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Bank account में ₹10लाख का लेन-देन और ITR न भरने पर आयकर विभाग का नोटिस आ जाये तो क्या करें? जानिए कारण section और समाधान।

निर्भया केस एक ऐतिहासिक न्याय की कहानी और समाज पर उसका प्रभाव

निर्भया जजमेंट: एक ऐतिहासिक न्याय की कहानी ब्लॉग ड्राफ्टिंग: परिचय: निर्भया केस और उसकी महत्ता निर्भया केस का संक्षिप्त विवरण समाज और सरकार पर इसका प्रभाव निर्भया केस की घटनाएं और उनके परिणाम 16 दिसंबर 2012 की रात की घटनाएँ न्यायालय की प्रक्रिया और फैसले निर्भया जजमेंट 2013: पहले फैसले निचली अदालत द्वारा सजा दोषियों के खिलाफ अपील की प्रक्रिया निर्भया जजमेंट 2020: न्याय का अंतिम फैसला दोषियों की फांसी की सजा याचिकाओं का खारिज होना और अंतिम निर्णय कानूनी बदलाव और समाज पर असर कानून में सख्त बदलाव क्या न्याय मिलने के बाद अपराध कम हुए? महत्वपूर्ण उदाहरण: अन्य केस जो न्याय की ओर इशारा करते हैं महत्वपूर्ण केस का उदाहरण निष्कर्ष: समाज और कानून का दायित्व समाज में जागरूकता की आवश्यकता महिलाओं के सुरक्षा के लिए कानून का कड़ा होना ब्लॉग पोस्ट: 2012 की 16 दिसंबर की रात ने ना सिर्फ एक परिवार की खुशियाँ छीनीं, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। जब एक पैरामेडिकल छात्रा, जिसे अब "निर्भया" के नाम से जाना जाता है, दिल्ली की ...

बाबरी मस्जिद का इतिहास: निर्माण, विवाद और अयोध्या का फैसला

अयोध्या फैसला 2019: एक ऐतिहासिक निर्णय परिचय अयोध्या का विवाद भारत के इतिहास के सबसे जटिल और संवेदनशील मामलों में से एक था। यह मामला लगभग 500 साल पुराना था और इसमें धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक पहलू शामिल थे। 9 नवंबर 2019 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। यह फैसला भारत के संवैधानिक मूल्यों, न्यायिक प्रक्रिया और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। अयोध्या विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ 1. विवाद की शुरुआत 1528 : माना जाता है कि मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाबरी मस्जिद कहा गया। विवाद का कारण : हिंदू पक्ष का मानना था कि इस मस्जिद का निर्माण भगवान राम के जन्मस्थान पर बने मंदिर को तोड़कर किया गया। 2. ब्रिटिश काल में विवाद 1856-57 : ब्रिटिश सरकार ने विवादित स्थल को हिंदू और मुस्लिम पक्षों में बांट दिया। अंदरूनी हिस्सा मुसलमानों को। बाहरी हिस्सा हिंदुओं को। 1885 : महंत रघुबर दास ने विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए पहली बार अदालत में अपील की, जो खारिज कर दी गई। 3. आज़ादी के बाद का काल...

गर्भपात का अधिकार का क्या मतलब होता है?महिलाओं के संवैधानिक और सांस्कृतिक अधिकारों की पूर्ण व्याख्या

ब्लॉग पोस्ट: महिलाओं का गर्भपात का अधिकार और भारतीय सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय महिलाओं के अधिकारों को लेकर भारत में 2022 का साल बेहद खास रहा। उस समय जब अमेरिका में महिलाओं के गर्भपात के अधिकारों पर पाबंदी लगाई जा रही थी और ईरान में महिलाएं हिजाब के विरोध में अपनी जान कुर्बान कर रही थीं, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया। यह फैसला न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम था, बल्कि यह भारतीय समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके शरीर पर उनके अधिकार को भी रेखांकित करता है। ब्लॉग की रूपरेखा परिचय गर्भपात का अधिकार क्या है और क्यों ज़रूरी है? दुनिया में महिलाओं के अधिकारों की स्थिति। भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2022) 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार। विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच अंतर को खत्म करना। महत्वपूर्ण केस का उदाहरण 25 वर्षीय युवती का मामला। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप। एमटीपी एक्ट 2021 का संशोधन "पति" की जगह "पार्टनर" शब्द का इस्तेमाल। ...

तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला: मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की जीत

तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला: महिलाओं के अधिकारों की नई शुरुआत परिचय भारत जैसे देश में जहां विविध धर्म और परंपराएं मौजूद हैं, वहां महिलाओं के अधिकार और न्याय का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है। मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) प्रथा लंबे समय से विवादों में रही। यह प्रथा मुस्लिम पुरुषों को एक साथ तीन बार "तलाक" बोलकर शादी को तुरंत खत्म करने की अनुमति देती थी। 2019 में इस पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और उसके बाद संसद द्वारा कानून ने महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। ब्लॉग ड्राफ्टिंग के प्रमुख बिंदु तीन तलाक का परिचय और इसके प्रकार। शायरा बानो बनाम भारत सरकार मामला और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप। तीन तलाक प्रथा के सामाजिक और धार्मिक प्रभाव। सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसके पीछे के तर्क। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019। इस फैसले के सकारात्मक प्रभाव और इसके दायरे। निष्कर्ष: महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह कदम। तीन तलाक क्या है? तीन तलाक, जिसे तलाक-ए-बिद्दत भी कहते हैं, मुस्लिम समुदाय में ए...

धारा 497: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और महिलाओं के अधिकारों की जीत

ब्लॉग पोस्ट: जेंडर जस्टिस और धारा 497 का खात्मा भूमिका भारतीय संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देने की बात करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले के कानूनों में कुछ प्रावधान महिलाओं के साथ भेदभाव करते थे? ऐसा ही एक कानून था भारतीय दंड संहिता की धारा 497 , जिसे 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं। धारा 497: क्या था यह कानून? धारा 497 के अनुसार: अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ उसकी रज़ामंदी से शारीरिक संबंध बनाता था, तो इस महिला का पति उस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता था। इस कानून के तहत महिला पर कोई कार्यवाही नहीं होती थी । दोषी पाए जाने पर पुरुष को पांच साल तक की सजा हो सकती थी। यह कानून महिला को पुरुष की "संपत्ति" मानता था, क्योंकि इसमें केवल पति को शिकायत का अधिकार था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्यों निरस्त हुई धारा 497? सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षत...