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cheque बाउंस क्या होता है? इससे संबंधित नोटिस की drafting कैसे करते हैं?

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warrant recall application की drafting कैसे करते हैं?

NBW (Non-Bailable Warrant) और BW (Bailable Warrant) , भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में दो प्रकार के वारंट होते हैं, जो अदालत द्वारा अभियुक्त को प्रस्तुत करने के लिए जारी किए जाते हैं। 1. NBW (Non-Bailable Warrant):- NBW का अर्थ होता है गैर-जमानती वारंट। जब अदालत को यह लगता है कि अभियुक्त या प्रतिवादी न्यायालय में उपस्थित नहीं हो रहा है या उसकी गिरफ्तारी आवश्यक है, तो यह वारंट जारी किया जाता है। इसे जारी होने पर अभियुक्त को जमानत का अधिकार नहीं होता, और उसे पुलिस द्वारा तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाता है।  उदाहरण:- यदि किसी आरोपी को अदालत ने एक निश्चित तारीख पर पेश होने का आदेश दिया था, लेकिन वह कई बार अनुपस्थित रहा और कोई सही कारण भी नहीं दिया, तो अदालत NBW जारी कर सकती है। पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करके न्यायालय में पेश करेगी।  2.BW (Bailable Warrant) BW का अर्थ होता है जमानती वारंट। जब अदालत आरोपी को बुलाने के लिए कम गंभीर तरीके से उसे समन भेजना चाहती है, तो यह वारंट जारी किया जाता है। इस प्रकार के वारंट में आरोपी को जमानत मिल सकती है, और गिरफ्तारी के बाद वह जमानत के रूप में एक निश

हाजिरी माफी प्रार्थना पत्र क्या होता है विस्तृत लेख, प्रक्रिया और उदाहरण सहित बताओ?

  भूमिका:→ अदालत में चल रहे आपराधिक मुकदमों के दौरान, अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होना अनिवार्य होता है। हालांकि, कभी-कभी व्यक्तिगत या अपरिहार्य कारणों से अभियुक्त अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में, अभियुक्त की ओर से उसके वकील द्वारा "हाजिरी माफी प्रार्थना पत्र" प्रस्तुत किया जाता है। यह एक कानूनी दस्तावेज़ होता है, जिसके माध्यम से अभियुक्त अदालत से उसकी अनुपस्थिति के लिए माफी मांगता है और उसके स्थान पर वकील को अदालत में उपस्थित होने की अनुमति देने का अनुरोध करता है।       यह प्रार्थना पत्र भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 205 के अंतर्गत दायर किया जाता है, जो अभियुक्त को उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्रदान करने की व्यवस्था करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि हाजिरी माफी प्रार्थना पत्र कैसे लिखा जाता है, इसके लिए किन-किन नियमों का पालन किया जाता है, और इसका प्रारूप कैसा होता है।   हाजिरी माफी प्रार्थना पत्र क्या है? हाजिरी माफी प्रार्थना पत्र: → एक कानूनी अनुरोध होता है जो किसी आपराधिक मामले के अभियुक्त द्वारा उसके वकील के माध्यम से द

पुलिस द्वारा अवैध गिरफ्तारी से बचने के लिए आपके क्या अधिकार हैं और महत्वपूर्ण कानूनी उदाहरण के साथ बताओ?

  भारत में पुलिस की भूमिका कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए है, लेकिन कई बार पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए नागरिकों को अवैध रूप से गिरफ्तार करती है। ऐसी स्थिति में नागरिकों का घबराना स्वाभाविक है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने कानूनी अधिकारों को जानें और पुलिस के अनुचित व्यवहार के खिलाफ उचित कदम उठाएं। भारतीय संविधान और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत पुलिस को गिरफ्तारी करने के लिए कई प्रक्रियाओं और नियमों का पालन करना पड़ता है। अगर यह नियमों का उल्लंघन करती है, तो वह गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी, और पीड़ित व्यक्ति कानूनी कार्रवाई कर सकता है।   पुलिस गिरफ्तारी के खिलाफ आपके अधिकार:→  पुलिस द्वारा की जाने वाली गिरफ्तारी के मामले में नागरिकों को विभिन्न अधिकार प्राप्त हैं। ये अधिकार गिरफ्तारी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए बनाए गए हैं, ताकि पुलिस की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सके। आइए इन अधिकारों पर विस्तार से चर्चा करें:→ 1. गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार (सीआरपीसी धारा 50(1)):→    पुलिस को गिरफ्तारी करते समय व्यक्ति को यह बताना अनिवार्य

अगर पुलिस किसी आपराधिक मामले में आरोपियों के साथ मिलीभगत कर ले तो फिर शिकायतकर्ता क्या करें?

अगर पुलिस किसी आपराधिक मामले में आरोपियों के साथ मिलीभगत कर ले या फिर शिकायतकर्ता को लगे कि पुलिस ने सही से जांच नहीं की, तो कानून ने शिकायतकर्ता को कई अधिकार और रास्ते दिए हैं, जिससे वह अपने मामले को न्याय तक पहुंचा सके। इस पूरी प्रक्रिया को आसान तरीके से और विस्तार में समझते हैं। उदाहरण के साथ समझना:→ कहानी का सेटअप:→ मान लीजिए, राम के घर चोरी हो जाती है। राम पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज कराते हैं, जिसमें उन्होंने अपने कुछ पड़ोसियों पर शक जताया। पुलिस जांच शुरू करती है, लेकिन जांच के बाद पुलिस यह कहती है कि इन पड़ोसियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, इसलिए पुलिस ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। पुलिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन व्यक्तियों पर एफआईआर हुई थी, वे निर्दोष हैं। अब राम को लगता है कि पुलिस ने पूरी जांच सही से नहीं की है, या हो सकता है कि उन आरोपियों के साथ मिलीभगत हो गई हो। राम के पास क्या विकल्प हैं? 1. प्रोटेस्ट पिटिशन:→    राम अब सीधे उस कोर्ट में जा सकता हैं जहां पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है। वहां राम एक प्रोटेस्ट पिटिशन (विरोध याचिका) दा

यदि पुलिस आप को जबरन हिरासत में रखे तो उस application की drafting कैसे करें?

CrPC की धारा 57 एक संक्षिप्त विवरण→  धारा 57 भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो बिना वारंट के गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को हिरासत में रखने की अवधि को निर्धारित करता है। यह धारा व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है और सुनिश्चित करती है कि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी उचित कारण के लम्बे समय तक हिरासत में न रखा जाये।   धारा 57 का मुख्य उद्देश्य:→  • अधिकतम हिरासत अवधि:→ किसी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार किये जाने के बाद 24 घटें से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। जब तक कि मजिस्ट्रेट द्वारा विशेष आदेश जारी न किया गया हो।  • मजिस्ट्रेट का आदेश:→ यदि पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को 24 घंटों से अधिक समय तक हिरासत में रखना चाहता है तो उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होगा और मजिस्ट्रेट से हिरासत बढ़ाने का आदेश लेना होगा।   • व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा :→ यह धारा सुनिश्चित करती है कि गिरफ्तार व्यक्ति को अपने अधिकारों के बारे में बताया जाये। और उसे कानूनी सहायता का अवसर मिले।           Crpc की धारा 57 एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो कि

गिरफ्तारी के दौरान अभियुक्त से जप्त किये गये सामानों को लौटाने हेतु आवेदन पत्र की drafting कैसे करते हैं?

गिरफ्तार व्यक्तियों की तलाशी से सम्बन्धित धारायें:→ भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता [crpc] में गिरफ्तार व्यक्तियों की तलाशी से संबंधित प्रमुख धारायें निम्नलिखित हैं:→   • धारा 51:-  → यह धारा गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति की तलाशी से संबन्धित है। इसमें यह उल्लेखित है कि किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है ताकि उससे कोई ऐसी चीज बरामद की जा सके जो अपराध के सबूत के रूप में उपयोगी हो सकती है।  धारा 100:- → यह धारा तलाशी लेने के लिये सामान्य प्रक्रिया निर्धारित करती है। इसमें यह बताया गया है कि तलाशी किसी तरह से ली जायेगी और किन परिस्थितियों में तलाशी वारंट जारी किया जा सकता है। इस धारा के अन्तर्गत पुलिस अधिकारी तलाशी के समय किसी स्वतंत्र गवाह को उपस्थित रहने का प्रयास करते हैं और उसकी उपस्थिति में तलाशी की जाती है।  • धारा 102:- → इस धारा के अन्तर्गत यदि पुलिस अधिकारी को तलाशी के दौरान कोई संपत्ति मिलती है जो किसी अपराध से संबन्धित हो सकती है, तो वह उसे जब्त कर सकता है।   • धारा 165: → इस धारा के अन्तर्गत पुलिस अधिकारी तत्कालीन परिस्थितियों में बिना वारंट के तलाशी ले सकते