महिला और बालकों के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधान (constitutional provision relating to Welfare of the women and children)
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता और अनुच्छेद 15 में धर्म मूल वंश जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने का मना किया गया है.
अनुच्छेद 14 का कहना है कि (1) राज्य किसी नागरिक के खिलाफ धर्म मूल वंश जाति लिंग जन्म स्थान में से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा. (2) कोई नागरिक केवल धर्म मूल वंश जाति लिंग जन्म स्थान में किसी के आधार पर सार्वजनिक भोजनालय दुकानों होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थान में प्रवेश पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए छोड़े गए कुओं तालाबों स्नान घाटों सड़कों और सार्वजनिक व्यवहार के स्थानों के उपयोग के संबंध में किसी भी योग्यता दायित्व रुकावट या कोई भी शर्त के अधीन नहीं होगा.
इस प्रकार अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 (1) , (2) से यह स्पष्ट होता है कि केवल लिंग के आधार पर उपरोक्त प्रकार का भेदभाव नहीं भरता जाएगा. विधि के समक्ष पुरुष एवं महिलाएं समान होंगी तथा उन्हें विधियों का समान संरक्षण प्राप्त होगा.
( 1). काठी रनिंग बनाम सौराष्ट्र राज्य A.I.R1952 s.c. 123
इसमें भेदभाव का अर्थ स्पष्ट करते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि “विभेद शब्द का तात्पर्य किसी व्यक्ति के साथ दूसरों की तुलना में प्रतिकूल व्यवहार करना है”. यदि कोई विधि धर्म मूल वंश जाति लिंग या जन्म के आधार पर आ समानता का व्यवहार करती है तो वह शून्य होगी.
( 2). श्रीमती ए क्रेक नेल बनाम स्टेट एआईआर 1952 ऑल 746 में
इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया कि किसी महिला को मात्र महिला होने के कारण संपत्ति धारण करने या उसका उपयोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता है. यदि विधि मात्र इस आधार पर संपत्ति से वंचित करने वाली व्यवस्था है तो वह असंवैधानिक मानी जाएगी.
महिलाओं और बालकों के लिए विशेष उपबंध (special provision for women and children)
अनुच्छेद 15 (3) मैं महिलाओं और बालकों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है. इसमें यह कहा गया है कि “कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष प्रावधान करने से नहीं रुकेगी.” आता अनुच्छेद 15 (3) अनुच्छेद 15 (1) अनुच्छेद 15 (2) एक अपवाद पेश करती है. इसके अनुसार राज्य स्त्रियों और उनके लिए विशेष प्रावधान कर सकते हैं. इसे अनुच्छेद 15 के अर्थ में विभेद नहीं माना जाएगा.
इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं और महिलाओं की स्वाभाविक दशा पुरुषों से भिन्न होना माना गया है महिलाओं और बालकों की स्वाभाविक और प्राकृतिक दशा ही ऐसी होती है कि उनके लिए विशेष संरक्षण की आवश्यकता है जब संविधान बना था तब देश में महिलाओं और बालकों की दशा बहुत सोचनीय थी . महिलाएं ना केवल पुरुषों पर आश्रित थी बल्कि बाल विवाह विवाह दहेज आदि कुरीतियों की शिकार थी. अत महिलाओं को इन कुरीतियों से छुटकारा दिलाने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की गई है.
( 1) मूलर बनाम ऑर्गन 12
अमेरिकी न्यायालय द्वारा कहा गया कि “अस्तित्व के संघर्ष में स्त्रियों की शारीरिक बनावट तथा उनके स्त्री जनन कार्य उन्हें दुखद स्थिति में कर देते हैं. अता उनकी शारीरिक कुशलता का संरक्षण जनहित का उद्देश्य हो जाता है जिससे जाती शक्ति और निपुणता को सुरक्षित रखा जा सके यही कारण है कि महिलाओं के लिए कई विशेष विधियां बनाई गई हैं. संविधान के अनुच्छेद 42 में महिलाओं के लिए विशेष प्रसूति सहायता का प्रावधान किया गया है. जो अनुच्छेद 15 (1) का उल्लंघन नहीं है.
( 2) युसूफ अब्दुल अजीज बनाम स्टेट ऑफ़ मुंबई एआईआर 1954 ऐसी 321 में
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 497 को चुनौती दी गई है. धारा 497 के अंतर्गत adultery के लिए केवल पुरुष ही दंडित होता है, स्त्री नहीं. याची द्वारा यह तर्क पेश किया गया की धारा 497 के उपबंध संविधान के अनुच्छेद 15 (1) का उल्लंघन करते हैं क्योंकि जार कर्म के लिए केवल पुरुष को ही दंडित किया जाता है स्त्री को उत्प्रेरक के रूप में भी दंडित नहीं किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि वह भेज केवल लिंग के आधार पर नहीं बल्कि स्त्री की विशेष स्थिति के कारण है.
न्यायालयों ने कई मामलों में महिलाओं के लिए किए गए विशेष उपबंध को संवैधानिक माना है
1. सिविल प्रक्रिया संहिता 1960 के आदेश पांच नियम 15 के अंतर्गत समन की तामील प्रतिवादी को ना मिलने पर उसके परिवार के बालिक पुरुष सदस्य पर की जा सकती है स्त्रियों पर नहीं. स्त्रियों को तमिल से मुक्त रखा गया है.
2. भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 354 के प्रावधान वैद्य है क्योंकि यह स्त्रियों के सतीत्व की रक्षा करते हैं.
3. दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत स्त्रियों का पुरुष से भरण-पोषण पाने का अधिकार वैध है.
संविधान के अंतर्गत बालकों के लिए विशेष उपबंध (special provision for the children under the constitution)
संविधान में बालकों के लिए निम्नलिखित व्यवस्थाएं की गई हैं.
1. संविधान के अनुच्छेद 45 के अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान.
2. अनुच्छेद 39 के अंतर्गत बालकों के शोषण से रक्षा का प्रावधान आदि.
लोक नियोजन में अवसर की समानता (equality of opportunity in public employment) अनुच्छेद 16 में यह कहा गया है कि
1. राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी.
2. राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म मूल वंश जाति लिंग उत्पत्ति जन्म स्थान निवास या इसमें से किसी के आधार पर ना तो कोई नागरिक आयोग होगा और ना उससे भेदभाव किया जाएगा.
उक्त दोनों ही बंधुओं से यह स्पष्ट है कि नियोजन या नियुक्ति के संबंध में मात्र महिला होने के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. नियुक्ति और नियोजन संबंधी ऐसी कोई आयुक्त युक्त शर्त भी आरोपित नहीं की जा सकेगी जो किसी को मात्र महिला होने के आधार पर नियोजन या नियुक्ति से वंचित कर दे. “एयर इंडिया बनाम नरगिस मिर्जा 1981 एससी 1829 मैं एयर इंडिया के उस नियम की वैधानिकता को चुनौती दी गई जिसके अधीन विमान सेवा परिचालकों को 35 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने या उनके प्रथम बार गर्भवती हो जाने पर उन्हें सेवानिवृत्ति करने का प्रावधान था इस नियम को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि यह व्यवस्था पुरुषों पर लागू न होने से अनुच्छेद 14 15 और 16 का उल्लंघन करती है उच्चतम न्यायालय ने इन शर्तों को भेद कारी मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया.
समान कार्य के लिए समान वेतन (equal pay for equal work)
महिलाओं के लिए एक और कल्याणकारी व्यवस्था समान कार्य के लिए समान वेतन की है अब यह सुनिश्चित हो गया है कि समान कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता है. उत्तराखंड महिला कल्याण परिषद बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश ए आई आर 1992 ऐसी 1965 में समान कार्य के लिए पुरुष और महिला शिक्षकों के वेतन में भिन्नता को चुनौती दी गई समान पद पर समान कार्य करने वाले पुरुष शिक्षकों को महिला शिक्षकों से अधिक वेतन दिया जाता था उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक मानते हुए महिला शिक्षकों को भी पुरुष शिक्षकों के समान वेतन दिए जाने के आदेश दिए.
शोषण के विरुद्ध अधिकार (rights against exploitation)
अनुच्छेद 23 और 24 में महिलाओं और बालकों के शोषण के विरुद्ध उपचारों का वर्णन किया गया अनुच्छेद 23 में मानव के दुर्व्यवहार और बलात श्रम को मना करते हुए कहा गया कि मानव का दूर व्यापार और बेकार तथा इसी प्रकार का अन्य बल आश्रम को मना किया जाता है और इस प्रावधान का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा आरोपित करने से मना नहीं करेगी ऐसी सेवा आरोपित करने में राज्य केवल धर्म मूल वंश जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा.
( 1) चंदा बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान आई आर 1959 राज डॉट 186
गांव के प्रधान के आदेश के अनुसार प्रत्येक परिवार के कम से कम एक व्यक्ति को तालाब पर काम करना आवश्यक था इसका उल्लंघन करने वालों के लिए सजा और अर्थ दंड की व्यवस्था थी न्यायालय ने इसे असंवैधानिक मानते हुए कहा कि इसमें व्यक्ति को अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करना पड़ता है तथा इसके लिए पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है अतः यह एक बेकार है.
स्त्रियों और बालकों का अनैतिक व्यापार (immoral traffic of women and children)
भारत में न केवल बेकार बल्कि स्त्रियों और बाली को बालकों का अनैतिक व्यापार भी धनी और सामंती लोगों का फैशन रहा है कोर्ट और कोठियों पर अबोध बालिका और देवदासी यों का नाचना गाना और देख रीडर एक आम बात रही है कभी इसे निर्धनता की आड़ में और चित्र पूर्ण माना गया तो कभी धर्म की आड़ में आज भी निर्धनता और व्यवस्था नारी को देह व्यापार की ओर अग्रसर किए हुए हैं कोठे और वेश्यालय सराय और विश्राम सालों रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड आदि नारी देह व्यापार के अड्डे बने हुए हैं पांच सितारा होटलों में देह व्यापार एक आम बात है अनैतिक व्यापार को रोकने के लिए “ संसद द्वारा 1956 में स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार अधिनियम पारित किया गया था.
कारखानो आदि में बालकों के नियोजन की मनाई (prohibition of employment of children in factories etc) अनुच्छेद 24 में कहा गया है कि 14 वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नहीं लगाया जाएगा बालक का मन कोमल तथा तन कमजोर होता है पुरुषों की बात है उसमें कठोर काम करने की क्षमता नहीं होती है यदि बालकों से कठोर काम या श्रम लिया जाता है तो वह उनके स्वास्थ्य के लिए घातक है इतना ही नहीं इस से बालकों का मानसिक और बौद्धिक विकास भी रुक जाता है अतः बालकों के मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि उनसे कठोर खतरनाक श्रम ना लिए जाएं.
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