आरोप में गलतियों का क्या प्रभाव होता है? क्या न्यायालय आरोप में परिवर्तन कर सकता है? यदि हां तो कैसे और कब?( what is effect of error in charge?)
धारा 215 के अनुसार - अपराध के या उन विशिष्टयो के जिन का आरोप में कथन होगा अपेक्षित है कथन करने में किसी गलती को और उस अपराध या उन विशिष्टयो के कथन करने में किसी लोप के मामले के किसी प्रक्रम में तब ही तात्विक माना जाएगा जब ऐसी गलतियां लोप से अभियुक्त वास्तव में भुलावे क में पड़ गया है और उसके कारण न्याय नहीं हो पाया है अन्यथा नहीं.
( 1) क पर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 242 के अधीन का आरोप है कि उसके कब्जे में ऐसा कुटकृत्य सिक्का पाया गया है जिससे वह उस समय जब वह सिक्का उसके कब्जे में आया था जानता था कि वह कूट कृत है और आरोप में कपट पूर्वक शब्द छूट गया जब तक यह प्रतीत नहीं होता है कि वास्तव में का इस लोप से भुलावे में पड़ गया इस गलती को तांत्विक नहीं समझा जाएगा.
( 2) क पर ख से छल करने का आरोप है और जिस रीति से उसने ख के साथ छल किया है वह आरोप में उपवर्णित नहीं है अशुद्ध रूप से उपवर्णित है।क अपनी प्रति रक्षा करता है साक्षियों को पेश करता है और संव्यवहार का स्वयं अपना विवरण देता न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है कि छल करने की रीति के अपवर्जन का लोप तांत्विक नहीं है.
( 3) क पर ख से छल करने का आरोप है कि जिस रीति से उसने ख के साथ छल किया है यह आरोप में उपवर्णित नहीं है ।क और ख के बीच अनेक संव्यवहार हुए हैं और क के पास यह जानने का आरोप का निर्देश उसमें से किसके प्रति कोई साधन नहीं था और उसने अपनी कोई प्रतिरक्षा नहीं कि है । कोर्ट ऐसे तथ्यों से यह अनुमान कर सकता है कि छल करने की विधि के अपवर्जन का लोप उस मामले में तात्विक गलती थी.
( 4) क पर 21 जनवरी 1882 को खुदाबख्श की हत्या करने का आरोप है वास्तव में मृत व्यक्ति का नाम हैदरबख्श था और हत्या की तारीख 20 जनवरी 1882 थी । क पर कभी भी एक हत्या के अतिरिक्त दूसरी किसी हत्या का आरोप नहीं लगाया गया और उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष हुई जांच को सुना था जिसमें हैदर बख्श के मामले का अनन्य रूप से निर्देश किया गया न्यायालय इन तथ्यों से यह अनुमान लगा सकता है कि क उससे भुलावे में नहीं पड़ा था और आरोप में वह गलती तात्विक नहीं थी.
( 5) क पर 20 जनवरी 1882 में हैदरबख्श की हत्या और 21 जनवरी 1872 को खुदाबख्श जिसने उसे हत्या करने के लिए गिरफ्तार करने का प्रयास किया था हत्या करने का आरोप है जब वह हैदरबख्श की हत्या करने के लिए आरोपित हुआ तब उसका विचारण खुदा बख्श की हत्या के लिए हुआ उसकी प्रतिरक्षा में उपस्थित साक्षी हैदरबख्श वाले मामले में साक्षी थे ।न्यायालय इससे अनुमान कर सकता है कि क भुलावे में पड़ गया था और यह गलती तात्विक थी.
भा.द.प.सं. की धारा के अंतर्गत आरोप की किसी गलती अथवा लोप को केवल तभी तांत्विक माना जा सकता है जब उसके कारण अभियुक्त वास्तव में भुलावे में पड़ गए जाए और न्याय होने में असुविधा हो।
पोच्चाम्माला येलप्पा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में कहा गया है कि जहां आरोप में घटना एवं अभियुक्त से संबंधित समस्त तथ्य स्पष्ट दिए गए हो घटना होने की तारीख की गलती के आधार पर आरोप गलत नहीं होगा.
न्यायालय आरोप परिवर्तित कर सकता है
( court may alert charge)
( 1) यदि कोई न्यायालय निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी भी आरोप में परिवर्तन कर सकता है.
( 2) ऐसा प्रत्येक परिवर्तन या परिवर्धन अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा.
( 3) आम आरोप में किया गया परिवर्तन या परिवर्धन ऐसा है कि न्यायालय की राय में विचारों को तुरंत आगे चलाने से अभियुक्त पर अपनी प्रतिरक्षा करने में या अभियोजक पर मामले के संचालन में कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है तो न्यायालय ऐसे परिवर्तन या परिवर्तन के पश्चात स्वामी विवेका अनुसार विचारण को ऐसे आगे चला सकता है मानव परिवर्तित या परिवर्तित आरोप ही मूल आरोप है.
( 4) आय परिवर्तन या परिवर्धन ऐसा है कि न्यायालय की राय में विचारण को तुरंत आएंगे चलाने से इस बात की संभावना है कि अभियुक्त या अभियोजक पर पूर्ण रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तो न्यायालय या तो नए विचारण का निर्देश दे सकता है अथवा विचारों को इतनी अवधि के लिए जितनी आवश्यक हो स्थगित कर सकता है
( 5) अगर परिवर्तित या परिवर्धित आरोप में कथित अपराध ऐसा है कि जिसके अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता है तो उस मामले में ऐसी मंजूरी अभी प्राप्त किए बिना कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक उन्हीं तथ्यों के आधार पर जिन पर परिवर्तित या परिवर्तित आरोप आधारित है अभियोजन के लिए मंजूरी पहले ही अभी प्राप्त नहीं कर ली गई है.
इस धारा का मुख्य उद्देश्य विरचित आरोप की त्रुटियों एवं कमियों को दूर करना है. (डॉक्टर मुखर्जी बनाम राज्य एआईआर 1969 इलाहाबाद 498)
रतीलाल भानंजी बनाम महाराष्ट्र राज्य (एआईआर 1979 एस. सी.94) मे यह मत व्यक्त हुआ है कि एक बार आरोप लगाए जाने के बाद मजिस्ट्रेट अभियुक्त को उन्मोचित नहीं कर सकता है.
आरोप परिवर्तन पर साक्षियों को पुनः बुलाना: - धारा 217 में यह उपबंधित है कि जब कभी विचारण प्रारंभ होने के पश्चात न्यायालय द्वारा आरोप परिवर्तित या परिवर्धित किया जाता है तब अभियोजक और अभियुक्त को -
( 1) किसी ऐसे साक्षी को जिस की परीक्षा की जा चुकी है पुनः बुलाने की या पुनः समन करने की और उसकी ऐसी परिवर्तन या परिवर्धन के बारे में परीक्षा करने की अनुज्ञा दी जाएगी जब तक न्यायालय का हिस्सा कारणों से जो लेख बंद किए जाएंगे यह विचार नहीं है कि यथास्थिति अभियोजक या अभियुक्त तंग करने के या विलंब करने के या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजनों से ऐसे साक्षी को पुनः बुलाया है या दोबारा परीक्षा करना चाहता है.
( 2) किसी अन्य ऐसे साक्षी को भी जिसने न्यायालय आवश्यक समझे बुलाने की आज्ञा दी जाएगी.
अभियोजन के हित में जबकि आरोप में कोई परिवर्तन या परिवर्धन किया जाता है तो पूर्व में परीक्षित हो चुके गवाहों के परीक्षा या प्रति परीक्षा हेतु दोबारा आहूत किया जा सकता है तथा अन्य गवाहों को भी तलब किया जा सकता है.
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