मुस्लिम विधि में जनकता एवं धर्मजत्व का वर्णन कीजिए।( describe the law of Paternity and legality under Muslim law)
जनकता माता-पिता तथा बच्चों के मध्य संबंध को दर्शाता है?
जब एक व्यक्ति कानून की दृष्टि में दूसरे का पिता या माता माना है तब उस दूसरे व्यक्ति का पितृत्व है या मातृत्व पहले व्यक्ति में सिद्ध माना जाता है. (तैयब जी)
मातृत्व कैसे स्थापित होता है?
( 1) सुन्नी विधि में बच्चे का मातृत्व उस स्त्री में स्थापित होता है तो उसे जन्म देती है भले ही बच्चे का जन्म पर पुरुष गमन का परिणाम हो..
( 2) सिया विधि में जन्मे मातृत्व स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है यह साबित करना जरूरी है कि जन्म वैद्य विवाह का परिणाम है.
( 3) यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री से अवैध संभोग (जिना) करके बच्चा पैदा करता है तो ऐसा बच्चा सुन्नी विधि के अनुसार केवल अपनी मां का ही बच्चा समझा जाता है बच्चा केवल मां से ही उत्तराधिकार प्राप्त कर सकता है तथा वह मां के संबंधियों से उत्तराधिकार प्राप्त कर सकता है.
( 4) सिया विधि में अधर्मज संतान माता-पिता दोनों में से किसी से भी उत्तराधिकार नहीं प्राप्त कर सकता है।
मातृत्व क्या है? मातृत्व बच्चे की वह विधिक स्थिति है जो उसके पिता की संपत्ति उत्तराधिकार और दाए का अवधारणा करती है.
पितृत्व (paternity) क्या है? पितृत्व बच्चे की वह विधिक स्थिति है जो उसके पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार और दाय का अवधारण करती है।
पितृत्व कैसे स्थापित होगा?
किसी बच्चे का पितृत्व माता और पिता के विवाह होने से स्थापित होता है विवाह मान्य या अनियमित हो परंतु उसे शून्य नहीं होना चाहिए।
सिया विधि में अवैध संतान किसी का संबंधी नहीं होती सुन्नी विधि में अवैध संतान का केवल मातृत्व होता है परंतु पितृत्व नहीं.
धर्मजत्व (Legitimacy)धर्मजत्व का मुख्य आधार विवाह होता है. हबीबुर्रहमान बनाम अल्ताफ अली चौधरी (1921) के प्रकरण में पृवी काउंसिल ने यह विचार व्यक्त किया कि मुस्लिम विधि में लड़के के धर्मज होने के लिए किसी पुरुष और उसकी पत्नी या किसी पुरुष और उसकी दासी का बच्चा होना जरूरी है कोई अन्य संतान व्यभिचार की संतान होती है और वह धर्मज नहीं हो सकती।
जब बच्चे को पितृत्व स्थापित हो जाता है तो उसका धर्मजता भी स्थापित हो जाता है मुस्लिम विधि में पितृत्व दो तरीके से स्थापित होता है।
(1)धर्मजत्व संबंधी मुस्लिम विधि का विशेष नियम: मुस्लिम विधि के अनुसार धर्मजता की अवधारणा के नियम नियम है
(1) विवाह के पश्चात 6 माह के भीतर जन्मा हुआ बच्चा अधर्मज होता है यदि पिता उसे अभी स्वीकार ना करें।
(2) विवाह की तारीख के 6 माह बाद धर्म होने की उप धारणा की जाती है जब तक कि पिता उसे के लिए द्वारा अस्वीकार ना करते.
(3) विवाह विच्छेद के पश्चात उत्पन्न बच्चा इन परिस्थितियों में धर्मज होगा
(a) सिया विधि के अंतर्गत 10 चंद्र मास के अंदर उत्पन्न हुआ बच्चा.
(b) हनफी की विधि में दो चंद्र वर्षों के भीतर पैदा हुआ बच्चा
(c)शफी और मलिको मे 4 चंद्र वर्षों के भीतर पैदा हुआ।
वैद्य विवाह होने पर संतान की ओर सत्ता स्थापित होती है वैधता का प्रत्यक्ष प्रमाण होना चाहिए( सादिक हुसैन बनाम हाशिम अली(1916)43 आइ.ए212,38इला 627).
किसी अवैध संतान को अभिस्वीकृति द्वारा औरस संतान नहीं बनाया जा सकता है।
( 2) भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अधीन धर्मजत्व की अवधारणा धारा 112 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार यह तथ्य की किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के मान्य विवाह के कायम रहने के दौरान हुआ था विवाह विच्छेद से 280 दिनों के भीतर हुआ जब माता अविवाहित रही इस बात का निश्चय आत्मक प्रमाण है कि वह उस पुरुष की धर्म संतान है जब तक कि यह ना दर्शाए जाएगी उस बच्चे के गर्भ में आने के समय विवाह के पक्षकारों की एक दूसरे तक पहुंच न थी।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के अंतर्गत निम्न तथ्य किसी व्यक्ति की औरसता के प्रमाण माने जाते हैं।
(1) व्यक्ति अपने माता-पिता के वैद्य विवाह के दौरान उत्पन्न हुआ है.
(2) विवाह विच्छेद के 250 दिन के भीतर उत्पन्न हुआ बस आते उसकी मां ने पुनर्विवाह ना किया हो.
जब ताकि यह सिद्ध ना हो जाए कि उसके गर्भाधान के समय विवाह के पक्षकारों की एक दूसरे तक पहुंच ही नहीं हो पाई हो.
मुस्लिम वैयक्तिक विधि के औरसता संबंधी नियम भारत में प्रायोज्य नहीं है। भारत मेंऔरसता साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के अंतर्गत सुनिश्चित होती है.
पृवी काउंसिल ने मुस्लिम विवाह की संतान की औरसता निर्धारित करने हेतु साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 को ही लागू किया है ना कि मुस्लिम विधि को( इस्माइल अहमद बनाम मोमिन बीवी एआईआर 1941 प्रीवी. को 11) उच्च न्यायालयों में भी मुस्लिम संतान की औरसता के संबंध में साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 को ही अपनाया है।
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