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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

संम्मन के स्थान पर अथवा संम्मन के अलावा वारंट जारी करने की न्यायालय की शक्ति का वर्णन कीजिए? हाजिरी के लिए बंधपत्र लेने की शक्ति को भी समझाइए. Describe the powers of the court to issue warrant in lieu of or in addition to summons.Also explain the powers to take Bond for appearance

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 87 न्यायालय को संम्मन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारंट जारी करने की शक्ति प्रदान करती है इस धारा के अनुसार न्यायालय किसी भी ऐसे मामले में जिसमें यह किसी व्यक्ति की हाजरी के लिए सम्मन जारी करने के लिए इस संहिता द्वारा सशक्त किया गया है अपने कारणों को अंकित करने के पश्चात उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर सकता है -

(a) अगर या तो ऐसा सम्मन जारी किए जाने के पहले या बाद में किंतु उसकी हाजिरी के लिए नियम समय के पूर्व न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण दिखाई पड़ता है कि वह फरार हो गया है या संम्मन का पालन नहीं करेगा अथवा

(b) अगर वह ऐसे समय पर हाजिर होने में असफल रहता है और यह साबित कर दिया जाता है कि उस पर समन की तामील सम्यक  से ऐसे समय में कर दी गई थी जिसके अनुसार हाजिर होने के लिए अवसर था ऐसी असफलता के लिए कोई उचित प्रतिहेतु नहीं दिया जाता है परंतु इस शक्ति का प्रयोग वही न्यायालय कर सकता है जिसे इस संहिता द्वारा किसी व्यक्ति की हाजरी के लिए सशक्त किया जाता है ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए न्यायालय का कर्तव्य है कि वह वारंट जारी करने के पूर्व संम्मन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारंट जारी करने का कारण भी लिखें.


गोविंद विश्वनाथ बनाम सांग्यप्पा के केस में पुलिस रिपोर्ट के आधार पर दायर आरोप पत्र के अधीन अभियुक्त को भारतीय दंड प्रक्रिया की संहिता की धारा 488 के अंतर्गत एक संज्ञेय  अपराध के लिए आरोपित किया गया था. मूल परिवादकर्ता तथा साक्षियों पर न्यायालय में उपस्थिति हेतु संम्मन  की तामील कराई गई थी किंतु वे निर्धारित तिथि पर न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए मामले में जमानती वारंट जारी करने के लिए आवेदन किया गया. साक्ष्य  के अभाव में मजिस्ट्रेट ने अभियुक्त को दोष मुक्त करार कर दिया मजिस्ट्रेट का आदेश में विधि के अतिलंघन में होने के कारण अपास्त कर दिया गया.


हाजिरी के लिए बंद पत्र लेने की शक्ति (power to take Bond for appearance)

धारा 88 के अनुसार - जब कोई व्यक्ति जिसकी हाजिरी है गिरफ्तारी के लिए किसी न्यायालय का पीठासीन अधिकारी सम्मन या वारंट जारी करने हेतु सशक्त है ऐसे न्यायालय में उपस्थित है तब यह अधिकारी उस व्यक्ति से अपेक्षा कर सकता है कि वह उच्च न्यायालय में या किसी अन्य न्यायालय में जिसको मामला विचारण के लिए अतिरिक्त किया जाता है अपनी हाजिरी के लिए बंधपत्र प्रतिभुओं सहित या रहित निष्पादित करें इस धारा का मुख्य उद्देश्य ऐसे व्यक्ति को जिससे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने की अपेक्षा की जाए व्यक्ति मत उपस्थिति के लिए बाध्य करना है इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने मधुलिमये बनाम वेद मूर्ति 1917 के वाद में अभी निर्धारित किया है कि यदि कोई व्यक्ति गिरफ्तार किए जाने के बाद अभिरक्षा में लिया गया है तो उसका किसी न्यायालय में उपस्थित होना उसकी इच्छा पर निर्भर ना होकर उस अधिकारी की इच्छा पर निर्भर करता है जिसकी अभिरक्षा में वह व्यक्ति है अतः इस प्रकार के मामलों में यह धारा लागू नहीं होती है.

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