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BNS की धारा 127(5)अवैध बंधक बनाकर रिट आदेश की अवहेलना का क्या मतलब है?

संक्षिप्त विचारण के बारे में संहिता में विहित प्रक्रिया का उल्लेख विस्तार से कीजिए. (describe in detail proceedure of summary trial under Criminal Procedure Code)

हमारी न्याय प्रक्रिया की सबसे बड़ी कमी इस की जटिलता एवं लंबाई होती है. जितना ही न्याय में विलंब होगा उतना ही अधिक में न्याय को विफल कर देगा आता स्वास्थ्य एवं सफल न्याय प्रशासन के लिए न्यायिक प्रक्रिया का सीक्रेट एवं संक्षिप्त होना आवश्यक है फिर छोटे एवं सामान्य प्रकृति के मामलों के लिए तो यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है.

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 21 की धारा 230 से लेकर 265 तक में संक्षिप्त विचारण के बारे में प्रावधान किया गया है संक्षिप्त विचारण से संबंधित प्रक्रिया निम्न प्रकार से है -

( 1) संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति (power to try summary) - धारा 260 के अनुसार

(1) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी यदि

(a) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट

(b) कोई महानगर मजिस्ट्रेट

(c) कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषता या सशक्त किया गया हो.

           ठीक समझता है जो वह निम्नलिखित अपराधों का या उनमें से किसी का सापेक्षता कारावास से दंडनीय  नहीं है.


( 2) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 379 धारा 380 धारा 381 के अधीन चोरी जहां चुराई हुई संपत्ति का मूल्य ₹2000 से अधिक नहीं है.

( 3) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 411 के अधीन चोरी की संपत्ति को प्राप्त करना यार रखें रखना जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य ₹2000 से अधिक नहीं है.

( 4) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 414 के अधीन चुराई में संपत्ति को छिपाने या उसके व्ययन  करने में सहायता करना जहां संपत्ति का मूल्य ₹2000 से अधिक नहीं है.


( 5) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 504 के अधीन लोग शांति भंग कराने को पूरा को वित्त करने के आशय से अपमान और धारा 506 के अधीन अपराधिक अभी त्रास (जो 2 वर्ष के कारावास से जुर्माने से या दोनों से दंडनीय है)

( 6) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (1860 का 45) की धारा 454 और 456 के अधीन अपराध


( 7) पूर्वर्ती अपराधियों में से किसी का दुष्प्रेरण

( 8) पूर्वर्ती अपराधों में से किसी को करने का प्रयत्न जब ऐसा प्रयत्न अपराध है.

( 9) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है.

( 2) जब संक्षिप्त विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि उसका विचारण संक्षेप तक किया जाना आवाज सुनी है जो वह मजिस्ट्रेट की देशवासियों को जीने की परीक्षा की जा चुकी है पुणे बुलाएगा और मामले को इस संहिता द्वारा उपबंध इस नीति से पुनः सुनने के लिए अग्रसर होगा.


वीके अग्रवाल बनाम वसंत राम भाटिया के वाद में संक्षिप्त विवरण के उद्देश्य पर टिप्पणी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अभी निर्धारित किया कि संहिता की धारा 260 मैं वर्णित संक्षिप्त विचारण की व्यवस्था मामलों के शीघ्र निपटारे हेतु की गई है.

        लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि गंभीर अपराधों में मात्र विलंब के आधार पर कार्यवाही को ही बंद कर दिया जाए.

( 2) द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारण (summary trial by magistrate of second class) - धारा 261 के अनुसार -

              उच्च न्यायालय किसी ऐसे मजिस्ट्रेट को जिसमें द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां निहित है किसी ऐसे अपराध का जो केवल जुर्माने से या जुर्माने सहित या रहे 6 माह से अधिक के कारावास से डर नहीं है और किसी अपराध के दुष्प्रेरण या ऐसे किसी अपराध को करने के प्रयत्न का संक्षेप विचारण करने की शक्ति प्रदान कर सकता है.

( 3) संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया (proceed for summary trial) - धारा 262 के अनुसार -

( 1) इस अध्याय के अधीन विचारों में इसके पश्चात इसमें जैसा वर्णित है उसके सिवाय इस संहिता में संबंध मामलों के विचारण के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा.

( 2) 3 महीने से अधिक की अवधि के लिए कारावास का कोई दंड प्रक्रिया का आदेश इस अध्याय के अधीन किसी दोष सिद्ध के मामले में ना दिया जाएगा.

           यहां यह उल्लेखनीय है कि संक्षिप्त विचारण के अंतर्गत दोष सिद्धि पर मजिस्ट्रेट धारा 106 के अधीन प्रतिभूति के लिए बंध पत्र की मांग कर सकता है.

( 4) संक्षिप्त विचारों में अभिलेख (record in summary trial) - धारा 263 के अनुसार -

          प्रत्येक मामले में मजिस्ट्रेट ऐसे प्रारूप में जैसा राज्य सरकार निर्दिष्ट करें निम्नलिखित विशिष्ट या प्रविष्ट करेगा अर्थात

(a) मामले का क्रम संख्या

(b) अपराध के लिए जाने की तारीख

(c) रिपोर्ट या परिवार की तारीख

(d) परिवादी का (यदि कोई हो ) नाम

(e) अभियुक्त का नाम उसके माता पिता का नाम और उसका निवास

(f) वह अपराध जिसका परिवार किया गया है और वह अपराध जो साबित हुआ है यदि कोई हो और धारा 260 की उप धारा (1) खंड (2) खंड (3) आने वाले मामलों में उस संपत्ति का मूल्य जिसके बारे में अपराध किया गया है,


(a) अभियुक्त या अभी वर्क और उसकी परीक्षा

(b) निष्कर्ष

(c) डंडादेश या अन्य अंतिम आदेश

(d) कार्रवाई समाप्त होने की तारीख


        संछिप्त विचारण के मामले की सभी विशिष्ट या (particular) के प्रारूप में अभी लिखित किया जाएगा जैसा कि राज्य सरकार निर्दिष्ट करें. तथा  अभिलेख के साथियों द्वारा दी गई साक्ष्य की प्रविष्टि आवश्यक नहीं है और ना आरोप ही वितरित किया जाना आवश्यक है.

( 5) विचार किए जा रहे मामलों में निर्णय (judgement in cases of summary trial): - धारा 264 के अनुसार -

                 संक्षेपत  विचारिक प्रत्येक ऐसे मामले में जिसमें अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन नहीं करता है मजिस्ट्रेट साक्ष्य का सारांश और निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त कथन देते हुए निर्णय लिखित करेगा।

                 इस धारा में ऐसी दशा में जबकि अभियुक्त अपने दोषी होने का अभिवचन नहीं करें निर्णय अभी लिखित किए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है.

( 6) अभिलेख और निर्णय (record and judgement) - धारा 265 के अनुसार -

( 1) ऐसा प्रत्येक अभिलेख और निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा.

( 2) उच्च न्यायालय संक्षिप्त विचारण करने के लिए सशक्त  किया गया किसी मजिस्ट्रेट को अभी कृत कर सकता है की वाइफ पूर्वक अभिलेख या निर्णय या दोनों उस अधिकारी से तैयार कराए जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त नियुक्त किया गया है और इस प्रकार तैयार किया गया अभिलेख लिया निर्णय ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा.

          धारा 205 के अनुसार पूर्ववर्ती धारा 264 उल्लेखित संक्षिप्त विचारण के साक्ष्य का सारांश तथा मजिस्ट्रेट का निर्णय न्यायालय में प्रचलित भाषा में लिखा जाना आवश्यक है।

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