कोई भूमिधर अपनी जोत को किसी व्यक्ति को किसी भी अवधि हेतु पट्टे पर नहीं दे सकता है. समीक्षा कीजिए तथा यदि अपवाद हो तो उनकी व्याख्या कीजिए?No bhumidhar can let out his holding to any person for any period whatever comments and discuss the exceptions if any
उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था किसी भी भूमिधर के द्वारा अपनी ज्योत की भूमि को पट्टे पर उठाने पर प्रतिबंध लगाया गया है इस अधिनियम की धारा 150 में प्रावधान किया गया है इस ध अपने खेत की भूमि लगान पर किसी भी अवधि के लिए नहीं उठाएगा.
(a) धारा 157 में व्यवस्थित दशाओं में (b) कृषि बागवानी या पशुपालन की शिक्षा से संबंध किसी स्वीकृत शिक्षा संस्थान को.
धारा ( 2) के संबंध में पट्टा सजातीय पदों का वही अर्थ होगा जो संपत्ति अंतर नियम 1882 में शब्द लीज एवं उसके सजातीय पदों को दिया गया है.
अधिनियम में यह प्रावधान के पीछे प्रमुख उद्देश्य है कि जमीदारी प्रथा या उसके जैसी कोई अन्य प्रथा पुनर्जीवित ना हो अधिनियम सिर्फ ऐसे भूमि धर्म को अपनी जोत वाली भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देता है जो किसी कारणवश स्वयं अपनी जोत वाली भूमि पर कृषि कार्य करने में सक्षम है ऐसी सक्षम व्यक्तियों की सूची धारा 157 में दी गई है इनके अलावा अपनी भूमि घरों के द्वारा अपनी ज्योत की भूमि का पट्टा किसी ऐसे संस्थान को दिए जाने की अनुमति अधिनियम में प्रदान करता है जो कृषि बागवानी एवं पशुपालन की शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान में संलग्न हो एवं सरकार के द्वारा स्वीकृत हो.
अधिनियम किसी भी भूमिधर के द्वारा धारा 156 में वर्णित नियम का उल्लंघन किए जाने पर उसके परिणामों के विषय में प्रावधान करता है धारा 165 इन परिणामों की विवेचना करती है जिनके अनुसार अगर पट्टे पर दी गई भूमि को मिलाकर उसके पास कुल भूमि का 12 सही एक बटे 2 एकड़ से अधिक भाग नहीं होता है तो वह पत्तेदार उस भूमि का असंक्कामक अधिकार वाला भूमिहार हो जाएगा एवं उसका भूमि धरी का अधिकार खत्म हो जाएगा अगर पट्टेदार के पास इस भूमि का मिलाकर 12 1\2 अधिक भूमि है तो पत्तेदार उस भूमिका क्रेता माना जाएगा एवं धारा 154 एवं 163 के उपबंध जरूरी बदलाव के साथ लागू होंगे अधिनियम की धारा 116 के अनुसार इस अधिनियम के उपबंध के उल्लंघन में किया गया प्रत्येक अंतरण शून्य होगा। इस तरह शून्य घोषित अंतरा के परिणामों की विवेचना धारा 167 में की गई है जिसके अनुसार: -
( 1) ऐसे प्रत्येक शून्य घोषित अंतरण के विषय में निम्न परिणाम होंगे अर्थात -
(a) अंतरण की तारीख से अंतरण की विषय वस्तु को सभी तरह के भार से मुक्त राज्य सरकार में निहित माना जाएगा.
(b) अंतरण की तारीख को उस भूमि में मौजूद फसल वृक्ष एवं कुए को उक्त तारीख से समाप्त अधिनियम से पूर्व 14 तरह की एवं भ्रामक जोत दारियों थी जिन्हें अधिनियम ने खत्म करके उन्हें चार जोतदरों में रखा गया है एवं भार मुक्त राज्य सरकार में निहित माना जाएगा।
(c) अंतरण अंतर की तारीख को ऐसी भूमि में मौजूद अन्य चल संपत्ति को चल संपत्ति की सामग्री को नियत किए गए समय के अंदर हटा सकेगा.
( 2) उप धारा (1) अंतर्गत राज्य सरकार में नियत किसी भूमिया संपत्ति का कलेक्टर के द्वारा कब्जा लेने एवं भूमि अथवा संपत्ति पर काबिज होने वाले व्यक्ति को बेदखल करने का निर्देश विधि पूर्ण होगा ऐसी भूमि अथवा संपत्ति का कब्जा लेने या उस पर अनाधिकृत रूप से काबिज व्यक्तियों को बेदखल करने के लिए कलेक्टर जरूरी बल का प्रयोग कर सकेगा.
अधिनियम के अपवाद (exceptions of act): - धारा 156 में वर्णित नियम के कुछ अपवाद भी हैं जो जरूरत पर अधिनियम के उप बंधुओं के अंतर्गत रहकर एक सक्षम भूमिधर के द्वारा अपनी जोत वाली भूमि को पट्टे पर दिए जाने की अनुमति प्रदान करते हैं अधिनियम की धारा 157 इस विषय में उप बंद करती है इस धारा के अनुसार ऐसा अक्षम भूमिधर अथवा भरण पोषण के बदले भूमि रखने वाला आसानी से जो: -
(a) कोई अविवाहित स्त्री अथवा अपने पति से परित्याग अलग हुई विवाहित स्त्री या खंड (3) खंड 4 मैं उल्लेखित क्षमता से ग्रस्त व्यक्ति की पत्नी अथवा विधवा हो,
(b) ऐसा अवयस्क जिसका पिता जरिया पागल हो या अंधेपन या शारीरिक निर्बलता कारण खेती करने में असमर्थ हो या मर गया हो
(c) पागल या जड़ शक्ति हो.
(d) जो अंधे पनिया शारीरिक निर्धनता के कारण खेती करने में अक्षम व्यक्ति हो,
(e) किसी स्वीकृत शिक्षा संस्थान में अध्ययन करता हो और 25 वर्ष से अधिक आयु का ना हो और जिसका पिता जड़ पागल अंधा यह शारीरिक रूप से निर्बल हो या मर गया हो
(f) भारत की स्थल सेना नौसेना या वायु सेना संबंधी सेवा में हो या
( 4) निरोध अन्या कारावास में हो अपनी खेती की संपूर्ण भूमिका उसका कोई अंश पट्टे पर दे सकता है
यदि कोई खाता एक से अधिक व्यक्तियों के पास सेट रूप से हो और वे सभी उपयुक्त क्षमताओं से पीड़ित ना हो परंतु उनमें से एक या अधिक व्यक्ति ही उक्त क्षमताओं के अधीन हो और ऐसे व्यक्तियों को खाते की भूमि से अपना अंश पट्टे पर देने का अधिकार होगा.
इसलिए यह स्पष्ट है कि अधिनियम के उप बंधुओं के अनुसार कोई भी भूमिधर किसी भी समय के लिए अपनी जोत वाली भूमि को पट्टे पर नहीं दे सकेगा शिवाय अधिनियम के अंतर्गत दिए गए अपवाद दो के.
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