इच्छा पत्र ( वसीयत) क्या है? वसीयत करने के लिए कौन सक्षम और कौन सी संपत्तियां इच्छा पत्र द्वारा उत्तर दान की जा सकती है इच्छा पत्र के संबंध में क्या सामान्य नियम है? What is a will? Who is capable of making wills and what property maybe bequethed by will? what are the general rules hi respect of will?
इच्छा पत्र (वसीयत): - इच्छा पत्र किसी व्यक्ति को लिखित अपना मौखिक घोषणा जिसके द्वारा अपनी संपत्ति आदि की मृत्यु के बाद व्यवस्था की इच्छा प्रकट करता है भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3 में इच्छा पत्र की परिभाषा इस प्रकार दी गई है.
Will means the legal declaration of the intention of the testator with respect to the property which he desire to be carried into effect after his death.
इच्छा पत्र तथा दान लगभग एक ही है केवल दोनों में भेद यह है कि दान जीवन काल में कार्यान्वित हो जाता है जबकि इच्छा पत्र जीवनकाल के बाद कार्यान्वित होता है इच्छा पत्र को रद्द किया जा सकता है परंतु दान को रद्द नहीं किया जा सकता है.
सर थॉमस स्ट्रेज के अनुसार प्रारंभ में वसीयत करने का मुख्य उद्देश्य जीवन काल में किए गए पात्रों के प्रायश्चित वसीयत द्वारा धार्मिक कार्यों के हेतु धन प्रदान करना था और यह धनराशि सामान्यतः धन को अर्जित करने के लिए किए गए अन्याय अथवा उसके द्वारा की गई विषय परायणता और दुराचरण के अनुपात में होती थी.
प्रत्येक स्वस्थ मस्तिष्क वाला वयस्क व्यक्ति इच्छा पत्र द्वारा संपत्ति का निपटारा कर सकता है एक अवयस्क अपनी संपत्ति को वसीयत द्वारा अंतरण नहीं कर सकता है हिंदू स्त्री अपना ही स्त्री धन इच्छा पत्र द्वारा अंतरित कर सकती है.
इच्छा पत्र से तात्पर्य जानने के लिए यह देखना आवश्यक है कि वसीयत कर्ता का आशय क्या था इसको निश्चित करने के लिए शब्दों का अवलोकन करना पड़ता है क्योंकि शब्दों के आधार पर वसीयत कर्ता का आशय समझा जा सकता है.
राघवम्मा बनाम चेन्नम्मा के वाद में यह विचार व्यक्त किया गया कि कोई व्यक्ति संयुक्त संपत्ति में अविभक्त हित को इच्छा पत्र द्वारा निवर्तित नहीं कर सकता है.
बी .अची. बनाम एन.चेटियार के केस में यह विचार व्यक्त किया गया है कि पिता अपनी संपत्ति का इच्छा पत्र द्वारा निपटारा करने का सीमित अधिकार रखता है.
एच एन अभिमूर्ति बनाम ए एल सुब्बारम्मा के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि एक सहभागीदार अथवा पिता संयुक्त परिवार की संपत्ति को या उसके किसी अंश को इच्छा पत्र द्वारा निवर्तित नहीं कर सकता है क्योंकि उसकी मृत्यु के बाद संपत्ति अंत में सहभागीदारों की उत्तरजीविता से चली जाती है और ऐसी कोई संपत्ति शेष नहीं रहती जो इच्छा पत्र के परिणाम स्वरुप दूसरे को जाएगी.
पूर्व हिंदू विधि में अनुत्पन्न व्यक्ति (Unborn person) के पक्ष मे वसीयत नहीं की जा सकती परंतु इस नियम को तीन अधिनियम में परिवर्तित कर दिया गया है.
( 1) the Hindu transfers and Bequest act 1914
( 2) the Hindu disposition of property act 1916
( 3) the Hindu transfer and bequests ( city of Madras) 1921
कोई हिंदू इच्छा पत्र द्वारा ऐसी संपत्ति का उत्तर दान नहीं कर सकता है जो वह जीवित अवस्था में दान द्वारा अन्य संक्रमित नहीं कर सकता है.
कोई हिन्दू इच्छा पत्र निम्नलिखित सम्पत्ति का निवर्तन(Bequest )कर सकता है
मिताक्षरा के अन्तर्गत
(1)पृथक तथा स्वअर्जित सम्पत्ति
(2)एक मात्र उत्तरजीवी सहभागीदार अपनी सम्पत्ति
(3)स्त्रीधन
(4)विधवा स्थिति मे समस्त स्त्रीधन
(5)अविभक्त सम्पदा जब तक कि प्रथा द्वारा निश्चित ना कर दी गई हो.
किंतु कोई सहभागीदार चाहे वह पिता ही हो अविभाजित से सहभागीदारी हक को इच्छा पत्र द्वारा निवर्तित नहीं कर सकता है.
राघवम्मा बनाम चेन्चम्मा के वाद में यह तय किया गया कि यदि किसी सहभागीदार ने संयुक्त परिवार की संपत्ति में अपने अंश के विषय में इच्छा पत्र लिख दिया है कि बाद में अन्य सहभागीदारों से पृथक हो गया है तो उस स्थिति में भी उसके अंश के संबंध में वह इच्छा पत्र वैद्य माना जाएगा क्योंकि मृत्यु के समय वह इस प्रकार का इच्छा पत्र लिखने के लिए सक्षम हो गया था क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अंतर्गत वे संयुक्त हिस्से का भी उत्तर दान कर सकता है.
इच्छा पत्र संबंधी अन्य नियम: -
( 1) इच्छा पत्र में उल्लेखित संपत्ति को विधि के प्रतिकूल नहीं होना चाहिए.
( 2) संपदा उल्लिखित हित के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए.
( 3) शर्त के साथ संपदा प्रदान करना इच्छा पत्र द्वारा इस प्रकार की संपदा प्रदान की जा सकती है यदि किसी इच्छा पत्र में अवैध अनैतिक शर्ते लगाई जाए तो शर्तें निष्प्रभावी होती है किंतु इच्छा पत्र बाध्यकारी होता है.
किसी इच्छा पत्र की व्याख्या में इच्छा पत्र लिखने वाले का भाव देखना आवश्यक है तथा इच्छा पत्र में प्रयुक्त शब्दों से निश्चित किया जाना चाहिए कि उसका ऐसा उद्देश्य था कि उद्देश्य का विनिश्चय ना करने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है.
( 1) इच्छा पत्र लिखने वाले की स्थिति
( 2) उसके पारिवारिक संबंध
( 3 ) शब्दों का प्रयोग किसी आशय विशेष में करने की संभावना
( 4) उसकी जाति तथा धार्मिक मत
( 5)सम्पत्ति के न्यागमन के संबंध में हिंदुओं की सामान्य इच्छाएं तथा भावनाएं जैसे स्त्रियां दाय में अबोध एवं पूर्ण हक प्राप्त करती हैं.
रामगोपाल बनाम नंद गोपाल के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निम्नलिखित अभिमत उल्लेखनीय है यह एकदम निश्चित रूप से लिया जा सकता है कि यहां विधि के प्रतिपादन के लिए कोई समावेश नहीं है जब तक एक हिंदू नारी को अचल संपत्ति का अनुदान किया गया है तो वह ऐसी संपत्ति में पूर्ण अथवा अंतरणीय नहीं प्राप्त करती है जब तक कि ऐसी शक्ति उसको अभिव्यक्त रूप में प्रदान न की गई हो.
कोई इच्छा पत्र अथवा इच्छा पत्र का भाग जो छल प्रवचना अथवा छल से संपन्न किया गया है अथवा वसीयत की स्वतंत्रता के अभाव में किया गया है शून्य होता है.
Comments
Post a Comment