सदस्य संख्या 50 की बजाय 200 सदस्यों तक हो सकेगी जिससे प्राइवेट कंपनियों को कार्य विस्तार में सुविधा होगी।
( 6) कंपनी अधिनियम 2013 के अधीन कंपनी के सीमा नियम के उद्देश्य खंड में (a) मुख्य उद्देश्य (b) अनुषांगिक उद्देश्य तथा (c) अन्य उद्देश्य ऐसे तीन भागों में पृथकतया उल्लेखित किया जाना आवश्यक नहीं रह गया है और अब कंपनी को सीमा नियम में अपने केवल उस मुख्य उद्देश्य को समाविष्ट किया जाना आवश्यक है जिसके लिए कंपनी का निगमन किया गया है।
( 7) इस अधिनियम में कंपनियों द्वारा अपनी विवरण पत्रिका जारी करके अपने विशिष्ट प्रयोजन या उद्देश्य की पूर्ति हेतु जनता से पूंजी जुटाई जाने की दशा में यह प्रतिबंध लगाया गया है कि यदि उक्त उद्देश्य प्रयोजन के पूरे हो जाने के पश्चात कोई धनराशि शेष बची रहती है तो उसका उपयोग किसी अन्य प्रयोजन हेतु नहीं किया जा सकेगा ।जब तक इस हेतु विशेष प्रस्ताव पारित करके मंजूरी ना लिए गई हो तथा विसम्मत अंश धारियों को निकास का अवसर प्रदान ना किया गया हो।
( 8) 2013 के कंपनी अधिनियम के अंतर्गत स्थानापन्न विवरण पत्रिका की आवश्यकता को पूर्णत: समाप्त कर दिया गया है। जिस के संबंध में कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 370 में प्रावधान थे ।अब नए कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी विस्तृत विवरण पत्रिका जारी करें जिन में वर्णित उद्देश्य तथा सुविधाओं की शर्तों में तब तक बदलाव नहीं किया जा सकेगा। जब तक इस हेतु अंश धारियों द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित करके स्वीकृति नहीं दी गई हो।
( 9) 1956 के निषेध अधिनियम के अनुसार केवल वित्तीय संस्थाएं सार्वजनिक बैंक या अनुसूचित बैंक ही सेल्फ प्रोस्पेक्टर्स जारी कर सकते थे ।लेकिन 2013 के कंपनी अधिनियम के अंतर्गत बोर्ड ऑफ सिक्योरिटीज एक्सचेंज को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह किसी भी वर्ग या वर्गों की कंपनियों को अपनी सेल्फ विवरण पत्रिका रजिस्ट्रार को फाइल की जाने की अनुमति प्रदान कर सकता है।
( 10) नए कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत कंपनियां अपनी अंश पूंजी के रूप में धारित प्रतिभूतियों के अलावा अन्य प्रतिभूतियों के आवंटन संबंधी ब्यौरा(return) फाइल कर सकेगी तथा विशेष प्रस्ताव पारित करके विश्व निक्षेपी रसीद भी जारी कर सकेंगे।
( 11) 2013 के कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कंपनी द्वारा स्वयं के अंशों को वापस खरीदने के नियम में पर्याप्त ढील दी गई है तथा अब कंपनी द्वारा अपने नीचे पर तथा उन पर देय ब्याज का भुगतान नहीं किए जाने पर या अंश धारियों को लाभांश का भुगतान करने पर व्यतिक्रम (default) किए जाने पर भी वह अपनी अंश पूंजी की वापस क्रय (buy back) कर सकती है।
( 12) 2013 का कंपनी अधिनियम पारित हो जाने के परिणाम स्वरूप अब निक्षेपों के प्रति ग्रहण संबंधी मामलों में अ बैंकिंग कंपनियां रिजर्व बैंक के नियमों द्वारा प्रसारित होंगी ना कि कंपनी अधिनियम के अधीन।
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