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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

आरोप को परिभाषित कीजिए एवं यह भी समझाई के आरोप में किन-किन बातों का वर्णन होना चाहिए? ( define charge and also describe what contains should be given in its?)

अपराधिक न्याय प्रशासन में आरोप न्यायिक प्रक्रिया को गतिमान बनाता है आरोप के अभाव में अभियोजन प्रारंभ नहीं होता है.

                      आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय स्थान व्यक्तियों में वस्तु का भी उल्लेख रहता है जिसके बारे में अपराध किया गया है.

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 211 के अंतर्गत यह बंद किया गया है कि -

( 1) इस संहिता के अधीन प्रत्येक आरोप में उस अपराध का कथन होगा जिसका अभियुक्तों पर आरोप है.

( 2) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा इसे कोई विशिष्ट नाम दिया गया है तो आरोप में उसी नाम से उस अपराध का वर्णन किया जाएगा.

( 3) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विशिष्ट नाम नहीं दिया गया है तो अपराध की इतनी परिभाषा देनी होगी कि जितनी से अभियुक्त को इस बात की सूचना हो जाए जिसका उस पर आरोप है.

( 4) वह विधि और विधि कि वह धारा जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना कथित है आरोप में उल्लेखित होगा.


( 5) यह तथ्य है कि आरोप लगा दिया गया है इस कथन के समतुल्य है कि विधि द्वारा अपेक्षित प्रत्येक शर्त जिससे आरोपित अपराध बनता है उस विशिष्ट मामले में पूरी हो गई है.

( 6) आरोप न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा.

( 7) अगर अभी फिर किसी अपराध के लिए पहले दोष सिद्ध किए जाने पर किसी पश्चात वरती अपराध के लिए ऐसी पूर्व दोष सिद्धि के कारण वर्धित दंड या भिन्न प्रकार के दंड का भी और यह आशीष है कि ऐसी पूर्व दो सिद्धि उस दर्द को प्रभावित करने के प्रयोजन के लिए साबित की जाए जिसे न्यायालय पश्चात भर्ती अपराध के लिए देना ठीक समझे तो पूर्व दो सिद्धि का तथ्य तारीख और स्थान आरोप में कथित होंगे और यदि ऐसा कथन रह गया तो न्यायालय दंड आदेश देने के पूर्व किसी समय भी उसे जोड़ सकेगा.


उदाहरण - Aपर B की हत्या का आरोप है यह  बात इस कथन के समतुल्य है कि A का कार्य भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 299,300 में दी गई हत्या की परिभाषा के अंदर आता है और वह धारा 300 के 5 अपवादों में किसी के अंदर भी नहीं आता है यह यदि वह अपवाद एक के अंदर आता है तो उस अपवाद के तीन परंतुको में कोई ना कोई परंतु उसे लागू होगा.

( 2) Aपर आसन के उपकरण द्वारा Bकी स्वेच्छाया घोर उपहति कारित करने के लिये  भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 326 के अधीन आरोप है यह है इस कथन के समतुल्य है कि उस मामले के लिए भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 335 द्वारा उपबंध  नहीं किया गया है और साधारण अपवाद लागू नहीं होते हैं.

(3) A पर हत्या छल चोरी उद्दीपन जारकर्म या अपराधीक अभित्रास  या मिथ्या संपत्ति चिन्ह को उपयोग में लाने का अभियोग है आरोप में इन अपराधों की भारतीय दंड संहिता में दी गई  परिभाषाओं के निर्देश के बिना यह कथन हो सकता है कि इन्हें हत्या या छल या चोरियां उद्दापन या जारकर्म या आपराधिक अभीत्रास किया है या यह कि उसने मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग किया है किंतु प्रत्येक दशा में वे धाराएं जिनके अधीन अपराध दन्दनीय हैआरोप में निर्दिष्ट करनी पड़ेगी।

( 4)A पर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 148 के अधीन या आरोप है कि उसने लोक सेवक के विधि पूर्व प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित संपत्ति के विक्रय  मे साशय बाधा डाली है आरोप उन शब्दों में ही होना चाहिए


समय स्थान और व्यक्ति के विषय में विशिष्टयां

धारा 212 के अनुसार -

( 1) अभी कथित अपराध के समय और स्थान के बारे में और जिस वस्तु के यदि कोई हो विरुद्ध अथवा जिस वस्तु के यदि कोई हो विषय में अपराध किया गया है ऐसी विशिष्ट ना जैसे अभियुक्त को उस बात की जिसका उन पर आरोप है सूचना देने के लिए उचित रूप से पर्याप्त है आरोप में अंतर बिष्ट होंगे.

( 2) जब अभियुक्त पर आपराधिक न्यासभंग बेईमानी से धन या अन्य जंगम संपत्ति के दुरुपयोग का आरोप हो तब इतना ही पर्याप्त होगा कि विशिष्ट मदों का जिन के विषय में आरोप किया गया है या अपराध करने की ठीक-ठीक तारीखों का भी निर्देश किया गया है के बिना यथास्थिति उस सकल राशि का भी विनिर्देश या उस जंगम वर्णन कर दिया जाता है जिसके विषय में अपराध किया जाना अभी कथित है और उन तारीखों का जिनके बीच में अपराध किया जाना अभी कथित है विनिर्देश कर दिया जाता है और ऐसे विचलित धारा 219 के अर्थ में एक ही अपराध का आरोप समझा जाएगा परंतु ऐसी तारीखों में से पहली और अंतिम के बीच का समय 1 वर्ष से अधिक का ना हो.

कब अपराध किए जाने के लिए गठित की जानी चाहिए - धारा 213 के अनुसार जब मामला इस प्रकार का है कि धारा 211 और धारा 212वर्णित  विशिष्टया अभियुक्त के उस बातचीत का उस पर आरोप है पर्याप्त सूचना नहीं देती है तब उस नीति को जिसमें अभी कथित अपराध किया गया है ऐसी विशिष्ट या भी जैसे उस प्रयोजन के लिए पर्याप्त है आरोप में अंतर बिष्ट होंगी.

“A और वस्तु विशेष की विशेष समय और स्थान में चोरी करने का अभियोग है यह आवश्यक नहीं है कि आरोप में वह नीति उप वर्णित हो जिससे चोरी की गई है”

“ए पर बी के साथ कथित समय पर कथित स्थान में छल करने का अभियोग है आरोप में वह रीति जिससे एनएवी के साथ छल किया उप वर्णित करनी होगी”

“यह पर कथित समय और कथित स्थान में मिथ्या साथ देने का अभियोग है आरोप में यह द्वारा किए गए साक्ष्य का विभाग उप वर्णित करना होगा जिसका मिथ्या होना अभी कथित है”

Xपर लोकसेवक Y को उसके लोग कृत्य के निर्वहन में कथित समय पर और कथित स्थान में बाधित करने का अभियोग आरोप में वह रीति में वर्णित करनी होगी जिससे यक्ष ने हवाई को उसके कृतियों का निर्वाहन में बाधित किया है”

एक्स पर कथित समय और कथित स्थान मे Y की हत्या करने का अभियोग है यह आवश्यक नहीं है कि आरोप में वह रीति कथित हो जिससे एक्स  y की हत्या की है

A पर b को दंड से बचाने के आशय से विधि के निर्देश की अवज्ञा करने का अभियोग है आरोपित अवज्ञा और अतिलघित विधि का वर्णन आरोप में करना होगा.


आरोप में अपराध असत्य माना जाएगा हसन अली बनाम मध्य प्रदेश राज्य  1983) 2 एसएससी 66)

धारा 214 के अंतर्गत प्रत्येक आरोप में अपराध का वर्णन करने में उपयोग में लाए गए शब्दों को उस अर्थ में उपयोग लाया गया समझा जाएगा जो अर्थ उन्हें उस विधि द्वारा दिया गया है जिसके अधीन ऐसा अपराध दंडनीय है.

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