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भारत में मुकदमे और अपील दाखिल करने की तय समय सीमा क्या है? जानिए Limitation Period, उसकी कानूनी आधार, उदाहरण और महत्वपूर्ण केस लॉ के साथ।

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Patan Jamal Vali v. State of Andhra Pradesh, Supreme Court, 2021 को विस्तार से जानकारी दो?

  Patan Jamal Vali v. State of Andhra Pradesh, Supreme Court, 2021   📖 सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: Patan Jamal Vali बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2021) भूमिका भारत में न्यायालयों के फैसले केवल एक केस को निपटाने के लिए नहीं होते, बल्कि वे समाज को एक दिशा और कानून को एक नई व्याख्या भी देते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला Patan Jamal Vali v. State of Andhra Pradesh (2021) ऐसा ही एक ऐतिहासिक निर्णय है। इस केस में न केवल रेप अपराध की गंभीरता पर चर्चा हुई, बल्कि यह भी बताया गया कि किस तरह जाति (Caste), लिंग (Gender) और दिव्यांगता (Disability) एक साथ मिलकर किसी महिला पर अत्याचार को और गंभीर बना सकते हैं। केस के तथ्य (Factual Background) पीड़िता (PW2) एक दृष्टिहीन (Blind) युवती थी, जो अपनी मां और भाइयों के साथ रहती थी। अभियुक्त (Patan Jamal Vali) उसी गांव का रहने वाला था और अक्सर पीड़िता के घर आता-जाता था। 31 मार्च 2011 की सुबह, जब पीड़िता की मां बाहर थी और भाई लकड़ी काट रहे थे, अभियुक्त ने घर में घुसकर दरवाज़ा बंद कर दिया और पीड़िता के साथ बलात्कार किया। शोर सुनकर ...

दीनानाथ सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के 2025 के महत्वपूर्ण न्यायालय

इस ब्लॉग पोस्ट में दीनानाथ सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के 2025 के महत्वपूर्ण न्यायालय फ़ैसले को सरल हिंदी में बताया जा रहा है, जिसमें सभी मुख्य केस लॉ (उदाहरण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले) और मूल अधिकार के बिंदुओं का उल्लेख किया गया है ताकि आम आदमी भी इस कानूनी प्रक्रिया को आसानी से समझ सके। शीर्षक: "समय-सीमा और अपील का अधिकार: न्यायालय के आदेश का सरल विश्लेषण"🧑‍🎓 भूमिका क्या होता है जब किसी सरकारी अपीलीय अदालत में कोई अपील तय समय-सीमा (limitation period) के बाद दायर की जाती है? क्या अदालत उस अपील को सुन सकती है, या अपील पूरी तरह अमान्य हो जाती है? इसी सवाल का जवाब देती है – "दीनानाथ सिंह व अन्य बनाम राज्य उत्तर प्रदेश एवं अन्य" केस की निर्णायक जजमेंट।   केस की पृष्ठभूमि 🦸‍♂️ दीनानाथ सिंह के पिता ने विवादित ज़मीन के सीमांकन के लिए उपजिलाधिकारी के समक्ष 1 सितम्बर 2017 को आवेदन किया।   🦸‍♂️उक्त आदेश के खिलाफ विरोधी पक्ष ने बिना नोटिस के पारित आदेश को चुनौती दी, लेकिन रिकॉल अर्जी खारिज हो गई। 🦸‍♂️  आगे चलकर उपजिलाधिकारी ने सीमांकन आदेश पारित किया, जिसे विर...

क्या पुलिस आपकी WhatsApp चैट पढ़ सकती है?

  WhatsApp और आपके अधिकार (भारत में) ✍️ Drafting Structure (Blog Outline) 👉 इस ब्लॉग को 7 हिस्सों में बांटा जा सकता है – Introduction (परिचय) – WhatsApp आज हर किसी की जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन लोग अक्सर डरते हैं कि पुलिस कभी भी उनकी चैट पढ़ सकती है। हकीकत क्या है? °WhatsApp Encryption और आपकी प्राइवेसी °पुलिस को WhatsApp से क्या मिल सकता है और क्या नहीं? °पुलिस WhatsApp चैट तक कैसे पहुँच सकती है? (प्रक्रिया) ° बिना वॉरंट क्या पुलिस चैट पढ़ सकती है? ° WhatsApp चैट सबूत के रूप में – कानून और केस लॉ ° Practical Tips – आम नागरिक को क्या करना चाहिए? Conclusion (निष्कर्ष) 📖 ब्लॉग पोस्ट आसान भाषा में 1️⃣ परिचय आज हर भारतीय WhatsApp का इस्तेमाल करता है – बात करने, फोटो/वीडियो भेजने, यहां तक कि बिज़नेस और ऑफिस वर्क में भी। लेकिन अक्सर खबरें आती हैं कि “पुलिस ने WhatsApp चैट जब्त की” या “कोर्ट में WhatsApp चैट पेश हुई।” ऐसे में सवाल उठता है – क्या पुलिस आपकी WhatsApp चैट सीधे पढ़ सकती है? आपके अधिकार क्या हैं? और कोर्ट में WhatsApp चैट की क्या वैल्यू है? 2️⃣ WhatsApp Encryptio...

AIBE में फेल होने पर डिग्री पर क्या असर पड़ता है, और इससे जुड़े महत्वपूर्ण सवाल?

 Supplementary Pending रहते हुए AIBE देने के फायदे और नुकसान 📌 परिचय  AIBE (All India Bar Examination) 🏛हर विधि स्नातक (Law Graduate) के लिए एक अनिवार्य परीक्षा है, जिसे पास करने के बाद ही Bar Council of India (BCI) द्वारा Certificate of Practice (COP) जारी किया जाता है। कई छात्रों के मन में यह सवाल आता है कि अगर उनके supplementary/backlog pending हैं, तो क्या वे AIBE दे सकते हैं? आइए इस पूरे मुद्दे को step-by-step समझते हैं। 1. AIBE Form भरना वर्तमान नियमों के अनुसार Final Year Law Students भी AIBE के लिए रजिस्टर कर सकते हैं। यदि किसी छात्र के पास backlog/supplementary है, तो उसे AIBE फॉर्म भरते समय affidavit/undertaking देनी होगी कि वह अपनी degree backlog-free करेगा। 👉 उदाहरण: राहुल ने LLB की final semester परीक्षा दी, लेकिन उसका एक subject में supplementary आ गया। उसने फिर भी AIBE के लिए फॉर्म भरा और affidavit दिया कि वह जल्द ही बैकलॉग clear कर देगा। 2. AIBE Exam देना आप AIBE परीक्षा दे सकते हैं और परिणाम भी घोषित होगा। लेकिन यह परिणाम provisional (अस्थायी) म...

IPC की धारा 371 और BNS की धारा 145: दासता और मानव तस्करी के खिलाफ सख्त कानून

IPC की धारा 371: दासों का आदतन लेन-देन भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 371 का उद्देश्य मानवाधिकारों की रक्षा करना और समाज में दासता जैसी अमानवीय प्रथाओं को समाप्त करना है। यह धारा उन अपराधियों पर लागू होती है जो दासों के आयात, निर्यात, स्थानांतरण, क्रय, विक्रय, तस्करी या सौदे जैसे कार्यों में आदतन संलग्न रहते हैं। इस धारा के अनुसार, जो व्यक्ति दासों के व्यापार का अभ्यास करता है, उसे आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त, उसे अधिकतम पांच वर्षों के कारावास और जुर्माने का भी प्रावधान है। धारा 371 का उद्देश्य और महत्व धारा 371 का मुख्य उद्देश्य समाज से दासता की प्रथा को समाप्त करना है। भारत में, विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान, दासता और मानव व्यापार आम थे। स्वतंत्रता के बाद, संविधान ने हर व्यक्ति को स्वतंत्रता और गरिमा का अधिकार प्रदान किया। IPC की धारा 371 उन लोगों को कठोर दंड देती है जो इन मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। उदाहरण के माध्यम से समझें उदाहरण 1: रमेश नाम का व्यक्ति विदेशी देशों से लोगों को गैरकानूनी रूप से भारत में लाता है और उन्हें बंध...

warrant recall क्या होता है ?

वॉरंट रीकाॅल warrant recall: वारंट रीकॉल से तात्पर्य है अपने खिलाफ कोर्ट द्वारा जारी किया गया गिरफ्तारी के आदेश को रद्द कराने की प्रक्रिया को warrant recall कहते हैं।         इसको हम आसान शब्दों में समझते हैं जब किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालत द्वारा गिरफ्तारी का वारंट (Arrest warrant जारी किया जाता है, और बाद में वह व्यक्ति व्यक्ति अदालत में  हाजिर होकर यह निवेदन करता है कि उसे गिरफ्तार न किया जाये और वारंट को वापस ले लिया जाये। तो इस सम्पूर्ण process को warrant recall कहा जाता है।                      'भारतीय दण्ड संहिता की धारा 70 के अनुसार - न्यायालय द्वारा जारी किया गया warrant लिखित रूप में ऐसे पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की मुहर लगी होगी। और यह Warrant जब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा उसे रद्द नही किया जाता है या जब तक वह निष्पादित नहीं कर दिया जाता है।        जब किसी अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाता है,...