दान की परिभाषा दीजिए? हिंदू विधि के अंतर्गत वैद्य दान की क्या आवश्यकता हैं. कौन सी संपत्ति दान में दी जा सकती है? Define gift and what are requisites of a valid gift under the Hindu law? what property can be gifted?
हिंदू विधि के अनुसार दान का तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति के पक्ष में अपनी संपत्ति का बिना कोई प्रतिफल लिए त्याग करने से है जिसका परिणाम उस संपत्ति में दाता के स्वामित्व को समाप्त करना और अदाता के स्वामित्व की सृष्टि करना होता है.
संपत्ति अंतरण अधिनियम के अनुसार किसी चल अथवा अचल संपत्ति का स्वेच्छा से बिना किसी प्रतिफल के दानकर्ता द्वारा अंतरित किया जाना दान कहलाता है.
मुल्ला ने दान की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दी है - gift consists in the relinquishment without consideration of one's own rights in property and the creation of the right of another and the creation of another man right is completed by the other acceptance of the gift but not otherwise.
संपत्ति के स्वामी द्वारा अपने स्वत्व का परित्याग दान प्राप्तकर्ता के पक्ष में जब किया जाता है तो उसे दान कहते हैं.
मिताक्षरा के अनुसार किसी संपत्ति में अपने स्वामित्व का परित्याग और उसमें दूसरे के स्वामित्व का सृजन को दान की संज्ञा दी जाती है दूसरे के स्वामित्व का सृजन जब वह दूसरा व्यक्ति स्वीकार कर लेता है तो दान पूर्ण माना जाता है अन्यथा नहीं.
डॉ सेन के अनुसार दान से संपत्ति के स्वामित्व का विलय हो जाता है किंतु संपत्ति में दूसरे का अधिकार तभी उत्पन्न होता है जब वह स्वीकृति की अनुमति दे देता है.
गदाधर मलिक बनाम official trusty of bangal के वाद मे यह विचार व्यक्त किया गया की दान मौखिक अथवा लिखित हो सकता है क्योकि हिन्दू विधि मे दान मे लिखित होना उसकी वैधता के लिये आवश्यक नही है।
दान द्वारा एक मनुष्य संपत्ति में अपने अधिकार को बिना कोई कीमत लिए छोड़ देता है और उस संपत्ति में दूसरे व्यक्ति का अधिकार उत्पन्न हो जाता है और उस व्यक्ति का अधिकार तभी पूर्ण होता है जब वह उस व्यक्ति के दान को स्वीकार कर लेता है अथवा नहीं.
इसे जब एक व्यक्ति अपनी संपत्ति को बिना प्रतिफल के किसी अन्य व्यक्ति के हित में त्याग कर देता है और वह व्यक्ति उसे स्वीकार कर लेता है तो इस संव्यवहार को दान कहा जाता है.
संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 122 मे दान की परिभाषा दी गई है इसके अनुसार दान किसी अचल संपत्ति का दावा द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छा पूर्वक बिना प्रतिफल के हस्तांतरण है इसके अदाता द्वारा स्वयं या उसकी ओर से स्वीकृति प्रदान करके दान पूरा किया जाता है ऐसी स्वीकृति दाता के जीवन काल में और जब तक वह देने के लिए समर्थ हो की जानी चाहिए.
हिंदू विधि के अंतर्गत दान के निम्नलिखित आवश्यक तत्व है -
( 1) दाता
( 2) आदाता
( 3) स्वेच्छया होना और प्रतिफल का न होना
( 4) दान की वस्तु
( 5) अंतरण
( 6) स्वीकृति
दान के लिए सर्वप्रथम दाता को होना चाहिए दाता वह होता है जो दान देता है दाता को स्वस्थ मस्तिष्क का तथा वयस्क होना चाहिए जो व्यक्ति दान में वस्तु को प्राप्त करता है वह आदाता कहलाता है आदाता को अस्तित्व में होना चाहिए दान की वैधता के लिए स्वीकृति होना आवश्यक है मिताक्षरा के अनुसार दान की पूर्णता के लिए आदाता की स्वीकृति अनिवार्य है जबकि इसके विपरीत दायभाग के अनुसार आदाता की स्वीकृति अनिवार्य नहीं है.
हिंदू विधि के अंतर्गत किसी दान पत्र की रजिस्ट्री कराने में कोई व्यक्ति दान की गई वस्तु को भौतिक रूप से दान पाने वाले की औपचारिकता से युक्त नहीं हो पाता है अतः दान का पंजीकरण कराने मात्र से ही किसी वस्तु का स्वामित्व दानदाता से दान प्राप्त करने वाले के पास अन्वरित नहीं हो जाता है इसके लिए दान की विषय वस्तु का कब्जा देना भी आवश्यक है.
किंतु यदि दान की विषय वस्तु की प्रकृति ऐसी है कि उसका कब्जा भौतिक रूप से नहीं प्रदान किया जा सकता तो ऐसी परिस्थिति में यदि दानदाता अन्य सभी औपचारिकताएं पूरी कर देता है तो वैद्य दान का अनुमान कर लिया जाता है.
दान की विषय वस्तु: - निम्नलिखित संपत्ति दान में दी जा सकती है -
( 1) एक हिंदू की पृथक संपत्ति अथवा स्वयं उपार्जित संपत्ति चाहे वह मिताक्षरा द्वारा या दायभाग द्वारा प्रमाणित हो.
( 2) स्त्रीधन अर्थात नारी की पूर्ण संपत्ति.
( 3) जगन तथा स्थावर संपत्ति जब तक की प्रथा अथवा भौतिक अधिकारी की शर्त द्वारा निषेधित ना हो.
( 4) अभिभाज्य संपदा यदि प्रथाओं द्वारा निषिद्ध ना हो.
( 5) दायभाग के अंतर्गत सहदायिक का हक
( 6) दायभाग के अंतर्गत पिता द्वारा संबंधित प्रथक संपत्ति
( 7) हिंदू विधवा द्वारा अदाएं में प्राप्त संपत्ति का कोई अंग
Comments
Post a Comment