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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

अजमानती अपराध की दशा में जमानत bail taken in case of non bailable offence

( 1): - जब कोई व्यक्ति जिस पर  अजमानतीय अपराध में अभियोग है अथवा जिस पर संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है या उच्च न्यायालय के द्वारा या सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के सम्मुख हाजिर होता है या लाया जाता है तो वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है किंतु

(a) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होता है कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अन्य अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा.


(b) अगर ऐसा अपराध कोई संज्ञेय (coynizable) अपराध  है एवं ऐसा व्यक्ति मृत्यु आजीवन कारावास अथवा 7 साल या इससे अधिक से कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोष सिद्ध किया गया है अथवा वह दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 (2005 का 25) की धारा 37 द्वारा किसी अजमानतीय  और संज्ञेय  अपराध के लिए (23 - 06 - 2006) से प्रतिस्थापित (3 साल या इससे अधिक के लिए किंतु 7 साल से अधिक की अवधि के कारणों से दंड से किसी संज्ञेय  अपराध के लिए तो या इससे अधिक अवसरों पर पहले दो सिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा.



          परंतु कोर्ट यह निर्देश दे सकेगा कि खंड (a) अथवा खंड (b) मैं निर्देश व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए अगर ऐसा व्यक्ति 16 साल से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलता अंग व्यक्ति है -


            परंतु यह और कि कोर्ट यह भी निर्देश दे सकेगा के खंड (a) मे निर्देश व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए अगर उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है.


             लेकिन यह और भी है कि केवल यह बात है कि अभियुक्त की जरूरत अन्वेषण में साक्ष्यों के द्वारा पहचाने जाने के लिए हो सकती है जमानत स्वीकृत करने से इनकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगा अगर यह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने के लिए हकदार हैं और वह वचन देता है कि ऐसे निर्देशों का जो कोर्ट के द्वारा किए  जाएं अनुपालन करेगा.


              परंतु यह और भी है कि किसी व्यक्ति को अगर उसके द्वारा दिया गया अभी कथित अपराध मृत्यु आजीवन कारावास या 7 साल या इससे अधिक के कारावास से दंडनीय है तो लोक अभियोजन को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना इस उप धारा के अंतर्गत न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा.


( 2) अगर ऐसे अपराधी अथवा न्यायालय को यथास्थिति अन्वेषण जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने जमानती अपराध किया है किंतु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त धारा 446 क) के उपबंधों  के अधीन करते हुए और ऐसी जांच लंबित ने पर जमानत पर या ऐसी अधिकारी या कोर्ट के स्वविवेका अनुसार इसमें इसके बाद उपबंध इस प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओ रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा।


(3) जब कोई व्यक्ति जिस पर ऐसे कारावास से जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की या उससे अधिक की है दंडनीय कोई अपराध है भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, 16या 17 अधीन कोर्ट अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षड्यंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है उप धारा(1) के अधीन जमानत पर छूट जाता है दंड प्रक्रिया संहिता( संशोधन) अधिनियम2005(2005 का 25) की धारा 37 द्वारा(23.06.2006) से  प्रतिस्थापित तो कोई यह शर्त अधिरोपित  करेगा

(a)कि व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादन बंधपत्र की शर्तों के अनुसार हाजिर होगा।

(b)कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा जिसको करने या उस पर अभियोग या संदेह है कोई अपराध नहीं करेगा और

(c)कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को कोर्ट या किसी पुलिस अधिकारी के सम्मुख ऐसे तथ्यों को प्रकट ना करने के लिए मरने के वास्ते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उसे कोई उतरे ना धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं बिगड़ेगा और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्तें जिसे वह ठीक समझे अधि रोपित कर सकेगा।

( 4) उप धारा (1) या उप धारा (2) अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष को लेख बध्य करेगा।

(5) यदि कोई न्यायालय जिसने किसी व्यक्ति को उप धारा (1) या उप धारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है ऐसा करना आवश्यक समझता है तो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द  कर सकता है.

( 6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचार है जो किसी  अजमानती अपराध का अभियुक्त है उस मामले में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता है तो यदि ऐसा व्यक्ति उक्त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो जब तक ऐसे कारणों से जो लेख बंध्य किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा निर्देश ना दे वह मजिस्ट्रेट की समाधान प्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा.

(7) यदि जमानती अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है कि अभियुक्त अभिरक्षा में है तो वह अभियुक्त को निर्णय सुनाने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभूति  सहित बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा..

          दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2008 (2009 का 9) धारा 31 द्वारा (31 - 12 - 2009 से) अंता स्थापित.

437.क अभियुक्त को उच्चतर अपील न्यायालय के समक्ष उपसंजात होने की अपेक्षा करने के लिए जमानत 
    विचारण के समाप्त होने से पूर्व और अपील के निपटाने से पूर्व यथास्थिति अपराध का विचारण करने वाला विचारण न्यायालय  या अपील  न्यायालय अभियुक्त से यह अपेक्षा कर सकेगा कि जब ऐसा न्यायालय संबंधित न्यायालय संबंधित न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध फाइल की गयी किसी अपील  या याचिका की बाबत सूचना जारी करें उच्चतम न्यायालय के समक्ष उपसंजात   होने के लिए प्रतिभूति सहित जमानत पत्र निष्पादित करें और ऐसे बंद पत्र 6 मास तक प्रवृत रहेंगे.

(2) यदि ऐसा अभियुक्त उपसजात होने में असफल रहता है तो बंधपत्र संप्रत हो जाएगा और धारा 446 के अधीन प्रक्रिया लागू होगी।


टिप्पणी: -

मजिस्ट्रेट की शक्ति: - मजिस्ट्रेट भा.द.सं.की धारा 409 और 467 के अधीन अपराध के मामले में जमानत प्रदान कर सकता है और यह अवधारित किया जा सकता है कि मजिस्ट्रेट को जमानत प्रदान करने की शक्ति है यदि अपराध आजीवन कारावास या न्यूनतर न्यायदंड से दंडनीय है और मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय  है ;अम्बरीश रंगशाही पाटनीगेरे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र 2011 कि.ला.ज. 515( मुंबई)


आरोप पत्र के पश्चात जमानत आरोप पत्र दाखिल करने पर अभियुक्त को नियमित जमानत आवेदन दाखिल करना चाहिए और जब वह जमानत आवेदन दाखिल करता है तब यह अवधारणा की जाती है कि उसके समर्पण कर दिया है और न्यायालय की अभी रक्षा में है - मेहंदी विरानी बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र 2011 की क्रि. ला.ज. 526 मुंबई


चिकित्सा आधार पर जमानत केवल इस आधार पर अभियुक्त इलाज के अधीन है जमानत प्रदान करने वाला आदेश उचित नहीं है और न्यायालय को बीमारी की प्रकृति का मूल्यांकन करना चाहिए और यह निर्धारण करना चाहिए कि क्या उस बीमारी का इलाज अभिरक्षा में रहते हुए या सरकारी अस्पताल में किया जा सकता है महेंद्र मणिलाल सा बनाम रश्मिकांत मनसुखलाल शाह 2010 क्री .ला .ज.4357( केरल)


     नामंजूरी उचित= जमानत की ना मंजूरी उचित है यदि अभिलेख पर साक्षी अपराध के प्रथम दृष्टया कार्य करने को दर्शित करता है सुनील कुमार सिन्हा बनाम स्टेट ऑफ़ झारखंड 2010 क्री .ला.ज 2212( झारखंड)


दूसरा जमानत आवेदन दूसरा जमानत आवेदन दाखिल किया जा सकता है यदि प्रथम जमानत आवेदन नामंजूर किया जाता है क्योंकि जमानत आवेदन को नामंजूर करना या अनु ज्ञात करना अंतर्भरती आदेश है और मामले में कोई अंतर नहीं है सुदीप्त सेन बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल 2010 क्रि. ला.जा 4628 कोलकाता एफबी


जमानत की  मंजूरी: यह तथ्य कि अभियुक्त कैद की लंबी अवधि खेल चुका है स्वयं द्वारा उसे जमानत पर निर्मित किए जाने का हकदार नहीं बनाएगी मीनू देवन बनाम राज्य 2010 क्री.ला ज. 4291 दिल्ली


जमानत: - यह प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर निर्भर करती है मात्र इस कारण से की विचारण उच्च न्यायालय द्वारा मंजूर किए गए समय के भीतर समाप्त नहीं हुआ है अभियुक्त के पक्ष में जमानत पर निरमुक्त किए जाने का कोई अधिकार निश्चित नहीं हुआ है मीनू देवन बनाम राज्य 2010 क्रि. ला. ज.2911 ( दिल्ली) 


438 गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत स्वीकृत करने के लिए निर्देश: -

( 1) दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम 2005 (2005 का 25   ) धारा 38 द्वारा निम्न के स्थान पर प्रतिस्थापित -

“( 1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी किसी आ जमानती अपराध के लिए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन निर्देश के लिए उच्च न्यायालय उच्च न्यायालय को आवेदन कर सकता है और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निर्देश दे सकता है कि किसी ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए (“प्रभावी तिथि अभी अधिसूचित होनी है)”

( 1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि हो सकता है कि उसको किसी आ जमानती अपराध के लिए किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जाए तो वह इस तरह के अधीन निर्देश के लिए उच्च न्यायालय सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए और उच्च न्यायालय अन्य बातों के साथ निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए अर्थात -

(a) अभियोग की प्रकृति और गंभीरता

(b) आवेदक के पूर्व व्रत जिसमें यह तथ्य भी है कि क्या उसने किसी संज्ञेय  अपराध की बाबत किसी न्यायालय द्वारा दोष सिद्धि पर पहले सजा भुगती है

(c) न्यास से भागने की आवेदक की संभावित  और

(d) जहां आवेदक द्वारा उसे इस प्रकार गिरफ्तार करा कर क्षति पहुंचाने या अपमान करने के उद्देश्य अभियोग लगाया गया है

या तो तत्काल आवेदन स्वीकार करेगा अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा.

        परंतु यह है कि जहां यथास्थिति उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ने इस अतुल को अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया है वहां किसी पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी इस बात के लिए मुक्त रहेगा आवेदन में आशंकित  अभियोग के आधार पर आवेदक को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सके।

(1क) जहां न्यायालय उप धारा(1) के अधीन अंतरिम आदेश मंजूर करता है वहां वह तत्काल एक सूचना जो 7 दिवस से अन्य उनकी सूचना ना होगी कि साथ ऐसे आदेश को एक प्रति न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतरिम रूप से सुनवाई के समय तक लोक अभियोजक को सुनवाई का युक्ति युक्त अवसर देने की दृष्टि से लोक अभियोजक और पुलिस अधीक्षक को देगा.


(1ख) अग्रिम जमानत चाहने वाले आवेदक की उपस्थिति यदि लोक अभियोजक द्वारा इसके लिए दिए गए आवेदन पर न्यायालय पर यह विचार करता है कि न्याय हित में ऐसी उपस्थिति आवश्यक है तो न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम सुनवाई और अंतिम आदेश पारित करते समय बाध्यकर होगी।

(2) जब उच्च  न्यायालय या सेशन न्यायालय उप धारा(1) के अधीन निर्देश देता है तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निर्देशों में ऐसी वे ठीक समझे सम्मिलित कर सकता है जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं

(a) अर्थ है कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो उपलब्ध होगा.

(b) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे क्षेत्र ों को प्रकट ना करने के लिए मरने के वास्ते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उसे कोई प्रेरणा धमकी या वचन नहीं देगा.




(c) यह सर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोड़ेगा।

(d) ऐसी अन्य शर्तों जो धारा 437 की उप धारा(3) के अधीन ऐसी अधिग्रहित की जा सकती है मानो उस धारा के अधीन जमानत स्वीकृत की गई हो.

(3) यदि तत्पश्चात ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के बाहर साधक अधिकारी द्वारा मारन के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय आया जब वह ऐसे अधिकारी के अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान लिया करने वाले मजिस्ट्रेट यह निश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी किया जाना चाहिए तो वह उप धारा(1) के अधीन न्यायालय के निर्देश के अनुरूप जमानती वारंट जारी करेगा.


उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश राज्य में लागू होने में संहिता की धारा 438 का लोप किया जाएगा।( उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या16 वर्ष1976 धारा9( दिनांक28.11.1976 से प्रभावी है)).


(1) क्षेत्र: इस धारा की केवल असाधारण या फिर ले मामले में आश्रय लेने की आवश्यकता नहीं है और विवेकाधिकार का प्रयोग उपलब्ध सामग्री और विशिष्ट मामलों के तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए. सिद्ध राम सतलिंगप्पा मात्रे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र ए आई आर 2011 एस सी 312)

(2) क्षेत्र: अग्रिम जमानत न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए बिना उसके लिए आवेदन साधारणतया दाखिल करने पर प्रदान की जा सकती है कपिल दुर्गवानी बनाम स्टेट ऑफ़ एमपी 2011(97) ए.आईसी 310 एम.पी)


(3) क्षेत्र: - इस धारा का आश्रय केवल असाधारण या विरले मामलों में लिए जाने की आवश्यकता है विवेकाधिकार का प्रयोग विशिष्ट मामले के उपलब्ध सामग्री और तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए अग्रिम जमानत प्रदान की जा सकती है यदि (1) अभियुक्त अन्वेषण में शामिल हुआ है. (2) वह अन्वेषण अभिकरण से पूर्ण सहयोग कर रहा है. (3) फरार होने के लिए कोई संभावना नहीं है - सिद्धाराम सतलिंगप्पा मात्रे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र ए आई आर 2011 एस सी 312.

( 4) प्रयोजन: - इस धारा का प्रयोजन स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में स्वतंत्रता तथा स्वाधीनता के महत्व को मान्यता प्रदान करता है सिद्धाराम सतलिंगप्पा मात्रे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र ए आई आर 2011 एस सी 312.

( 5) अभियुक्त की उपस्थिति आवश्यक: - जमानत के लिए आवेदन की सुनवाई के समय अभियुक्त की उपस्थिति आवश्यक है यदि अंतरिम प्रतिषेध उसको प्रदान किया जाता है - शिव राज काशीनाथ दंडगे बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र 2011 क्री .  ला. जा 122 औरंगाबाद बेंच

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