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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

हिंदू विधि के प्रमुख स्रोत: What are the various sources of Hindu law

  हिंदू विधि के  स्रोत (sources of Hindu law): - प्राचीन मत के अनुसार विधि एवं धर्म में एक अभिन्न संबंध था तथा विधि धर्म का ही एक अंग मानी जाती थी धर्म के स्रोत ही विधि के स्रोत माने जाते थे मनु के अनुसार वेद, स्मृति, सदाचार एवं जो अपने को तुष्टिकरण लगे यह 4 धर्म के स्पष्ट लक्षण माने गए थे.


        याज्ञवल्क्य ने भी धर्म के चार आधार स्तंभ इस प्रकार बतलाए हैं .श्रुति, स्मृति .सदाचार जो अपने को प्रिय लगे तथा सम्यक् संकल्पों से उत्पन्न इच्छाये़। याज्ञवल्क्य ने पुनः विधि के ज्ञान के 14 स्रोत बताएं हैं वेद (4) ,वेदांग (6)धर्मशास्त्र , न्याय  पुराण एवं मीमांसा ।

Sources of Hindu law: - According to the ancient opinion, there was an integral relationship between law and religion and law was considered a part of religion.  Virtue, virtue and what seems to be appeasement were considered to be the clear signs of 4 religions.



 Yajnavalkya has also explained the four pillars of religion in this way. Shruti, Smriti, virtue which is dear to oneself and desires arising from proper resolutions.  Yajnavalkya has again given 14 sources of knowledge of law – Veda (4), Vedanga (6) Dharmashastra, Nyaya Purana and Mimansa.

हिंदू विधि के स्रोतों को हम सुविधानुसार दो भागों में विभाजित कर सकते हैं -

( 1) प्राचीन या मूल स्रोत: - प्राचीन स्रोत के अंतर्गत निम्न चार प्रकार के स्रोत आते हैं -

(A) श्रुति

(B) स्मृति

(C) भाष्य तथा निबंध

(D) प्रथाएं

( 2) आधुनिक स्रोत: - निम्न तीन स्रोत आते हैं -

(A) न्याय साम्य सद् विवेक

(B) विधायन

(C) न्यायिक निर्णय

( 1) प्राचीन स्रोत: -

(A) श्रुति (shruti): - श्रुति का शाब्दिक अर्थ है वह जो सुना गया है श्रुति ओं के विषय में यह विश्वास प्रचलित है कि यह वाक्य ईश्वर द्वारा की ऋषि-मुनियों पर प्रकट किए गए थे जो श्री मुख से निकले साक्षात रूप से अंकित हैं.

सिद्धांत: -  सूक्तियां हिंदू विधि की प्रथम और सर्वोच्च स्त्रोत  मानी जाती है दैवी स्रोत माने जाने के कारण इसकी अधिकारिता  सर्वोच्च है किंतु व्यवहार रूप में इनका कोई महत्व नहीं है इसका कारण यह है कि इनमें विधि के कथन नहीं है किंतु वेद में अनेक उल्लेख है जो हिंदू विधि के अनेक विषयों का वर्णन करते हैं श्रुतियों के अंतर्गत चार वेद और उपनिषद है यह वेद निम्नलिखित हैं -

( 1) ऋग्वेद

( 2) यजुर्वेद

( 3) सामवेद

( 4) अथर्ववेद

तथा छह वेदांग

( 1) कल्प

( 2) व्याकरण

( 3) छंद

( 4) शिक्षा

( 5) ज्योतिष

( 6 ) निरूक्त


We can conveniently divide the sources of Hindu law into two parts -


 (1) Ancient or original sources: - The following four types of sources come under ancient sources -


 (A) Shruti


 (B) memory


 (C) Commentary and Essay


 (D) customs


 (2) Modern sources: - The following three sources come -


 (A) Justice, equity, conscience


 (B) Legislation


 (C) Judicial decision


 (1) Ancient Sources:-


 (A) Shruti: - The literal meaning of Shruti is that which has been heard. There is a popular belief about Shruti that these sentences were revealed by God to the sages, which came out of Shri Mukh in person.  are marked.


Theory: - The aphorisms are considered to be the first and supreme source of Hindu law, due to being considered as a divine source, its authority is supreme, but in practice they have no importance, the reason is that there are no statements of law in them, but there are many mentions in the Vedas.  Which describe many subjects of Hindu law, there are four Vedas and Upanishads under Shrutis, these Vedas are as follows -


 (1) Rigveda


 (2) Yajurveda


 (3) Samveda


 (4) Atharvaveda


 and the six Vedangas


 (1) Kalpa


 (2) Grammar


 (3) verses


 (4) Education


 (5) Astrology


 ( 6 ) dismissed

ये श्रुतियॉं वस्तुतः तो हमारे पूर्वजों की विचारधाराएं उनके आचरण दर्शन तथा प्रथाओं पर विस्तृत रुप से प्रकाश डालती है इसमें विधि के नियमों का कोई वैज्ञानिक दर्शन नहीं है जो कुछ भी है विधि के नियम हमें इधर-उधर बिखरे उपकरण से संचित किए जाते हैं क्योंकि वेद को सभी ज्ञान का स्रोत माना गया है अतः हिंदू विधि का भी स्रोत वेदों को ही मान लिया गया है।

(ख)स्मृति: - स्मृति हिंदू विधि का मेरुदंड है स्मृति  शब्द का शब्दीक अर्थ है जो याद रखा गया है स्मृतियाँ  ऋषि मुनियों की स्मृति पर आधारित है स्मृतियों  में मनु का स्थान सर्वोपरि है स्मृति कारों में मनु का स्थान सर्वोपरि है इस बात का समर्थन बृहस्पति ने भी किया है स्मृतियां हिंदू विधि का मेरुदंड है विधियों के दृष्टिकोण से इन स्मृतियों को सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है स्मृति   विधि की सबसे बड़ी विशेषता  रही है कि वह प्रयोग में आने वाली विधि का सन्निवेश करती है उसमें समाज की आवश्यकताओं का पूर्ण ध्यान रखा गया है मुल्ला के अनुसार स्मृतियों के प्रख्यापित प्राचीन विधि अनिवार्यता रूढ़िवादी थी और त्यादेश यह था कि समय द्वारा सम्मानित रूढिया और स्मरणातीय प्रथाएं सही रूप से सुरक्षित होनी चाहिए उनके अनुसार रीति अनुसार  विधि स्मरणीय प्रथाओं पर आधारित थी।

These Shrutis, in fact, throw light on the ideologies of our ancestors, their conduct, philosophy and practices in detail, there is no scientific philosophy of the rules of law, whatever it is, the rules of law are accumulated by the tools scattered here and there, because the Vedas  Vedas have been considered the source of all knowledge, hence the source of Hindu law has also been accepted as the Vedas.


 (b) Smriti:- Smriti is the backbone of Hindu Law. The word Smriti literally means that which is remembered. Smritis are based on the memory of sages.  Brihaspati has also done Smriti, the backbone of Hindu law, from the point of view of methods, these Smritis get the most important place.  According to Mulla, the promulgated ancient law of Smritis was essentially orthodox and mandated that time-honoured customs and commemorative practices should be properly preserved.

(ग)भाष्य तथा निबंध : - यद्यपि निबंधों का कार्य समितियों की व्याख्या करना है किंतु निबंधों में समय की मांग के अनुसार व्याख्या करके मूल विधि को काफी परिवर्तित कर दिया है सामाजिक आवश्यकताओं तथा सुविधाओं को सामाजिक प्रथा और रीति-रिवाजों के अनुकूल होने के लिए भाष्यो तथा निबंधों का आश्रय लिया गया है भाष्य वे है जिनमें स्मृतियों की टीका की गई है समस्त निबंधों में  विज्ञानेश्वर द्वारा रचित निबंध मिताक्षरा सबसे अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुआ है और परिणाम स्वरूप उसमें प्रतिपादित विधि बंगाल प्रांत को छोड़कर समस्त भारत में प्रचलित हो गई है मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर लिखा हुआ सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाष्य  है जिसकी प्रतिष्ठा तथा प्रामाणिकता देश में मान्य है.

प्रमुख भाष्य इस प्रकार है -

( 1) दाएभाग जीमूतवाहन द्वारा

( 2)विज्ञानेश्वर  द्वारा याज्ञवल्क्य स्मृति पर मिताक्षरा

( 3) मित्र मित्श्र द्वारा वीर मित्रोदय

( 4) वाचस्पति द्वारा विवाद चिंतामणि

( 5) चंद्र शेखर द्वारा विवाद चिंतामणि

( 6) रघुनाथ द्वारा पाराशर माधव्य

( 7) श्री कृष्ण द्वारा दाएक्रम संग्रह

( 8) देवन्न भट्ट द्वारा स्मृति चंद्रिका

( 9) माधवाचार्य द्वारा पाराशर माधव्य

( 10) नीलकंठ द्वारा व्यवहार मयूर

(C) Commentaries and Essays: - Although the work of Essays is to explain the committees, but the basic method has been changed a lot by interpreting in Essays according to the demand of time, social needs and facilities to adapt to social practice and customs.  For this, the support of commentaries and essays has been taken. Commentaries are those in which memories have been criticized. In all the essays, the essay Mitakshara composed by Vigyaneshwar has proved to be the most influential and as a result, the method propounded in it has become prevalent in the whole of India except the province of Bengal.  Mitakshara is the most important commentary written on Yajnavalkya Smriti whose prestige and authenticity are recognized in the country.


 The main comment is as follows -


 (1) By right side Jimutvahan


 (2) Mitakshara on Yajnavalkya Smriti by Vigyaneshwar


 (3) Veer Mitrodaya by Mitra Mitshra


 (4) Dispute Chintamani by Vachaspati


 (5) Controversy Chintamani by Chandra Shekhar


 (6) Parashara Madhavya by Raghunath


 (7) Daikram collection by Shri Krishna


 (8) Smriti Chandrika by Devann Bhatt


 (9) Parashara Madhavya by Madhavacharya


 (10) Peacock treated by Neelkanth

(A) प्रथाएं (customs): - प्राचीन ग्रंथ कारों ने प्रथाओं को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान दिया है   यहां तक की रीतियों को महत्व किसी ना किसी रूप में  अपने मूल ग्रंथ पर आधारित माना गया है मनु के अनुसार विस्मरणीय प्रथा स्वयं में अलिखित कानून है.

            वास्तव में प्रथाएं वे नियम है जो किसी परिवार वर्ण तथा स्थान विशेष के प्राचीन काल से चले आने के कारण उन्होंने कानून के समान ही मान्यता प्राप्त कर ली है.

               वैद्य प्रथा प्राचीन आ परिवर्तनशील तथा निरंतर युक्ति युक्त स्पष्ट प्रमाण तथा लोक नीति व स्पष्ट कानून के विरुद्ध नहीं होनी चाहिए.

               प्रथाओं के बाध्यकारी प्रभाव को बहुत से प्राचीन मूल ग्रंथ कारों ने माना है उन्होंने यह भी माना है कि प्रत्येक लोकरीति अंतिम देव वाणी पर आधारित है.


(A) Customs: - Ancient scriptures have given utmost importance to customs. Even the importance of customs is considered to be based on their original texts in some form or the other.


 In fact, customs are those rules which have been recognized by a particular family, caste and place since ancient times and have gained recognition as law.


 Vaidya Pratha should not be against ancient and changeable and continuous method with clear evidence and against public policy and clear law.


 The binding effect of rituals has been recognized by many ancient texts. They have also believed that every folk ritual is based on the last divine speech.


( 2) आधुनिक स्रोत: -

( 1) न्याय साम्य  एवं सद्विवेक  (justice equality and good conscience): - विधि के आधुनिक स्रोत में न्याय साम्य  एवं सद् विवेक का महत्वपूर्ण स्थान है वस्तुत  यह प्रत्यक्ष हिंदू विधि में आधुनिक काल में अंग्रेज न्याय विधि ने प्रारंभ किया था जिस विषय के संबंध में धर्म शास्त्रों में कोई भी व्यवस्था प्रदान नहीं की गई थी अथवा जहां स्मृतियों में दिए गए पाठ परस्पर विरोधी होते हैं वह हिंदू विधि के सामान्य  आधार का ध्यान रखते हुए न्यायगत साम्य  तथा विवेक पूर्णता को ध्यान मे रखते हुए निर्णय दिये जाते हैं अतः स्पष्ट है कि हिंदू विधि के आधुनिक स्रोतों में सद् विवेक न्याय साम्य का महत्वपूर्ण स्थान है.

           कौटिल्य का मत है कि जहां धर्म ग्रंथ न्यायिक विवेक के विरोधी प्रतीत होते हैं प्रतीत  वहां न्यायिक विवेक को धर्म ग्रंथ की अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है उच्चतम न्यायालय ने गुरुनाथ बनाम कमलाबाई में यह निर्देशित किया है कि हिंदू विधि में किसी नियम के अभाव में न्यायालय को यह पूर्ण अधिकार है कि वह किसी मामले का निर्णय करने में हिंदू विधि के किसी अन्य सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करते.


(2) Modern sources:-


 (1) Justice equality and good conscience: - Justice equality and good conscience have an important place in the modern source of law, in fact it was directly started in Hindu law by the British judicial system in the modern period, in relation to which subject  No provision was provided in the Dharma Shastras or where the texts given in the Smritis are conflicting, the decisions are given keeping in mind the general basis of Hindu law, keeping in mind judicial equity and completeness of discretion, so it is clear.  That in the modern sources of Hindu law, there is an important place of good conscience, justice and equity.


 Kautilya is of the opinion that where the scriptures appear to be opposed to judicial discretion, judicial discretion is to be given more importance than the scripture.  It has the absolute right not to violate any other principle of Hindu law in deciding a case.


(2)विधायन(Legislation ) विधि के स्त्रोतों  मे अधिनियमों  का महत्व वर्तमान काल मे बहुत  अधिक बढ गया है वस्तुत विधि का यह स्त्रोत  आधुनिक युग के नवीन स्त्रोतों  मे आता है  भारत  के अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के बाद हिंदू विधवा राज्य की विधान सत्यम द्वारा समय-समय पर बहुत से परिवर्तन व संशोधन किए गए विधि का यह स्रोत आधुनिक युग के नवीन स्रोतों में आता है प्रमुख अधिनियम जिन्होंने हिंदू विधि में परिवर्तन तथा संशोधन किए हुए निम्नलिखित हैं -

( 1) जाति निर्योग्यता निवारण अधिनियम 1850

( 2) हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856

( 3) देशवासी परिवर्तित धर्म वाले विवाह विच्छेद संबंधी अधिनियम 1856

( 4) विशेष विवाह अधिनियम 1872

( 5) भारतीय व्यस्तता अधिनियम 1875

( 6) संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882

( 7) संरक्षक तथा आश्रित अधिनियम 1890

( 8) हिंदू संपत्ति तथा विवर्तन अधिनियम 1916

( 9) भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925

( 10) हिंदू हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1919

( 11) बाल विवाह अपराध अधिनियम 1929

( 12) पुण्यार्थ तथा धार्मिक न्याय अधिनियम1902

( 13) अधिगम तथा लाभ अधिनियम 1930

( 14) हिंदू नारी का संपत्ति का अधिकार अधिनियम 1931

( 15)आर्य  विवाह मान्यकारीअधिनियम1931

( 16) हिंदू विवाह निर्योग्यता निवारण अधिनियम 1946

( 17) हिंदू नारी का प्रथक आवास एवं भरण पोषण का अधिकार अधिनियम 1946

( 1 8) हिंदू विवाह मान्यता अधिनियम 1954

( 19) विशेष विवाह अधिनियम 1954

( 20) हिंदू विवाह अधिनियम 1955

( 21) हिंदू अवयस्कता तथा संरक्षक का अधिनियम1956

( 22) हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956

( 23) दहेज निषेध अधिनियम 1950


(2) The importance of Acts in the sources of Legislation law has increased a lot in the present times, in fact this source of law comes in the new sources of the modern era.  Many changes and amendments have been made from time to time, this source of law comes in the new sources of the modern era.


 (1) Caste Disability Prevention Act 1850


 (2) Hindu Widow Remarriage Act 1856


 (3) The Act 1856 related to divorce of countrymen with changed religion


 (4) Special Marriage Act 1872


 (5) Indian Occupation Act 1875


 (6) Transfer of Property Act 1882


 (7) Guardian and Dependent Act 1890


 (8) Hindu Property and Diversion Act 1916


 (9) Indian Succession Act 1925


 (10) Hindu Hindu Succession Act 1919


 (11) Child Marriage Offenses Act 1929


 (12) Charitable and Religious Justice Act 1902


 (13) Learning and Profit Act 1930


 (14) Hindu Women's Right to Property Act 1931


 (15) Arya Marriage Validation Act 1931


 (16) Hindu Marriage Disabilities Prevention Act 1946


 (17) Hindu woman's right to separate residence and maintenance act 1946


 (1 8) Hindu Marriage Recognition Act 1954


 (19) Special Marriage Act 1954


 (20) Hindu Marriage Act 1955


 (21) Hindu Minority and Guardian's Act 1956


 (22) Hindu Adoption and Maintenance Act 1956


 (23) Dowry Prohibition Act 1950
( 3) न्यायिक निर्णय: -

न्यायिक निर्णय  जो हिंदू विधि पर न्यायालयों द्वारा घोषित किए जाते हैं उनको भी विधि का एक स्रोत माना जाता है न्यायिक फैसलों का हिंदू विधि की अनिश्चितता को स्पष्ट करने का संदेहात्मक अथवा भृमात्मक विषयों का समाधान करने तथा विस्तार करने में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है न्यायिक निर्णयों को भविष्य के मामले के लिए दृष्टांतत्मक रूप से समझा जाता है.

            पृवी काउंसिल तथा उच्चतम न्यायालय के निर्णय भारत के सभी न्यायालयों पर बंधन कारी होते हैं इन न्यायिक फैसलों में उसी प्रकार की परिस्थिति वाले मुकदमों में मार्गदर्शन के रूप में कार्य लिया जाता है और इनका प्रभाव अवश्यक पालनीय  होता है कोई भी पूर्व निर्णय विधि का साक्ष्य नहीं होता वरन वे उस का स्रोत भी होता है तथा न्यायालय इस पूर्व निर्णय से वाद्य होता है.


(3) Judicial decision:-


 Judicial decisions, which are declared by the courts on Hindu law, are also considered a source of law. Judicial decisions have a very important place in clarifying the uncertainty of Hindu law, resolving and expanding the doubtful or confusing issues.  The decisions are understood to be illustrative for future cases.


 The decisions of the Privi Council and the Supreme Court are binding on all courts in India. These judicial decisions act as guidance in cases of similar circumstances and their effect is necessarily followed. No previous decision is evidence of law.  Rather, he is also the source of it and the court is instrumental in this earlier decision.

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