संयुक्त तथा अविभाज्य परिवार के कर्ता की स्थिति पर विचार: Who Is manager discuss his position in a joint an undivided Hindu family
कर्ता (प्रबंधक): - अविभाजित परिवार की संपत्ति की व्यवस्था तथा देखभाल एवं परिवार का संचालन जिस व्यक्ति द्वारा किया जाता है वह कर्ता कहलाता है. साधारणत: हिंदुओं में परिवार का कर्ता पिता होता है यदि वह जीवित है हिंदू विधि की यह अवधारणा है कि जेष्ट सहदायिक संयुक्त परिवार का कर्ता होता है जेष्ट सहदायिक कर्ता का पद अपनी जेष्ठाता के आधार पर प्राप्त करता है ना कि अन्य सदस्यों की सर्वसम्मति से जब तक यह जीवित है कर्ता बना रहेगा परिवार का एक समय के अंदर केवल एक ही कर्ता होता है जहां पिता जीवित नहीं है तथा परिवार भाइयों से निर्मित होता है वहां जेष्ठ भाई प्रतिकूल साक्ष्य के अभाव में परिवार का प्रबंधक मान लिया जाता है कमिश्नर आफ इनकम टैक्स बनाम स्टेट गोविंद राम शुगर मिल के वाद में यह निर्णय लिया गया है कि प्रबंधक होने के लिए सहदायिक ( Coparcenership ) एक आवश्यक अर्हता है अतएव एक विधवा जो सहदायिकी नहीं है होती है संयुक्त परिवार की प्रबंधक नहीं हो सकती है.
(ब)कर्ता का स्थान: - एक विद्वान के अनुसार संयुक्त परिवार में कर्ता का स्थान अद्वितीय है कर्ता संयुक्त परिवार की धुरी है कर्ता की स्थिति इतनी अनुपम है कि संसार के किसी विधि व्यवस्था में उस जैसी स्थिति का ना तो कोई अन्य पद है और ना ही कोई वैसी संस्था। यह ठीक है कि वह सीमित शक्तियों वाला व्यक्ति है परंतु उन सीमाओं के भीतर उसकी शक्ति असीम है.
संयुक्त परिवार में अन्य सदस्यों के साथ उसके संबंध ना तो साझीदार के जैसे हैं और ना ही मालिक तथा अभिकर्ता ही उसकी स्थिति किसी व्यवसाय के प्रबंध के समान भी नहीं है यह ठीक है कि परिवार का मुखिया है और उस नाते अन्य सदस्यों की ओर से कृत्य करता है परंतु यह साझीदार के समान नहीं है क्योंकि उसकी शक्तियां लगभग सीमाहीन है यद्यपि कर्ता संयुक्त परिवार के सब मामलों का प्रबंध करता है तथापि उसके प्रबंध करने की शक्तियां और अधिकार इतने वृहत है कि संसार के किसी भी उद्योग व व्यवसाय के प्रबंधक के अधिकार उतने नहीं है.
संयुक्त परिवार के लिए प्रबंधक जो कुछ करता है वह निशुल्क होता है यद्यपि कठिन सेवाओं के लिए परिवार के अन्य सदस्यों के आपसी समझौते के बाद उसके लिए कुछ पारिश्रमिक की व्यवस्था की जा सकती है इस प्रकार के समझौते के बाद जो पारिश्रमिक उस सहदायिक के पास आता है वह उसकी स्व अर्जित संपत्ति हो जाती है.
(स)कर्ता के अधिकार : - हिंदू परिवार के करता को आगरे लिखे सामान्य अधिकार प्राप्त हैं -
( 1) आय तथा व्यय के संबंध में अधिकार: - कर्ता को यह अधिकार है कि परिवार की संपत्ति की आय पर नियंत्रण रखें तथा व्यय के बाद जो बचे उसको अपने संरक्षण में रखे वह परिवार की मितव्ययिता अथवा बचत करने के लिए न्यास धारी की तरह बाध्य नहीं है न ही वह हिसाब किताब रखने के लिए बाध्य है यदि उसने परिवार के धन का व्यय सद्भाव पूर्वक किया है तो वह इसके लिए किसी भी तरह दायित्व के अधीन नहीं है एक कर्ता को अपने परिवार के सदस्यों के ऊपर धनराशि खर्च करने की तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने से संबंधित मामलों में शक्ति असीमित है.
(2) संयुक्त परिवार के कारोबार के प्रबंध के अधिकार: - कर्ता को यह अधिकार प्राप्त है कि वह संयुक्त परिवार के कारोबार का प्रबंध करें इसके लिए वह उधार लेने का भी हकदार है.
( 3) परिवार के लिए उधार लेने का अधिकार: - कर्ता को यह अधिकार है कि परिवार के प्रयोजन के लिए ऋण ले।वह कुटुंब की साख पर अथवा संपत्ति को बंधक रखकर ऋण ले सकता है इस प्रकार उसके द्वारा कि लिया गया ऋण अवयस्क तथा वयस्क दोनों श्रेणी के सदस्यों पर अविभाजित परिवार की संपत्ति में उनके हित की सीमा तक बाध्यकारी होता है किंतु ऐसे ऋण के लिए यह आवश्यक है कि वह परिवार की आवश्यकता तथा लाभ के लिए होना चाहिए.
( 4) संविदा करने का अधिकार: - कर्ता को यह अधिकार है कि वह किसी पारिवारिक व्यापार में संविदा कर सकता है रसीद दे सकता है सुलह कर सकता है या दावा समाप्त कर सकता है.
( 5) विवाचन के लिए मामलों को भेजना: - कर्ता को यह अधिकार है कि वह किसी भी मामले को पंच निर्णय के लिए भेज सकता है परिवार के सदस्य चाहे वे अवयस्क ही हो विवाचन में पंचाट से बाध्य होंगे.
( 6) समझौता करने का अधिकार: - यद्यपि कर्ता को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह संयुक्त परिवार का प्रातव्य छोड़ दे अथवा किसी संपत्ति को बिना किसी प्रतिफल के दे दे फिर भी वह ऋण के साथ तर्कसंगत समझौता करने का अधिकार रखता है जिसमें वह ऋण की रकम को कम कर सकता है अथवा ब्याज की रकम में कमी कर सकता है.
( 7) उन्मोचन देने का अधिकार: -परिवार द्वारा प्रदान किए गए ऋण को कर्ता उन्मोचित कर सकता है.
( 8) ऋण अभिस्वीकृति करने का अधिकार: - कर्ता परिवार के किसी भी ऋण की अभिस्वीकृति कर सकता है और वह समस्त परिवार पर बाध्यकारी होगी वह ऋण के ब्याज का भुगतान भी कर सकता है और वह ऋण की मूल राशि के कुछ अंश का भी भुगतान कर सकता है जिससे कि परिसीमा की अवधि बढ़ जाएगी परंतु कर्ता परिसीमा की सीमा के बाहर के ऋण की अभी स्वीकृत नहीं कर सकता है.
( 9) वादों में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार: - संयुक्त परिवार की संपत्ति के लिए वह किसी भी प्रकार का वाद दायर कर सकता है और उस मुकदमे की डिक्री से सभी दायभागी बाध्यकारी होंगे कर्ता संयुक्त परिवार की संपत्ति के हित का प्रतिनिधित्व करता है जहां कोई विधवा कोई ऐसी संपत्ति को दाय में प्राप्त करती है जो पति के जीवन काल में पति के संयुक्त परिवार के सदस्य होने के नाते संयुक्त संपत्ति थी वहां वह विधवा की भी सयुक्त परिवार की सदस्या बनी रहती है और उसकी संपत्ति के हितों का प्रतिनिधित्व कर्ता स्वयं करता है सभी वादों में विधवा का भी प्रतिनिधित्व उसी हैसियत से कर सकता है.
( 10) संपत्ति के हस्तांतरण का अधिकार: - परिवार के कर्ता को यह भी अधिकार है कि वह विधिक आवश्यकता पर परिवार की संपत्ति को अंतरित कर दे.
पार्वती बनाम दरबारी सिंह के मामले में यह अभि निर्धारित किया है कि कर्ता को संयुक्त परिवार की संपत्ति में अपने अविभक्त हित का अन्य संक्रमण करने का अधिकार प्राप्त है अन्य संक्रांति को साम्यापूर्ण अधिकार उस संपत्ति का विभाजन कराने का प्राप्त है तथा उसमें कब्जा का हक उसी प्रकार तथा उसी सीमा तक है जहां तक कर्ता को अधिकार प्राप्त है.
मुकेश कुमार बनाम हरबंस वाराही व अन्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया है कि जहां कोई संयुक्त संपत्ति कर्ता द्वारा विधिक आवश्यकता के लिए विक्रय कर दिया जाता है वहां पर ऐसी संपत्ति का विक्रय विधि मान्य माना जाएगा.
कर्ता के दायित्व एवं कर्तव्य: -एक सयुक्त परिवार के कर्ता निम्नलिखित दायित्व एवं कर्तव्य होते हैं -
( 1) हिसाब देने का कर्तव्य: - संयुक्त परिवार के कर्ता का यह दायित्व होता है कि वह परिवार के सदस्यों को परिवार की संपत्ति अथवा प्राप्त हुई धनराशि का हिसाब दे किंतु उसके विरुद्ध अविभाजित परिवार की संपदा का दुरुपयोग करने अथवा कपटपूर्ण और अनुचित रीति से अपने उपयोग में लाने का प्रत्यक्ष प्रमाण ना होने पर वह केवल उतने का हिसाब देने का उत्तरदायी है जितना उसने वस्तुतः प्राप्त किया है ना कि उसका जिसे उसने अपनी चतुराई से प्राप्त किया है परिवार के पिछले व्ययों के संबंध में कोई हिसाब देने की आवश्यकता नहीं है यह हिसाब विभाजन के लिए समय देने का दायित्व कर्ता के ऊपर है.
( 2) संपत्ति की सुरक्षा का दायित्व: - कर्ता का यह दायित्व है कि वह परिवार की संपत्ति की पूर्ण सुरक्षा करें इसके साथ ही परिवार की संपत्ति से भूतकाल में हुए लाभ अथवा आय की सदस्यों को देने को तब तक बाध्य नहीं किया जा सकता जब तक कि यह प्रमाणित ना किया जाए कि उसने संयुक्त परिवार के सदस्यों को परिवार की संपत्ति के उपयोग से वंचित कर दिया है अथवा उसने संपत्ति को परिवार के कर्ता के रूप में नहीं बल्कि अपनी निजी संपत्ति के रूप में रखा था.
( 3) परिवार के ऋणों को वसूल करने का कर्तव्य: - कर्ता का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह परिवार के ऋणों को वसूल करें यह वसूली कार्यवाही में ब्याज छोड़ सकता है या ऋण कम कर सकता है लेकिन पूर्णतया ऋण को नहीं छोड़ सकता है.
( 4) उचित व्यय करने का कर्तव्य: - गबन कपटपूर्ण या अनुचित खर्च के लिए कर्ता जिम्मेदार होता है और उसे अन्य सह भागीदारों को परिवार के संपत्ति में उनके हिस्सों के मुताबिक उन को हर्जाना देना पड़ता है.
( 5) नया व्यापार न करने का कर्तव्य: - संयुक्त परिवार का कोई कर्ता कोई नया व्यापार प्रारंभ कर के परिवार के सदस्यों के परिवार की संपत्ति में हीत पर उसे बाध्य नहीं कर सकता है वह केवल उनकी सहमति प्राप्त करके ही नया व्यापार प्रारंभ कर सकता है.
( 6) अन्य संक्रमण ना करने का कर्तव्य: - यहाँ कर्ता का परम कर्तव्य है कि परिवार के अन्य सदस्यों की स्वीकृति प्राप्त किए बिना अथवा विधिक आवश्यकता एवं संपदा के प्रचार की स्थिति को छोड़कर अन्य स्थिति में संयुक्त परिवार की संपत्ति का अन्य संक्रमण न करें.
संयुक्त के परिवार का कर्ता परिवार की संपत्ति का निम्नलिखित परिस्थितियों में हस्तांतरण कर सकता है -
( 1) सम्पत्ति के हित में प्रस्तावरण ने कर्ता संपत्ति के हित के हस्तांतरण कर सकता है लार्ड ऐटिकिंग एक वाद में यह कहा है कि संपदा के लाभ की कोई ऐसी परिभाषा जो सभी मामलों पर लागू हो देना असंभव है किंतु संपदा को नष्ट होने से बचाना संपदा को प्रभावित करने वाले किसी गंभीर मुकदमे में प्रतिवाद करना बाढ के कारण भूमि को या उसके किसी भाग को बहने से बचाना तथा अन्य इसी भारत की बातें संपदा के प्रलाभ में संबंध रखती हैं.
( 2) विधिक आवश्यकता के लिए संयुक्त परिवार का कर्ता परिवार की संपत्ति का हस्तांतरण कर सकता है निम्नलिखित विधि में आवश्यकताये विधिक आवश्यकता की कोटि में रखी जा सकती हैं.
(a) परिवार के ऊपर दाई राजस्व तथा ऋणों का भुगतान करना
(b) सहभागीदारो तथा उनके परिवार के सदस्यों का भरण पोषण
(c) परिवार की अविवाहित कन्याओं के विवाह के खर्च
(d) श्रद्धा कर्म मृतक संस्कार तथा धार्मिक अनुष्ठान के खर्च
(e) मुकदमों के खर्च जैसे संपत्ति रक्षा के लिए वाद दायर करना
(f) किसी गंभीर आवश्यक मामले में फंसे हुए परिवार के प्रधान अथवा उसके किसी सदस्य की प्रतिरक्षा करना
(g) पारिवारिक व्यापार या आवश्यकता के लिए ऋण का भुगतान
(h) परिवार के लिए निवासगृह बनवाने व्यय इत्यादि
(i) परिवार के सदस्यों की जीविका के लिए साधनों की अभिवृद्धि करने में किया गया व्यय
(j) परिवार के अंशों के उचित वितरण के लिए परिवार की किसी संपत्ति का करना
कर्ता द्वारा परिवार के सदस्यों को बेहतर जीवन यापन करने के लिए अन्यत्र स्थानांतरण करने के संबंध में संपत्ति को बेचना अथवा पूर्ववर्ती ऋण की अदायगी के लिए संपत्ति को बेचना विधिक आवश्यकता के अंतर्गत आएगा.
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