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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार भरण पोषण की मांग के आधार (claim of maintenance under the provision of Criminal Procedure Code)

 प्रत्येक समर्थ व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि वह अपनी पत्नी संतान और माता पिता का भरण पोषण करें. यदि वह ऐसा जानबूझकर या लापरवाही से या किसी अन्य उद्देश्य नहीं करता है तो न्यायालय जहां उचित समझे उसको इन भरण पोषण करने का आदेश दे सकता है..


भरण पोषण की मांग कौन कर सकता है? (who can claim maintenance)

पत्नी संतान और माता पिता भरण पोषण की मांग कर सकते हैं. धारा 125 से 128 तब इस संबंध में की गई व्यवस्थाओं का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त साधन हो....

1. पत्नी का जो भरण पोषण करने में असमर्थ है
2. अपनी वैध या अवैध संतान का जो नाबालिक हो चाहे विवाहित हो या नहीं हो जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.
3. अपनी वैद्य या अवैध संतान (जो एक विवाहित पुत्री नहीं है) बालगी प्राप्त कर ली है जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक क्षमता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.

4. अपने माता-पिता का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं भरण पोषण करने में लापरवाही या भरण पोषण करने से इनकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी लापरवाही का इनकार के साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को या निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान माता पिता के भरण-पोषण के लिए कुल मिलाकर ₹500 से अधिक ना हो कि ऐसी मासिक दर पर इसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे मासिक भत्ता दे और उस भत्ते को ऐसे व्यक्ति को प्रदान करें जिसको प्रदान करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे सकें.

किंतु मजिस्ट्रेट खंड (ख) मैं निर्दिष्ट नाबालिग पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा बता दे जब तक वह बालिग नहीं हो जाती यदि मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाता है कि ऐसी नाबालिग पुत्री के यदि वह विवाहित हो पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है.

Minor. नाबालिग व्यक्ति का अभिप्राय उस व्यक्ति से हैं जिसने भारतीय वयस्क ता अधिनियम 1875 के अधीन वयस्कता प्राप्त नहीं की है. परंतु इस संबंध में मद्रास उच्च न्यायालय ने अपना यह मत व्यक्त किया है कि भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने के लिए संतान के  बालिका या नाबालिक होने का प्रश्न नहीं है. वास्तविक प्रश्न यह है कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हूं अतः इस धारा के अंतर्गत आयु की कोई रुकावट नहीं है.


पत्नी

पत्नी के अंतर्गत ऐसी स्त्री भी आती है जिसके पति ने उसे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है जोहरा खातून बनाम मोहम्मद इब्राहिम (1981 ) मैं यह निर्धारित किया गया कि जब किसी स्त्री द्वारा विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने के लिए न्यायालय में वाद पेश किया जाए तो मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के अधीन हो तो वह स्त्री स्वता ही पत्नी की परिभाषा के अंतर्गत आ जाती है.

भरण पोषण का भुगतान करने में असफलता (failure to pay money for maintenance)


125 (3) धारा यदि कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त कारणों के द्वारा मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश का पालन नहीं करता है तो मजिस्ट्रेट एक वारंट जारी कर सकेगा और उसे 1 माह तक के लिए यदि वह इससे पहले ही भरण पोषण की रकम का भुगतान कर दे तो भुगतान की तारीख तक के लिए कारावास से दंडित कर सकेगा . यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अपने पास रखने का प्रस्ताव रखे तो न्यायालय उस पर विचार करेगा. किंतु यदि पति किसी अन्य स्त्री से विवाह की संविदा करता है या किसी दूसरी स्त्री को पत्नी बनाकर रखता है तो ऐसी अवस्था में पत्नी उसके साथ रहने से मना कर सकती है और न्यायालय से अपने भरण-पोषण के लिए पति द्वारा मासिक भत्ता पाने के लिए प्रार्थना कर सकती है यह व्यवस्था मुसलमानों पर लागू होती है. यदि पति और पत्नी के विरुद्ध पवित्रता का आरोप लगाता है तो मिथ्या या जानबूझकर लगाया गया हो तो पत्नी उसके निवास स्थान पर जाने से इंकार कर सकती है. इस प्रकार का दोषारोपण ऐसी कानूनी क्रूरता (legal cruelty) के अंतर्गत माना जाएगा जिसके आधार पर पत्नी अपने पति से अलग रहने की अधिकारी होने के साथ-साथ भरण पोषण का मांग कर सकती है. पत्नी अपने उचित दांपत्य जीवन को छोड़कर जा रा ता (adultery) मैं लगी हो तो उसके भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता मांगने का कोई अधिकार नहीं है.

एडल्ट्री का अर्थ इस धारा में तब ही प्रयोग होगा जब स्त्री अपनी नैतिकता से गिरकर चरित्र पतन वाला कोई कार्य करती हो पति से अलग रहना या अपने ससुर के पास रहना चरित्र हनन के दोषारोपण के लिए पर्याप्त नहीं है.

      बिना पर्याप्त और युक्तिसंगत कारणों के पति के साथ रहने से मना कर दे


       अपने पति से पारस्परिक सहमति के आधार पर अलग हो जाए तो वह भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने की अधिकारी नहीं होगी यदि मजिस्ट्रेट को यह पता लगे कि पत्नी के भरण-पोषण के लिए पत्ता देने के जो आदेश दिए गए हैं वह स्त्री उपरोक्त में से किसी भी श्रेणी में आती है तो वे उस आदेश को रद्द कर देगा.

भरण पोषण पानी की प्रक्रिया (prosecutor for receiving maintenance)


भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता पाने के लिए न्यायालय के आदेश जारी कराने की प्रक्रिया धारा 126 में निम्न प्रकार वर्णित है


किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के अंतर्गत कार्यवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है

         जहां वह व्यक्ति है
         जहां वह व्यक्ति या उसकी पत्नी निवास करती है
जहां उसने अंतिम बार अपनी पत्नी या अवैध संतान की माता के साथ निवास किया है.


2. ऐसी कार्यवाही में समस्त साक्ष्य ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में जिसके विरुद्ध भरण पोषण का आदेश देने का प्रस्ताव है अथवा जब उसको व्यक्तिगत हाजिरी से मुक्ति दे दी गई है तब उसके अधिवक्ता की उपस्थिति में लिया जाएगा और उस रीति से लिखित किया जाएगा जो संबंध मामलों के लिए होती है.

          किंतु यदि मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाएगी ऐसा व्यक्ति जिसके विरुद्ध भरण पोषण देने के आदेश का प्रस्ताव है तामील से जानबूझकर बच रहा है या न्यायालय में हाजिर होने में जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है तो मजिस्ट्रेट मामले को 125 सुनने की अवधारणा करने के लिए अग्रसर हो सकता है और ऐसा दिया गया कोई आदेश उसकी तारीख से 3 माह के अंदर किए गए आवेदन पर दर्शिता अच्छे कारण से ऐसी शर्तों के अधीन जिसके अंतर्गत विरोधी पक्ष को खर्चे के देने के बारे में ऐसी शर्ते भी हैं जो मजिस्ट्रेट ने आयोजित और उचित समझे किया जा सकता है.

3. धारा 125 के अंतर्गत आवेदनों पर कार्रवाई करने में न्यायालय को शक्ति होती है कि वह खर्चों के बारे में ऐसा आदेश दे जो न्याय संगत हो.

भक्ति में परिवर्तन (alteration in allowance) धारा 127 के अनुसार

1. धारा 125 के अधीन मासिक भत्ता देने के लिए उसी धारा के अधीन किसी व्यक्ति की परिस्थितियों में परिवर्तन हो जाने पर मजिस्ट्रेट भत्ते में ऐसा परिवर्तन कर सकता है जो वह उचित समझे परंतु यदि व भत्ते में वृद्धि करता है तो वह रकम कुल मिलाकर ₹500 मासिक की दर से अधिक नहीं होगी.

2. जहां मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि धारा 125 के अधीन दिया गया कोई आदेश किसी सक्षम दीवानी न्यायालय के किसी फैसले के फल स्वरुप रख दिया बदल दिया जाना चाहिए तो वह वहां उस आदेश को तदनुसार रद्द कर देगा या बदल देगा.

3. धारा 125 के अंतर्गत कोई आदेश ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया गया है कि जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है वहां यदि मजिस्ट्रेट को समाधान हो जाता है कि.....

1. उस स्त्री ने ऐसे विवाह विच्छेद की तारीख के बाद दोबारा विवाह कर लिया तो ऐसे आदेश को उसके पुनर्विवाह की तारीख से रद्द कर देगा.

2. उस स्त्री के पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है और उस स्त्री ने उक्त आदेश के पहले या बाद में वह पूर्ण धनराशि प्राप्त कर ली है जो पक्षों पर लागू होने वाली किसी प्रथा गत या व्यक्तिगत विधि के अधीन ऐसे विवाह विच्छेद पर दी थी तो वह आदेश को

        उस दशा में जिस में ऐसी धनराशि ऐसे आदेश के पूर्व में दी गई थी उस आदेश के दिए जाने की तारीख से भत्ता रद्द कर देगा.

           किसी अन्य अवस्था में उस अवधि को यदि कोई हो जिसके लिए पति द्वारा स्त्री को वास्तव में भरण पोषण दिया गया है समाप्ति की तारीख से रद्द कर देगा.

        उस स्त्री ने अपने पति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लिया है और उससे अपने विवाह विच्छेद के बाद अपने भरण-पोषण के अधिकारों को स्वेच्छा से त्याग कर दिया था तो वह आदेश को उस तारीख से रद्द कर देगा.

       किसी भरा पोषण या दहेज की किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसने धारा 125 के अधीन कोई मासिक भत्ता देने का आदेश दिया गया है वसूली के लिए टिकरी करने के समय दीवानी न्यायालय उस राशि की भी गाना करेगा जो एशिया देश के अनुसरण में मासिक भत्ते के रूप में उस व्यक्ति को दी जा चुकी है या उस व्यक्ति द्वारा वसूल की जा चुकी है.


भरण पोषण के आदेश को लागू कराना (enforcement of maintenance order)


धारा 128 के अनुसार भरण पोषण के आदेश की प्रति उस व्यक्ति को जिसके पक्ष में वह दिया गया है या उसके संरक्षक को यदि कोई हो या उस व्यक्ति को जिसे भत्ता दिया जाना है निशुल्क दी जाएगी और ऐसे आदेश को लागू किसी ऐसे स्थान में जहां व्यक्ति है जिसके खिलाफ यह आदेश दिया गया था किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षों की पहचान के बारे में और देखते ना दिए जाने के बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट के समाधान हो जाने पर किया जा सकता है.

कोई पत्नी अपने पति से भत्ता प्राप्त करने की हकदार कब नहीं होगी? (when is a wife not entitled to receive an allowance from her husband)


1 जब पर पुरुष के साथ संबंध कर रही हो  कर रही हो

2. जब वह बिना किसी उचित कारण के अपने पति के साथ रहने से इंकार करती हो
3. जब पति-पत्नी आपसी सहमति से एक दूसरे से अलग रह रहा हो.

क्या पत्नी एक दफा किसी दूसरे से संभोग कर ले तो मैं भरण पोषण से वंचित हो जाएगी (is single act of adultery is sufficient to the debardr her from obtaining maintenance from her husban d)पत्नी केवल एक बार किसी दूसरे व्यक्ति से संभोग के कारण अपने भरण-पोषण के अधिकार को नहीं होती थी और ना ही किसी पुरुष के साथ मित्रता को उसके साथ संबंध माना जा सकता है (महबूबा बीबी बनाम नासिर फरीद 1977cr.L.J 391) आता पति और पत्नी के चाल चलन पर संदेह के आधार पर भरण पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता है भरण पोषण के अधिकार से पत्नी तभी वंचित की जा सकती है जब वह दूसरों के साथ संबंध की दशा में निरंतर रह रही हो अन्यथा नहीं.



मुस्लिम स्त्री तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1986 का प्रभाव शाह बानो बेगम के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद का अंत मुस्लिम स्त्री तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1986 द्वारा किया गया इस अधिनियम के पारित होने से अब

पत्नी केवल इद्दत की अवधि तक ही अपने पूर्व पति से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है

दत्त के बाद वह अपने ऐसे रिश्तेदारों से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी जो मुस्लिम विधि के अनुसार उसकी संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करेंगे

यदि ऐसे रिश्तेदार भरण पोषण देने में असमर्थ हैं तो वह संबंधित राज्य के वक्फ बोर्ड से भरण पोषण प्राप्त करेगी.

मैहर की बकाया राशि तथा अपने रिश्तेदारों से प्राप्त होने वाली संपत्ति को पाने की हकदार होगी.

यदि दोनों पक्ष कार संहिता की धारा 125 से 128 तक के प्रावधानों के अंतर्गत कार्यवाही के इच्छुक हैं तो वह इस आशय का शपथ पत्र या घोषणा पत्र न्यायालय में पेश कर सकते हैं अतः एक मुस्लिम स्त्री तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1986 पारित हो जाने के बाद अब तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी अपने पति से इज्जत की अवधि को छोड़कर भरण पोषण पानी के अंदर नहीं है.

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