मेड विवाद से आप क्या समझते हैं मेड विवाद किन आधारों पर निर्मित होता है? what do you mean by boundary dispute on what basis is boundary dispute is decided?
भूमि संबंधी अभिलेख को तैयार करने और रखरखाव करने के लिए सीमा चिन्हों का होना आवश्यक है . जब कोई क्षेत्र अभिलेख प्रवर्तन में होता है तो अभिलेख अधिकारी घोषणा द्वारा सब गांव -सभाओं तथा भूमिधरों को निर्देश दे सकता है कि 15 दिनों की अवधि में सीमा चिन्हों को बना ले।यदि वे ऐसा करने से चूक जाते हैं तो अभिलेख अधिकारी सीमा चिन्हों का निर्माण और स्थापना कर देगा और कलेक्टर उन खर्चों को तत्संबंधीत ग्राम पंचायतों या जोतदारों से वसूल करेगा प्रत्येक जोतदार का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जोतो पर वैद्य रूप से निर्मित स्थाई सीमा चिन्हों की देखभाल और रखरखाव करें एवं अपने निजी खर्चे से उसकी मरम्मत कराये।यह कर्तव्य ग्राम पंचायत पर भी आरोपित है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित गांव पर वैध रूप से बनाए गए स्थाई सीमा चिन्हों का रखरखाव करे और अपने निजी खर्चों पर उसकी मरम्मत कराए.
कलेक्टर किसी भी समय ग्राम पंचायत या जोतदार को यह आदेश दे सकता है कि वह अपने गांवों या जोतों पर उचित सीमा चिन्हों को बनाएं तथा अवैध रूप से बने हुए सभी सीमा चिन्हों को इस रुप से मरम्मत कराए कि यह पुनः नवीन जैसे कि नियम द्वारा निर्धारित हो जो कोई भी व्यक्ति जानबूझकर किसी सीमा चिन्ह को मिटाता है या छतिग्रस्त करता है तो वह जुर्माने का भागी होगा कलेक्टर ऐसे दोषी व्यक्ति का उतना जुर्माना कर सकता है जितना सीमा चिन्ह को पुनः स्थापित करने के लिए किए जाने के लिए सीमा संबंधी सूचना देने वाले व्यक्ति को पुरस्कृत करने के लिए आवश्यक वक्त यह जुर्माना किसी हालत में प्रत्येक सीमा चीन के लिए ₹50 से अधिक नहीं होगा जब ऐसी रकम की वसूली नहीं की जाती है तो अपराधी का पता नहीं चल पाता है तो कलेक्टर सीमा चिन्हों को पुनः स्थापित करा कर उसका खर्चा जोतदारों या गांव सभा से जैसी भी स्थिति हो वसूल करेगा जैसा कि वह उचित समझें.
सीमा विवाद आधार एवं निपटारा (grounds of boundary dispute and settlement): - दो खातों को अलग करने के लिए या उनके मध्य में जो मेड होती है उसी को बाउंड्री या सीमा कहते हैं इस मेड के बारे में जो विवाद होता है उसी को सीमा विवाद कहते हैं सीमा विवादों के निपटारे के प्रार्थना पत्र को कलेक्टर के पास दिया जाना चाहिए इस प्रार्थना पत्र के साथ नक्शा और खसरा से संबंधित अंश की प्रमाणित प्रतिलिपि अवश्य होनी चाहिए जिससे कि सीमा का निश्चय किया जा सके प्रार्थना पत्र प्राप्त होने पर कलेक्टर इसे तहसीलदार के द्वारा उस क्षेत्र के सुपरवाइजर कानूनगो के पास प्रारंभिक जांच के लिए भेज देगा अपनी रिपोर्ट देते समय सुपरवाइजर कानूनगो यह स्पष्ट दर्शायेंगे की किस किस्म का विवाद है और यथासंभव क्या प्रश्न उठा है रिपोर्ट प्राप्त हो जाने पर कलेक्टर यह निश्चित करेगा कि -
(a) क्या कोई विधिक जांच पैमाइश के साथ या बिना पैमाइश के आवश्यक है और
(b) क्या यह पैमाइश न्यायालय द्वारा या अधीनस्थ सरकारी कर्मचारी द्वारा हो अर्थात क्या पैमाइश कानून गो लेखपाल अमीन या अन्य अधिकारी से कराई जाए?
सीमा चिन्ह के लिए पत्थर या खंभा कलेक्टर द्वारा दिया जाएगा और यह सब खर्चा पक्षकारों से वसूल किया जाएगा जब तक कि रेवेन्यू कोर्ट मैनुअल के अनुच्छेद 405 और 407 में वर्णित खर्चे जो न्यायालय के विचार में पर्याप्त है सरकारी खजाने या न्यायालय में जमा ना कर दिए जाए तब तक अधिनस्थ सरकारी कर्मचारी को पैमाइश और सीमा चिन्ह लगाने के कार्य का आदेश नहीं दिया जाएगा.
कलेक्टर यह अभिलेख अधिकारी जब अभिलेख का काम चल रहा हो को यह अधिकार नहीं है कि वह आगम के प्रश्न का फैसला करें आदम यह का प्रश्न तो सिविल न्यायालय अनियमित राजस्व न्यायालय द्वारा भी निश्चित किया जाएगा कलेक्टर सीमा विवाद का निपटारा पिछड़े बंदोबस्त के नक्शे के आधार पर करेगा यदि कलेक्टर संतुष्ट नहीं है कि कौन सा पक्ष कार कब्जे में है या यह दर्शित किया गया है कि विवाद प्रारंभ होने की 3 मार्च की अवधि में संपत्ति के वैध का बीज को गलत करेगा की संपत्ति का सर्वोत्तम अधिकारी कौन व्यक्ति है और वह फिर इस प्रकार से हटाए गए व्यक्ति को कब्जे में रखेगा इस प्रकार दोनों में से किसी मामले में सीमाएं तदनुसार निर्धारित नहीं की जाएंगी.
सीमा विवाद के संदर्भ में महत्वपूर्ण मुकदमा है अवध सिंह बनाम खेम चंद्र का अवध सिंह ने भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत मेड़बंदी का आदेश पत्र दिनांक 18-01-1984 को परगना अधिकारी के यहां प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने यह लांछन लगाए की गाटा संख्या 835 जिसके वे भूमिधर है के चारों तरफ कि मेडें पड़ोस के काश्तकारों ने तोड़ ली है और उनके खेत का कुछ रकबा अपने खेत में मिला लिया है परगना अधिकारी ने मेड़बंदी अमीन से पैरा 402 रेवेन्यू कोर्ट मैनुअल के अधीन रिपोर्ट मागीं मेड़बंदी अमीन ने पैमाइश कर दिनांक 22\12 \1985 की रिपोर्ट प्रस्तुत की इस रिपोर्ट के विरुद्ध हेमचंद्र ने एतराज दाखिल किया सुनवाई के पश्चात परगना अधिकारी सरकारी अधिकारी ने खेमचंद एतराज को रद्द कर दिया और मेड़बंदी रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया परगना अधिकारी के आदेश से क्षुब्ध खेमचन्द ने अतिरिक्त कमिश्नर आगरा के यहां अपील की ।जिसने कि परगनाधिकारी के आदेश को खण्डित कर दिया तब उक्त आदेश से त्रस्त अवध सिंह ने भू राजस्व अधिनियम की धारा 219 के अंतर्गत निगरानी प्रस्तुत की.
अवज सिंह की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अपीलीय न्यायालय ने मेड़बंदी का प्रार्थना पत्र संधार्य ना होने के आधार पर खारिज करने में भूल की है प्रार्थना पत्र में निगरानी कर्ता ने जो बातें कही हैं उसके आधार पर पैमाइश की कार्यवाही कराए जाने में कोई अड़चन नहीं है विपक्ष खेमचंद की ओर से यह तर्क दिया गया कि मेड़बंदी प्रार्थना पत्र में जो बातें कही गई है उसके अनुसार पैमाइश की कार्रवाई संभव नहीं है क्योंकि प्रार्थना पत्र में जो लांछन लगाए गए हैं उनसे अनाधिकृत कब्जा का आभास मिलता है अतः जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 209 के अंतर्गत उन्हें संबंधित व्यक्तियों के विरुद्ध बेदखली और कब्जा प्राप्त की कार्रवाई करनी थी ना कि भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत मेड़बंदी की कार्यवाही की ।रेवेन्यू बोर्ड के न्यायिक सदस्य रामलाल ने निम्नलिखित फैसला दिया कि मेड़बंदी के प्रार्थना पत्र के अवलोकन से विदित होता है कि निगरानी कर्ता ने गाटा संख्या 835 अपना स्वामित्व दर्शाया है और प्रार्थना पत्र के साथ खसरा खतौनी के उदाहरण भी दाखिल किया है यह स्पष्ट है कि निगरानी कर्ता गाटा संख्या 835 के स्वामी है और उक्त जोत के चारों तरफ की मेड़ों के आसपास के काश्तकारों ने तोड़कर अपने खेत में मिला लिया है ऐसी स्थिति में गाटा संख्या 835 की पैमाइश के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह जाता है इस प्रार्थना पत्र के अवलोकन से यह कहा जा सकता है कि निगरानी कर्ता ने बेदखली की कार्रवाई करके कब्जा दिलाने हेतु कहा है ऐसी स्थिति में इस प्रार्थना पत्र के आधार पर भू राजस्व अधिनियम की धारा 41 के अंतर्गत की गई कार्यवाही की जा सकती है.
धारा 41 की कार्रवाई का उद्देश्य मौके पर अस्पष्ट या त्रुटिपूर्ण हदों को स्पष्ट करना तथा बंदोबस्ती मानचित्र के आधार पर निर्धारित करना है कि जैसा कि इस मे बताया गया है कि उत्तर उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 209की कार्रवाई के लिए यह आवश्यक है कि कि विपक्षी द्वारा जोतदार की सहमति के बिना और जबरदस्ती क्षेत्रफल क्षेत्रफल पर कब्जा कर लिया को प्रार्थना पत्र में प्रार्थना पत्र में आवेदक यह कहीं भी यह कहीं भी कथन नहीं है ।न्यायालय को अपनी ओर से अर्थात बिना पक्षकारों के कथन के कोई नया मुकदमा तैयार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है आवेदक का कथन स्पष्ट है कि उसके खेत की मेडों को तोडकर विपक्षीगढ़ ने अपने खेत में मिला लिया है मिला लिया है यह ज्ञान नहीं है .
निर्णीत हुआ की निगरानीकर्ता द्वारा दिया गया मेड़बंदी प्रार्थना पत्र संधार्य है अतः अतिरिक्त कमिश्नर को निगरानी इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्ती की जाती है कि वह उसका निस्तारण दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात गुणावगुण के आधार पर करें.
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