हिंदू विधि की मिताक्षरा शाखा के अंतर्गत कौन सी संपत्तियां बंटवारे के योग्य है ? What properties are liable to partition under mitakshara School of Hindu law?
बंटवारे में विभाजनीय संपत्ति:: - बंटवारा उसी संपत्ति का होता है जो परिवार के सदस्यों द्वारा बंटवारे के पूर्व अविभक्त संपत्ति के रूप में धारण की गई है परिवार के सदस्यों के पृथक संपत्ति का बंटवारा नहीं होता है.
कुछ ऐसे प्रकार की संपत्तियां भी होती हैं जो अपने स्वरूप के कारण अविभाजित मानी जाती हैं मनु के अनुसार पोशाक ,सवारी ,आभूषण, पका पकाया भोजन ,पत्नी ,दासिया ,देव और इष्ट के लिए निर्धारित संपत्ति गोचर इत्यादि विभाजित नहीं हो सकती ।विज्ञानेश्वर ने कहा है कि जल का जलाशय और ऐसी वस्तुएं विभाजित नहीं की जा सकती है उन्हें उनके मूल्य द्वारा भी विभाजित नहीं करना चाहिए उन्हें संयुक्त प्रयोग के लिए संभव रखना चाहिए या बारी-बारी से प्रयोग में लाना चाहिए आगे विज्ञानेश्वर ने कहा है कि सार्वजनिक मार्ग भवन तक आने जाने का मार्ग उद्यान और इसी भांति की वस्तुएं विभाजित नहीं की जा सकती है सवारी घोड़े गाय बैल आभूषण पोशाक इत्यादि विभाजित नहीं किए जा सकते हैं इनके संबंध में यह नियम है कि या तो इन्हें बेच कर इनका मूल्य सहदायित्वों में वितरित कर दिया जाए अथवा इनके मूल्य का अनुमान लगाकर इन्हें किसी सहदायिक को इसके बदले में इस के बराबर मूल्य की अन्य वस्तुएं मिले अथवा इन वस्तुओं का उपयोग और उपभोग सहदायिकों द्वारा संयुक्त रूप से बारी-बारी से दिया जाए.
देव मूर्तियां और पूजा स्थल के स्थान परिवार के व्यक्तियों में नहीं बँट सकते निवास ग्रह के बंटवारे के लिए सदस्यों के आग्रह करने पर न्यायालय उसके बंटवारे के लिए डिक्री देगा किंतु वह प्रत्येक संभव प्रयत्न करेगा कि निवास ग्रह परिवार के एक या दो सदस्यों के पास ही रहे और अन्य सदस्यों को इसके बदले में कुछ प्रतिफल प्राप्त हो जाए.
यदि एक सहभागीदार के द्वारा अपने व्यक्तिगत ढंग से संयुक्त परिवार इस प्रकार खर्च किए धन को संयुक्त परिवार के संपत्ति से अलग नहीं समझा जा सकता है.
के.एम. नारायण बनाम के. वी .रंगनाथन के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभी निर्धारित किया है कि परिवार संपदा का विभाजन करते समय संयुक्त परिवार के लिए यह आवश्यक है कि वह परिसंपत्ति और ऋण दोनों का लेखा ले जिसके लिए अविभाजित संपदा देय है और ऋणों के भुगतान का प्रबंध करना है जहां संपत्ति एक व्यक्ति को उसकी इस व्यक्तिगत वचनबद्धता के बदले दी गई है कि वह संयुक्त परिवार के ऋणों का भुगतान करेगा न्यायालय उसे स्वीकार करेगा तथा बनाए रखेगा.
विभाजन के पूर्व की कुछ व्यवस्थाएं: - विभाजन होने वाली संपत्ति में विभाजन के पूर्व निम्नलिखित बातों की व्यवस्था करनी चाहिए.
( 1) संयुक्त परिवार के हेतु लिए गए ऋण जितनी अदायगी संयुक्त परिवार की संपत्ति में होती हो.
( 2) पिता के व्यक्तिगत ऋण जो अवैध अथवा अनैतिक कार्य हेतु ना लिए गए हो.
( 3) आश्रित स्त्रियों तथा ऐसे सदस्यों की निवृत्ति जो कार्य करने की क्षमता खो चुके हो.
( 4) अविवाहित पुत्रियों के विवाह के खर्च. यह पुत्रियां अंतिम पुरुष पूर्व अधिकारी की होनी चाहिए .
( 5) अंतिम संपत्ति धारक पुरुष की विधवा तथा माता के दाह संस्कार का खर्च.
उपयुक्त बातों को ध्यान में रखकर संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा करना चाहिए कर्ता क्या अन्य सदस्यों के पास उपयुक्त विषयों के लिए हिसाब किताब रखना चाहिए.
विभाजन हेतु दावा करने के अधिकारी व्यक्ति: -
हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति का बंटवारा निम्नलिखित व्यक्तियों की इच्छा पर हो सकता है -
( 1) पुत्र तथा पौत्र: - मिताक्षरा विधि के अंतर्गत पुत्र पौत्र प्रपौत्र तथा अन्य कोई भी सहभागीदारी का वयस्क सदस्य विभाजन का दावा अन्य सदस्यों के विरोध के बावजूद भी कर सकता है मुंबई उच्चतम न्यायालय के अनुसार कोई पुत्र पिता की जीवितावस्था में बिना उसकी अनुमति के विभाजन का दावा नहीं कर सकता यदि पिता स्वयं अपने पिता भाई अथवा भतीजे से पृथक ना हो मुंबई उच्च न्यायालय का यह मत मान्य नहीं रहा है दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार कोई पुत्र पिता से उसके जीवन काल में ही विभाजन का दावा कर सकता है इस मत की पुष्टि अभी हाल ही में बंबई उच्च न्यायालय ने की है.
( 2) उत्तरजात पुत्र: - बंटवारे के बारे में जन्म लेने वाली संतान दो प्रकार की हो सकती है एक तो वह बंटवारे के समय गर्भ में हो दूसरे वह जो बंटवारे के समय गर्भ में ना होकर बाद में आई हो प्रथम कोटि के आने वाले पुत्र को यह अधिकार है कि वह अपने पुराने बंटवारे को रद्द करवा कर संयुक्त परिवार की संपत्ति का फिर से बटवारा करवाए और अन्य भाइयों की भांति बराबर हिस्सा प्राप्त करें द्वितीय कोटि के पुत्र अपने पिता का हिस्सा प्राप्त करते हैं तथा उसकी व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारी होते हैं.
( 3) अवैध पुत्र: - ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य जाति की अवैध संताने बटवारे कराने की अधिकारी नहीं होती है किंतु पिता की संपत्ति से पोषण व्यय पाने का अधिकार है मद्रास तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मत है कि एक शूद्र का अवैध पुत्र अपने वैद्य भाइयों के साथ बटवारा करवा सकता है पिता तथा पिता के सहदायिकों के विरुद्ध नहीं.
( 4) विधवा: - हिंदू विधि की मिताक्षरा शाखा के अनुसार विधवाएँ सहभागीदारी सदस्य नहीं मानी जाती हैं फिर भी हिंदू नारी संपत्ति विधि अधिनियम 1937 (Hindu womens right to property act 1937)के अन्तर्गत विभाजन का दावा कर सकती हैं वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत विभाजन का दावा कर सकती हैं हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार विधवा का मृतक पति का दायद होने से उसकी संपत्ति में उसके अंश प्राप्त करने के कारण बंटवारा होने पर अलग से अंक प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो गया है अब उसे बंटवारे की मांग करने का भी अधिकार प्राप्त हो गया है.
( 5) दत्तक पुत्र हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम दत्तक पुत्र का स्थान औरस पुत्र के बराबर माना जाता है जैसा की धारा 12 में कहा गया है कि न्यायालय यदि दत्तक पुत्र तथा औरस पुत्र के बीच समानता लाना चाहे तो वह उस उपबंध को प्रयोग में ला सकता औरस पुत्र की भांति उसे विभाजन का अधिकार है लेकिन वह औरस पुत्र की भांति मिताक्षरा की उप शाखाओं के अनुसार औरस पुत्र के बराबर भाग नहीं पाता जहां भी द्विजो और शूद्रों में भेद है.
द्विज: - बंगाल में दत्तक संपत्ति का एक तिहाई भाग लेता है वाराणसी में संपत्ति का एक चौथाई भाग तथा बंबई और मद्रास में संपत्ति का पांचवा भाग लेता है.
शुद्र: - मुंबई शाखा में वह संपत्ति का पांचवा भाग लेता है वाराणसी में चौथाई भाग अन्य शाखा में शूद्र औरस पुत्र के बराबर भाग लेता है.
( 6) अवयस्क सहभागीदार: - यद्यपि अवयस्क सहभागीदार बंटवारे का दावा नहीं कर सकते परंतु यदि संयुक्त स्थिति उसके हित में नहीं है तो वह बंटवारे का दावा नहीं कर सकता है दावा वह स्वयं स्थापित ना करके उसकी ओर से उसके संरक्षक द्वारा किया जाएगा यदि विभाजन उसके हितों के विरुद्ध हुआ है तो वयस्कता प्राप्त करने पर वह आपत्ति कर सकता है.
( 7) पत्नी: पत्नी सहभागीदारी ना होने के कारण बंटवारे की मांग नहीं कर सकती किंतु पत्नी और पुत्रों के बीच बंटवारा होने की स्थिति में प्रत्येक पत्नी पति को या प्रत्येक पुत्र को प्राप्त होने वाले अंश के बराबर अंश प्राप्त करती है.
माता तथा माता महि (दादी) अंश प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है यदि विभाजन पुत्र और पौत्र के मध्य होता है किंतु वे उस अंश की स्वामिनी तब तक नहीं मानी जाती है जब तक बंटवारा वास्तविक रूप से नहीं होता है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 22 के अनुसार स्त्री भागीदार निवास ग्रह में विभाजन की मांग नहीं कर सकती है जब तक कि पुरुष उसमें से अपने हिस्से को अलग अलग ना चाहे परंतु कुछ स्त्री भागीदारों को उसके रहने का अधिकार होगा.
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