सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 2(2) में डिक्री की परिभाषा और इसके विभिन्न पहलू:→ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के अंतर्गत दी गई धारा 2(2) डिक्री को परिभाषित करती है। डिक्री का अर्थ है न्यायालय के निर्णय की वह औपचारिक अभिव्यक्ति, जो किसी मुकदमे में विवादित विषयों के संबंध में पक्षकारों के अधिकारों का अंतिम निश्चय करती है। यह निर्णय प्रारंभिक (preliminary) या अंतिम (final) हो सकता है। सरल शब्दों में, डिक्री वह आधिकारिक दस्तावेज़ है जिसमें कोर्ट यह तय करता है कि पक्षकारों के बीच के विवादित मुद्दों पर क्या निर्णय लिया गया है। डिक्री के महत्वपूर्ण तत्व:→ 1. अधिकारों का निर्धारण: → डिक्री के माध्यम से न्यायालय पक्षकारों के अधिकारों और दायित्वों का निश्चय करता है। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक पक्ष (A) ने दूसरे पक्ष (B) पर संपत्ति के अधिकार का दावा किया है। न्यायालय का जो भी निर्णय होगा, वह इस विवादित अधिकार का निश्चय करेगा और इसे डिक्री के रूप में जारी करेगा। 2. सभी या कुछ विवादित मुद्दों पर निर्णय: → एक डिक्री में वाद के सभी या कुछ विवादित मुद्दों पर निर्णय ह
Legal4Helps
this blog is related LLB LAWS ACTS educational and knowledegeble amendments CRPC,IPC acts.