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विदेशों में भारतीय कानून: IPC, UAPA, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत भारतीय अधिकार क्षेत्र की समझ

हिंदू नारी संपदा (nature and features of Hindu women Estate)

  हिंदू नारी संपदा (hindu women's  state) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में  यह पारित होने से प्राचीन हिंदू विधि के अंतर्गत हिंदू स्त्री द्वारा अर्जित संपत्ति दो प्रकार की होती थी. 1. स्त्रीधन जो उसकी पूर्ण संपत्ति होती थी. 2. नारी संपदा जिसमें उसको सीमित अधिकार था.    अता नारी संपदा व संपत्ति है जो कोई नारी किसी पुरुष या नारी से दाय विभाजन में प्राप्त करती है. नारी संपदा को विधवा संपदा या सीमित संपदा के नाम से भी पुकारा जाता था. कोई हिंदू नारी नारी संपदा को अपने जीवन पर उपभोग कर सकती थी वह केवल निम्नलिखित तीन परिस्थितियों को छोड़कर किसी अन्य परिस्थिति में संपत्ति का अन्य संक्रमण (ally Nation) नहीं कर सकती थी. 1. कानूनी आवश्यकत 2. संपदा के लाभ के लिए 3. उत्तर भोगियों की सहमति             हिंदू स्त्री अपने जीवन काल में यदि चाहे तो उत्तर भोगियों के पक्ष में समर्पण कर सकती थी उसकी मृत्यु के पश्चात संपत्ति उसके दाए दो को ना प्राप्त होकर संपत्ति है विगत पूर्ण स्वामी के दाए दो को प्राप्त होती थी स्त्री धन के ऊपर नारी का स्वामित्व होता था. परंतु अब  हिंदू उ

दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार भरण पोषण की मांग के आधार (claim of maintenance under the provision of Criminal Procedure Code)

 प्रत्येक समर्थ व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि वह अपनी पत्नी संतान और माता पिता का भरण पोषण करें. यदि वह ऐसा जानबूझकर या लापरवाही से या किसी अन्य उद्देश्य नहीं करता है तो न्यायालय जहां उचित समझे उसको इन भरण पोषण करने का आदेश दे सकता है.. भरण पोषण की मांग कौन कर सकता है? (who can claim maintenance) पत्नी संतान और माता पिता भरण पोषण की मांग कर सकते हैं. धारा 125 से 128  तब इस संबंध में की गई व्यवस्थाओं का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त साधन हो.... 1. पत्नी का जो भरण पोषण करने में असमर्थ है 2. अपनी वैध या अवैध संतान का जो नाबालिक हो चाहे विवाहित हो या नहीं हो जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है. 3. अपनी वैद्य या अवैध संतान (जो एक विवाहित पुत्री नहीं है) बालगी प्राप्त कर ली है जहां ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक क्षमता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है. 4. अपने माता-पिता का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं भरण पोषण करने में लापरवाही या भरण पोषण करने से इनकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी लापरवाही का इनकार के साबित हो जाने पर ऐस

भारतीय दंड संहिता 1860 "दहेज उत्पीड़न हत्या"(indian Penal Code 1860 regarding the appointment of suicide and dowry death of women)

  भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 304 ( ) के अनुसार (1) जहां विवाह के 7 वर्ष के भीतर स्त्री की मृत्यु जल जाने से या शारीरिक क्षति से या समान परिस्थितियों से भिन्न परिस्थितियों  में हो जाती है और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से ठीक पहले उसे उसके पति द्वारा या पति के रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिए मांग को लेकर परेशान किया गया था या उसके साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार किया गया था तो इसे दहेज मृत्यु कहा जाएगा और उसकी मृत्यु का कारण उसके पति या रिश्तेदार को माना जाएगा. स्पष्टीकरण (explanation): इस धारा के प्रयोजन के लिए “दहेज” से  तात्पर्य वही है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की  धारा 3 में परिभाषित है.         (2) जो कोई दहेज मृत्यु कार्य करेगा वह उतनी अवधि तक के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जो 7 वर्ष से कम नहीं होगी लेकिन जो आजीवन कारावास तक हो सकती है. दहेज मृत्यु की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए 1986 में धारा 304 ( ) भारतीय दंड संहिता में जोड़ी गई है. यह धारा एक नए अपराध का निर्माण करती है. ( 1) श्रीमती शांति बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1991 मैं यह  कहा गया कि अभियुक्त गण का मृतक के पिता

वेश्यावृत्ति की समस्या और महिलाओं के साथ उत्पीड़न (problem of prostitution and harassment of of womens in public place and offices)

 वे श्यावृत्ति वेश्यावृत्ति की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करते हुए TRAFT  कहा है कि जब विवाह की प्रथा कमजोर हुई वेश्यावृत्ति भी पतन की ओर उन्मुख होती गई. अतः एक प्रकार से वेश्यावृत्ति नैतिकता का आवरण है पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव तथा भारतीय नैतिक दृष्टिकोण में तेजी से ह्रास के कारण भारत में आज वेश्यावृत्ति को एक आप पर्याय आवश्यकता तथा लोगों के समान नैतिक आचरण को रक्षा के साधन के रूप में स्वीकार कर लिया गया है.        इतिहास बताता है कि भारत में वेश्यावृत्ति की प्रथा प्राचीन काल में चली आ रही है. हिंदू राजाओं के काल में किन्नरी देवदासी आदि होती थी. इस युग में नगर वधू की सत्ता वेश्याओं के लिए प्रयुक्त होती थी. मुस्लिम शासक ऐश्वर्या वान और कामुक होते थे. अतः उनके काल में भी वेश्यावृत्ति रोकने हेतु बड़े कठोर कानून बनाए गए थे वर्तमान कानून भी इस वेश्यावृत्ति को रोकने के असफल रहे हैं. यह एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान धैर्य साहस और सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन के द्वारा किया जाना चाहिए वेश्यावृत्ति को अपनाने वाले लोगों के बीच नैतिक मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आत्म नियंत्रण की भावना का विक

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की प्राकृतिक एवं विशेषताओं (the nature and characteristic of violence against the women)

  पारिवारिक हिंसा (domestic violence):  पारिवारिक समस्याओं में घरेलू या पारिवारिक हिंसा भी आधुनिक युग में एक प्रमुख समस्या है यद्यपि घरेलू हिंसा परिवार में किसी भी सदस्य के प्रति हो सकती है किंतु पारिवारिक हिंसा का संबंध मुक्ता महिलाओं के प्रति हिंसा के रूप में है इसका कारण यह है कि महिलाएं ही अन्य परिवारों से पत्नी के रूप में यहां आती है कभी-कभी नवीन पारिवारिक परिस्थितियों में उनका सामान जैसे कठिन हो जाता है कभी-कभी दहेज भी उनके प्रति हिंसा का एक प्रमुख कारण बन जाता है पारिवारिक हिंसा के अंतर्गत अन्य सदस्यों के प्रति भी हिंसा कोई आज की घटना नहीं है वरन प्राचीन भारत में भी इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं महाभारत काल में युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी द्रौपदी को जुए में दांव पर लगा दिया था तथा दुर्योधन ने भरी सभा में चीरहरण कर उसे अपमानित किया था दहेज को लेकर नारी को जला देना या हत्या कर देना आज के युग की सबसे बड़ी त्रासदी है सतीत्व के नाम पर इसी देश में महिलाओं को जिंदा जलाया जाता रहा है इस प्रकार से महिलाओं का उत्पीड़न व शोषण उनके साथ मारपीट गाली-गलौज करना व जला देना तथा हत्या कर देना पारिवारिक ह