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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

दहेज क्या है? What is dowry?

दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 के अनुसार दहेज ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभू है जो विवाह के एक पक्ष कार द्वारा दूसरे पक्ष कार के लिए या विवाह के किसी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति के लिए विवाह करने के संबंध में विवाह के समय या उससे पूर्व या पश्चात किसी समय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दी जाने वाली यदि जाने के लिए प्रतिज्ञा की गई है. “उदाहरण' - ए वर के पिता द्वारा विवाह के समय वधु के पिता से 50000 की मांग की जाती है या वर द्वारा कार्य स्कूटर की मांग की जाती है और वधू का पिता उसे विवाह के बाद देने का आश्वासन देता है यह दहेज है.

          यदि विवाह के पश्चात अतिरिक्त दहेज के रूप में टीवी और स्कूटर की मांग की जाती है तो यह धारा 2 के अर्थ में दहेज ही माना जाएगा .प्रेम सिंह बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1998 एससी 2628..

दहेज की मांग (demand of dowry): - दहेज निषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत अपराध के गठन के लिए केवल दहेज की मांग करना ही पर्याप्त नहीं है दहेज या तो वास्तविक तौर पर दिया जाना चाहिए या दिए जाने का करार किया जाना चाहिए दहेज की मांग को भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 498 (A) के अंतर्गत निर्दयता माना गया है और यह एक दंडनीय अपराध है. उदाहरणार्थ -

( 1) श्री मति प्रकाश कौर बनाम हरजिंदर पाल सिंह एआईआर 1999 राज.46 मैं दहेज की निरंतर मांग को निर्दयता मानते हुए इसे विवाह विच्छेद का एक आधार बताया गया है.

( 2) पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1998 एस. सी.958 मैं उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि दहेज की मांग के मामलों में सदैव करार का हो ना हमेशा आवश्यक नहीं है.

दहेज देने या लेने  के लिए शक्ति (penalty for giving or taking dowry): - धारा 3 (1) के अनुसार इस अधिनियम के आरंभ होने के पश्चात जो कोई भी दहेज देता है या लेता है अथवा लेने या देने के लिए दुष्ट प्रेरित करता है तो वह ऐसी अवधि के कारावास से जो 5 वर्ष की होगी और ₹15000 या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम के जो भी अधिक हो सकने वाले जुर्माने से दंडित किया जाएगा.

           परंतु न्यायालय निर्णय में लिखित किए गए उचित और विशेष कारणों से 5 वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दंड आरोपित कर सकेगा.

( 2) उपधारा(1) कि कोई बात निम्न पर या उसके संबंध में लागू नहीं होगी

(क) विवाह के समय वधू को दी गई भेंटे( इस वास्ते कोई मांग किए गए बिना)

(ख) विवाह के समय वर्ग को दी गई भेटें( इस वास्ते कोई मांग किए गए बिना)


परंतु ऐसी भिंडी इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार बनाई गई सूची से में प्रविष्ट की जाएंगी

              परंतु यह और की जहां ऐसी बेटियां वधू द्वारा या उसकी ओर से या वधू के किसी संबंधी व्यक्ति द्वारा दी गई हो ऐसी भेंट रूडी गत प्राकृतिक की हो उनका मूल्य उस व्यक्ति की जिसके द्वारा या जिस की ओर से ऐसी बैठे दी गई है वित्तीय हैसियत को ध्यान में रखते हुए अत्यधिक नहीं है.

         दहेज मांगने के लिए शाक्ति( penalty for demanding dowry): - धारा 4 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष का वर या वधू के माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों या अन्य पालक से दहेज मांगता है तो वह कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किंतु जो 2 वर्षों तक की जा सकती है और जुर्माने से जो कि ₹10000 तक का हो सकेगा दंडनीय होगा.


         दहेज लेने और देने के लिए किए गए करार का व्यर्थ होना (agreement to take or give dowry to be void): धारा 5 के अनुसार दहेज देने या लेने के लिए किए गए सभी करार व्यर्थ होंगे.


        दहेज का पत्नी या उसके उत्तराधिकारी यों के लाभ के लिए धारण करना (godavari is to hold for the benefits of wife for her successor): - धारा 6 (1) अनुसार जब कोई दहेज उस स्त्री के अतिरिक्त जिस संबंध में वह प्राप्त किया गया हो अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए जाएं तो वह व्यक्ति उसे उस स्त्री को हस्तांतरित कर देगा.

(A) यदि पहले से विवाह के पूर्व प्राप्त किया गया हो तो विवाह से 3 महीने के भीतर या

(B) यदि दहेज विवाह के समय या पश्चात प्राप्त हुआ हो तो ऐसी प्राप्ति के दिनांक से 3 महीने के भीतर या

(C) यदि स्त्री नाबालिक हो तो उसके द्वारा 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने के 3 महीने के भीतर और ऐसे अंतरण तक उसे न्यास (trust) के रूप में स्त्री के लाभ हेतु धारण करेगा.


( 2) यदि कोई व्यक्ति उप धारा (1) यथा अपेक्षित उसके लिए निर्धारित समय के भीतर या उप धारा (3) द्वारा यह अपेक्षित कोई संपत्ति अंतरण करने में असफल रहता है तो वह कारावास से जिसकी अवधि 6 माह से कम नहीं होगी किंतु जो 2 वर्ष की हो सकेगी या जुर्माने से जो कि ₹5000 से कम नहीं होगा किंतु जो 10000 तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा.

( 3) जब उप धारा (1) के अधीन संपत्ति के स्वत्व धारण करने वाली कोई स्त्री उसे प्राप्त करने के पूर्व मर जाए तो उस स्त्री के वारिस उस संपत्ति को उसी समय धारण करने वाले व्यक्ति से पाने का दावा करने के लिए अधिकारी होंगे।


        परंतु जहां ऐसी कोई स्त्री को उसके विवाह से 7 वर्षों के भीतर प्राकृतिक कारणों के अलावा अन्य किसी कारण से मृत्यु हो जाती है तो ऐसी संपत्ति


(A) यदि उसकी कोई संतान हो तो उसके माता-पिता को अंतरित होगी या

(B) यदि उसकी संतान हो तो ऐसी संतानों को अंतरित होगी और ऐसे अंतरण के लंबित रहने के दौरान ऐसी संतानों के लिए न्यास में धारित की जाएगी.


(3क) जहां कोई उप धारा(1) या(3) यथा अपेक्षित किसी संपत्ति का अंतरण के लंबित रहने के लिए उप धारा(1) के अधीन सिद्ध दोष व्यक्ति ने उस धारा के अधीन अपनी दोस्त सिद्धि के पूर्व ऐसी संपत्ति उसकी हकदार स्त्री या यथास्थिति उसके वारिसों माता-पिता या संतान को अंतरित ना की हो तो न्यायालय इस उप धारा के अधीन दंड अधि निर्मित करने के अतिरिक्त तो न्यायालय इस उप धारा के अधीन दंड अधिनियमित करने के अतिरिक्त लिखित में आदेश द्वारा यह निर्देश दे सकेगा कि वह व्यक्ति ऐसी संपत्ति को ऐसी स्त्री या यथास्थिति उसके वारिस माता-पिता या संतान को ऐसे कालावधि में अंतरित करें जैसे आदेश में निर्धारित की गई है और यदि ऐसा व्यक्ति इस प्रकार निर्धारित कालावधि में निर्देश का पालन करने में असफल रहता है तो संपत्ति के मूल्य के बराबर की रकम उसे से वसूल की जा सकेगी मानो कि वह ऐसे न्यायालय द्वारा आरोपित जुर्माना हो और ऐसी स्त्री या यथास्थिति उसके वारिसों माता-पिता या संतान को दी जाएगी.


( 4) धारा में शामिल कोई बात धारा 3 या 4 के उपबंध को प्रभावित नहीं करेगी

दहेज प्रतिषेध (वर और वधू को दिए गए उपहारों की सूचियां रखना) नियम 1985 दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 9 के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार एतद् द्वारा निम्न नियम बताती है: -

( 1) संक्षिप्त नाम एवं प्रसार

   (A) यह नियम दहेज प्रतिषेध (वर और वधु को दिए गए उपहारों की सूचियां रखना) नियम 1985 कहे जाएंगे.

(B) यह 2 अक्टूबर 1985 से प्रभावहीन होंगे जो तिथि दहेज प्रतिषेध संशोधन अधिनियम 1984 के लिए नियत की गई है.

2 नियम जिसके द्वारा उपहारों की सूचियां रखी जानी है -

( 1) उपहारों की सूचियां जो वधु को विवाह के समय दिए जाते हैं वधू के द्वारा रखी जाएंगी

( 2) उपहारों की सूची जो वर को विवाह के समय दिए जाते हैं व के द्वारा रखी जाएंगे.

3. उप नियम (1) और उप नियम (2) में वर्णित उपहारों की प्रत्येक सूची -

(A) विवाह के समय या विवाह के बाद यथासंभव शीघ्र तैयार की जाएगी.

(B) लिखित में होगी

(C) उन में निम्नलिखित शामिल होगा

(D) प्रत्येक उपहार का संक्षिप्त विवरण

(E) उपहार का संभावित मूल्य

(F) उस व्यक्ति का नाम जिसने उपहार दिया है

(G) जहां उपहार देने वाला व्यक्ति वर या वधू का संबंधी है ऐसे संबंध का विवरण

(H) वर और वधू दोनों के द्वारा हस्ताक्षरित होगा


स्पष्टीकरण (explanation): - 1. जहां वधू हस्ताक्षर करने के आयोग हो वहां उसकी सूची पढ़कर सुनाए जाने के बाद और सूची में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करवा लेने के बाद जिसने की सूची में शामिल विवरण को पढ़कर सुनाया हो वह अपने हस्ताक्षर के बदले में अपना निशान अंगूठा लगा सकती है.


स्पष्टीकरण (explanation): - 2. जहां पर हस्ताक्षर करने के आयोग योग वहां उसको सूची पढ़कर सुनाए जाने के बाद और सूची में उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करवा देने के बाद जिसने की सूची में शामिल विवरणों को पढ़कर सुनाया हो गए अपने हस्ताक्षर के बदले में अपना निशान अंगूठा लगा सकता है.


4. वर या वधू यदि चाहे तो उप नियम (1) या (2)वर्णित  दो सूचियों में यह एक सूची में वर या वधू के किसी रिश्तेदार के या विवाह के समय उपस्थित किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के हस्ताक्षर करवा सकते हैं।


        उपरोक्त उप बंधुओं से यह स्पष्ट है कि दहेज का लेनदेन इस अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।

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