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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

What are the essential of a valid adoption under Hindu law? What provision have been given by the Hindu adoption and maintenance act 1956 in this regard? हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 के अंतर्गत अवैध दत्तक ग्रहण के आवश्यक तत्वों की विवेचना कीजिए.

दत्तक ग्रहण (adoption): - मनु के अनुसार दत्तक ग्रहण किसी पुत्र के अभाव में एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है दत्तक ग्रहण से हमारा अभिप्राय है किसी पुत्र को उसके माता-पिता के घर से दत्तक  ग्रहण करने वाले व्यक्ति के घर में उसके पुत्र के रूप में नियोजित करना जिसके अनुसार यह समझा जाता है कि दत्तक ग्रहण में कि ग्रहित पुत्र का दत्तक ग्रहण करने वाले पिता के घर फिर से जन्म हुआ तथा पूर्व पिता के घर से उसका संबंध विच्छेद हो गया है.

              मनु के अनुसार वह पुत्र जिसके माता-पिता किसी ऐसे व्यक्ति को पुत्र के रूप में दान कर देते हैं जो पुत्र हीन है तथा प्रदत्त  पुत्र की जाति का हो तथा विधि  साथ ही स्नेह पूर्वक दिया गया हो तो दत्तक पुत्र माना जाता है.
               धार्मिक उद्देश्य गौण  है बौध्दायन के अनुसार दत्तक ग्रहण करने वाला पुत्र को इस प्रकार के शब्दों से ग्रहण करता है मैं तुमको धार्मिक क्रियाओं की पूर्ति के लिए ग्रहण करता हूं मैं तुमको अपने पूर्वजों की श्रंखला को बनाए रखने के लिए ग्रहण करता हूं दत्तक मीमांसा में यह कहा गया है कि पितरों को पिंडदान जल दान देने तथा धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए एवं अपने नाम को कायम रखने के लिए एक व्यक्ति को दत्तक पुत्र दत्तक ग्रहण में ले लेना चाहिए यदि वह पुत्रहीन दत्तक चंद्रिका में यह कहा गया है कि जहां धार्मिक आवश्यकता ना भी हो वहां भी एक पुत्र को ग्रहण कर लेना चाहिए जिससे अपना नाम चल सके तथा वंश परंपरा चलती रहे  वस्तुतः दत्तक ग्रहण के सब प्राचीन दृष्टांत जो प्राप्त होते हैं उनमें पुत्रियों को भी दत्तक  में ग्रहण किया जाता है यहाँ  से यह सिद्ध होता है कि दत्तक में धार्मिक दृष्टिकोण भौतिक दृष्टिकोण को बहिष्कृत ना कर सके.


नरसिंह बनाम पार्थसारथी अप्पा राव के वाद में पृवी काउंसिल ने यह कहा है कि किसी पुत्र को ग्रहण करने के अधिकार संबंधी इच्छा पत्र को  सार्थक दृष्टिकोण की देना आवश्यक नहीं है किंतु अमरेंद्र मान सिंह बनाम संतान सिंह में पृवी काउंसिल ने पुत्र की पूर्ति की भावना में धार्मिक दृष्टिकोण के सिद्धांत को सन्निहित माना है इस वाद में यह कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि दत्तक ग्रहण ब्राह्मण वादी सिद्धांत का आधार प्रत्येक हिंदू का अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति करना है जिसमें 1 श्रृंखला को कायम रखना तथा आवश्यक संस्कारों को संपन्न करना सम्मिलित है.

           इस प्रकार दत्तक ग्रहण में माता-पिता द्वारा अपने पुत्र का दान कर दिया जाता है तब तक कार्य प्राकृतिक परिवार से आवेश को समूल उखाड़कर दत्तक लेने वाले परिवार में रोपण करना जिसका तात्पर्य होता है कि दत्तक परिवार में उसकी सब नातेदारी में स्थापित हो गई हैं और प्राकृतिक परिवार से सब नातेदारी समाप्त हो जाती हैं प्राकृतिक परिवार से इतना संबंध अवश्य रह जाता है कि वह प्राकृतिक परिवार की किसी स्त्री से विवाह नहीं कर सकता जिस से दत्तक  के पूर्व नहीं कर सकता था.


वैद्य दत्तक ग्रहण के लिए आवश्यकताएं: -

        हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 6 में वैद्य दत्तक ग्रहण के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है -

( 1) गोद लेने वाले व्यक्ति में गोद लेने की क्षमता और उसका अधिकार होना चाहिए

( 2) दत्तक ग्रहण में देने वाले व्यक्ति में वैसा करने की क्षमता होनी चाहिए

( 3) दत्तक ग्रहण में दिया जाने वाला बालक दत्तक ग्रहण में लेने के योग्य होना चाहिए

( 4) हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 11 में वित्त अन्य शर्तों को पूरा किया गया हो

( 1) गोद लेने की क्षमता (capacity of male to take adoption): - हिंदू दत्तक ग्रहण का का भरण पोषण अधिनियम 1950 की धारा 7 के अनुसार कोई भी स्वस्थ चित्त  वाला हिंदू यदि अवयस्क  नहीं है किसी पुत्र अथवा पुत्री को दत्तक में ले ग्रहण में ले सकता है.

              परंतु यदि उसकी पत्नी जीवित है तो जब तक की पत्नी ने पूर्ण तथा अंतिम रूप से संसार को त्याग ना दिया हो तो हिंदू ना रह गई हो अथवा सक्षम क्षेत्राधिकार वाले किसी न्यायालय द्वारा विकृत चित्त वाली घोषित कर दी गई हो तब तक वह अपनी पत्नी की सहमति के बिना ग्रहण नहीं करेगा.

          स्पष्टीकरण: - यदि किसी व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां दत्तक ग्रहण के समय जीवित हैं तो जब तक कि पूर्ववर्ती परंतुक  में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी के लिए उनमें से किसी एक ही सम्मती अनावश्यक ना होकर सब पत्नियों की सम्मति आवश्यक होगी.

                      इस प्रकार किसी भी हिंदू पुरुष को दत्तक ग्रहण के योग्य होने के लिए दो शर्तों को पूरा करना चाहिए -

( 1) उसे वयस्क होना चाहिए

( 2) उसे स्वस्थ चित्त  का होना चाहिए

            इसके अलावा यदि ऐसे गोद लेने वाले व्यक्ति की पत्नी जीवित है तो उसकी सहमति लेना आवश्यक होगी परंतु निम्नलिखित दशाओं  में सहमति आवश्यक नहीं है -

( 1) यदि पत्नी पूर्ण अथवा अंतिम रूप से संसार से विलग हो गई है अथवा

( 2) वह हिंदू नहीं रह गई है अथवा.

( 3) किसी सक्षम अधिकारीता वाले न्यायालय ने उसे विकृत चित्त घोषित कर दिया हो यदि किसी के एक से अधिक पत्नियां हैं तो उस पत्नी की सम्मति लेना आवश्यक नहीं है जो उपयुक्त शर्तों से किसी के भी अंतर्गत आती हैं.

          एक नवीनतम वाद भोलू राम बनाम रामलाल के वाद में उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय किया गया है कि जहां एक बालक गोद लिया गया एक पत्नी की सहमति प्राप्त कर ली गई परंतु दूसरी पत्नी जो अलग रह गई थी उसकी सहमति नहीं ली गई ऐसी परिस्थिति में गोद अवैध हो जाएगी क्योंकि दूसरी पत्नी की सम्मति भी आवश्यक थी.

             यहां पति-पत्नी के मध्य न्यायिक पृथक्करण की आज्ञप्ति हो चुकी है वहां भी पत्नी की सहमति के बिना पति तब तक ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि न्यायिक पृथक्करण से विवाह विच्छेद नहीं होता किंतु शून्य  विवाह के अंतर्गत पत्नी की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उस स्थिति में पत्नी का वैद्य पत्नी नहीं होती.

         हिंदू स्त्री की गोद लेने की क्षमता (capacity of a female to take adoption): - किस अधिनियम के द्वारा स्त्रियों को भी दत्तक का अधिकार प्रदान किया गया अधिनियम की धारा 8 हिंदू नारी की गोद लेने की क्षमता के बारे में उप बंधित है इसके अनुसार कोई भी हिंदू नारी जो -

(  ) स्वस्थ चित्त 

(  ) अवयस्क  नहीं है

(  ) विवाहिता नहीं है या यदि विवाहिता है तो उसका विवाह विघटित कर दिया गया है जिसका पति मर चुका है या पूर्ण रूप से अंतिम रूप से संसार का त्याग कर चुका है या हिंदू नहीं रह गया है या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया है कि वह विकृत चित्त  का है.

         वह पुत्र या पुत्री जो को दत्तक दे लेने की सामर्थ्य रखती है.

( 2) दत्तक ग्रहण में देने में समर्थ व्यक्ति हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 9 के अंतर्गत उन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है जो दत्तक ग्रहण में बालक को देने के लिए सक्षम है  धारा 9 इस प्रकार है -

(A  ) बालक की माता अथवा पिता अथवा पिता या संरक्षक के सिवा कोई भी व्यक्ति बालक को दत्तक ग्रहण में देने के लिए समर्थ नहीं है.

( B ) यदि पिता जीवित हो तो उप धारा तीन और उप धारा 4 के उपबंधों  के अधीन रहते हुए केवल उसे ही दत्तक मे बालक देने का अधिकार होगा किंतु जब तक माता से पूर्ण तथा अंतिम रूप से संसार नहीं त्याग दिया है या वह हिंदू नहीं रह गई है अथवा सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा विकृत चित्त  की घोषणा कर दी गई हो ऐसा अधिकार माता की सहमति के बिना प्रयोग में ना लाया जाएगा.

                    यदि पिता मर चुका है अथवा पूर्ण  तथा अंतिम रूप से संसार त्याग चुका है अथवा किसी सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा विकृत मतिष्क का घोषित किया जा चुका है तो माता बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकेगी.


( 3) जहाँ माता और पिता दोनों मर चुके हो पूर्ण  और अंतिम रूप से संसार का त्याग कर चुका हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उनके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृत चित्त का है या जहां की अवयस्क की जनता ज्ञात ना हो तो उस बालक का संरक्षक चाहे वह इच्छा पत्र द्वारा नियुक्त संरक्षक हो अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अथवा घोषित संरक्षक हो न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा लेकर बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकेगा.


( 4) न्यायालय इस प्रकार की अनुज्ञा देने के पूर्व बालक की इच्छा तथा साझेदारी पर विचार करेगा इसके अतिरिक्त न्यायालय बालक के हितों को ध्यान में रखकर आज्ञा प्रदान करेगा न्यायालय यह भी देखेगा कि दत्तक ग्रहण में पुत्र को देने के फल स्वरुप कोई देंनगी या इनाम ऐसी किसी देंनगी ईनाम के सिवा जैसा कि न्यायालय मंजूर करें अनुज्ञा के लिए आवेदन करने वाले ने ना तो प्राप्त किया है और ना प्राप्त करने का करार किया है और ना किसी भी व्यक्ति के से आवेदन करने वाले को किया या दिया है और ना ही करने आ देने के लिए करार उससे किया है.


स्पष्टीकरण: - इस धारा के प्रयोजनों के लिए -

( 1) माता और पिता पदों के अंतर्गत दत्तक  ग्राहिता माता तथा दत्तक ग्रहिता पिता  नहीं आते.


( 2) संरक्षक में वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी देखरेख में किसी अवयस्क  का शरीर या उसका शरीर हो संपत्ति दोनों उसके अंतर्गत आते हैं -

(  ) अवयस्क  के पिता यह माता की वसीयत द्वारा नियुक्त संरक्षक तथा

(  )  किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक तथा


( 3) न्यायालय से अभिप्राय नगर व्यवहार न्यायालय जिला न्यायालय से है जिनके क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के अंतर्गत दत्तक ग्रहण में लिया जाने वाला व्यक्ति साधारणत   निवास करता है.

             इस प्रकार इस धारा के अंतर्गत तीन प्रकार के व्यक्तियों को दत्तक ग्रहण में पुत्र देने का अधिकार प्राप्त है -

( 1) प्राकृतिक पिता


( 2) प्राकृतिक माता

( 3) संरक्षक (इच्छा पत्र द्वारा तो न्यायालय द्वारा नियुक्त किया हुआ)


             यहां बालक के अभिभावकों माता-पिता नहीं हो वहां बालक का संरक्षक चाहे इच्छा पत्र द्वारा नियुक्त किया गया हुआ था न्यायालय द्वारा नियुक्त किया गया हो या घोषित किया गया हो न्यायालय की अनुमति से बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकता है.


कौन  गोद लिया जा सकता है - अधिनियम की धारा 10 के प्रावधान उस व्यक्ति के लिए आवश्यक योग्यता ओं का विवरण दिया गया है जो दत्तक ग्रहण के पात्र बनाए जा सकते हैं धारा 10 इस प्रकार है  जब तक कोई भी व्यक्ति दत्तक के लिए जाने योग्य ना होगा जब तक की निम्नलिखित शर्तें पूरी ना हो अर्थात -

( 1) वह हिंदू है


( 2) वह पहले से दत्तक नहीं लिया जा चुका है या ली जा चुकी है

( 3) उसका विवाह नहीं हुआ है तब के सिवा जबकि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढि या प्रथा जो विवाहित व्यक्तियों का दत्तक लिया जाना अनुज्ञा करती हो

( 4) उसने 15 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है जब तक कि सिवाय जबकि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढि या प्रथा हो जो व्यक्तियों का जिन्होंने 15 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो दत्तक लिया जाना अनु ज्ञात करती हो.

            इस प्रकार वर्तमान हिंदू विधि के अंतर्गत बालक अथवा बालिका किसी को भी दत्तक ग्रहण में लिया जा सकता है उसे हिंदू होना चाहिए बालक और बालिका एक बार ही दत्तक ग्रहण में लिया जा सकता है इसके साथ ही उसे अविवाहित होना चाहिए किंतु यदि ऐसी कोई प्रथा अथवा रूढि किसी वर्ग में प्रचलित है तो विवाहित व्यक्ति को भी दत्तक ग्रहण किया जा सकता है बालक 15 वर्ष की आयु पूरी की हुई नहीं होनी चाहिए किंतु यह शर्त भी है तथा रोगियों से साबित हो सकती है.

           वर्तमान विधि में एक अनाथ बालक अथवा बालिका को दत्तक ग्रहण के लिए लिया जा सकता है इस प्रकार के दत्तक ग्रहण के अनाथ के संरक्षक को न्यायालय से इस आशय की अनुमति प्राप्त करनी पड़ेगी अनुमति प्राप्त हो जाने के बाद ही अनाथ का वैद्य दत्तक ग्रहण कियाग्रहिता गा अधिनियम के अंतर्गत एक पागल पुत्र अथवा पुत्री को तब तक ग्रहण कर लिया जा सकता है ऐसे दत्तक ग्रहण के लिए कोई भी निषेध नहीं है.

अन्य आवश्यक शर्तें इस अधिनियम की धारा 11 के अनुसार प्रत्येक दत्तक ग्रहण में निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए -

( 1) यदि दत्तक ग्रहण किसी पुत्र का है तो दत्तक ग्रहितापिता को माता को जिसके द्वारा दत्तक किया जा रहा हो कोई हिंदू पुत्र पत्र अथवा प्रपत्र दत्तक ग्रहण के समय जीवित नहीं होनी चाहिए.

( 2) यदि दत्तक ग्रहण किसी लड़की का है तो गोद लेने वाले पिता या माता के हिंदू या लड़के की लड़की को लेते समय नहीं होना चाहिए.

( 3) यदि दत्तक ग्रहण किसी पुरुष द्वारा किसी बालिका का किया जा रहा है तो दत्ता ग्रहिता पिता दत्ता के लिए जाने वाली बालिका से आयु में कम से कम 21 वर्ष बड़ा होना चाहिए..

( 4) यदि दत्तक ग्रहण किसी स्त्री द्वारा किया जा रहा है तथा तथा ग्रहण में किसी बालक को लिया जा रहा है तो तब तक रहता माता को दत्तक वाले बालक से कम से कम 21 वर्ष बड़ा होना चाहिए इस प्रकार इस धारा के अनुसार तब तक रहता एवं तब तक रहता की आयु में कम से कम 21 वर्ष का अंतर होना आवश्यक है.

( 5) एक ही बालक एक साथ दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा दत्तक नहीं लिया जा सकता है.

( 6) अब तक लिए जाने वाला बालक संबंधित माता-पिता या संरक्षक द्वारा या उसके अधिकार के अंतर्गत अपने मूल परिवार से दत्तक ग्रहण वाले परिवार को हस्तांतरित करने के लिए आज से से वास्तविक रूप से दत्तक लिया और दिया जाना आवश्यक है.

             परंतु दत्तक होम का किया जाना किसी दत्तक ग्रहण की मान्यता के लिए आवश्यक नहीं होगा.

          वैद्य दत्तक ग्रहण के लिए आवश्यक है कि बालक को वास्तविक रूप में गोद में देना चाहिए तथा वास्तविक रूप में लेना चाहिए.

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