औद्योगिक विवाद कब व्यक्तिगत विवाद बन जाता है और व्यक्तिगत विवाद कब औद्योगिक विवाद बन जाता है: Industrial dispute and an individual dispute becomes an industrial dispute
Industrial disputes: औद्योगिक विवाद
औद्योगिक विवाद से तात्पर्य ओजुको और नियोजक ओं के बीच कर्मचारियों और कर्मचारियों के बीच आयोजकों और कर्मचारियों के बीच ऐसे विवाद या मध्य से है जो किसी व्यक्ति के नियोजन या नियोजन या नियोजन की शर्तों या श्रम की शर्तों से संबंधित है.
औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2 (ठ) के अनुसार औद्योगिक विवाद से तात्पर्य ऐसे विवाद से है जो -
( 1) नियोजक और कर्मचारियों के मध्य
( 2) नियोजक और नियोजक के बीच में
( 3) कर्मचारियों और कर्मचारियों के बीच में हो तथा ऐसे विवाद का संबंध
)) सेवा और नियोजन
)) बेकारी
)) नियोजन की शर्तें
)) श्रम की शर्तें
Standard coal Company Limited versus SP Verma and others:
के मामले में औद्योगिक विवाद के बारे में यह निर्धारित किया गया कि आवश्यक नहीं है कि औद्योगिक विवाद का आरंभ किसी समस्या को दूर करने की मांग को मालिक द्वारा ठुकराए जाने से है.
कल्याणी प्रेस बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश के बाद में यह कहा गया कि विवाद किसी व्यक्तिगत श्रमिक तथा अव्यवस्थाओं के बीच आरंभ हो सकता है परंतु जब इस विवाद के निपटारे के लिए श्रमिकों की यूनियन श्रमिक की ओर से पैरवी करने लगती है तो विवाद व्यक्तिगत विवाद में रहकर औद्योगिक विवाद का रूप धारण कर लेता है.
मैसर्स नाथ बिहार शुगर मिल्स लिमिटेड बनाम बिहार राज्य और अन्य संयोजक और कर्मचारी के बीच वह विवाद जो कर्मचारी के नियोजक के संबंध है अधिनियम की धारा 2 ( ट) की परिधि के भीतर आता है एक औद्योगिक विवाद आधारा टू का के अनुसार कोई नियोजक किसी कर्मचारी को नौकरी से निकाल देता है तो इस प्रकार का विवाद औद्योगिक विवाद समझा जाएगा प्रस्तुत मामले में कर्मकार को चीनी मिल की स्थाई सेवा से हटाया गया था अतः इसे औद्योगिक विवाद माना गया है.
औद्योगिक विवाद से निम्नलिखित मुख्य तीन अंग है -
( 1) विवाद या मतभेद का होना
( 2) दीवार या मतभेद नियोजक व नियोजक के बीच या नियोजक व श्रमिक के बीच या श्रमिक व श्रमिक के बीच में होना.
( 3) विवाद या मतभेद का संबंध रोजगार या बेरोजगारी रोजगार की सरते श्रमिक या अन्य व्यक्ति के काम की दशा से होना विवाद सामूहिक रूप से होना चाहिए चाहे प्रारंभ में किसी व्यक्ति विशेष द्वारा ही उठाया गया हो व्यक्तिगत प्रकृति का झगड़ा औद्योगिक विवाद नहीं माना जाएगा.
नियोजक एवं श्रमिक के बीच यदि कोई व्यक्तिगत विवाद उत्पन्न होता है तो उसे औद्योगिक विवाद नहीं माना जाएगा किंतु यदि इस व्यक्तिगत विवाद का समर्थन श्रम संघ या अन्य श्रमिकों द्वारा किया जाता है तो इस प्रकार ऐसी दशा में यह विवाद औद्योगिक विवाद कहलाएगा.
हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड द्वारा नियोजित कर्मकार बनाम हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनेता रित किया कि किसी श्रेणी में कर्म कार्य स्थिति में लगे हुए कर्मचारी द्वारा अपनी उन्नति मांग करना औद्योगिक विवाद की कोटि में आता है यह मांग प्रोन्नति के लिए मांग नहीं है और अधिकरण के न्याय निर्णय की परिधि के भीतर है.
किसी औद्योगिक विवाद के उत्पन्न किए जाने से पूर्व इस बात को सिद्ध किया जाना आवश्यक है कि नागरिकों द्वारा कर्मचारियों के बीच पारस्परिक सहयोग का संबंध प्रतिस्थापित किया जिसके नियोजक तो एक व्यापार या कारोबार का अनुमान कर रहे हैं और कर्मकार गण किसी उपजीविका से वाया नियोजन आदि का अनुगमन यूजिकों के उपकरण की सहायता से कर रहे थे यह आवश्यक नहीं है कि उस उपक्रम में लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य किंतु उपक्रम को आवश्यक की वाणी के अर्थ में एक व्यापार का कारोबार के सदस्य होना चाहिए किसी विवाद को औद्योगिक विवाद कहे जाने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें प्रबंधकों से कोई मांग की गई हो और वह मांग उसके द्वारा अस्वीकृत कर दी गई हो।
औद्योगिक विवाद की परिभाषा केवल नियोजक और कर्म कारों के बहुमत का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियन तक ही सीमित नहीं है वरुण यूनियन ऐसी भी हो जो बहुमत का प्रतिनिधित्व नहीं करती है क्योंकि औद्योगिक विवाद को मात्र कर्मकार और नियोजक के बीच विवाद होना आवश्यक है.
कब एक व्यक्तिगत विवाद औद्योगिक विवाद बन जाता है? - औद्योगिक अधिनियम की धारा 2 ( क) से यह स्पष्ट है कि मात्र एक व्यक्ति से संबंधित विवाद भी औद्योगिक विवाद हो सकता है मथुरा इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ यूपी 1960 द्वितीय एलएलजे 233 में उच्चतम न्यायालय ने इस विवाद पर व्यापक प्रकाश डाला है इसके अनुसार एक ही कर्मचारी की सेवा भी मुक्ति से संबंधित विभाग का रिफरेंस धारा 2 (क) के लागू होने के पूर्व सेवा विमुक्त की गई है और विवाद उठाया गया था कर्मचारी यूनियन का सदस्य था अता यूनियन तथा अधिकांश कर्मचारियों ने मामले को उठाया तथ्यों के आधार पर यह विवाद को औद्योगिक विवाद माना गया ना कि व्यक्तिगत विवाद सर्वप्रथम स्वदेशी कॉटन मिल्स लिमिटेड बनाम उनके कर्मचारियों के मामले में यह ज्ञात हुआ कि व्यक्ति भी औद्योगिक विवाद उठा सकता है उच्चतम न्याया न्यूज़ पेपर लिमिटेड बनाम ट्रिब्यूनल यूपी और अन्यलय ने न्यूज़ से इससे संबंधित विवाद को समाप्त करते हुए यह निर्णय किया कि नियोजक और अकेले श्रमिक के बीच उठा विवाद औद्योगिक विवाद की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है लेकिन यदि किसी कर्मचारी के हित के संबंध में कर्मचारियों का एक वर्ग विवाद उठाता है तो वे औद्योगिक विवाद माना जाएगा किसी एक व्यक्ति के विषय में कर्मचारी संघ द्वारा यह कुछ कर्मचारियों द्वारा उठाया गया बाद निश्चित रूप से औद्योगिक विवाद होगा.
किसी गैर रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन द्वारा समर्थित विवाद भी औद्योगिक विवाद हो सकता है बशर्ते कि यूनियन उसी नियोजक और उद्योग से संबंधित हो जिससे कि वह कर्मचारी जिसके बारे में विवाद उठा है किसी व्यक्तिगत विवाद को औद्योगिक विवाद मारने के लिए कर्मचारियों द्वारा उसके समर्थन में प्रस्ताव पारित किया जाना आवश्यक नहीं है परंतु यदि संख्या कर्मचारियों द्वारा व्यक्तिगत विवाद के समर्थन में किसी ना किसी प्रकार से उनकी सामूहिक इच्छा की अभिव्यक्ति का होना आवश्यक है ऐसा समर्थन प्राप्त होने के बाद जब कभी किसी व्यक्तिगत विवाद को संदर्भित कर दिया जाता है और ऐसे भी संदर्भ के बाद कर्मकार गण अपना समर्थन वापस ले लेते हैं तो उसके बाद भी वह विवाद औद्योगिक विवाद कहा जाएगा.
भारत में औद्योगिक विवाद विधायन का इतिहास: History of the industrial dispute regulation in India
भारतवर्ष में प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए ऐसा कोई भी अधिनियम या कानून नहीं था जिससे कि मालिकों और कर्मचारियों के मध्य उठे झगड़ों का निपटारा किया जा सके केवल एक ही अधिनियम था जो कि मालिकों तथा कर्मचारियों के विवाद अधिनियम 1860 चलाता था इसमें एक विधेयक का प्रारूप बनाया गया जो आगे चलकर श्रमिक विवाद अधिनियम 1929 के नया सन 1934 में एक नया अधिनियम पारित किया गया जो श्रमिक विवाद अधिनियम 1934 कहां गया.
श्रमिक विवाद अधिनियम 1929 को केंद्रीय सरकार ने 1938 में 11वीं संशोधन द्वारा संशोधित किया तथा संबंधित सरकारों को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह समझौता अधिकारियों की नियुक्ति कर सकेगी जिसका कार्य तथा कर्तव्य व्यापार संबंधी विवाद में मध्यस्था करना तथा उन्हें समाप्त करना होगा व्यापार विवादों से संबंधित विधि में सन 1942 तक कोई भी परिवर्तन नहीं किया गया अगस्त 1942 में भारत सरकार ने एक अधिसूचना द्वारा हड़ताल और ताला बंदियों को रोकने के लिए युद्ध काल में भारत प्रतिरक्षा नियम में नियम 81a जोड़ दिया अगस्त 1942 में आदेश जारी किया गया है जिसमें बिना 14 दिनों की पूर्व सूचना के हड़ताल और ताला बंदी का निषेध किया गया.
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 जिसका परिवर्तन एक अप्रैल 1947 से हुआ भारतीय प्रतिरक्षा नियम के मुख्य लक्षणों का विवेचन करता है इसने दो संस्थाओं का प्रवर्तन किया जो कि मालिकों तथा कर्मचारियों के प्रतिनिधियों से रचित मालिक मजदूर समिति तथा औद्योगिक न्यायाधिकरण के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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