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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

अपील न्यायालय के प्रमुख शक्तियां क्या है ? क्या अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है) what are the main power of appellate court.?

अपील न्यायालय की शक्तियां (powers of appellate court)

     अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का वर्णन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 385 में किया गया है दोषी युक्ति के आदेश के खिलाफ अपील किए जाने पर अपील न्यायालय -

(a) अपराधी को दोषी पा सकेगा एवं उसे विधि के अनुसार दंड आदेश दे सकेगा.

(b) अतिरिक्त जांच (investigation) दे सकेगा

(c) विचारण  के लिए सुपुर्दगी का आदेश दे सकेगा

(d) साक्ष्य  का पुनर्मूल्यांकन कर सकेगा यथा मुकेरिया बनाम स्टेट A.I.R 2013 SC 321)


दोष सिद्धि के आदेश के खिलाफ अपील किए जाने पर अपील न्यायालय

(a) निष्कर्ष के उलट सकेगा एवं अपराधी को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकेगा


(b) उसका पुनर्विचारण किए जाने अथवा विचारण के लिए सुपुर्द किए जाने के लिए आदेश दे सकेगा या

(c)दंडादेश को बनाए रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकेगा किंतु इस प्रकार नहीं की उससे दंड में वृद्धि की जाए

(d) निष्कर्ष में दंड की प्राकृतिक एवं परिमाण में परिवर्तन कर सकेगा परंतु इस प्रकार नहीं की उससे दंड में वृद्धि की जाए

दंडादेश मे बढ़ोतरी के खिलाफ अपील किए जाने पर अपीलीय न्यायालय

(a) निष्कर्ष को उलट सकेगा एवं अपराधी को दोषमुक्त अथवा उन्मोचित कर सकेगा अथवा ऐसे अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम कोर्ट को आदेश दे सकेगा अथवा ऐसे अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम न्यायालय को आदेश दे सकेगा अथवा

(b)दंडादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकेगा

(c) निष्कर्ष में परिवर्तन करते हुए या किए बिना दंडादेश की प्रकृति या परिणाम में परिवर्तन कर सकेगा जिससे उसमें वृद्धि अथवा कमी हो

            
         किसी अन्य आदेश से अपील किए जाने पर अपीलीय न्यायालय से आदेश में परिवर्तन कर सकेगा या उसे बदल सकेगा वह कोई संशोधन परिणाम इक अथवा अनुषांगिक आदेश जो न्याय संगत या उचित हो कर सकेगा परंतु अपीलीय न्यायालय उस अपराध के लिए जिसे अपराधी ने किया हो उसे अधिक दंड नहीं देगा जो ऐसे अपराध के लिए अपीलीकृत आदेश या दंडादेश पारित करने का न्यायालय दे सकता है।


            अधीनस्थ न्यायालय के सम्मुख उपसंजात होने वाले अधिवक्ताओं के आचरण पर उच्च न्यायालय को कोई निर्णय पारित नहीं करना चाहिए था ।यथा मुनियापन्न बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु (एआईआर 1981 सी 1220



            हाईकोर्ट दोषसिद्धि एवं दंडादेश अथवा दोष मुक्ति के आदेश के खिलाफ अपीलों में पुनर्विचार अन्य साक्ष्य पर पुनः विचार करते हुए दोषसिद्धि के संभारण का आदेश देने के लिए सक्षम है( राम शंकर सिंह बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल ए आई आर 1981 एस सी 1220)


             फिर अपील न्यायालय किसी अपील को निचले न्यायालय की सुनवाई करने एवं उसका निपटारा करने के लिए प्रति प्रेषित कर सकता है ( चंद्रशेखर पटनायक बनाम स्टेट  1971 कटक l&t 833)


          अपील की सुनवाई के दौरान अपील न्यायालय विधि में हुए किसी परिवर्तन पर विचार कर सकता है. (डी. एक्स . एन . देसाई बनाम स्टेट ए आई आर 1967 गोवा 4)


        बक्शी राम बनाम स्टेट ऑफ पंजाब ए आई आर 2013 एस सी 1484) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि अपीलीय न्यायालय को अपने स्वतंत्र विवेक का प्रयोग करते हुए एवं साक्ष्य का स्वतंत्र मूल्यांकन करते हुए अपना निष्कर्ष अभी लिखित करना चाहिए.


      (Appellate Court has to apply its independent mind and record its on finding by making Independence assessment of evidence)


       यहां यह ज्ञातव्य है कि उच्च न्यायालय विचारण न्यायालय के निष्कर्षों में जब तक कोई सबूत आधार नहीं हो मामूली तौर पर हस्तक्षेप नहीं करेगा ( सीसी फर्नांडीस बनाम यूनियन टेरिटरी ए आई आर 1977 एस सी 135)


         जहां किसी मामले में साक्ष्य के बारे में दो युक्तियुक्त दृष्टिकोण संभव हो और विचारण न्यायालय ने उनमें से एक को जो अभियुक्त के पक्ष में है चुना  वहां उच्च न्यायालय को उनमें मात्र इस आधार पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए कि यदि वह विचारण न्यायालय होता तो उनमें से दूसरे दृष्टिकोण को चुनकर अभी अभियुक्तों को दोष सिद्ध करता ( अतर सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश ए आई आर 1979 एस सी 1188)



         फिर उच्च न्यायालय स्वयं अपने आदेश का पुनरावलोकन अथवा पुनरीक्षण नहीं कर सकता (स्टेट ऑफ उड़ीसा बनाम रामचंद्र अग्रवाल ए आई आर 1979 एस सी 87)


              अपील न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाना: - संहिता की धारा 354 में अपील न्यायालय द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य लिए जाने के बारे में विशिष्ट प्रावधान किया गया है.


            यह धारा इस सामान्य नियम का एक अपवाद प्रस्तुत करती है कि किसी अपील का विनिश्चय विचारण द्वारा ली गई साक्ष्य के आधार पर किया जाना चाहिए.

   इसके अनुसार -


      (1) जब भी अपील न्यायालय अपील पर विचार करते समय कोई अतिरिक्त साक्ष्य लेना आवश्यक समझे तो वह ऐसे कारणों को अभी लिखित करते हुए या तो स्वयं ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य ले सकेगा या ऐसे सांस लेने के लिए किसी मजिस्ट्रेट को निर्देश दे सकेगा.


( 2) मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा साक्ष्य ले लिया जाने पर वह उसे प्रमाणित करके अपील न्यायालय के बाद प्रेषित करेगा.


( 3) ऐसे अतिरिक्त साक्ष्य के लिए जाने के समय अभियुक्त या उसके अधिवक्ता को उपस्थित रहने का अधिकार होगा.


           अतिरिक्त साक्ष्य लेने की यह शक्ति पुनरीक्षण न्यायालय को भी प्राप्त है (रमाकांत खादी गर बनाम स्टेट ए आई आर 1957 उड़ीसा 10)


        लेकिन यह धारा संहिता की धारा 454 के अंतर्गत  संस्थिति किए जाने वाले आवेदन पत्रों पर लागू नहीं होती (इन रि एस . के पिल्ले ए आई आर 1954 मद्रास 71)


उद्देश्य: - अतिरिक्त साक्ष्य लिए जाने की व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य विचारण न्यायालय के समक्ष किसी साक्ष्य का लापरवाही या अज्ञान बस किया जाना रह जाने पर न्याय के उद्देश्यों के लिए उसे अपील न्यायालय द्वारा लिया जाना रहा है (स्टेट बनाम जयप्रकाश ए आई आर 1950 9 इलाहाबाद 129)

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