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मकान मालिक आप से जबरदस्ती मकान या दुकान खाली करवायें या फिर किराया दोगुना करने की धमकी दे तो ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?

बाल विवाह रोक अधिनियम 1929 बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति को रोकने की दिशा में एक सामाजिक विधायन है वर्णन कीजिए (child marriage prohibition act 1929 is a social regulation for the prevention of social evils like child marriage)

बाल विवाह और वह अधिनियम 1929 के उद्देश्य के लिए बालक ऐसे व्यक्ति को माना गया है जो यदि पुरुष है तो उसने 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और यदि नारी है तो उसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है.

           नाबालिक उसे माना गया है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री.

किसी व्यक्ति के बालक होने के तथ्य को साबित करने का भार अभियोजन पक्ष का होता है उसे ही संदेह से परे यह साबित करना होता है कि विवाहित व्यक्ति विवाह के समय बालक था आयु को साबित करने के लिए अनेक प्रमाण पत्र हो सकते हैं लेकिन यदि कोई प्रमाण नहीं मिलता है तो जन्म प्रमाण पत्र को निश्चय एक प्रमाण पत्र माना जा सकता है.


बाल विवाह क्या है? (what is child marriage): - बाल विवाह से तात्पर्य ऐसे  विवाह से है जिसके दोनों पक्षकारों अर्थात वर-वधू में से कोई भी बालक हो उदाहरण के तौर पर वर 22 वर्ष की आयु का है और वधू 17 वर्ष की आयु की अथवा वर 20 वर्ष की आयु का है और वधू 19 वर्ष की आएगी है तो उसे बाल विवाह कहां जाएगा.


        बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है जिसका निवारण करने के लिए सन 1929 में बाल विवाह रोक अधिनियम पारित किया गया समय-समय पर इसमें संशोधन भी किए गए सर्वाधिक महत्वपूर्ण संशोधन सन 1978 में किए गए इस अधिनियम का मूल पाठ इस प्रकार है -


( 1): - संक्षिप्त नाम विस्तार और प्रारंभ - (1) यह अधिनियम बाल विवाह अवरोध अधिनियम 1929  कहा जा सकता है.

( 2) यह  अप्रैल 1930 के प्रथम दिन को लागू होगा.


2: - परिभाषाएं (definition): - इस अधिनियम में जब तक कि विषय संदर्भ में कोई बात विरुद्ध ना हो -

(a) बालक से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से जिसने यदि पुरुष है तो 21 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है और यदि नारी है तो 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है.

(b) बाल विवाह से तात्पर्य से विवाह से है जिस के बंधन में आने वाले दोनों पक्षकारों में से कोई भी बालक हो.

(c) विवाह का बंधन में आने वाले पक्ष कार से तात्पर्य पक्षकारों में से कोई भी जिस के विवाह का एतद् द्वारा अनुष्ठान किया जाए या किया जाने वाला हो से है तथा

(d) अवयस्क से तात्पर्य किसी भी लिंग के व्यक्ति से है जो 18 वर्ष से कम आयु का हो.


बाल विवाह के लिए निर्धारित दंड (penalties prescribed for child marriage): - बाल विवाह के लिए निम्नलिखित दंड निर्धारित किए गए हैं: -

( 1) बाल विवाह करने वाले 21 वर्ष से कम आयु के पुरुषों यस के लिए दंड धारा 3 के अनुसार जो कोई 18 वर्ष से अधिक या 21 वर्ष से कम आयु का पुरुष होते हुए बाल विवाह करेगा वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 15 दिन तक की हो सकेगी अथवा जुर्माने में से ₹1000 तक का हो सकेगा या दोनों से दंडनीय होगा.

( 2) बाल विवाह करने वाले किस वर्ष से अधिक आयु के पुरुष व्यस्क के लिए दंड धारा 4 के अनुसार जो कोई 21 वर्ष से अधिक आयु का पुरुष होते हुए बाल विवाह करेगा वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 3 मार्च तक की हो सकेगी दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है.

( 3) बाल विवाह का अनुष्ठान करने के लिए दंड धारा 5 के अनुसार जो कोई किसी बाल विवाह का संपन्न करेगा संचालित करेगा या निर्देशित करेगा वह जब तक यह साबित ना कर दे कि उसके पास विश्वास करने का कारण था कि वह बाल विवाह नहीं था सादा कारावास से जिसकी अवधि 3 महीने तक हो सकेगी दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है.


( 4) बाल विवाह से संबंध माता-पिता या संरक्षक के लिए दंड धारा 6 के अनुसार जहां कोई नाबालिक बाल विवाह के बंधन में आता है वहां चाहे माता-पिता अथवा संरक्षक के रूप में या अन्य किसी विधि पूर्ण या विधि विरुद्ध हैसियत से नाबालिक की देखरेख करने वाला कोई भी व्यक्ति जो विवाह को अभिप्रेरित करने के लिए कोई कार्य करेगा या उसका अनुष्ठान किया जाना अनु ज्ञात करेगा या उसके अनुष्ठान का निवारण करने में उपेक्षा पूर्वक असफल करेगा वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 3 महीने तक हो सकेगी दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकेगा.


परंतु कोई स्त्री कारावास से दंडनीय नहीं होगी..

क्या बाल विवाह शून्य  नहीं होता है. (is child marriage not valid): - नहीं बाल विवाह इस अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अवश्य लेकिन वह ना तो शून्य  है और ना ही अविधिमान्य  है यही कारण है कि कोई भी व्यक्ति मात्र इस आधार पर बाल विवाह से उत्पन्न अन्य दायित्वों से बच नहीं सकता कि ऐसा विवाह बाल विवाह अवरोध  अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय है।

प्रक्रिया (proceedure): - बाल विवाह रोक अधिनियम 1929 की परिधि में आने वाले अपराधों को कुछ उद्देश्यों के लिए संज्ञेय माना गया है ऐसे मामलों का विचारण करने की अधिकारिता महानगर मजिस्ट्रेट को प्रदान किया गया है क्षेत्राधिकार का निश्चय विवाह स्थल के आधार पर किया जाता है तिलक के स्थान पर नहीं.

       प्रसंज्ञान लेने की अवधि अपराध कार्य किए जाने की तिथि से 1 वर्ष निर्धारित की गई है अपराधों की जांच और विचारण परिवाद पेश किए जाने पर किया जाता है किसी भी परिवाद को बिना जांच के खारिज नहीं किया जा सकता यह एक आज्ञापक व्यवस्था ( mandatory provision) है.


बाल विवाह रोकने के लिए अध्यादेश जारी करना (to issue injunction for provision of child marriage): - अधिनियम की धारा 12 काफी महत्वपूर्ण है इसमें बाल विवाह को रोकने के लिए आदेश जारी किए जाने हेतु प्रावधान है जब भी न्यायालय को परिवाद पर या अन्यथा यह प्रतीत होगी इस अधिनियम के उल्लंघन में -

( 1) कोई बाल विवाह होने वाला है

( 2) किसी बाल विवाह का ठहराव हो गया है

( 3) उसका अनुष्ठान होने वाला है


        तो न्यायालय ऐसे विवाह को रोकने के आशय का भी आदेश जारी कर सकेगा आदेश जारी करने से पूर्व विपक्षी को कारण दिखाने का अवसर प्रदान किया जाना आवश्यक है.

           यदि कोई व्यक्ति ऐसे आदेश का संशय उल्लंघन करता है तो उसे 3 माह तक की अवधि के कारावास और ₹1000 तक के जुर्माने है दोनों से दंडित किया जा सकेगा लेकिन ऐसे दंडित करने से पूर्व उसे सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उसे आदेश की जानकारी थी या नहीं.


         धारा 12 के अंतर्गत आदेश जारी करने का मुख्य उद्देश्य बाल विवाहों को संपन्न होने से पहले ही रोक देना है.


         इस प्रकार बाल विवाह और और अधिनियम बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति के निवारण की दिशा में बनाया गया एक समाजिक के विधायन है।

बाल विवाह का प्रमाण (proof of child marriage): - इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को दो-दो सिद्ध एवं दंडित करने के लिए यह तथ्य संदेश से परेशान वित्त हो जाना चाहिए कि तथाकथित विवाह बाल विवाह ही है.


     कांतिलाल बनाम प्रेमचंद 1990Cr.L.R.456Raj मैं राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि यदि लड़के और लड़की की आयु के संबंध में ना तो किसी को जानकारी हो और ना ही कोई दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हो तो अभियुक्त को दोष सिद्ध किया जा सकता है.



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