सहदायिकी संपत्ति पृथक संपत्ति तथा पैतृक संपत्ति के बीच संबंध: Write a brief note on Coparcenary property ,separate property and Ancestral property
सहदायिकी संपत्ति: - सहदायिकी संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति भी कहा जाता है सहदायिकी संपत्ति वह होती है जिसमें सहदायिकी का हक जन्म से होता है तथा उन्हें संपत्ति का बंटवारा करने का तथा उत्तरजीविता का अधिकार होता है सहदायिकी संपत्ति में निम्नलिखित सम्मिलित है -
( 1) पैतृक संपत्ति
( 2) संयुक्त परिवार के सदस्य द्वारा संयुक्त रूप से अर्जित की गई संपत्ति
( 3) सदस्यों की पृथक संपत्ति में जो पृथक कोष में डाल दी गई है.
( 4) वह संपत्ति जो सभी सदस्यों द्वारा अथवा किसी सहभागी द्वारा संयुक्त परिवार के कोष की सहायता से अर्जित की गई है.
यह सहदायिकी संपत्ति के संबंध में उसको बेचे जाने का इकरारनामा किया गया हो वा एक हिस्सेदार इकरारनामा में पक्षकार ना हो वह विशिष्ट अनुपालन के वाद में उस सहदायिकी के हिस्से को छोड़ते हुए खरीदे सौदे की पूरी रकम देने को तैयार हो तो बिक्री पारित की जा सकती है.
पृथक सम्पत्ति : - हिंदू विधि के अंतर्गत सयुक्त परिवार का कोई भी सदस्य चाहे वह सहभागीदारी हो या नहीं स्वयं संपत्ति अर्जित कर सकता है इसे पृथक संपत्ति कहा जाता है अतः पृथक संपत्ति वह होती है जिस पर इसका स्वामी ध्यान करने का अप्रतिबंधित अधिकार रखता है इस संपत्ति पर उसके सहदायिकों को यदि कोई हो तो कोई अधिकार नहीं होता और उसकी मृत्यु के पश्चात इसका न्यागमन उत्तरजीविता द्वारा ना होकर उत्तराधिकारी द्वारा होता है अर्थात दायकों को प्राप्त होता है.
याज्ञवल्क्य के अनुसार बिना संयुक्त परिवार के संपत्ति को अहित किए सहदायिकी द्वारा उपार्जित संपत्ति होती है यदि कोई सहदायिकी परिवार की संपत्ति को लौटा लेता है तो वह उसे सहदायिक को नहीं देगा मिताक्षरा के अनुसार विज्ञान या विद्या द्वारा अर्जित धन इत्यादि सहदायिक की पृथक संपत्ति होती है कात्यायन के पृथक संपत्ति की सूची निम्न प्रकार दी गई है -
( 1) शास्त्रार्थ में भी विजित होने पर मिला पारितोषिक
( 2) शिष्य से दक्षिणा में प्राप्त धन, पुरोहितों की कार्य करने पर मिली दक्षिणा, किसी विवाद को निपटाने के फल स्वरुप धन ,वेदोच्चारण द्वारा प्राप्त धन, विव्दता के प्रदर्शन द्वारा प्राप्त धन
( 3) किसी आखेट में कौशल प्रदर्शित करने पर या दाव में जीता गया धन
( 4)कला के प्रदर्शन द्वारा प्राप्त धन या पारितोषक में प्राप्त धन और
( 5) विद्वता की प्रकांडता द्वारा प्राप्त धन या यज्ञ करने का दक्षिणा
( 6) विज्ञान कला या विद्वता में कौशल प्राप्त करने के कारण उपार्जित धन।
के.एस.सुब्बया पिल्लई बनाम कमिश्नरआयकर: - के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभी निर्धारित किया है कि यदि कोई संयुक्त हिंदू परिवार के कर्ता अपनी व्यक्तिगत समता और योग्यता से कोई संपत्ति स्व अर्जित करता है तो ऐसी संपत्ति उसके पृथक संपत्ति कहलाएगी प्रस्तुत वाद में आयकर न्यायाधिकरण के कर्ता के द्वारा अर्जित संपत्ति को संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति माना था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने आयकर न्यायाधिकरण के निर्णय को निरस्त करते हुए यह निर्णय किया है कि कर्ता द्वारा अपनी योग्यता से बनाई गई संपत्ति उसकी स्वार्जित संपत्ति मानी जाएगी ना कि संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति.
विदारी वासम्मा बनाम कने बिहारी साधोगाथप्पा के प्रकरण में न्यायालय ने भी निश्चय किया कि जहां विभाजन द्वारा परिवार की स्थिति के पृथक्करण के पश्चात निर्वसीयती मृतक द्वारा प्राप्तियां की जाती है और परिवारिक संपत्तियों से आय है तो वे स्वयं प्राप्त की गई संपत्ति के रूप में मानी जाएंगी.
निम्नलिखित प्रकार की संपत्ति पृथक संपत्ति होती है -
( 1) सप्रतिबंधित है
( 2) दान अथवा वसीयत द्वारा प्राप्त संपत्ति
( 3) स्व अर्जित संपत्ति
( 4) बँटवारे में मिली संपत्ति
( 5) एकमात्र उत्तरजीवी सहदायिक को मिली संपत्ति
पैतृक संपत्ति: - पैतृक संपत्ति से तात्पर्य निकटतम तीनों पूर्वजों अर्थात पिता पितामह और प्रति पितामह के दाय मे प्राप्त संपत्ति से होता है यह संपत्ति संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के लिए भोग के लिए होती है किसी भी व्यक्ति के हाथ में ऐसी संपत्ति होने पर उसके पुत्र और प्रपत्र जन्म से ही प्राप्त करते हैं पैतृक संपत्ति की परिभाषा देते हुए पृवी काउंसिल ने कहा है कि इसे पिता की पुरुष वंश परंपरा में से भी वे पुरुष पूर्वजों में से पिता को दाय मिली संपत्ति तक ही सीमित रहना चाहिए केवल ऐसी संपत्ति में ही पुत्र जन्म से ही हित प्राप्त करता है और उसका यह हित पिता के बराबर होता है.
पैतृक सम्पत्ती में से की गई सारी बचत उसकी आय से अथवा बेचकर किया गया लाभ अथवा क्रय की गई संपत्ति पैतृक संपत्ति होती है हिंदू महिला की संपत्ति का अधिकार अधिनियम 1987 के अंतर्गत विधवा द्वारा मृतक पति की संपदा का दाय में ग्रहण करने अथवा सहदायिकी संपत्ति उसके हित को जीवन भर ग्रहण किए रहने के पश्चात संपत्ति क्रमसा पिता के दायदों को ही प्राप्त होने अथवा पुत्र अथवा प्रपौत्र से प्राप्त होने पर पैतृक संपत्ति होती है.
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