उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम के उद्देश्य: Object of the up zamindari abolition and land Reform Act
7 जुलाई 1949 को उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक को विधानसभा में पेश करते हुए पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कहा था कि इस विधेयक को उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के कृषि अधिकारों को कायम करने का है चाहे वह जमीदार हो काश्तकार हो या सिकमी काश्तकार. विधेयक का मुख्य उद्देश्य उत्पादन को प्रोत्साहित करना उसके स्तर को बढ़ाना एवं जमीदारों को भी अपने लिए उत्पादन करने के लिए प्रेरित करना जिन्होंने अब तक दूसरों को शोषण किया है या दूसरों का श्रम पर आश्रित रहे हैं.
10 जून में 1949 को सरकारी गजट में इस विधेयक का उद्देश्य तथा कारणों का विवरण प्रकाशित हुआ था उसका सारांश -
( 1) जमीदारी प्रथा का उन्मूलन
( 2) मुआवजा देकर जमीदारों के अधिकार आगम तथा हित का अर्जन
(3) साधारण एवं समरूप जोतदारी व्यवस्था स्थापित करने एवं चालू क्लिफ्ट एवं भ्रामक जोतदारियो को समाप्त करना
(4)शिकमी पर भूमि उठाने पर रोक
( 5) ग्राम स्वायत शासन का विकास
( 6) अलाभकर जोतो को उत्पत्ति को रोकने एवं अधिक भूमि के जमाव पर रोक।
(7) सहकारी खेती को प्रोत्साहन देना
( 8) बहुत सभा में समान उपयोगिता की सभी भूमियों को निहित करना और भूमि प्रबंधन व्रत शक्तियां इसे देना.
जमीदारी उन्मूलन हुए 60 वर्ष हो चुके हैं परंतु उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम अपने सभी उद्देश्यों को पूरा करने में पूर्णता सफल नहीं हुआ है फिर भी अधिनियम की सफलता या असफलता को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है -
( 1) मध्यवर्ती ओं की समाप्ति: - अधिनियम के पूर्व जोतदार और सरकार के मध्य सीधा संबंध नहीं था दोनों के मध्य में जमीदार तालुकदार इला केदार और जागीरदार का वर्ग था यह बिचौलिया वर्ग जोतदारो से लगाना आदि वसूल करता था और उसका कुछ भाग सरकार को मालगुजारी के रूप में देता था यह मध्यवर्ती लगान एकत्र खेती बारी ना करने वाले किंतु भूमि के स्वामी थे यह मध्यवर्ती जोतदारो से लगान के अतिरिक्त और भी धन की अवैध वसूली करते थे अधिनियम का मुख्य उद्देश्य था इस शोषक और परोप जीवी वर्ग को हटाकर जोतदार और सरकार के मध्य सीधा संबंध स्थापित करना.
इस उद्देश्य की पूर्ति में अधिनियम पूर्णतया सफल हुआ अधिनियम में भूमि विधि से सारे मध्यवर्ती यों को हटाकर किसानों और सरकार के मध्य सीधा संबंध स्थापित किया मध्यवर्ती ओं की जमीदारी समाप्त कर उन्हें प्रतिकर और पुनर्वास अनुदान भी दिया गया ताकि वह समाज में अपने को स्थापित कर सके और कोई अन्य जीविका या वृत्ति को अपना सकें.
( 2) ग्राम शासन का विकास: - अधिनियम का एक प्रमुख उद्देश्य प्रत्येक गांव को एक अलग जनतंत्र आत्मा गणतंत्र के रूप में विकसित करना था जिस समय अधिनियम लागू हुआ उस समय पहले से ही 2 संस्थाएं गांव सभा और गांव पंचायत कार्यरत थी इस अधिनियम ने दो और जनतंत्र संस्थाओं को जन्म दिया।गांव समाज और भूमि प्रबंधन समिति गांव सभा का गठन यूपी पंचायत राज अधिनियम के अंतर्गत होता था और 250 या उससे अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में उनकी स्थापना हुई इसकी कार्यकारणी को गांव पंचायत कहते हैं परंतु गांव समाज की स्थापना प्रत्येक गांव में हुई चाहे उसकी जनसंख्या 250 से कम ही क्यों ना हो इस की कार्यकारिणी का नाम भूमि प्रबंधन समिति रखा गया इस प्रकार ढाई सौ या उससे अधिक आबादी वाले गांव में 4 संस्थाएं भी गांव ग्राम सभा गांव पंचायत गांव समाज और भूमि प्रबंध जमीदारी समाप्ति पर जमीदारी संपत्ति को राज्य सरकार ने तक संबंधी गांव समाज में नेत्र कर दिया गांव समाज में संपत्ति का परीक्षण प्रबंध संरक्षण और नियंत्रण का भार गांव सभा को सौंप दिया गया परंतु भूमि का प्रबंध और बंदोबस्त भूमि प्रबंधक के सुपुर्द कर दिया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि गांव समाज का रहना अनावश्यक है इसलिए उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति एवं जिला परिषद अधिनियम 1961 में जमीदारी नाथ एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम से गांव समाज संबंधी प्रावधानों को निकाल दिया और गांव समाज के स्थान पर गांव सभा को स्थान दिया गया अब गांव में केवल तीन ही जनतंत्र ये संस्थाएं गांव सभा उसकी कार्यकारिणी गांव पंचायत और विशेष कार्यकारिणी भूमि प्रबंध समिति.
गांव के सभी 18 वर्ष प्राप्त आई वाले लोग आमतौर पर गांव सभा में सदस्य होते हैं और वह गांव सभा का प्रधान को और सभा की कार्यकारिणी गांव पंचायत को गुप्त मतदान द्वारा चुनते हैं ग्राम पंचायत को गांव प्रशासन के लिए व्यापक शक्तियां एवं अधिकार प्रदान किए गए हैं ग्राम पंचायत की ओर से भूमि प्रबंध समिति की सभी भूमियों आबादी स्थल मार्ग जंगल तलाब पोखरा जलस्रोत हाट बाजार और मेला आदि का परीक्षण प्रबंध और नियंत्रण करती है.
इस तरह से गांव अब तक एक जनतंत्र इकाई के रूप में विकसित हो गए हैं इन गांव की हैसियत लगभग वैसी ही है जैसी स्विट्जरलैंड के कैंटन की है अधिनियम स्वायत्त शासन की स्थापना में पूर्णतया सफल है।
(3) सहकारी कृषि को प्रोत्साहन: - अधिनियम का उद्देश्य यह भी था कि सहकारी कृषि को प्रोत्साहन दिया जाए इसलिए अधिनियम में एक पूरा 11 अध्याय सहकारी कृषि की स्थापना के विषय में था सहकारी कृषि को बहुत सी सुविधाएं प्रदान की गई इसके बावजूद भी सहकारी कृषि फार्म बहुत कम संख्या में स्थापित हो सके सन 1965 में सहकारी कृषि फार्म संबंधी कानून उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में से निकाल दिया गया और उसे उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1965 में रखा गया था.
( 4) सरल जोतदारी व्यवस्था: - अधिनियम के पूर्व भूमि विधि में 14 किस्म की जोतदारियो का वर्णन किया गया है और वे सभी क्लिष्ट एवं भ्रामक थी अधिनियम का एक मुख्य उद्देश्य था इन जटिल एवं प्रमुख जोतदारियो के समाप्त करके एक सरल एवं समाज व्यवस्था करना इस उद्देश्य को प्राप्त करने में भी अधिनियम पूर्णतया सफल रहा अधिनियम ने जमीदारी उन्मूलन के साथ-साथ इन 14 किस्म की जोतदारियो को समाप्त करके उन्हें मूलता चार जोतदारियो व्यवस्थित कर दिया यह चार जोतदारियो थीम भूमिधर सीरधर आसामी और अधिवासी। जमीदारी उन्मूलन के 2 वर्ष 3 माह के बाद ही आदिवासी को भी सिरदार बना दिया गया इस प्रकार 30 अक्टूबर 1954 ईस्वी में भूमि विधि में केवल तीन ही जोरदार रहे हैं भूमिधर सीरधर और आसामी इस प्रकार अधिनियम द्वारा सरल एवं समरूप जोतदारी व्यवस्था स्थापित हुई उत्तर प्रदेश भूमिविधि संशोधन अधिनियम 1977 जो 28 जनवरी 1977 से लागू हुआ भूमि धारा और किरदारों को समाप्त कर उन्हें दोबारा दो भागों में बांट दिया गया संक्राम में अधिकार वाला भूमिधर अधिकार वाला भूमिका आसन क्रम में अधिकार वाला भूमिधर जो धारा 131 का के अंतर्गत बनाए गए थे उन सभी जोदारो के हितों की रक्षा हेतु उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार संशोधन अधिनियम 1955 पारित करके नई धारा 131 का जोड़ी गई जिसके आधार पर समस्त संक्रमणीय अधिकार वाले भूमिधर भूमि दिए जाने की तिथि से राजस्थान की समाप्ति पर संक्रमणीय भूमिधर मान लिए गए किंतु आया था जो इस अधिनियम के लागू होने के बाद अपनी भूमि का विक्रय द्वारा अंतरण कर देता है तो गांव बाद में वह गांव सभा या राज्य सरकार में नींद भूमिया उत्तर प्रदेश अधिकतम जोत सीमा आरोपण अधिनियम 1960 के तहत परिभाषित भूमि का पट्टा प्राप्त करने के योग्य नहीं समझा जाएगा जोरदार आसामी को ज्यों का त्यों बना रहने दिया गया धारा 133 सरकारी पट्टे दार धारा 133 का जिसे राज्य सरकार द्वारा शर्तो एवं प्रतिबंधों के अधीन भूमि दी गई हो.
(5) लगान पर भूमि उठाने पर रोक: - अधिनियम निर्माताओं की नई तिथि की जो भूमि को जोतते हुए वही भूमि का मालिक होता था अनुसार अधिनियम या प्रावधान करता है कि जोरदार जब धारा 157 (1) मैं वर्णित अच्छा व्यक्ति ना हो अपनी भूमि को लगान पर नहीं उठा सकता यदि वह ऐसा करता है तो उसका अधिकार उस जोत से समाप्त हो जाएगा जिन लोगों को भूमि लगान पर उठाने का अधिकार दिया गया है वह या तो शारीरिक रूप से दुर्बलता से पीड़ित हो या उन्हें कानूनी क्षमता प्राप्त नहीं है या इस दशा में कि स्वयं खेतीवाड़ी नहीं कर सकते जैसे नाबालिक जड़ बुद्धि अंधा व्यक्ति में पड़ा हुआ व्यक्ति.
अधिनियम भूमि को लगान पर उठाने का प्रतिबंध लगाता है परंतु जोत को साझीदार रखने का नहीं अधिनियम की धारा 156 (2) का मूल स्पष्टीकरण यह उल्लेख करता था कि कोई ऐसी व्यवस्था जिसके द्वारा खेती के काम में सक्रिय सहायता यह सहयोग देने के बदले किसी भी भूमि की उपज में हिस्सा मात्र पाने का हक प्राप्त होना नादान पर भूमि को उठाना नहीं होगा इस स्पष्टीकरण का लाभ उठाकर बड़े-बड़े जोत दारू ने अपनी भूमि भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को साझेदारी में देना चालू किया उनसे उपज का आधा भाग प्राप्त किया व्यवहार रूप में यह बटाई का ही दूसरा नाम है जिसमें कि असल काश्तकार ना तो श्रम लगाता था और ना ही पूंजी परंतु उपज का आधा भाग ले लेता था अतः अधिनियम भूमि को लगान पर उठाने की मनाही करने में पूर्णतया सफल नहीं रहा.
प्रदेश भूमि विधि संशोधन अधिनियम 1975 ने इस अधिनियम में संशोधन करके बटाई प्रथा को हटाने का प्रयत्न किया इसके संशोधन द्वारा धारा 156 (1) कैमूर स्पष्टीकरण के स्थान पर यह स्पष्टीकरण रखा गया कि यदि भूमि का कब्जा किसी जोरदार ने साझीदार को दे दिया कि वह जोरदार को ऊपर का आधा भाग देगा तो यह लगान पर उठाना माना जाएगा.
धारा 156 का संशोधित स्पष्टीकरण भी उत्तर प्रदेश भूमि विधि संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा निकाल दिया गया है ताकि बटाई प्रथा की कोई गुंजाइश ना तदनुसार अब बटाई खत्म हो गई और भूमि में साझेदार की गुंजाइश भी नहीं है इस प्रकार अब हम कह सकते हैं अधिनियम भूमि को उठाने के रूप में सफल हो रहा है.
( 6) भूमि के अधिक जमाव पर रोक: - चंद्र व्यक्तियों के पास भूमि को एकत्रित होने से रोकने के लिए अधिनियम ने यह प्रावधान किया था कि भविष्य में कोई परिवार दान या विक्रय द्वारा ऐसी जोतना प्राप्त करेगा जो उसकी अपनी जोत लेकर उत्तर प्रदेश में कुल 12 सही एक बटे 2 एकड़ देखो इसका उद्देश्य यह है कि एक परिवार के पास केवल उतनी ही घूम होनी चाहिए जितनी पर परिवार उचित प्रकार से खेती बारी कर सके जिन किसानों के पास पहले से साडे 12 एकड़ या उससे अधिक भूमि है उनके ऊपर केवल यह नियंत्रण है कि वह भविष्य में और भूमि प्राप्त नहीं कर सकेगा इस प्रावधान के उल्लंघन में किया गया अंतरण सुनो का तथा उत्तर प्रदेश राज्य में सब भागों से रहित होकर निहित हो जाएगी.
प्रधान अधिनियम की धारा 154 में वर्णित था इस धारा में परिवार शब्द की परिभाषा दोषपूर्ण थी इसमें शामिल थे . पति तथा पत्नी अभ्यास के बच्चे परिवार में माता-पिता शामिल नहीं थे इसलिए जो अवयस्क बच्चों को किया जाता है तो माता-पिता की भूमि साडे 12 एकड़ सीमा के लिए छोड़ी नहीं जाती है.
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