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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

महिलाओं के साथ छेड़छाड़ एक दंडनीय अपराध है (the Indian penal code for the provision of the outraging of modesty)

 स्त्री की लज्जा bhang करने के आशय से उस पर हमला आपराधिक बल का प्रयोग (assault of criminal force to women with intent to outrage her modesty)


धारा 354 के अनुसार, जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से क्या यह संभव जानते हुए कि वह उस द्वारा उसकी लज्जा भंग करेगा उसे स्त्री पर हमला करेगा या अपराधिक बल को प्रयोग करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 3 वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जाएगा.


शीलभंग या लज्जा भंग की आवश्यक शर्तें (essential of outrage of modesty) धारा 354 के अंतर्गत शीलभंग के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक है
( 1) किसी स्त्री की लज्जा भंग करने का आशय होना चाहिए
( 2 ) ऐसी लज्जा भंग करने के लिए स्त्री पर हमला करना
( 3) ऐसी स्त्री पर आपराधिक बल का प्रयोग करना

लज्जा या शीलभंग:

लज्जा नारी का एक स्वभाव है. स्त्री चाहे वह किसी भी आयु के क्यों ना हो उसमें लज्जा होती है भारतीय दंड संहिता की धारा 10 के अनुसार स्त्री शब्द किसी भी आयु की मानव नारी की पहचान बताने के लिए होता है


( 1) स्टेट ऑफ पंजाब बनाम मेजर सिंह A.I.R 1967 S.C.63 में यह कहा गया है कि स्त्री के सील लज्जा का सार लिंग है. नारी का सील पूर्ण रूप से उसके शरीर से मिला होता है. स्त्री चाहे जवान हो या बुरी बुद्धिमान हो या पागल जागती हो या सोती हो उसके शील भंग किए जाने की हमेशा संभावना रहती है. सील नारी का एक विशेष गुण है..

( 2) एंपरर बनाम टाटिया 13 सियार. एलजी 958 अभियुक्त एक 6 वर्षीय बालिका को अपने कमरे में ले गया उसे कमरे में लिटा दिया और अभियुक्त ने मुझको ऊपर लेट गया वह बालिका चिल्लाई और उठ कर वहां से भाग गए विचारण न्यायालय ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 352 के अंतर्गत साधारण प्रहार के लिए दोषी ठहरा है क्योंकि बालिका इतनी छोटी थी कि उसमें सील नहीं था लेकिन बंबई उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को संहिता की धारा 354 के अंतर्गत स्त्री का शील भंग करने के अपराध को दोषी ठहराया और कहा कि कम उम्र की थी लेकिन वह धारा 10 के अंतर्गत स्त्री थी

(प्रमोद ह बनाम स्टेट ऑफ़ जम्मू एंड कश्मीर ए .आई .आर 1995 एस. सी 1964).
 मैं अभियुक्त पर एक 9 वर्षीय बालिका रीता कुमारी के साथ बलात्कार करने का आरोप था. लेकिन न्यायालय ने उसे बलात्कार का दोषी न मान का स्त्री की लज्जा भंग का दोषी माना क्योंकि उस पर आपराधिक बल का प्रयोग तो किया गया था लेकिन उस बालिका के शरीर वह उसकी जन इंद्रियों पर चोट के निशान नहीं थे.

श्रीमती रूपम देवल बजाज बनाम केपीएस गिल ए आई आर 1996 ऐसी 309

श्रीमती बजाज पंजाब कैडर की एक आईएएस अधिकारी हैं घटना के समय व पंजाब सरकार के वित्त विभाग में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थी दिनांक 18 जुलाई 1988 में एस एल कपूर के यहां एक दावत में गई थी उस दावत में पंजाब सरकार के कई वरिष्ठ महत्वपूर्ण अधिकारी भी थे. दावत में पंजाब के पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल भी आमंत्रित किए गए थे. देवल का कहना है कि रात करीब 10:00 बजे केपीएस गिल उसके पास आए और उसके कूल्हे पर हाथ मारा. देवल को यह बहुत बुरा लगा और उसके द्वारा गिल के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 341,342,352,354 और 509 के अंतर्गत मामला दर्ज कराया. पीएस गिल ने इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी. उच्चतम न्यायालय ने इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 और 509 के अंतर्गत प्रथम दृष्टया मामला माना और विचारण के निर्देश दिए. अंत में विचारण में भी गिर को धारा 354 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया.

          स्मरणीय है कि लज्जा भंग के कार्य देश की संस्कृति पर निर्भर करते हैं स्त्री का चुंबन लेना उसके हाथ को चूमना कुला थपथपाना आदि किसी देश में संस्कृति के अंग हो सकते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति में इन कार्यों को बुरा समझा जाता है. यही कारण है कि हमारे यहां इन्हें अपराध माना गया है.

स्त्री की लज्जा का अनादर (insult of the modesty of woman)

भारतीय दंड संहिता की धारा 509 में स्त्री की लज्जा के अनादर को एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है. भारतीय दंड संहिता की धारा 509 का मूल पाठ इस प्रकार है

जो कोई स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा कोई आवाज या अंश विक्षेप करेगा करेगा या कोई वस्तु प्रदर्शित करेगा इससे से ऐसी स्त्री द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनाई जाए या ऐसा अंग विच्छेद या वस्तु देखी जाए अथवा ऐसी स्त्री की एकाग्रता का अतिक्रमण करेगा वह सदा कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष तक हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकेगा.

        इस प्रकार यह धारा स्त्री की लज्जा को अपमानित करने वाले व्यक्ति के लिए दंड का प्रावधान करती है. इस धारा के उप बंधुओं का मुख्य तत्व किसी स्त्री की लज्जा को अपमानित करने का आशय है.

यह धारा के आवश्यक तत्व
किसी स्त्री की लज्जा को अपमानित करने का आशय
अपमान शब्दों ध्वनि या अंग विच्छेद द्वारा या किसी वस्तु के प्रदर्शन द्वारा किया जाना

ऐसी स्त्री के एकांतता का अतिक्रमण किया जाना

( 1) मोहम्मद स्त्री चिश्ती का वाद 1911 मुंबई एच . सी अपील
इसमें अभियुक्त ने परिवाद की एक अविवाहित पुत्री का अपनी गाड़ी से विभिन्न स्थानों पर पीछा किया और आते जाते समय उसको हंसकर दांत दिखा कर उसकी तरफ ताकते रह कर गाड़ी में खड़े होकर उसका नाम आदि पुकार कर अपमानित किया. न्यायालय ने अभियुक्त को धारा 509 के अंतर्गत अपराधी ठहराया.

तारक दासगुप्ता का मामला ( 1925) 28 मुंबई एल आर.99
 इस प्रकरण में अभियुक्त विश्वविद्यालय का स्नातक था उसने एक नर्स को एक पत्र लिखा जिसमें अभद्र मांगे की गई उस पत्र में यह भी कहा गया कि यदि उसे माननीय मंजूर हो तो वह एक विशेष कार्य द्वारा इसकी सूचना दें. न्यायालय ने अभियुक्त को इस धारा के अंतर्गत दोषी माना.

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