विवाह से संबंधित अन्य अपराध इस प्रकार हैं -
( 1) धोखे से विधि पूर्ण विवाह का विश्वास उत्पन्न करके किसी पुरुष द्वारा सहवास करना.
( 2) विधि पूर्ण विवाह की भांति किए गए कपट पूर्ण विवाह संस्कार में यह जानकर भी सम्मिलित होना कि वह झूठा है.
( 1) विधि पूर्ण विवाह करने का धोखे से विश्वास दिला कर किसी पुरुष द्वारा सहवास करना: - जो कोई किसी स्त्री को विधि पूर्ण उससे विवाह का विश्वास दिला कर (कि वास्तव में विवाह ना हो धोखा देकर वे उसे विधि पूर्वक विवाहित है) उस स्त्री के साथ सहवास या मैथुन करेगा तो उसे 10 वर्ष तक की अवधि तक के कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है. (धारा 493)
“इस धारा का आशय ऐसे व्यक्ति को दंडित करना नहीं है जो किसी व्यक्ति के साथ विवाह संविदा करता हो अपितु ऐसे व्यक्ति को दंडित करना है जो किसी स्त्री के साथ धोखे से यह विश्वास दिलाकर कि वह उसके विधि पूर्वक विवाहित है सहवास या समागम करता है.
(Podic A.I.R.1963 H.P.16)
( 2) पति या पत्नी के जीवन काल में पुनर्विवाह करना: - जो कोई पति या पत्नी के जीवित रहते हुए ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें ऐसा विवाह इस कारण सुननी है कि ऐसा विवाह पति या पत्नी के जीवन काल में होता है तो 7 वर्ष की अवधि के कारावास और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है.
अपवाद (exception): - इस धारा का प्रवाह ऐसे व्यक्ति पर नहीं होगा जिसका पति या पत्नी के साथ विवाह को सक्षम क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायालय ने शून्य घोषित कर दिया हो और ना किसी ऐसे व्यक्ति पर है जो पूर्व पति या पत्नी के जीवन काल में विवाह कर लेता है. यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चात वर्दी विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से 7 वर्ष तक निरंतर अनुपस्थित रहा हो और उस कान के अंदर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है परंतु यह सब जबकि ऐसा पश्चात भर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह के होने से पूर्व उस व्यक्ति को जिसके साथ ऐसा विवाह होता है तथ्यों को वास्तविक स्थिति की जानकारी जहां तक कि उसका ज्ञान हो दे दे.. (धारा 494)
( 3) पूर्व वर्ती अपराध को उस व्यक्ति से छिपा कर रखा जिसके साथ पश्चात वर्ती विवाह किया जा रहा है: - जो व्यक्ति पूर्ववर्ती अंतिम धारा में परिभाषित अपराध अपने विवाह की बात उस व्यक्ति से छुपाकर करेगा जिससे पश्चात वर्ती विवाह किया जाए तो उसे 10 वर्ष की अवधि तक के कारावास या जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा.
( 4) विधि पूर्ण विवाह के बिना कपट पूर्वक विवाह कर्म पूरा कर लेना: - जो कोई बेईमानी से या कपट पूर्ण आशा से अविवाहित होने का कर्म यह जानते हुए पूरा करेगा उसके द्वारा वह विधि पूर्वक विवाह नहीं हुआ है तो 7 वर्ष की अवधि के कारावास और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकेगा. (धारा 496)
( 5) विवाहित स्त्री को आपराधिक आशय से बहला-फुसलाकर कर ले जाना या निरुद्ध रखना: -
जो कोई किसी स्त्री को जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी और जिसका अन्य पुरुष की पत्नी हो ना उसे पता है या पता होने का कारण रखता है उस पुरुष से या किसी ऐसे व्यक्ति के पास ले जो उस पुरुष की देखरेख करता है इससे से ले जाया गया फुसलाकर ले जाएगा कि वह किसी व्यक्ति से आतंकित संभोग करें या इससे से ऐसी स्त्री को छुपाए जा यारों सकेगा तो उसे 2 वर्ष की अवधि तक के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकेगा.
( धारा 498)
इस धारा का संबंध पति के अधिकार से है यदि किसी मामले में पत्नी ने घर छोड़ कर अभियुक्त के संरक्षण और आशय में रहना प्रारंभ कर दिया है और पति यह साबित कर सका कि वह उसकी व्यथा स्त्री है तो अभियुक्त को गैरकानूनी ढंग से विरोध करने के अपराध के लिए दोष सिद्ध किया जा सकेगा.
(आलमगीर बनाम स्टेट एआईआर 1959 एस. सी.436)
एक अन्य बाद में पत्नी ने स्वेच्छा से अपने पति का घर त्याग दिया और वह अभियुक्त के साथ रही. यह भी निर्धारित किया गया की पत्नी की इच्छा होते हुए भी अभियुक्त का उसे बहका कर ले जाना अपने साथ रखना निरोध माना जाएगा.
(कामेश्वर बनाम पंजाब राज्य एआईआर 1957 पंजाब 330)
( 6) किसी स्त्री के पति या पत्नी के संबंधी द्वारा उसे निर्दयता का विषय बनाया जाना: - भारतीय दंड संहिता में अपराधिक विधि (द्वितीय संशोधन अधिनियम (43) सन 1983) के द्वारा एक नया अध्याय 20 (A) जोड़ा गया है. इस अधिनियम की धारा 2 ने उक्त नए अध्याय की धारा 498 (A) जोड़ी है जिसके अनुसार जो कोई किसी स्त्री का पति हो अथवा पति का कोई रिश्तेदार हो और वह ऐसी स्त्री के साथ निर्दयता करता है तो उसे 3 वर्ष तक का कारावास और अर्थदंड दिया जा सकता है.
स्पष्टीकरण: - इस धारा के निमित्त निर्दयता का अर्थ -
( 1) जानबूझकर किया गया किसी ऐसी प्रकृति का व्यवहार जिसके कारण उसकी स्त्री का मजबूर होकर आत्महत्या कर लेना संभव हो या उस स्त्री को मानसिक अथवा शारीरिक गहरी चोट या उसके जीवन अंग व स्वास्थ्य को संकट कार्य करें अथवा
( 2) ओके स्त्री को तंग व परेशान करना जहां वैसा किया जाना इस दृष्टि से हो कि उस स्त्री को अथवा उसके संबंधी किसी व्यक्ति को प्राप्त प्रा पीड़ित करके किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभा के लिए किसी गैर कानूनी मांग की पूर्ति कराई जा सके या उस स्त्री के अथवा उसके किसी संबंधी व्यक्ति के द्वारा ऐसी मांग की पूर्ति करने में विफल रहना हो.
वजीर चंद और अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा (एआईआर 1989 एम. सी.378) के बाद में न्यायालय द्वारा यह अभिमत व्यक्त किया गया है जहां यदि महिला से बार-बार दहेज की मांग की जाती है वह विवाह के बाद एवं मृत्यु के पूर्व ऐसे बयान देती है मृत्यु के बाद उसके घर (सास- ससुर) दहेज की अनेक वस्तु एवं संपत्ति मिलती हैं तो इस बात का सबूत है कि मृतक महिला को दहेज के कारण परेशान किया गया था पति सास-ससुर इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है.
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