शैवायत तथा महंत से क्या समझते हैं? उसके क्या अधिकार तथा कर्तव्य है? क्या महंत के पद का अंतरण हो सकता है. What do you understand by Shavayat and Mahant? what are their rights and duties ?can the office of Mahant be alternated?
शैवायत: - साधारणतया विन्यास संस्थापित करते समय संस्थापक शैवायत की नियुक्ति करता है शैवायत के कर्तव्य और दायित्व उस व्यक्ति के कर्तव्य और दायित्व है जो धार्मिक और आध्यात्मिक पद का धारक है इस तरह शैवायती में दो बातें निहित हैं देय का सेवक और देय संपत्ति का प्रबंध या कर्ता-धर्ता.
शैवायत मंदिर में स्थापित मूर्ति या देवता की सेवा करता है मंदिर की संपत्ति के लिए वह न्यासी होता है वह संपत्ति का वैद्य स्वामी नहीं होता बल्कि धार्मिक धर्मदाय का प्रबंधक होता है शैवायत का यह परम कर्तव्य है कि वह मूर्ति तथा संपत्ति की अभिरक्षा करें उसे उपासना करने वाले व्यक्तियों का प्रबंध करना जरूरी है वह मंदिर की पवित्रता तथा उस में शांति बनाए रखने के लिए उत्तरदाई है.
अंगूरवाला बनाम देवव्रत के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विधि के अंतर्गत शैवायत देवमूर्ति की संपत्ति का प्रबंधक होता है यद्यपि वह इसका प्रबंधक होता है किंतु शैवायत केवल पद नहीं है शैवायत धर्मदाय के प्रसंग मे केवल कर्तव्यों का ही पालन नहीं करता है किंतु संपत्ति में वह लाभदायक स्वत्व भी रखता है इस प्रकार शैवायती की संकल्पना ने पद और संपत्ति कर्तव्य और व्यक्तिगत हित के एक साथ मिश्रित रहते हैं और इन दोनों तत्वों को एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता धर्मदाय मे दी गई संपत्ति में वह व्यक्तिगत या लाभदायक स्वत्व का मौजूद होना ही है जो शैवायत पद की स्वामित्वाधान में निहित करता है और संपत्ति के विधिक घटनाओं के साथ इसे सलग्न कर देता है.
मंदिर में जो कुछ चढ़ावा आता है यदि वह नष्ट होने वाली चीज है तो उसका प्रयोग कर सकता है लेकिन आभूषण तथा अन्य वस्तुओं को निजी प्रयोग में नहीं ला सकता है शैवायत की स्थिति एक न्यासी के समान होती है।
श्रीमती हिरनवाला देवी बनाम भट्टाचार्य में यह विनिश्चित किया गया है कि वसीयत कर्ता जिसमें समझौता विलेख द्वारा देवता को अपनी संपत्ति समर्पित कर दिया है शैवायत पद के उत्तराधिकार की परंपरा में प्रतिपादित नहीं कर सकता जो उत्तराधिकार की सामान्य विधि से असंगत है.
महन्त: - मठ की संपत्ति का प्रबंधक महंत होता है जो संस्थान का प्रधान होता है वह मठ की गद्दी पर आसीन होता है और अपने संप्रदाय में शिष्यों को दीक्षित करता है वह मठ की संपत्ति की व्यवस्था करता है और मठ के परंपरागत अनुष्ठानों तथा धार्मिक कृत्यों को संपादित करता है वह मठ की ओर से वाद प्रस्तुत करता है और मठ के विरुद्ध किए गए वादों में मठ के प्रतिनिधि के रूप में पक्षकार होता है.
साधारणतया महन्त सन्यासी तथा ब्रह्मचारी होता है लेकिन कुछ मठों में महंत को शादी करने का अधिकार है एक स्त्री महंत नहीं हो सकती क्योंकि वह आध्यात्मिक अथवा धार्मिक कार्यों को करने में अक्षम होती है महंत का पद संपत्ति की भांति दाय योग्य नहीं होता है क्योंकि पद की प्रकृति विलग होती है.
वस्तुतः शैवायत तथा महंत की विधिक हैसियत एक समान होती है प्रीवी काउंसिल ने विद्यमारुपी बनाम बालू स्वामी के वाद में कहा है कि उसे जो भी नाम दिया जाए वह केवल संस्थान है प्रायः प्रत्येक मामले में उसे आय का एक भाग पाने का अधिकार होता है जो प्रचलन या रूढि पर आधारित होता है किसी भी मामले में संपत्ति ना तो उसे दी जाती है और ना उसमें निहित होती है ना तो वह अंग्रेजी विधि में न्यासधारी के अर्थ में न्यासधारी है यद्यपि उसके दायित्व एवं कर्तव्यों को देखते हुए व्यवस्था के लिए न्यासधारी की भांति ही उत्तरदाई है परंतु एक बात में महंत को शेवायत से विस्तृत अधिकार प्राप्त है कि महंत को मठ के धन के उपयोग में अधिक छूट होती है.
शैवायत तथा महंत के अधिकार तथा कर्तव्य: -
( 1) देवोत्तर संपत्ति पर कब्जे का अधिकार: - शैवायत तथा महंत को यह अधिकार है कि वह देबोत्तर संपत्ति पर कब्जा रखें तथा उसकी उचित व्यवस्था करें उसे देव मूर्ति की अभिरक्षा का अधिकार होता है.
( 2) उपहार लेने का अधिकार: - देव मूर्ति को भक्तों द्वारा चढाई गई भेंट का उपयोग करने का अधिकार है जैसे मिठाईया फल परंतु जो भेंट नष्ट या खराब होने के ढंग की नहीं है जैसे पात्र आभूषणों से लेने का अधिकार नहीं है.
( 3) संपत्ति का अन्य संक्रारमण का अधिकार: - सामान्य शेवायत या महंत को देवोत्तर तर्कशक्ति के अन्य संक्रमण का अधिकार नहीं होता परंतु वह विधिक आवश्यकता तथा संप्रदाय के लाभ के लिए अन्य संक्रमण कर सकता है जब तक कोई आपत्तियां आवश्यक ना हो सेवायत या महंत धार्मिक विन्यास की संपत्ति का स्थाई पट्टा लगान पर भी दे सकता है क्योंकि पट्टा के समय लगान होने पर भी स्थिर होने के कारण भविष्य में धार्मिक विन्यास के लाभ में उससे कोई वृद्धि नहीं हो सकती है शैवायत द्वारा ऐसा पट्टा देने का उसके कर्तव्य का उल्लंघन होगा.
जब तक कि कोई अपरिहार्य आवश्यकता ना हो शैवायत या महंत धार्मिक विन्यास की संपत्ति का स्थाई पट्टा स्थिर लगान पर नहीं दे सकता क्योंकि पट्टे के समय लगान होने पर भी स्थिर होने के कारण भविष्य में धार्मिक विन्यास के लाभ में उसके कोई वृद्धि नहीं हो सकती है.
( 4) देवता की पूजा: - शैवायत को प्रतिदिन सामाजिक तथा धार्मिक कर्तव्यों के अनुसार देवता की पूजा कथा भक्ति करनी चाहिए वह ऐसा करने के लिए अपना एक सहयोगी नियुक्त कर सकता है.
जहां वादी और प्रतिवादी दोनों को ही मंदिर में पूजा करने सेवा करने और प्रसाद चढ़ाने का अधिकार हो वहां यदि उस कार्य के लिए पहले से कोई लिखित अनुबंध या समझौता ना हो तो एक पक्ष दूसरे को उक्त कार्य करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा नहीं प्राप्त कर सकता है ऐसे मामले में दोनों पक्षों की बारी तय की जा सकती है.
( 5) संपत्ति की आय पर अधिकार: - यदि सेवायत अपनी व्यक्तिगत संपत्ति वह अपने पद के दायित्व के निर्वाह के लिए व्यय करता है अथवा धार्मिक विन्यास की संपत्ति को बचाने में व्यय करता है तो उसे वह धार्मिक विन्यास की संपत्ति से प्राप्त करने का हक है.
कर्तव्य (1) शैवायत का यह कर्तव्य है कि वह देव मूर्ति की उचित तथा परंपरागत दैनिक होने वाली पूजा-अर्चना करावे देव मूर्ति के राजभोग की उचित व्यवस्था रखें मंदिर को अच्छी दशा में रखे उस में आने वाले लोगों की सुख सुविधा का ख्याल रखें मंदिर में शांति तथा शालीनता का वातावरण बनाए रखें महंत का यह कर्तव्य है कि मठ में रहने वाले साधू सन्यासियों के भरण-पोषण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
( 2) सेवायत को चाहिए कि वह मंदिर के आय-व्यय का ठीक-ठीक हिसाब रखें.
( 3) उसका यह कर्तव्य है कि वह देवस्थान के रुढिगत का प्रचलन हो जैसे किसी पर्व मेला लगवाना अथवा दर्शन यात्रा का इस प्रकार के कार्यों को कायम रखें.
( 4) शैवायत या महंत का पद न्यासवत् होता है इसलिए उस व्यक्ति को सभी कार्य स्वयं करने चाहिए वह चाहे तो संपत्ति का प्रबंधक नियुक्त कर सकता है किंतु उसे प्रत्येक दशा में अपने कर्तव्यों को स्वयं पालन करना चाहिए.
महन्त या शैवायत द्वारा संपत्ति का अन्य संक्रमण: - धार्मिक पूजा पाठ के लिए या खैरात के लिए दी गई संपत्ति का अन्य संक्रमण नहीं हो सकता शैवायत तथा महंत द्वारा देबोतर संपत्ति के अन्य संक्रमण का अधिकार नाबालिक वारिस मैनेजर की तरह ही होता है और देवता को नाबालिग माना जाता है इस प्रकार व संपत्ति का अन्य संक्रमण केवल संपदा की भलाई के लिए या विधिक आवश्यकता होने पर ही कर सकता है शैवायत को विधिक आवश्यकता होने पर निर्णय लेने का अधिकार है तथा वह संपत्ति के बंधक या पट्टे पर विधिक आवश्यकता होने पर अंतरण कर सकता है मूर्ति के प्रबंध के लिए तथा संपदा के लाभ एवं सुरक्षा के लिए व आवश्यक कार्य कर सकता है सेवायत या महंत पर यह सिद्ध करने का भार होता है कि उसको विधिक आवश्यकता थी या प्रलाभ में संपत्ति स्थानांतरण की गई.
शैवायत को हटाना: - शैवायत तथा महन्त को अपने पद के कर्तव्यों का निर्वाह करना आवश्यक है यदि वे अपने कर्तव्य को उचित रीति से पालन नहीं करते तो उन्हें उनके पद से हटाया जा सकता है धार्मिक विन्यास की संपत्ति की सुरक्षा और देखभाल करना उनका परम कर्तव्य है यदि न्यायालय देखता है कि शैवायत या महंत कपटाचार करके धार्मिक विन्यास की संपत्ति को हड़पना चाहता है वहाँ न्यायालय उसे हटा देगा न्यायालय शैवायत को तभी हटा सकती है जबकि वह अपचार(misconduct ) अथवा हिसाब ना देने का दोषी है शैवायत को इस आधार पर हटाया जा सकता है कि वह अपने उत्तरदायित्वों का पालन निष्ठा पूर्वक नहीं करता परंतु यदि शैवायत से कोई ऐसी भूल हो गई हो जिसमें उसका कोई कपट नहीं है तो उसको हटाया नहीं जा सकता है।
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