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भारत में दहेज हत्या में क्या सजा का प्रावधान है ? विस्तार से चर्चा करो।

भारतीय दंड संहिता 1860 "दहेज उत्पीड़न हत्या"(indian Penal Code 1860 regarding the appointment of suicide and dowry death of women)

 भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 ( ) के अनुसार (1) जहां विवाह के 7 वर्ष के भीतर स्त्री की मृत्यु जल जाने से या शारीरिक क्षति से या समान परिस्थितियों से भिन्न परिस्थितियों में हो जाती है और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले उसे उसके पति द्वारा या पति के रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिए मांग को लेकर परेशान किया गया था या उसके साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया गया था तो इसे दहेज मृत्यु कहा जाएगा और उसकी मृत्यु का कारण उसके पति या रिश्तेदार को माना जाएगा.


स्पष्टीकरण (explanation): इस धारा के प्रयोजन के लिए “दहेज” से तात्पर्य वही है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 में परिभाषित है.

        (2) जो कोई दहेज मृत्यु कार्य करेगा वह उतनी अवधि तक के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जो 7 वर्ष से कम नहीं होगी लेकिन जो आजीवन कारावास तक हो सकती है.
दहेज मृत्यु की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए 1986 में धारा 304 ( ) भारतीय दंड संहिता में जोड़ी गई है. यह धारा एक नए अपराध का निर्माण करती है.

( 1) श्रीमती शांति बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1991 मैं यह कहा गया कि अभियुक्त गण का मृतक के पिता तथा भाई से दहेज की मांग और शिकायत करना मृतक पत्नी के साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करना मृतक का विवाह के 7 साल के भीतर मर जाना तथा मृतक के माता-पिता को सूचना दिए बिना जल्दबाजी में मृतक का दाह संस्कार कर देना यह सब अप्राकृतिक मृत्यु के संकेत हैं तथा धारा 304 ( ) के अंतर्गत अपराध का गठन करते हैं.

( 2) हेमचंद्र बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1995 sp120 में पत्नी ने गले में फांसी का फंदा लगाकर मृत्यु कार्य कर ली थी यह एक अप्राकृतिक मृत्यु थी जो साक्ष्य पेश किया गया उससे यह स्पष्ट था कि पति द्वारा समय-समय पर दहेज की मांग करते हुए मृतक पत्नी के साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया जाता था. साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 () के अंतर्गत उद्धारणा किए जाने के पर्याप्त सबूत भी मौजूद थे. उच्चतम न्यायालय ने अभियुक्त को धारा 304 खा के अंतर्गत दोषी ठहराया.

( 3). “सरोजिनी बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 1993 एससी 632 में मृतक का शव उसके ससुराल के मकान के स्टोर रूम में पूर्ण रूप से जली हुई अवस्था में पाया गया था. उसकी जीभ आंखें बाहर निकली हुई थी तथा मुंह से खून धीरे-धीरे बह रहा था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मेडिकल रिपोर्ट तथा अन्य परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने इसे हत्या का मामला माना.


          इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 खा के अंतर्गत अपराध का गठन हो जाता है बशर्ते की निम्नलिखित शर्ते पूरी हो.

( 1) किसी विवाहिता की विवाह के 7 वर्ष के भीतर जल जाने से या शारीरिक क्षति से या अन्य सामान परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है

           तो यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से ठीक पूर्व मृतिका को उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा दहेज की मांग को लेकर परेशान किया गया था या उसके साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया गया था.

         इस प्रकार उक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि “दहेज मृत्यु” के अपराध के गठन के लिए दहेज की मांग किया जाना आवश्यक है. मृतक के माता पिता द्वारा केवल यह कहना पर्याप्त है कि दहेज के पीछे मृत का को परेशान किया जाता है. जहां दहेज की मांग का कोई सबूत ना होता था मृत का द्वारा अपने मित्र को लिखे गए पत्रों में भी दहेज का कभी कोई वर्णन किया गया हो वहां दहेज हत्या के अपराध का गठन नहीं होता है.

उदाहरण:
पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा ए आई आर 1998 एस सी 958 में कहा गया है कि दहेज मृत्यु के अपराध के गठन के लिए दहेज की मांग के दहेज का करार होना आवश्यक नहीं है वधू या उसके पिता से निरंतर टीवी और स्कूटर की मांग करते रहना दहेज की परिधि में ही आता है.

लखबीर सिंह बनाम स्टेट आफ पंजाब 1994 एसएससी 173 में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि जहां किसी महिला की मृत्यु जहर खाने से हुई हो वहां उसके पति या सांस को इस धारा के अधीन केवल इस आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है कि पति व सास द्वारा दहेज की मांग की गई थी या उसके साथ उनके द्वारा निर्भरता पूर्वक व्यवहार किया गया था ऐसे मामलों में यह साबित किया जाना आवश्यक है कि विषपान में उनका प्रत्यक्ष हाथ था..

लोक अभियोजक उच्च न्यायालय आंध्र प्रदेश बनाम नसरू 1995 704 एपी में यह कहा गया कि जब एक विशिष्ट रूप से उत्पीड़ित और निर्दयता पूर्वक व्यवहार साबित नहीं कर दिया जाता तब तक किसी मृत्यु को दहेज मिले तो नहीं कहा जा सकता है भले ही मृत्यू विवाह के 7 वर्ष के भीतर ही क्यों ना हुई हो.

आत्महत्या का दुष्परिणाम:
भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के अनुसार जो कोई व्यक्ति आत्महत्या करे तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी डंडे नहीं होगा इस प्रकार आत्महत्या का दुष्प्रेरण करने वाले व्यक्ति की लिए धारा 306 में दंड का प्रावधान किया गया है.

स्टेट ऑफ पंजाब बनाम इकबाल सिंह ए आई आर 1991 एस सी 1532 में निम्नलिखित अवस्थाओं में पत्नी द्वारा की गई आत्महत्या को धारा 306 के अंतर्गत अपराध माना गया है

जहां दहेज को लेकर पति-पत्नी के बीच तनावपूर्ण संबंध रहे हो

पत्नी के साथ दुर्व्यवहार किया जाता रहा हूं
पत्नी ने अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस संरक्षण की मांग की हो
पत्नी पति में विवाह विच्छेद का दस्तावेज निष्पादित कर दिया गया हो परंतु उस पर कार्यवाही ना हो पा रही हो
पति द्वारा मृतका के पिता से दहेज की मांग की गई हो
मृत्यु से पूर्व पत्नी के साथ का के साथ गंभीर रूप से मारपीट की गई हो

पत्नी ने अपना स्थानांतरण अन्य विद्यालय में चाहो तथा पत्नी ने आत्महत्या कर ली हो

कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा ए आई आर 1998 एस सी 958 में पति और उसके माता-पिता द्वारा वधू से निरंतर दहेज की मांग की जाती रही थी उसे टीवी स्कूटर आदि लाने को कहा जाता था वधू द्वारा आत्महत्या किए जाने के 1 दिन पूर्व ही पति पत्नी में झगड़ा हुआ था पति ने पत्नी की बहन से यह साफ-साफ कह दिया था कि अब वह भविष्य में अपना पत्नी का मुंह देखना पसंद नहीं करेगा न्यायालय ने इसे आत्महत्या के दुष्प्रेरण का मामला माना था.

              इस प्रकार धारा 306 पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र अपराध का गठन करती है यह लोक नीति के इस सिद्धांत पर आधारित है कि कोई व्यक्ति किसी के जीवन में हस्तक्षेप ना करें तथा किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए दुश प्रेरित ना करें यही कारण है कि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन नहीं करती है.

          इसके विपरीत कुछ मामले ऐसे भी हैं जिनमें न्यायालय द्वारा धारा 306 के अंतर्गत अपराध का गठन नहीं माना है.

दीपक सोले बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 1994 सियार एलजी 767 एमपी में अभियुक्त द्वारा एक अविवाहित लड़की का शीलभंग किया गया था उस लड़की द्वारा आत्महत्या कर ली गई थी न्यायालय ने इसे आत्महत्या के दुष्प्रेरण का मामला नहीं माना अधिक से अधिक यह शीलभंग का मामला है था.

हालु बनाम स्टेट ऑफ़ मध्य प्रदेश 1994 crg9 एमपी में अभियुक्त द्वारा मृतिका का स्नान करते समय पत्थर फेंका गया इस घटना के अगले दिन व्रत का ने आत्महत्या कर ली इसे आत्महत्या के दुष्परिणाम का मामला नहीं माना गया.

आत्महत्या के दुष्परिणाम तथा दहेज मृत्यु के बारे में उप धारणाएं (prescription about abetment of suicide and dowry death) आज बढ़ती हुई दहेज मृत्यु तथा आत्महत्या के दुष्प्रेरण की घटनाओं को रोकने के लिए साक्ष्य विधि में संशोधन किया गया है.

       साक्ष्य अधिनियम अट्ठारह सौ बहत्तर में धारा 113 का हुआ धारा 113 का जो निम्न प्रकार से वर्णित की गई है
धारा 113 का किसी विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के बारे में उप धारणा: जब यह प्रश्न हो कि क्या किसी स्त्री को आत्महत्या करने के लिए उसके पति या उसके पति के किसी संबंधी ने दुष्ट प्रेरित किया था और यह दिखाया जाए कि उस स्त्री ने अपने विवाह की तारीख से 7 वर्ष के भीतर आत्महत्या की थी और यह कि उसके पति या पति के किसी संबंधी ने उसके साथ निर्भरता का व्यवहार किया है तो मामले की समस्त अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय धारिता कर सकेगा कि ऐसी आत्महत्या के लिए उसके पिता या पति के ऐसे संबंधी ने दुष्ट पारित किया था.

स्पष्टीकरण: इस धारा के उद्देश्यों के लिए निर्दयता का वही अर्थ होगा जो भारतीय दंड संहिता की धारा 498 का में दिया गया है.

धारा 113 ( ख) दहेज मृत्यु के बारे में उप धारणा जब प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज मृत्यु की है और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु के कुछ समय पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की मांग के लिए या उसके संबंध में उसी स्त्री के साथ निर्दयता का व्यवहार किया है या उसको परेशान किया था तो न्यायालय यह उप धारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज मृत्यु कार्य की थी.

स्पष्टीकरण

इस धारा के उद्देश्यों के लिए “दहेज मृत्यु” है जो भारतीय दंड संहिता 1860 की उप धारा 304 (ख) मैं है .

       उक्त वर्णित धाराओं से यह स्पष्ट होता है कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में किसी विवाहित स्त्री द्वारा आत्महत्या किए जाने या उसकी मृत्यु कार्य किए जाने पर यह उप धारणा कर ली जाती है कि उसे आत्महत्या करने के लिए उसके पति या उसके संबंधियों द्वारा दिस प्रेरित किया गया है या किसी व्यक्ति द्वारा उसकी दहेज मृत्यु कार्य की गई है.

आत्महत्या के दुष्प्रेरण के आवश्यक तत्व:

किसी विवाहित स्त्री द्वारा विवाह के 7 वर्ष के भीतर आत्महत्या किया जाना
उसके पति या पति के संबंधियों द्वारा निर्दयता आ का व्यवहार किया जान

इसी प्रकार दहेज मृत्यु की अवधारणा के लिए आवश्यक है कि:

किसी विवाहित स्त्री की मृत्यु कार्य होना
मृत्यु के कुछ समय पूर्व दहेज मृत्यु के आरोप द्वारा दहेज की मांग किया जाना
अमरीका के साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया जाना याद तंग किया जाना

डेट ऑफ हरियाणा ए आई आर 1945 एस सी 120 में पत्नी के गले में फांसी के फंदे से मृत्यु हो जाती है सबूत दिया जाता है कि पत्नी के समय-समय पर दहेज की मांग की जा रही थी तथा पति द्वारा उसके साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया जाता था इसे धारा 113 खा के अधीन उप धारणा का मामला माना गया है.

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