महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की प्राकृतिक एवं विशेषताओं (the nature and characteristic of violence against the women)
पारिवारिक हिंसा (domestic violence):
पारिवारिक समस्याओं में घरेलू या पारिवारिक हिंसा भी आधुनिक युग में एक प्रमुख समस्या है यद्यपि घरेलू हिंसा परिवार में किसी भी सदस्य के प्रति हो सकती है किंतु पारिवारिक हिंसा का संबंध मुक्ता महिलाओं के प्रति हिंसा के रूप में है इसका कारण यह है कि महिलाएं ही अन्य परिवारों से पत्नी के रूप में यहां आती है कभी-कभी नवीन पारिवारिक परिस्थितियों में उनका सामान जैसे कठिन हो जाता है कभी-कभी दहेज भी उनके प्रति हिंसा का एक प्रमुख कारण बन जाता है पारिवारिक हिंसा के अंतर्गत अन्य सदस्यों के प्रति भी हिंसा कोई आज की घटना नहीं है वरन प्राचीन भारत में भी इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं महाभारत काल में युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी को जुए में दांव पर लगा दिया था तथा दुर्योधन ने भरी सभा में चीरहरण कर उसे अपमानित किया था दहेज को लेकर नारी को जला देना या हत्या कर देना आज के युग की सबसे बड़ी त्रासदी है सतीत्व के नाम पर इसी देश में महिलाओं को जिंदा जलाया जाता रहा है इस प्रकार से महिलाओं का उत्पीड़न व शोषण उनके साथ मारपीट गाली-गलौज करना व जला देना तथा हत्या कर देना पारिवारिक हिंसा के अंतर्गत प्रमुख उदाहरण पारिवारिक हिंसा में वह हिंसा आती है जो महिलाओं के निकट रिश्तेदार जैसे माता-पिता भाई-बहन साथ ससुर देवर भाभी या परिवार के किसी भी सदस्य अथवा अन्य व्यक्तियों के द्वारा किए जाने वाले हिंसात्मक व्यवहार उत्पीड़न जो नारी को शारीरिक एवं मानसिक आघात पहुंचाता है पारिवारिक हिंसा के अंतर्गत परिवारिक क्षेत्र में महिला के साथ किया गया बलात्कार दहेज हत्या में पत्नी को यातनाएं आदि आते हैं.
पारिवारिक हिंसा का क्षेत्र है या वर्गीकरण (scope of classification of domestic violence)
पारिवारिक क्षेत्र में महिलाओं के प्रति हिंसा प्रमुखता उसके उद्देश्यों के आधार पर निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है:
जिसका उद्देश्य धन प्राप्त करना होता है जैसे दहेज के लिए पत्नी को पीटना एवं यातनाएं देना.
जिसका हिंसा का उद्देश्य कमजोर व सत्ता कायम करना होता है.
जो हिंसा अपराध करता के व्यक्तित्व संबंधी विकृति के कारण की जाती है.
जिसका उद्देश्य यौन सुख प्राप्त करना होता हो
जिस हिंसा का कारण तनाव पूर्ण पारिवारिक परिस्थितियां होती हैं
जो हिंसा पीड़ित महिला द्वारा प्रेरित होती है
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के एक अन्य वर्गीकरण में हिंसा को निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त किया गया है
आपराधिक हिंसा:
जैसे बलात्कार एवं अपहरण आदि
घरेलू हिंसा:
जैसे दहेज संबंधी मृत्यु पत्नी को पीटना लैंगिक दूर व्यवहार आदि
सामाजिक हिंसा:
जैसे पत्नी ओम पुत्रवधू को मादा भ्रूण की हत्या के लिए बाध्य करना विधवा को क्षति होने के लिए विवश करना दहेज के लिए तंग करना आदि.
दहेज हत्या (dowry death):
भारत में दहेज एक गंभीर समस्या बनी हुई है दहेज के अभाव में भारत में हजारों स्त्रियों को प्रतिवर्ष जलाया जाता है उन्हें सास ससुर देवर जेठ पत्नी पति एवं ससुराल पक्ष वालों के द्वारा कई प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं उन्हें भूखा रखा जाता है अपने पीहर वालों से पैसा मांगने के लिए तंग किया जाता है तथा यहां तक कि आत्महत्या करने एवं घर छोड़कर चले जाने तक के लिए मजबूर किया जाता है जिससे पति दूसरी शादी करके दहेज उठा सके यद्यपि सन 1961 में भारत सरकार ने दहेज निरोधक अधिनियम बना दिया तथा इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध माने गए हैं किंतु वास्तविक स्थिति यह है कि दहेज समाज में कैंसर की तरह बढ़ता जा रहा है तथा दहेज संबंधी मुकदमों की संख्या नगण्य देश में प्रतिवर्ष हजारों हत्या दहेज के कारण होती हैं जो कि अधिकांश दहेज संबंधित या लड़की के ससुराल में ही होती है तो ससुराल वाले हत्या संबंधी प्रमाण मिटा देते हैं तथा उसे आत्महत्या या हादसे का रूप दे देते हैं साक्षी के अभाव में अपराधी अक्सर बच जाते हैं.
सामान्य यह देखा गया है कि:
दहेज संबंधी हत्या और अपहरण के मामले निम्न एवं उच्च वर्ग की तुलना में मध्यम वर्ग में अधिक होते हैं.
दहेज में उत्पीड़ित 70% महिलाएं 21 से 24 वर्ष की आयु किससे विक्की होती हैं.
दहेज की समस्या निम्न जातियों की तुलना में उच्च जातियों में अधिक पाई जाती है
हत्या से पूर्व वधु को कई यातनाएं दी जाती हैं हम अपमानित किया जाता है
परिवार की रचना नववधू को जलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
स्त्री की शिक्षा के स्तर एवं दहेज हत्या में कोई कार्य कारण का संबंध नहीं पाया जाता है.
सोचा यह गया था कि शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ दहेज से संबंधित बुराइयों का अंत होगा किंतु हुआ इसका बिल्कुल विपरीत तथा प्रतिवर्ष दहेज संबंधी हत्या एवं पूरन की घटनाएं बढ़ती जा रही है जो पूरे समाज के लिए शर्म की बात है
पत्नी को पीटना
भारत में पत्नी के रूप में नारी के प्रतिष्ठा रही है तथा उसे यह गृह लक्ष्मी की संख्या से संबोधित किया गया है पत्नी को पुरुष की अर्धांगिनी से धर्म चारणी धर्मपत्नी भी कहा जाता है यहां पत्नी के अभाव में पति द्वारा किया गया धार्मिक कार्यों को निष्फल माना गया है किंतु यह तस्वीर का एक पहलू है पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने और उसे मारने पीटने की घटनाएं भी कई बार सुनने में आती हैं विवाह के बाद पति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी पत्नी का भरण पोषण करेगा उसे प्रेम करेगा तथा उसे संरक्षण प्रदान करेगा भारत में पति के लिए भरतार शब्द का प्रयोग किया गया जिसका अर्थ होता है भरण पोषण करने वाला सामान तेरा यह माना जाता है कि घर नारी के लिए सुरक्षा प्रसन्नता की दृष्टि से स्वर्ग है कि स्त्रियों के प्रति घर में हिंसक व्यवहार किया जाता है उन्हें दूसरों से मारा जाता है हड्डियां तोड़ दी जाती हैं अपने एक अध्ययन में पाया कि पतियों द्वारा अपनी पत्नी भूत आ गया है नीचे फेंक कर मारा गया है सीढ़ियों से गिर गया तथा कुछ स्त्रियों के पैरों में किल्ली ठोक दी गई हैं.
हत्या
हत्या के मामले स्त्री व पुरुष दोनों के साथ घटित होते हैं किंतु विश्व में सर्वत्र स्त्रियों की तुलना में पुरुषों के अत्याधिक होती है अमेरिका में प्रति वर्ष कुल हत्या का 20 से 25% भाग महिला हत्या का होता है जबकि भारत में केवल 10 परसेंट ही है भारत में सम्मिलित 96. 7 पर्सेंट पुरुष एवं 3.39% महिलाएं होती हैं.
डॉ आहूजा द्वारा हत्या संबंधी किए गए अध्ययन में यह पाया गया है कि हत्या करने वाले एवं हत्या के शिकार एक ही परिवार के होते हैं लगभग 94 परसेंट अस्सी परसेंट हत्यारे 25 से 40 वर्ष की आयु समूह में से होते हैं हत्या के शिकार औरतों का प्रतिशत लगभग 50 था जिन स्त्रियों की हत्या की गई उनमें से आधे स्त्रियों की संताने थी अधिकांश हत्यारे निम्न व्यवसाय एवं आयु समूह से संबंधित हैं दो बटे तीन हत्या भावेश में तथा अनियोजित ढंग से की गई महिलाओं की हत्या के प्रमुख कारण स्त्री की लंबी बीमारी अन्य पुरुषों से यौन संबंध एवं छोटे-मोटे घरेलू थे.
विधवाओं के प्रति हिंसा
भारत में विशेष रुप से हिंदुओं में विधवाओं की गंभीर समस्या है क्योंकि हिंदुओं में विवाह एक धार्मिक संस्कार माना गया है तथा यह पति-पत्नी का जन्म जन्मांतर का बंधन है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है अतः पति की मृत्यु के बाद पत्नी को दूसरा विवाह करने की छूट नहीं है यही कारण है कि पति की मृत्यु के बाद से ही विधवा स्त्री के दो प्रारंभ हो जाते हैं उसके सिर को मरवा दिया जाता है वह अच्छे वस्त्र नहीं पहन सकती है सिंगार नहीं कर सकती इतना तेल का प्रयोग नहीं कर सकती है सार्वजनिक उससे एवं शुभ कार्यों में उसकी उपस्थिति को अपशकुन माना जाता है सास-ससुर एवं पति के परिवार के लोग विधवाओं पर अत्याचार करते हैं उसे डायन की संज्ञा देते हैं जिसने अपने पति को ही खा लिया है विधवाओं के भी अनेक प्रकार हो सकते हैं जैसे बिना बच्चे वाली युवा विद्वान 12 बच्चों वाली पूर्ण विधवा एवं अधिक उम्र वाली विधवा अधिकांशत युवा एवं प्रमाण विधवाओं की समस्या ही अधिक से अधिक उम्र वाली विधवा अपने बच्चों के परिवार का अंग बन जाती है वह अपने पोते पोतियो की देखभाल करने खाना पकाने घर के कार्य में मदद करने एवं मार्गदर्शन करने की दृष्टि से उपयोगी मानी जाती हैं युवा एवं प्रमाण विधवाओं की समस्या गंभीर है उनके साथ ही अनेक प्रकार के दुर्व्यवहार किए जाते हैं उन्हें पीटा जाते हैं गालियां दी जाती हैं उनके साथ व्यभिचार एवं लैंगिक दुर्व्यवहार का प्रयत्न किया जाता है उन्हें पति की संपत्ति से वंचित किया जाता है भारत में स्त्रियों में अशिक्षा की अधिकता के कारण ने पति के व्यापार बीमे की रकम तथा जमा पूंजी आदि की जानकारी नहीं होती है इसका लाभ उठाकर उसके ससुराल वाले उससे कागजों पर अंगूठा लगवा कर उसके वैज्ञानिक संपत्ति को हड़पने का प्रयास करते हैं विधवाओं के उत्पीड़न के तीन प्रमुख कारण होते हैं सच्ची संपत्ति काम वासना की पूर्ति तथा वर्ग की सदस्यता का उत्पीड़न संबंधी सेवाओं की तुलना में युवाओं की तुलना में उच्च माध्यमिक नगर की विधवाओं को अधिक उत्पीड़ित किया जाता है विधवा स्त्री की निष्क्रिय कायरता भी उसके उत्पीड़न का प्रमुख कारण है यद्यपि विधवाओं को पुनर्विवाह की छूट देने की दृष्टि से भारत में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1806 बना हुआ है किंतु विद्वानों द्वारा पुनर्विवाह बहुत कम किए जाते हैं सास का सत्तावादी व्यक्तित्व एवं पति के भाई बहनों का असमंजस से पूर्ण व्यवहार विधवा उत्पीड़न के प्रमुख कारण है परिवार की रचना तथा उसके आकार से विधवा उत्पीड़न का कोई संबंध नहीं है हिंसा के अपराध करता दिखा स्थापति के परिवार के सदस्य होते हैं.
नारी हत्या तथा भ्रूण हत्या
भारतीय समाज पुरुष प्रधान है तथा यहां लड़की की तुलना में लड़के को अधिक महत्व दिया जाता है धार्मिक दृष्टि से भी पुत्र प्राप्ति को आवश्यक माना गया है क्योंकि वही श्राद्ध एवं तर्पण द्वारा मृत पिता एवं पूर्वजों को स्वर्ग पहुंचाता है उत्तराधिकार की दृष्टि से भी पुत्र का होना आवश्यक है किंतु कई बार किसी परिवार में लड़कियों की संख्या अधिक होने पर लड़की के पैदा होते ही से मार दिया जाता है जो नारी हत्या का ही एक रूप है नारी हत्या हमें प्रकट तथा प्रकट कई रूपों में देखने को मिलती है माता के गर्भ में ही नारी शिशु को मार देना या जन्म के बाद उसे मार देना या दहेज के लोग में बहू को जला देना या पीट-पीटकर मार देना उसका उत्पीड़न करना या ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देना जिसमें नारी आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाए जहर देकर मार देना गला घोट देना आदि सभी नारी हत्या के प्रतिरूप नारी हत्या का का अप्रत्यक्ष रूप हुआ है जिसमें नारी शिशु के पालन पोषण एवं चिकित्सा की और उचित ध्यान नहीं देने से वह मौत की शिकार हो जाती हैं वैज्ञानिक प्रगति ने मानव को हजारों सुख सुविधाओं के साधन जुटाए हैं आज हम माता के गर्भ की जांच जिसे एन यू सेंटेंसेस द्वारा बहू की जांच कर यह पता लगा सकते हैं कि उत्पन्न होने वाला शिशु लड़का है या लड़की इस वैज्ञानिक ज्ञान का लोगों ने दुरुपयोग किया तथा यदि वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा देते हैं जो कि एक भ्रूण हत्या की जांच होती है लड़के की चाह में लड़की की हत्या मानवता के माथे पर बहुत बड़ा कलंक है आज के युग में तो लड़का और लड़कियां सभी समान है वास्तव में जो स्थितियां देखने और सुनने में आती हैं उनके अनुरूप तो लड़कों की तुलना में लड़कियां ही माता-पिता के अधिक सेवा करती है तथा विश्वविद्यालयों प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम यह बताते हैं कि योग्यता सूची में लड़कियां लड़कों से आगे ही हैं आज जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियों को दक्षता से कार्य करते हुए देखा जा सकता है इसलिए लोगों को यह भ्रम निकालना होगा कि पुत्र प्राप्ति आवश्यक है तथा उसकी चाह में किसी भी रूप में नारी हत्या हुई है एवं नैतिकता व कानून के विरुद्ध अपराध है नारी हत्या में पुरुष की अपेक्षा स्वयं नारी का योगदान भी कम नहीं होता है वास्तव में देखा जाए तो नारी ही नारी की दुश्मन है अतः सर्वप्रथम तो नारी को ही नारी के विरुद्ध होने वाले अपराधों को रोकने के लिए उठ खड़ा होना पड़ेगा.
पारिवारिक हिंसा के अपराध कर्ताओं की सामान्य विशेषताएं
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा करने वाले अपराधों की प्रमुख विशेषताएं हैं जो कि निम्नलिखित अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुई है वह निम्नलिखित है
वे लोग जो बचपन से हिंसा के शिकार हुए हैं बड़े होने पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करते हैं जो लोग शराब अधिक पीते हैं वह भी महिलाओं के विरुद्ध अधिक अपराध करते हैं जो लोग अपने पारिवारिक जीवन में तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करते हैं वह भी महिलाओं के विरुद्ध अधिक अपराध करते हैं जो लोग शक की प्रभुता चाहने वाले एवं मालिकाना पंवाली प्रकृति के होते हैं वह भी महिलाओं के प्रति हिंसक व्यवहार करते हैं जिन लोगों में व्यक्तित्व संबंधी दोष होते हैं तथा जो मनोरोगी होते हैं वह भी महिलाओं के प्रति हिंसा पूर्ण व्यवहार करते हैं जो व्यक्ति अवसाद ग्रस्त होता है जिसमें हीन भावना होती है तथा जिसमें आत्म सम्मान का भाव होता है वह भी महिलाओं के प्रति हिंसात्मक व्यवहार करते हैं जिन लोगों के पास प्रतिभा साधन एवं दक्षता का अभाव होता है वह भी महिलाओं के प्रति हिंसा का व्यवहार करते हैं.
पारिवारिक हिंसा के प्रमुख कारण
स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता
भारत में स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता पाई जाती है पति पत्नी का भरण पोषण करता है ऐसी स्थिति में उसे पति के अत्याचार सहन करने पड़ते हैं यदि उसे पति घर से निकाल देता है तो वह बेसहारा हो जाएगी एवं जीवन यापन में कठिनाई भी सामने आएगी.
पुरुष प्रधानता
भारत में ही नहीं वरुण विश्व के लगभग सभी समाजों में पुरुषों की प्रधानता पाई जाती है शक्ति का प्रतीक माना जाता है पुरुष अपनी श्रेष्ठ सत्यम पुरुषत्व को स्थापित एवं साबित करने के लिए नारी पर अत्याचार करता है
सामाजिक प्रथाएं
भारत में अनेक रूप प्रथाएं प्रचलित हैं जिनमें बाल विवाह पर्दा प्रथा दहेज प्रथा विधवा पुनर्विवाह का अभाव आदि प्रमुख है इनको प्रथाओं का शिकार महिलाओं को ही होना पड़ता है तथा उससे संबंधित अत्याचार भी महिलाओं को ही सहने में पढ़ते हैं.
महिलाओं के प्रति विद्रोह
कई पुरुषों में महिलाओं के प्रति विद्वेष की भावना भरी होती है जिससे वे उनके प्रति अत्याचार करके शांत करते हैं जिन लोगों को अपने भूतकाल में किसी स्त्री ने तंग किया गया जिसका प्रेमा सफल हो गया होगा संपूर्ण नारी जगत के प्रति बदले की भावना से प्रेरित होकर के कार्यकर्ता है उसके मन में स्त्रियों के प्रति घृणा एवं उत्साह इतनी गहरी बैठ जाती है कि उसके जीवन का उद्देश्य नारी उत्पीड़न हो जाता है तथा वह नारी को अपमानित करने में ही सुख की अनुभूति करता है
अशिक्षा
भारत में स्त्रियों की साक्षरता का प्रतिशत 2001 की जनगणना के अनुसार 54.16 तथा पुरुषों में 75.85 है शिक्षा के अभाव के कारण महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है तथा वे यह भी नहीं जानती हैं कि उनके हितों की रक्षा के लिए कौन-कौन से कानून बने हुए हैं तथा उन पर अत्याचार होने पर उन्हें किन संगठनों की मदद लेनी चाहिए अशिक्षा उन्हें घर की चारदीवारी तक ही कैद करके रख देती है तथा वह अत्याचार सहने के लिए मजबूर हो जाती हैं
अपराधी के प्रति निष्क्रियता
कई बार अपराध की शिकार महिलाएं अपने प्रति किए गए अपराध को बर्दाश्त नहीं करती हैं तथा वे पुलिसिया न्यायालय की शरण में जाने या अन्य लोगों से मदद लेने का प्रेत नहीं करती है ऐसी स्थिति में अपराधी को निरंतर अपराध करने की प्रेरणा मिलती रहती है तथा वह ऐसा करता चला जाता है
पीड़ित द्वारा भड़काना
स्त्रियों का व्यवहार ऐसा होता है जो पति को अत्याचार करने के लिए प्रेरित करता है उदाहरण के लिए यदि कोई स्त्री अपने पति की दूसरों के सामने बुराई करती है वह ऐसे लोगों से बातचीत करती है जिन्हें उसका पति पसंद नहीं करता है पति के परिवार वालों के प्रति दूर व्यवहार करती है घर की ओर ध्यान नहीं देती है किसी पराए मर्द से संबंध रखती है सास ससुर की आज्ञा का पालन नहीं करती है पति के मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप करती है या उस पर शक करती है उसे ताने देती है या अपमानित करती है तो ऐसी स्थिति में पति भड़क जाता है तथा पत्नी के प्रति मारपीट गाली-गलौज दुर्व्यवहार करता है कई बार यह देखा गया है कि जिन महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है वह ऐसी भावनाएं प्रकट कर रही थी कि पुरुष बलात्कार के लिए उत्तेजित हो गया हत्या के मामले में भी यह पाया गया है कि महिला ने बहस के दौरान किसी ऐसी स्थिति पैदा कर दी हत्या के लिए लेट हो गया ले जाने के मामले में लड़कियों ने ऐसा करने के लिए अपनी सहमति दी थी किंतु पकड़े जाने पर पुलिस और माता-पिता के दबाव में आकर उन्होंने पुरुषों पर जबरन भगा ले जाने का आरोप लगा दिया
नशा
शराब पीते हैं या अन्य प्रकार का नशा करते हैं हिंसा एम अत्याचार करते हैं बलात्कार के कई मामलों में यह पाया गया है कि बलात्कारी नशे में धुत था पति शराब पीकर जब घर आता है तथा पत्नी से कहासुनी हो जाती है तब भी वह पत्नी को गाली देने से पीटने का कार्य करता है इसका कारण यह है कि नशे के हालत में व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए कार्यों के परिणामों की जानकारी नहीं होती है जिसके लिए वह होश में आने पर पश्चाताप करता है ऐसा भी देखा गया है कई बार व्यक्ति अपराध करने के लिए सहज उठाने के लिए भी शराब का सेवन करता है.
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