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भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और इसके प्रभाव

POCSO अधिनियम(Act) क्या होता है? यह बच्चों के किन अधिकारों को सुरक्षित करने का कार्य करता है?

                     POCSO अधिनियम: बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा की एक कानूनी ढाल→

   बच्चों के यौन शोषण के बढ़ते मामलों को देखते हुए, भारत सरकार ने बच्चों को यौन अपराधों से बचाने और उनके अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 14 नवंबर 2012 को Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO) लागू किया। यह अधिनियम संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर कन्वेंशन (1992) के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था। POCSO अधिनियम का उद्देश्य बच्चों के प्रति यौन अपराधों को कठोर सजा के प्रावधानों के साथ परिभाषित करना और उनकी सुरक्षा के लिए एक स्पष्ट कानूनी ढांचा तैयार करना है।

POCSO अधिनियम की विशेषताएँ→

1. लिंग-निष्पक्षता (Gender-Neutrality)→

POCSO अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह लिंग-निष्पक्ष (gender-neutral) है। यानी, यह कानून लड़के और लड़कियों दोनों को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। किसी भी 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को "बच्चा" के रूप में परिभाषित किया गया है और पीड़ित के लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होता।

2. यौन अपराधों की विस्तृत परिभाषा→

इस अधिनियम के तहत यौन अपराधों को विशेष रूप से परिभाषित किया गया है, जैसे कि:→
• यौन उत्पीड़न
• बाल यौन शोषण
•बाल पोर्नोग्राफी
• डिजिटल या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से बच्चों के साथ दुर्व्यवहार

इसके अलावा, यौन शोषण के विभिन्न प्रकारों को भी परिभाषित किया गया है, जैसे कि शारीरिक छेड़छाड़, अश्लील चित्रण, और साइबर स्पेस में बाल पोर्नोग्राफी का प्रसार। 

3. कठोर सजा का प्रावधान→

POCSO अधिनियम के तहत अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा का प्रावधान है। उदाहरण के लिए:→
•यौन उत्पीड़न के मामलों में कम से कम 3 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है।
•गंभीर मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान है, खासकर जब पीड़ित की उम्र 12 साल से कम हो।
  साल 2019 में किए गए संशोधनों के तहत यौन शोषण के दोषियों के खिलाफ सजा और भी कठोर की गई, ताकि इन अपराधों पर लगाम लगाई जा सके।

4. रिपोर्टिंग में अनिवार्यता→

POCSO अधिनियम के तहत, यदि कोई व्यक्ति या संस्था बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराध की जानकारी होते हुए भी उसे छिपाने की कोशिश करता है, तो यह एक विशिष्ट अपराध माना जाएगा। यह प्रावधान इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि ऐसे अपराधों को छिपाया न जा सके। साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों से जुड़े अपराधों को रिपोर्ट करने में कोई ढील न दी जाए।

POCSO नियम 2020 के तहत विशेष प्रावधान→

1. अंतरिम मुआवज़ा और तत्काल राहत→

POCSO नियम 2020 के अनुसार, यदि कोई मामला रिपोर्ट किया जाता है, तो पीड़ित बच्चे को अंतरिम मुआवज़ा (interim compensation) प्रदान किया जा सकता है। यह मुआवज़ा बच्चे की तत्काल चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य, पुनर्वास और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए दिया जाता है। यह मुआवजा बाद में दिए जाने वाले अंतिम मुआवज़े में समायोजित किया जा सकता है।

2. सहायक व्यक्ति की नियुक्ति→

जाँच और अदालती कार्यवाही के दौरान, पीड़ित बच्चे की सहायता के लिए एक सहायक व्यक्ति (support person) की नियुक्ति की जाती है। यह व्यक्ति बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की देखभाल करता है और यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे के सर्वोत्तम हितों का ध्यान रखा जाए। सहायक व्यक्ति बच्चे और उसके परिवार को अदालती कार्यवाही से संबंधित सभी जानकारी प्रदान करता है।

केस लॉ और न्यायालय के फैसले→

1.State of Punjab v. Gurmit Singh (1996)→
इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यौन शोषण के मामलों में न्यायालयों को संवेदनशीलता और सतर्कता के साथ काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। कोर्ट ने कहा कि यौन शोषण के मामलों में पीड़ित बच्चों की गरिमा और मर्यादा का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए और उनके बयान की रिकॉर्डिंग के दौरान उचित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए।

2. Shafhi Mohammad v. State of Himachal Pradesh(2018)→
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि जघन्य अपराधों के मामलों में जाँच अधिकारियों को घटना स्थल की तस्वीरें और वीडियोग्राफी करनी चाहिए, ताकि अपराध के साक्ष्य सुरक्षित रहें। इससे यौन शोषण के मामलों में जाँच की गुणवत्ता और निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।

3. Jarnail Singh v. State of Haryana (2013)→
इस केस में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जिस तरह से किशोर अपराधियों की आयु निर्धारण के लिए प्रक्रिया बनाई गई है, वैसे ही किशोर पीड़ितों के मामले में भी आयु निर्धारण के लिए कानूनी प्रावधान किए जाने चाहिए। जाँच अधिकारियों को स्कूल प्रवेश-त्याग रजिस्टर के आधार पर ही आयु निर्धारण करने पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

 POCSO अधिनियम से जुड़ी चुनौतियाँ→

1. पुलिस बल में महिलाओं की कमी→
POCSO अधिनियम के तहत, पीड़ित बच्चों का बयान एक महिला उप-निरीक्षक द्वारा दर्ज किया जाना चाहिए। लेकिन भारत में पुलिस बल में महिलाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण और दूर-दराज़ के इलाकों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहाँ महिला पुलिसकर्मियों की अनुपलब्धता के कारण बच्चों के बयान दर्ज करने में देरी होती है।

2. जाँच में देरी→
POCSO अधिनियम के तहत मामलों की जाँच एक महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए, लेकिन व्यावहारिक तौर पर कई बार जाँच पूरी होने में अधिक समय लग जाता है। इसकी मुख्य वजहें हैं: पुलिस बल की कमी, फोरेंसिक साक्ष्य प्राप्त करने में देरी, और जाँच की जटिलता।

3. आयु निर्धारण में समस्याएँ→
कई मामलों में पीड़ित की आयु का सही-सही निर्धारण करने में दिक्कतें आती हैं, खासकर तब जब बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र की उपलब्धता नहीं होती। जरनैल सिंह मामले में कोर्ट ने इसे स्पष्ट किया था, लेकिन कानून में इसके लिए विशेष निर्देशों की कमी है, जिससे जाँच अधिकारी अक्सर स्कूल रजिस्टर या अन्य माध्यमों पर निर्भर करते हैं।

समाधान के सुझाव→

1.जाँच अधिकारियों का प्रशिक्षण→
   POCSO मामलों को सही तरीके से संभालने के लिए जाँच अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इसमें बाल यौन शोषण के मामलों में साक्ष्य एकत्र करने, बच्चों के बयान दर्ज करने और बाल अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

2. विशेष अदालतों की स्थापना→
   POCSO मामलों का त्वरित निपटारा सुनिश्चित करने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना जरूरी है। इससे बच्चों और उनके परिवारों को जल्द न्याय मिलेगा, और न्याय प्रक्रिया में भी गति आएगी।

3. संसाधनों की उपलब्धता→
   सरकार को जाँच एजेंसियों और पुलिस को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि मामलों की जाँच समय पर और प्रभावी ढंग से हो सके। इससे बच्चों के यौन अपराधों से संबंधित मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा।

निष्कर्ष→

POCSO अधिनियम बच्चों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जो यौन शोषण के अपराधों को गंभीरता से लेते हुए सख्त सजा का प्रावधान करता है। हालांकि, इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए पुलिस बल, न्यायपालिका और जाँच एजेंसियों के समन्वित प्रयासों की जरूरत है। 

    न्यायिक सुधार, संसाधनों की बेहतर उपलब्धता और विशेष अदालतों की स्थापना से POCSO अधिनियम के तहत बच्चों को त्वरित और प्रभावी न्याय मिल सकेगा, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक है।

     POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत, यौन अपराधों को बहुत गंभीर माना जाता है, और इसीलिए ऐसे मामलों में बेल (जमानत) मिलना सामान्यतः कठिन होता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में न्यायालय द्वारा जमानत दी जा सकती है, लेकिन यह कई शर्तों और कानूनी मापदंडों पर निर्भर करती है।

POCSO अधिनियम के तहत जमानत का प्रावधान→

POCSO के तहत मामलों को आमतौर पर दो प्रकारों में बांटा जाता है:→
1. जमानती अपराध (Bailable Offenc):
जमानती अपराध वह होते हैं जहाँ आरोपी को थाने से ही जमानत मिल जाती है।
   
2. गैर-जमानती अपराध (Non-Bailable Offence)
गैर-जमानती अपराधों में जमानत न्यायालय के विवेकाधिकार पर निर्भर करती है। इसमें अपराध की प्रकृति, आरोपी की पृष्ठभूमि, और अन्य कारक देखे जाते हैं।

POCSO अधिनियम के तहत अधिकांश अपराध गैर-जमानती होते हैं, और इन मामलों में जमानत मिलना जाँच और अदालत की सुनवाई पर निर्भर करता है। 

जमानत के लिए मानदंड→

POCSO अधिनियम के तहत जमानत देने के लिए निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखा जाता है:→
1. अपराध की गंभीरता→
   यदि अपराध बहुत गंभीर है, जैसे कि यौन उत्पीड़न या बलात्कार, तो जमानत मिलना बहुत मुश्किल होता है। अदालत अपराध की प्रकृति को गंभीरता से देखती है।

2. जाँच की स्थिति→
   अगर जाँच पूरी नहीं हुई है, तो जमानत मिलने की संभावना कम होती है, क्योंकि न्यायालय यह सुनिश्चित करना चाहता है कि आरोपी जाँच में बाधा न डाल सके या साक्ष्य से छेड़छाड़ न कर सके।

3. आरोपी का आचरण और पृष्ठभूमि→
   अदालत यह भी देखती है कि आरोपी का पिछला रिकॉर्ड कैसा है। यदि आरोपी पहले से ही अपराधी रहा है, तो जमानत मिलना और भी कठिन हो जाता है।

4. पीड़ित पर प्रभाव→
   अदालत यह भी देखती है कि आरोपी की जमानत मिलने से पीड़ित पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अगर आरोपी जमानत पर छूटने के बाद पीड़ित को धमका सकता है या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो जमानत नहीं दी जाती।

केस लॉ (Case Law)→

1.प्रह्लाद बनाम भारत संघ (2013)→
इस मामले में, आरोपी पर POCSO के तहत 12 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप था। आरोपी ने जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन अदालत ने यह देखते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि अपराध गंभीर था और जाँच अभी पूरी नहीं हुई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी को जमानत देना समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और इससे जाँच में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

2.XYZ बनाम राज्य (2017)→
इस मामले में, आरोपी पर POCSO के तहत 17 वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म का आरोप था। आरोपी ने यह तर्क दिया कि पीड़ित और उसका परिवार आरोपी के खिलाफ साजिश रच रहे थे। जाँच के बाद, अदालत ने पाया कि आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे और आरोपी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। इसलिए, अदालत ने आरोपी को सख्त शर्तों के साथ जमानत दे दी, जैसे कि पीड़ित या गवाहों के साथ कोई संपर्क न रखना और न्यायालय में नियमित रूप से उपस्थित होना।

3.सतीश रघुनाथ भेड़ा बनाम महाराष्ट्र राज्य (2021)→
यह मामला बहुत चर्चा में रहा क्योंकि इसमें बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक विवादित निर्णय दिया था। अदालत ने आरोपी को जमानत दी, यह तर्क देते हुए कि "स्किन टू स्किन" संपर्क साबित नहीं हुआ था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बाद में पलट दिया, और कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में ऐसा तर्क न्यायसंगत नहीं हो सकता। इस केस ने POCSO अधिनियम के तहत अपराध की व्याख्या को और स्पष्ट किया और ऐसे अपराधों में जमानत के मानकों को और कठोर बनाया।

जमानत के शर्तें→

यदि POCSO अधिनियम के तहत आरोपी को जमानत दी जाती है, तो अदालत आमतौर पर कुछ सख्त शर्तें लगाती है, जैसे कि:→
•आरोपी पीड़ित या गवाहों के साथ कोई संपर्क नहीं करेगा।
•आरोपी जांच में पूरा सहयोग करेगा।
•आरोपी अदालत में नियमित रूप से हाजिर होगा।
•आरोपी देश छोड़कर नहीं जाएगा।

निष्कर्ष→

POCSO अधिनियम के तहत जमानत मिलना आसान नहीं है, क्योंकि यह अधिनियम बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए कठोर प्रावधान करता है। हालांकि, जमानत मिलने के लिए कई कारक ध्यान में रखे जाते हैं, और अदालत आरोपी के अपराध की प्रकृति, उसकी पृष्ठभूमि और जाँच की स्थिति को ध्यान में रखती है। कुछ मामलों में, जब जाँच के दौरान आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं होते या आरोपी का आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता, तो अदालत सख्त शर्तों के साथ जमानत दे सकती है।



POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम, 2012 के तहत बच्चों (18 वर्ष से कम आयु के) के खिलाफ यौन अपराधों को कवर करने के लिए विभिन्न यौन अपराधों की विस्तृत परिभाषाएँ दी गई हैं। POCSO अधिनियम में यौन अपराधों (sexual offenses) की प्रमुख श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं:→

1.लैंगिक हमला (Sexual Assault)→
   •यह तब होता है जब कोई व्यक्ति बच्चे के साथ उसकी सहमति के बिना, या उसकी सहमति प्राप्त करने में असमर्थ होने पर, यौन कृत्य करता है। इसमें गुप्तांगों, गुदा या किसी अन्य शरीर के अंग से जुड़ी क्रियाएं शामिल होती हैं।
   •धारा 7 के तहत, यह शारीरिक संपर्क और यौन इरादे से किए गए कृत्य को परिभाषित करता है, जैसे कि अनुचित ढंग से छूना।

2.गंभीर लैंगिक हमला (Aggravated Sexual Assault)→
   •यह अपराध तब होता है जब लैंगिक हमला एक संरक्षक या अधिकार वाली स्थिति में मौजूद व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जैसे कि पुलिसकर्मी, सरकारी अधिकारी, शिक्षक, डॉक्टर इत्यादि। 
   •धारा 9 के तहत, यह तब लागू होता है जब यौन उत्पीड़न किसी ऐसी स्थिति में हो जहाँ आरोपी का पीड़ित पर अधिकार या नियंत्रण हो।

3.बलात्कार (Penetrative Sexual Assault)→
   •जब कोई व्यक्ति बच्चे के गुप्तांग, मुँह या गुदा में अपनी शारीरिक संरचनाओं या किसी वस्तु का उपयोग करता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है। यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत परिभाषित बलात्कार से जुड़ा है।
   •POCSO की धारा 3 के अंतर्गत, किसी भी प्रकार की यौन प्रवेश क्रिया को शामिल किया जाता है।

4.गंभीर बलात्कार (Aggravated Penetrative Sexual Assault)→
   •यह अपराध तब होता है जब बलात्कार का कृत्य विशेष परिस्थितियों में होता है, जैसे कि सरकारी अधिकारी, सशस्त्र बल, या डॉक्टर जैसे व्यक्ति द्वारा किया गया हो। इसमें पीड़ित की उम्र या स्वास्थ्य की स्थिति को भी ध्यान में रखा जाता है। 
   •धारा 5 इस गंभीर प्रकार के बलात्कार को परिभाषित करती है।

5.यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)→
   •यह किसी भी प्रकार की अवांछित यौन टिप्पणी, इशारे, या व्यवहार को दर्शाता है। इसमें अश्लील इशारे करना, गलत इरादे से बच्चे को दिखाना या बच्चे का पीछा करना शामिल है।
   •धारा 11 के तहत, इस प्रकार की गतिविधियों को यौन उत्पीड़न माना जाता है।

6.बाल पोर्नोग्राफी (Child Pornography)→
   •किसी भी प्रकार की सामग्री, जैसे कि वीडियो, चित्र, या ऑडियो जो बच्चों के यौन कृत्यों को दिखाता हो, उसे बाल पोर्नोग्राफी कहा जाता है। इसे संगृहीत करना, बनाना या वितरण करना गंभीर अपराध है।
   •POCSO के संशोधन के बाद, धारा 15 के तहत, बाल पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री का संग्रह, वितरण या प्रसारण अपराध माना गया है।

7.यौन उत्पीड़न का प्रयास (Attempt to Commit an Offense)→
   • POCSO अधिनियम में यौन उत्पीड़न या बलात्कार का प्रयास भी अपराध माना जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के खिलाफ यौन उत्पीड़न का प्रयास करता है, तो उसे भी सजा का सामना करना पड़ता है।
   •धारा 18 के तहत, यह प्रावधान किया गया है कि किसी अपराध के प्रयास पर भी उसी अपराध की आधी सजा लागू होगी।

8.बाल वेश्यावृत्ति में शामिल करना (Using a Child for Pornographic Purposes)→
   •यह अपराध तब होता है जब कोई व्यक्ति बच्चे का उपयोग वेश्यावृत्ति के लिए करता है या किसी यौन कृत्य में शामिल करने के लिए उसे बाध्य करता है।

उदाहरण:→

•Example 1:→यदि किसी स्कूल के शिक्षक द्वारा किसी छात्र के साथ यौन उत्पीड़न किया जाता है, तो यह गंभीर लैंगिक हमला की श्रेणी में आएगा, क्योंकि शिक्षक एक विश्वासपात्र और जिम्मेदार स्थिति में होता है।
  
•Example 2:→अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे को उसकी सहमति के बिना छूता है या यौन इरादे से संपर्क करता है, तो यह लैंगिक हमला माना जाएगा।

 निष्कर्ष:→
POCSO अधिनियम के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की परिभाषाएँ स्पष्ट और कठोर हैं, और इनमें शामिल सभी प्रकार के अपराधों को कड़े दंड के साथ निपटाया जाता है।


       समाज यौन अपराधों, विशेषकर POCSO अधिनियम के तहत आने वाले बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। एक संवेदनशील, जागरूक और जिम्मेदार समाज न केवल इन अपराधों को रोकने में मदद कर सकता है, बल्कि पीड़ितों को न्याय दिलाने और अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने में भी सहायक हो सकता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं जिनके माध्यम से समाज इन अपराधों को रोकने में मददगार साबित हो सकता है:→

1. जागरूकता अभियान→
   •समाज में POCSO अधिनियम के प्रावधानों और बच्चों के यौन शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। स्कूल, कॉलेज, सामाजिक संस्थाएँ और स्थानीय समुदाय जागरूकता कार्यक्रम चला सकते हैं, जिसमें बच्चों और उनके माता-पिता को उनके अधिकारों और सुरक्षा के उपायों के बारे में बताया जा सकता है।
  • उदाहरण:→सरकार और NGO द्वारा आयोजित Good Touch, Bad Touchअभियान, जो बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में शिक्षित करने के लिए चलाए जाते हैं।

2.शिक्षा प्रणाली की भूमिका→
   • स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थान बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर शिक्षक, माता-पिता और छात्र एक खुली और सकारात्मक बातचीत के लिए एक मंच तैयार करते हैं, तो यह बच्चों को अपने साथ होने वाली किसी भी प्रकार की दुर्व्यवहार की सूचना देने में मदद कर सकता है।
  • उदाहरण:→कई स्कूलों में बच्चों को यौन शिक्षा (Sexual Education) दी जाती है, जो उन्हें आत्म-सुरक्षा और यौन शोषण के बारे में जानकारी देती है।

3.समय पर रिपोर्टिंग→
   •समाज में कई बार यौन अपराध छिपाए जाते हैं क्योंकि लोग बदनामी या डर की वजह से रिपोर्ट करने से हिचकिचाते हैं। समाज में यदि लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की रिपोर्ट न करने पर भी सजा हो सकती है, तो लोग इन अपराधों को छिपाने के बजाय रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
   उदाहरण:→POCSO अधिनियम के तहत किसी यौन अपराध की जानकारी होने पर रिपोर्ट न करना भी एक अपराध है।

4.समुदाय की भागीदारी→
   सामुदायिक संगठन, गैर-सरकारी संगठन (NGO) और स्थानीय प्रशासन मिलकर ऐसे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं जो कमजोर स्थिति में होते हैं। समाज को मिलकर ऐसे समुदायिक समूह बनाने चाहिए जहाँ बच्चों की सुरक्षा, उनके मानसिक स्वास्थ्य और यौन शोषण के मामलों पर निगरानी रखी जा सके।
   •उदाहरण:→ग्रामीण क्षेत्रों में बाल सुरक्षा समितियों का गठन, जो स्थानीय समुदाय में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करती हैं।

5.संवेदनशीलता और समर्थन→
   •बच्चों के साथ यौन शोषण के मामलों में समाज को पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि यौन शोषण के पीड़ितों और उनके परिवारों को समाज द्वारा बहिष्कृत किया जाता है या शर्मिंदा किया जाता है। इस तरह की मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
   उदाहरण:→यदि कोई बच्चा या उसका परिवार यौन शोषण की रिपोर्ट करता है, तो समाज को उनका समर्थन करना चाहिए और उनकी गोपनीयता बनाए रखने में मदद करनी चाहिए।

6.मीडिया की भूमिका→
   •मीडिया बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों को प्रकाश में लाने और समाज में जागरूकता फैलाने का एक शक्तिशाली साधन है। मीडिया को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए, खासकर बच्चों की पहचान और उनकी गोपनीयता का सम्मान करते हुए।
   •उदाहरण:→टीवी चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना, जिससे लोग सतर्क और जागरूक हो सकें।

7.कानूनी प्रक्रिया में सहयोग→
   •समाज को कानूनी प्रक्रिया में सहयोग देना चाहिए ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके। गवाहों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अदालत में गवाही दें और साक्ष्य प्रस्तुत करें। इसके अलावा, अगर कोई व्यक्ति आरोपी को बचाने की कोशिश करता है या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करता है, तो समाज को इसका विरोध करना चाहिए।
  उदाहरण:→किसी भी यौन शोषण के मामले में गवाहों और साक्ष्यों का महत्व अत्यधिक होता है, और समाज इस प्रक्रिया को सफल बनाने में मदद कर सकता है।

8. पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग→
   •यदि समाज के लोग पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के साथ सहयोग करेंगे तो बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकना और उनके खिलाफ की गई कार्रवाई में तेजी लाना आसान हो जाएगा। पुलिस को ऐसी घटनाओं की जानकारी देने में समाज की भूमिका अहम होती है।
  •उदाहरण:→किसी संदिग्ध व्यक्ति या घटना की सूचना तुरंत पुलिस को दी जानी चाहिए ताकि समय रहते कार्रवाई हो सके।

9. मानसिक स्वास्थ्य सहायता→
   •यौन शोषण के पीड़ित बच्चों को मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत अधिक मदद की जरूरत होती है। समाज में प्रशिक्षित काउंसलरों और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का नेटवर्क होना चाहिए, जो ऐसे बच्चों की मदद कर सकें।
   •उदाहरण:→पीड़ित बच्चों के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र की स्थापना, जहाँ उन्हें भावनात्मक समर्थन और मनोवैज्ञानिक सहायता मिल सके।

निष्कर्ष→

समाज यौन अपराधों को रोकने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। जागरूकता, शिक्षा, समय पर रिपोर्टिंग, और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता के माध्यम से समाज एक ऐसा वातावरण बना सकता है जहाँ बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो और अपराधियों को न्याय का सामना करना पड़े। समाज का समर्थन और जागरूकता ही बच्चों के यौन शोषण को रोकने और उन्हें सुरक्षित भविष्य देने की कुंजी है।
                     POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत मेडिकल परीक्षण (medical examination) यौन शोषण के मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पीड़ित बच्चे के साथ हुए यौन अपराध की पुष्टि करने, साक्ष्य इकट्ठा करने, और न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने का एक आवश्यक हिस्सा है। इसके अलावा, यह पीड़ित बच्चे की शारीरिक और मानसिक स्थिति की देखभाल के लिए भी किया जाता है। मेडिकल परीक्षण से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं और उदाहरणों के साथ इसकी भूमिका को निम्नलिखित बिंदुओं में समझाया जा सकता है:

1. महत्वपूर्ण साक्ष्य का संग्रह→
   •मेडिकल परीक्षण का प्रमुख उद्देश्य यौन उत्पीड़न की पुष्टि के लिए आवश्यक साक्ष्य जुटाना है। इसमें शारीरिक जाँच, DNA सैंपल, और अन्य शारीरिक चोटों की जाँच शामिल है। यौन शोषण के मामलों में यह साक्ष्य अभियोजन पक्ष के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
   •उदाहरण:→यदि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है, तो मेडिकल परीक्षण के दौरान वीर्य, लार, या अन्य शारीरिक तरल पदार्थ का परीक्षण कर अपराधी की पहचान की जा सकती है। यह साक्ष्य अदालत में आरोपी को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2.बच्चे की शारीरिक स्थिति का मूल्यांकन→
   •मेडिकल परीक्षण के माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि बच्चे को शारीरिक रूप से कितना नुकसान हुआ है। इसमें आंतरिक या बाहरी चोटों की जाँच शामिल है। यह जाँच यह सुनिश्चित करती है कि बच्चे को उचित चिकित्सा देखभाल मिले।
   •उदाहरण:→अगर बच्चे के शरीर पर चोट के निशान या घाव हैं, तो मेडिकल परीक्षण से यह प्रमाणित किया जा सकता है कि वह यौन उत्पीड़न का शिकार हुआ है। इसके आधार पर बच्चे को तुरंत मेडिकल सहायता भी प्रदान की जाती है।

3. फॉरेंसिक साक्ष्य→
   •मेडिकल परीक्षण के दौरान फॉरेंसिक साक्ष्य जैसे कि शरीर से सैंपल, कपड़े, या अन्य वस्तुओं को इकट्ठा किया जाता है, जिन्हें फॉरेंसिक लैब में जांचा जाता है। यह साक्ष्य अपराध की गंभीरता और अपराधी की पहचान के लिए आवश्यक होते हैं।
   •उदाहरण:→किसी पीड़ित बच्चे के कपड़ों पर मौजूद वीर्य या लार के नमूने फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे जा सकते हैं, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि अपराध किसने किया।

4.समयबद्धता और संवेदनशीलता→
   •मेडिकल परीक्षण समय पर होना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि कुछ साक्ष्य समय के साथ समाप्त हो सकते हैं। जैसे वीर्य या अन्य शरीर तरल पदार्थ के नमूने समय के साथ गायब हो सकते हैं, इसलिए घटना के तुरंत बाद मेडिकल परीक्षण किया जाना आवश्यक होता है।
  •उदाहरण:→यदि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है और 72 घंटों के भीतर उसका मेडिकल परीक्षण किया जाता है, तो साक्ष्य जुटाने की संभावना अधिक होती है, जो कि मामले की पुष्टि और अपराधी को सजा दिलाने में मदद कर सकता है।

 5. बिना सहमति के परीक्षण का प्रावधान→
   •POCSO अधिनियम के तहत, बच्चे के मेडिकल परीक्षण के लिए उसकी सहमति आवश्यक नहीं है। हालांकि, यह सुनिश्चित किया जाता है कि परीक्षण एक संवेदनशील तरीके से किया जाए और बच्चे की शारीरिक और मानसिक स्थिति का ध्यान रखा जाए। बच्चे के अभिभावक या देखरेख करने वाला व्यक्ति उसकी ओर से सहमति दे सकता है।
   •उदाहरण:→यदि किसी छोटे बच्चे का यौन शोषण हुआ है और वह अपनी स्थिति समझने में असमर्थ है, तो उसकी सहमति के बिना भी परीक्षण किया जा सकता है ताकि साक्ष्य नष्ट न हो जाएँ।

6. महिला डॉक्टर की उपस्थिति
   •यदि पीड़ित बच्ची है, तो मेडिकल परीक्षण महिला डॉक्टर के द्वारा किया जाना चाहिए। यह संवेदनशीलता और बच्चे की भावनात्मक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
   •उदाहरण:→अगर कोई लड़की यौन शोषण की शिकार होती है, तो POCSO अधिनियम के तहत महिला डॉक्टर द्वारा ही उसका परीक्षण किया जाएगा, ताकि उसे कम से कम मानसिक पीड़ा हो और वह सहज महसूस कर सके।

7.मनोवैज्ञानिक आकलन (Psychological Evaluation)→
   •मेडिकल परीक्षण केवल शारीरिक जाँच तक सीमित नहीं है। इसमें बच्चे की मानसिक स्थिति का आकलन करना भी शामिल होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे को यौन शोषण के बाद किसी प्रकार की मानसिक या भावनात्मक समस्या का सामना न करना पड़े।
   •उदाहरण:→कई बार बच्चे यौन शोषण के बाद मानसिक तनाव या डर का शिकार हो जाते हैं। इसलिए, मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ उनकी मानसिक स्थिति का आकलन करते हैं और उन्हें उचित परामर्श प्रदान किया जाता है।

उदाहरण:→

1. निर्भया केस (2012):→इस मामले में पीड़ित के मेडिकल परीक्षण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पीड़िता की गंभीर चोटों और शरीर पर मिले फॉरेंसिक साक्ष्यों ने अपराधियों की पहचान करने और उन्हें सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
   
2. प्रकाश बनाम उत्तराखंड राज्य (2015):→इस केस में, एक 12 साल की बच्ची के यौन शोषण के बाद मेडिकल परीक्षण से मिले साक्ष्यों ने आरोपी को सजा दिलाई। मेडिकल रिपोर्ट में बच्ची की शारीरिक चोटों और अन्य साक्ष्यों का विस्तृत विवरण दिया गया था, जिसने आरोपी के खिलाफ मजबूत मामला तैयार किया।

निष्कर्ष:→
मेडिकल परीक्षण POCSO के तहत बच्चों के यौन शोषण के मामलों में न केवल महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाने में मदद करता है, बल्कि पीड़ित बच्चे की शारीरिक और मानसिक स्थिति का भी आकलन करता है। यह प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने और अपराधियों को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
            भारत में हर साल POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम से संबंधित हजारों मामले दर्ज किए जाते हैं। ये मामले यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, और बाल यौन हिंसा से जुड़े होते हैं। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े दिखाते हैं कि POCSO के तहत रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या बढ़ी है, जो इस बात का संकेत है कि जागरूकता बढ़ रही है और लोग अधिक मामलों की रिपोर्ट कर रहे हैं।
       यहाँ कुछ आधिकारिक आंकड़ों और उदाहरणों के आधार पर POCSO अधिनियम के तहत रिपोर्ट किए गए मामलों की जानकारी दी जा रही है:

1.राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े:→
   •2019: →
     •NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में 47,335 मामले POCSO अधिनियम के तहत दर्ज किए गए।
     •इनमें से सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, और मध्य प्रदेश से दर्ज हुए थे।
   
   •2020:→
     •2020 में, कोविड-19 महामारी के दौरान भी, POCSO अधिनियम के तहत 43,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। हालांकि, लॉकडाउन के कारण कुछ मामलों की रिपोर्टिंग में कमी आई।
   
   •2021:→
     •2021 में POCSO के तहत 53,874 मामले दर्ज हुए। इसमें से 99% मामले यौन उत्पीड़न और बाल यौन शोषण के थे।
     •उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक मामले सामने आए।

   •2022:→
     •NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में POCSO के तहत 51,863 मामले दर्ज किए गए। ये मामले मुख्य रूप से यौन हमले, छेड़छाड़, और बलात्कार से संबंधित थे।

2. प्रमुख उदाहरण और राज्यवार स्थिति:→
   •उत्तर प्रदेश: →
     •2021 में उत्तर प्रदेश ने सबसे अधिक POCSO मामले दर्ज किए। वहाँ 8,000 से अधिक मामले सामने आए।
   
   •महाराष्ट्र:→
     •महाराष्ट्र में 2021 में POCSO अधिनियम के तहत लगभग 7,000 मामले दर्ज किए गए थे। यह राज्य बच्चों के प्रति यौन अपराधों में संवेदनशीलता के लिए जागरूकता और बेहतर रिपोर्टिंग प्रक्रिया की दिशा में काम कर रहा है।
   
   •केरल:→
     •केरल में 2021 में POCSO के तहत 2,900 मामले दर्ज हुए थे, जो दक्षिणी राज्यों में सबसे अधिक थे। यहाँ की सरकार ने POCSO मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना की है।
   
   •दिल्ली:→
     •दिल्ली में 2021 में लगभग 1,500 POCSO मामले दर्ज किए गए थे। दिल्ली, शहरी क्षेत्र होने के कारण, इस तरह के मामलों की रिपोर्टिंग में जागरूकता अधिक है।

3.POCSO मामलों में वृद्धि के कारण:→
   •जागरूकता में वृद्धि:→POCSO अधिनियम और इसके तहत मिलने वाले अधिकारों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ी है। अधिक माता-पिता, स्कूल, और NGOs बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
   
   •रिपोर्टिंग में सुधार:→कानून में किए गए संशोधनों और सख्त दंड के कारण लोग इन मामलों की रिपोर्ट करने से नहीं हिचकिचाते। रिपोर्ट न करने पर भी कानून के तहत कार्रवाई का प्रावधान है।

   •साइबर अपराध का प्रभाव:→इंटरनेट के प्रसार के कारण बच्चों से जुड़े यौन अपराध, जैसे बाल पोर्नोग्राफी और ऑनलाइन शोषण के मामले भी बढ़े हैं। बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े अपराध भी POCSO के अंतर्गत आते हैं, और इनकी संख्या में भी वृद्धि देखी गई है।

4.विशिष्ट उदाहरण:→
   •हाथरस केस (2020):→यह मामला उत्तर प्रदेश में सामने आया, जहाँ एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न और हत्या का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया और न्याय की मांग के लिए विरोध प्रदर्शन हुए।
   
   •महाराष्ट्र का बाल यौन शोषण मामला (2019):→इस मामले में महाराष्ट्र में एक 12 साल की बच्ची के साथ उसके पड़ोसी द्वारा यौन शोषण किया गया। बच्ची ने अपनी माँ को यह बात बताई और फिर POCSO के तहत मामला दर्ज किया गया। आरोपी को अदालत ने दोषी ठहराया और सख्त सजा सुनाई।

5.POCSO मामलों में सजा दर (Conviction Rate):→
   •NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में POCSO अधिनियम के तहत मामलों की सजा दर केवल 35.6% थी, जो न्याय प्रणाली में देरी और कमजोर जांच की ओर इशारा करती है।

 •2021 में POCSO मामलों में सजा दर में मामूली सुधार हुआ, लेकिन यह अभी भी एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, जहाँ जाँच एजेंसियों और न्यायालयों को अधिक कुशलता से काम करने की आवश्यकता है।

6.चुनौतियाँ:→
   •मामलों की रिपोर्टिंग में कमी:→ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी के कारण कई मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते। पारिवारिक दबाव या समाज में बदनामी के डर से भी बहुत से लोग मामलों की रिपोर्टिंग नहीं करते।
   
   •जाँच और न्याय में देरी:→POCSO अधिनियम के तहत मामलों की जाँच एक महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह अक्सर देरी से पूरी होती है। इससे पीड़ितों को न्याय मिलने में विलंब होता है।

 निष्कर्ष:→
भारत में POCSO अधिनियम के तहत रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या हर साल बढ़ रही है, जो जागरूकता, बेहतर रिपोर्टिंग प्रक्रिया, और सख्त कानून के कारण हो रहा है। हालाँकि, जाँच और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है, ताकि पीड़ित बच्चों को समय पर न्याय मिल सके और दोषियों को सख्त सजा दी जा सके। इसके साथ ही समाज में जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा को मजबूत करने से बच्चों के प्रति होने वाले यौन अपराधों में कमी लाई जा सकती है।

            POCSO अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) भारत में बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने, दोषियों को कड़ी सजा दिलाने, और पीड़ित बच्चों को कानूनी सहायता एवं समर्थन प्रदान करने के लिए बनाया गया है। 

यहाँ कुछ कारण दिए जा रहे हैं कि POCSO अधिनियम क्यों इतना महत्वपूर्ण है:→

1. बच्चों की सुरक्षा→
   •भारत में लाखों बच्चे यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं। POCSO अधिनियम इस तरह के अपराधों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
   •यह अधिनियम 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों (लड़के और लड़कियों दोनों) को सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे यह लिंग-निष्पक्ष कानून बन जाता है।
2. यौन अपराधों की स्पष्ट परिभाषा→
   •POCSO अधिनियम यौन अपराधों की स्पष्ट और विस्तृत परिभाषा देता है, जैसे:
     •यौन उत्पीड़न (Sexual Assault)
     •बाल यौन शोषण (Child Sexual Abuse)
     •यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
     •पोर्नोग्राफी का उपयोग (Child Pornography)
     •संपर्क और गैर-संपर्क आधारित अपराध (Contact and Non-Contact Offences)
   •यह स्पष्ट परिभाषाएँ कानून को सख्ती से लागू करने और दोषियों को सजा दिलाने में मदद करती हैं।

3. कानूनी प्रक्रिया में लचीलापन→
   •POCSO अधिनियम के तहत बच्चों की सुनवाई और गवाही देने की प्रक्रिया उनके हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। यह सुनिश्चित किया गया है कि बच्चे की मानसिक और शारीरिक स्थिति का सम्मान हो।
   •अदालतें बंद कमरे में (In-Camera Trial) सुनवाई करती हैं ताकि बच्चे की पहचान और गोपनीयता बनी रहे।

4. सख्त सजा का प्रावधान→
   •POCSO अधिनियम में अपराध की गंभीरता के अनुसार कठोर दंड का प्रावधान है। इसमें दोषियों को आजीवन कारावास या मृत्युदंड जैसी सजा दी जा सकती है।
   •इसके अलावा, यह सुनिश्चित किया गया है कि दोषी को तुरंत और प्रभावी सजा मिले ताकि अन्य लोग ऐसे अपराध करने से बचें।

 5. मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि→
   •POCSO अधिनियम ने अपराध की रिपोर्टिंग को सरल बनाया है। किसी भी व्यक्ति या संस्थान द्वारा यौन शोषण के मामले को न रिपोर्ट करने पर भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
   •यह कानून समाज में जागरूकता फैलाने और यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने में मदद करता है।

 6. जांच प्रक्रिया का मानकीकरण→
   •अधिनियम के अनुसार, बच्चों के बयान विशेष रूप से प्रशिक्षित महिला पुलिसकर्मी या मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए जाते हैं।
   •साथ ही, बच्चों की गवाही ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से ली जाती है, जिससे सबूतों की विश्वसनीयता और मजबूत होती है।

7. पीड़ित के पुनर्वास के प्रावधान→
   •POCSO अधिनियम में पीड़ित बच्चों के लिए पुनर्वास और मुआवजे का प्रावधान है। बच्चे के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं।
   •अधिनियम के तहत बाल कल्याण समितियों और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा बच्चों की सहायता के लिए विशेष व्यवस्था की गई है।

8.बाल पोर्नोग्राफी को अपराध घोषित करना→
   •POCSO अधिनियम में बाल पोर्नोग्राफी को एक विशेष अपराध घोषित किया गया है, जिसके तहत किसी भी बाल पोर्न सामग्री का निर्माण, संग्रह, वितरण, या प्रदर्शनी करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।

9. समाज और कानून की भागीदारी→
   • यह अधिनियम समाज के सभी वर्गों को बाल यौन शोषण के खिलाफ संगठित करने और अपराध की रिपोर्टिंग में योगदान देने के लिए प्रेरित करता है।
   •स्कूल, NGO, और अन्य संस्थान POCSO के तहत बच्चों को उनके अधिकारों और सुरक्षा के प्रति जागरूक करने का काम करते हैं।

उदाहरण:→
  •2019 के कठुआ बलात्कार मामला:→इस मामले में एक नाबालिग लड़की के साथ किए गए जघन्य यौन उत्पीड़न को लेकर देशभर में आक्रोश फैला। POCSO के तहत सुनवाई की गई और दोषियों को कड़ी सजा दी गई।
   •महाराष्ट्र का एक मामला:→एक स्कूल शिक्षक द्वारा यौन शोषण का मामला सामने आया। POCSO के तहत तुरंत कार्रवाई की गई और आरोपी को दोषी करार दिया गया। इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए बच्चे की गवाही को गोपनीय रखा गया और दोषी को सजा मिली।

निष्कर्ष:→
POCSO अधिनियम बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए भारत में एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह कानून न केवल अपराधियों को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मददगार है।
       POCSO अधिनियम के तहत Lower Court द्वारा दी जाने वाली सजा अपराध की गंभीरता और उसके प्रकार पर निर्भर करती है। इस अधिनियम में विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों के लिए सजा के प्रावधान निर्धारित किए गए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख अपराधों और उनके लिए दी जाने वाली सजा का विवरण दिया गया है:→

1.यौन उत्पीड़न (Sexual Assault)→
   •यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ शारीरिक रूप से यौन उत्पीड़न करता है, तो उसे कम से कम 3 साल से 5 साल तक की सजा दी जा सकती है। 
   •साथ ही, उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

2.गंभीर यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault)→
  •अगर यौन उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति कोई सरकारी कर्मचारी, पुलिसकर्मी, या बच्चा उस पर भरोसा करता है (जैसे शिक्षक, डॉक्टर आदि), तो इसे गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाता है।
   •इसके लिए कम से कम 5 साल से 7 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

3.बलात्कार (Penetrative Sexual Assault)→
   •यदि कोई व्यक्ति बच्चे के साथ यौन संबंध स्थापित करता है या किसी भी प्रकार से यौन शोषण करता है, तो उसे कम से कम 10 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
   • इसके अलावा, उसे जुर्माने का भी सामना करना पड़ सकता है।

4.गंभीर बलात्कार (Aggravated Penetrative Sexual Assault)→
   •यह तब होता है जब बलात्कार पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बलों का सदस्य, या बच्चा जिस पर भरोसा करता है (जैसे शिक्षक, डॉक्टर) द्वारा किया जाता है।
   •इसके लिए आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक की सजा हो सकती है। 

5.यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
   • किसी बच्चे को अश्लील इशारे करना, यौन उद्देश्यों से छूना या यौन शोषण करना यौन उत्पीड़न के अंतर्गत आता है।
   •इसके लिए 3 साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।

6.बाल पोर्नोग्राफी (Child Pornography)→
   •बाल पोर्नोग्राफी का निर्माण, संग्रहण या वितरण करना भी POCSO के तहत अपराध है। इसके लिए 5 साल से 7 साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।

7.झूठे आरोप (False Allegations)→
   •यदि कोई व्यक्ति किसी निर्दोष के खिलाफ झूठा आरोप लगाता है, तो उसे 6 महीने से 2 साल तक की सजा और जुर्माना का सामना करना पड़ सकता है।

8.रिपोर्टिंग में चूक (Failure to Report)→
  •यदि कोई व्यक्ति या संस्थान यौन शोषण की घटना को रिपोर्ट करने में विफल रहता है, तो उसे भी 6 महीने तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

निष्कर्ष:→
POCSO अधिनियम के तहत दी जाने वाली सजा अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर निर्भर करती है। Lower Courts द्वारा दोषियों को सजा सुनाई जाती है, जो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित होती है।
       POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम के तहत किसी अपराध को साबित करने के लिए कई कानूनी प्रक्रियाएँ और साक्ष्य एकत्रित किए जाते हैं। यह अधिनियम बच्चों के यौन शोषण से जुड़ी घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए विभिन्न प्रकार के सबूत और प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है। यहाँ बताया गया है कि POCSO के तहत किसी अपराध को कैसे साबित किया जाता है:→

1.पीड़ित का बयान
   •बच्चे का बयान (Section 164 CrPC):→पीड़ित बच्चे का बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाता है, जिसे महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में माना जाता है। बयान की रिकॉर्डिंग गोपनीयता बनाए रखने के लिए In-Camera होती है और इस प्रक्रिया में बच्चे की मनोवैज्ञानिक स्थिति का ध्यान रखा जाता है।
  •बच्चे का बयान सच्चाई साबित करने में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य हो सकता है, खासकर जब बच्चा घटना का स्पष्ट और तार्किक रूप से विवरण देता है।

2.मेडिकल परीक्षण→
  •मेडिकल परीक्षण (Section 27 of POCSO Act):→पीड़ित बच्चे का तुरंत मेडिकल परीक्षण किया जाता है ताकि शारीरिक चोट, यौन हमले के निशान, या अन्य वैज्ञानिक साक्ष्य प्राप्त किए जा सकें। मेडिकल रिपोर्ट महत्वपूर्ण साक्ष्य होती है, जो अपराध के समय यौन शोषण की पुष्टि कर सकती है।

   •स्वास्थ्य परीक्षण पीड़ित और आरोपी दोनों का किया जा सकता है ताकि DNA जैसे महत्वपूर्ण सबूत जुटाए जा सकें।

3.साक्ष्य संग्रह (Forensic Evidence)
   •घटनास्थल से फॉरेंसिक साक्ष्य जैसे कपड़े, खून, वीर्य, बाल, उंगलियों के निशान आदि एकत्रित किए जाते हैं। यह सबूत DNA प्रोफाइलिंग द्वारा अपराधी की पहचान करने में मदद करते हैं।
      •फॉरेंसिक रिपोर्ट और अन्य वैज्ञानिक परीक्षण (जैसे- DNA टेस्ट, साइबर फॉरेंसिक रिपोर्ट) अपराध की पुष्टि करने में मदद करते हैं।

4.ऑडियो-वीडियो साक्ष्य→
   •कुछ मामलों में, पीड़ित के बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाती है। यह POCSO अधिनियम के तहत मान्य है और इसे अदालत में सबूत के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  •यदि अपराध का कोई वीडियो रिकॉर्डिंग या अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य मौजूद है, तो उसे भी अदालत में साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है।

5.प्रत्यक्षदर्शी (Eyewitness)→
   •यदि किसी प्रत्यक्षदर्शी ने अपराध होते देखा है, तो उसकी गवाही भी महत्वपूर्ण होती है। यह प्रत्यक्षदर्शी कोई भी हो सकता है - पड़ोसी, परिवार का सदस्य, या अन्य कोई व्यक्ति जिसने अपराध देखा हो।

6.आरोपी का बयान और स्वीकारोक्ति
  •यदि आरोपी अपराध की जांच के दौरान स्वीकारोक्ति करता है या मजिस्ट्रेट के सामने बयान देता है, तो इसे अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हालाँकि, यह स्वैच्छिक और बिना किसी दबाव के होना चाहिए।
  •यदि पुलिस द्वारा आरोपी से कोई अन्य महत्वपूर्ण सबूत या सुराग मिलता है, तो उसे भी अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है।

7.डिजिटल साक्ष्य→
 •डिजिटल साक्ष्य जैसे कि सोशल मीडिया, मोबाइल फोन की चैट, या कॉल रिकॉर्ड्स भी POCSO के तहत अपराध को साबित करने में सहायक हो सकते हैं। यदि अपराधी ने किसी डिजिटल माध्यम से पीड़ित को धमकाया, ब्लैकमेल किया, या किसी भी तरह से यौन शोषण किया, तो उसे अदालत में पेश किया जा सकता है।
  विशेषकर बाल पोर्नोग्राफी के मामलों में, डिजिटल उपकरणों की जाँच (जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप) से आरोप सिद्ध किए जा सकते हैं।

8.अन्य गवाही (Character Witness)→
   •कभी-कभी अदालत में अपराध से जुड़े अन्य लोगों की गवाही (जैसे शिक्षक, माता-पिता, या मित्र) भी महत्वपूर्ण हो सकती है। इससे पीड़ित की मानसिक स्थिति, घटना के बाद के बदलाव, और सामाजिक परिस्थितियों के बारे में जानकारी मिलती है।

9. मनोवैज्ञानिक परीक्षण→
   •गंभीर मामलों में, पीड़ित बच्चे का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी किया जा सकता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि अपराध का उसके मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा है। यह साक्ष्य अदालत में पेश किया जा सकता है, जो बच्चे की विश्वसनीयता और अपराध की गंभीरता को साबित करने में मदद करता है।

10. अपराध स्थल का निरीक्षण→
  •अपराध स्थल का निरीक्षण और उसकी फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी भी एक महत्वपूर्ण साक्ष्य होती है। इससे यह प्रमाणित किया जा सकता है कि अपराध कहां और कैसे हुआ।

उदाहरण:→
   •कठुआ बलात्कार मामला (2018):→इस मामले में पीड़ित एक नाबालिग लड़की थी, और अपराध की गंभीरता के कारण आरोपी को सजा मिली। मेडिकल परीक्षण और फॉरेंसिक साक्ष्य ने यह साबित करने में मदद की कि पीड़ित के साथ बलात्कार हुआ था। डिजिटल और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर दोषियों को सजा दी गई।

निष्कर्ष:→
POCSO अधिनियम के तहत अपराध को साबित करने के लिए मेडिकल रिपोर्ट, फॉरेंसिक साक्ष्य, पीड़ित और गवाहों के बयान, और अन्य प्रकार के साक्ष्यों का उपयोग किया जाता है। यह अधिनियम बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने और यौन अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के उद्देश्य से बनाया गया है, और न्यायिक प्रक्रिया में इन साक्ष्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
            POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए एक कठोर कानून है। इस कानून के तहत अपराधियों को सख्त सजा का प्रावधान है, लेकिन कई बार परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जहाँ आरोपी को बरी कर दिया जाता है। यहाँ कुछ रोचक तथ्य और केस दिए गए हैं, जिनमें आरोपी को बाइज्जत बरी किया गया:→

1.POCSO अधिनियम के तहत शिकायतों का गलत उपयोग}→
   •कई बार ऐसा देखा गया है कि POCSO अधिनियम का दुरुपयोग व्यक्तिगत दुश्मनी या बदले की भावना से किया गया है। 
  • कुछ मामलों में, गलत आरोप लगाए गए होते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति को फंसाया जाता है। यह समाज में एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि POCSO के तहत आरोप गंभीर होते हैं और इसमें दोषी को कठोर सजा हो सकती है।

2.आयु का विवाद (Age Discrepancy)→
   •POCSO अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सुरक्षा प्रदान करता है। कई बार यह साबित करना मुश्किल हो जाता है कि पीड़ित वास्तव में नाबालिग था या नहीं।
  •इस तरह के मामलों में अदालत को जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल रजिस्ट्रेशन, और अन्य दस्तावेज़ों की सटीकता पर निर्भर करना पड़ता है।

3.कंसेंट (Consent) और रिश्ते की जटिलताएँ→
   •कई बार POCSO के तहत ऐसे मामले दर्ज होते हैं जहाँ दोनों पक्ष सहमति से रिश्ते में होते हैं, लेकिन लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम होती है। 
   •इस स्थिति में, कानून के तहत भले ही लड़की नाबालिग हो, लेकिन सहमति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है। 

4.कानूनी प्रक्रिया की खामियाँ (Legal Technicalities)→
  •यदि जांच में पुलिस द्वारा कोई खामी रह जाती है, जैसे कि सही तरीके से साक्ष्य इकट्ठा न किया जाना, या बच्चे का बयान कानूनी प्रक्रिया के अनुसार रिकॉर्ड न किया जाना, तो आरोपी को बरी किया जा सकता है।


महत्वपूर्ण केस:→

1.अलीगढ़ का मामला (2019)→
   •मामला:→आरोपी पर एक नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण का आरोप था। पीड़ित के परिवार ने आरोपी के खिलाफ केस दर्ज कराया था।
   •निर्णय:→अदालत ने पाया कि पीड़ित लड़की ने झूठा आरोप लगाया था क्योंकि आरोपी के परिवार के साथ पीड़ित के परिवार की दुश्मनी थी। इस मामले में साक्ष्यों की कमी और विरोधाभासी बयानों के कारण आरोपी को बरी कर दिया गया।
 •महत्व:→इस केस में यह स्पष्ट हुआ कि बिना पुख्ता साक्ष्यों के किसी पर यौन शोषण का आरोप लगाना कितना गंभीर हो सकता है, और अदालत ने आरोपी को बाइज्जत बरी किया।

2.दिल्ली उच्च न्यायालय का मामला (2020)→
   •मामला:→एक व्यक्ति पर 16 वर्षीय लड़की के साथ यौन शोषण का आरोप लगाया गया था। लड़की के बयान और मेडिकल रिपोर्ट में गंभीर अंतर पाया गया।
   •निर्णय:→अदालत ने मेडिकल रिपोर्ट और बयानों में विरोधाभास के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया। जज ने कहा कि "मात्र आरोप लगाना ही पर्याप्त नहीं है, साक्ष्य का पुख्ता होना जरूरी है।"
   •महत्व:→इस केस ने साबित किया कि बिना सटीक साक्ष्यों के POCSO के तहत सजा देना संभव नहीं है।

3. बॉम्बे हाईकोर्ट का "स्किन टू स्किन" फैसला (2021)→
   •मामला:→एक व्यक्ति पर एक नाबालिग लड़की को बिना कपड़ों के छूने का आरोप था। 
   •निर्णय:→बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि अगर यौन उत्पीड़न का आरोप है तो “स्किन टू स्किन” संपर्क होना जरूरी है। इस आधार पर आरोपी को बरी कर दिया गया।
   •महत्व:→यह फैसला विवादास्पद था, लेकिन इसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पलटा गया। यह केस इस बात का उदाहरण है कि कानूनी शब्दावली और प्रावधानों की जटिलताएँ किस प्रकार आरोपी को बरी करवा सकती हैं।

4. गुड़गांव का मामला (2018)→
   मामला:→एक नाबालिग लड़की ने अपने शिक्षक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था और स्कूल प्रबंधन ने भी उसके खिलाफ कार्रवाई की।
   निर्णय:→जाँच के दौरान यह पाया गया कि लड़की ने अपने खराब परिणामों के चलते शिक्षक पर झूठा आरोप लगाया था। आरोपी को सारे आरोपों से बरी कर दिया गया।
   •महत्व:→ यह मामला बताता है कि कैसे कभी-कभी निजी कारणों से गलत आरोप लगाए जा सकते हैं और न्यायिक प्रक्रिया के दौरान सच्चाई सामने आती है।

5.मधुबनी का मामला (2017)→
   मामला: →एक नाबालिग लड़की ने एक व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाया था। लड़की और उसके परिवार के बीच भूमि विवाद था।
   •निर्णय:→अदालत ने पाया कि लड़की और उसके परिवार ने भूमि विवाद को लेकर आरोपी पर झूठे आरोप लगाए थे। साक्ष्यों और बयानों में भी विरोधाभास पाया गया। आरोपी को बरी कर दिया गया।
   •महत्व:→इस केस ने दिखाया कि निजी झगड़ों और संपत्ति विवादों के चलते भी POCSO के प्रावधानों का दुरुपयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष→
POCSO अधिनियम के तहत यौन अपराधों के आरोप गंभीर होते हैं, लेकिन कभी-कभी झूठे आरोप या साक्ष्यों की कमी के कारण आरोपी को बरी कर दिया जाता है। समाज और कानूनी प्रणाली का यह कर्तव्य है कि वह वास्तविक पीड़ितों को न्याय दिलाने के साथ-साथ झूठे आरोपों के मामलों में निर्दोष व्यक्तियों की रक्षा करे।


POCSO Act:→

1. POCSO Act
2.Protection of Children from Sexual Offences Act
3. POCSO case studies
4. POCSO Act bail provisions
5. POCSO Act importance
6. POCSO Act penalties
7. False accusations under POCSO Act
8. Notable POCSO cases
9. Child protection laws in India
10. POCSO Act case law
11. POCSO Act 2012
12. POCSO Act medical examination
13. POCSO Act court rulings
14. Sexual abuse laws for children 
15.POCSO Act legal defenses
16. Landmark POCSO judgments
17. POCSO Act misuse
18. Legal rights of children in India
19.POCSO Act and consent
20. How to defend POCSO charges 



POCSO अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) के तहत किसी भी व्यक्ति पर आरोप लगाए जा सकते हैं, चाहे वह वयस्क हो या नाबालिग। हालांकि, यदि आरोपी खुद नाबालिग है, तो उसे किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act, 2015) के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ता है।

 क्या नाबालिग आरोपी POCSO के तहत आएगा?

POCSO अधिनियम बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित है और इसमें पीड़ित बच्चे की आयु 18 वर्ष से कम होनी चाहिए। लेकिन जब आरोपी खुद नाबालिग होता है, तो उसकी सुनवाई वयस्क अदालत में नहीं की जाती। उसे Juvenile Justice Board (किशोर न्याय बोर्ड) के सामने पेश किया जाता है। 

महत्वपूर्ण बिंदु:→
1. किशोर आरोपी के मामले में जाँच और सुनवाई किशोर न्याय अधिनियम के तहत होती है, न कि POCSO के वयस्क अभियुक्तों की तरह।
2. यदि किशोर न्याय बोर्ड यह मानता है कि आरोपी की मानसिक परिपक्वता और अपराध की गंभीरता ऐसी है कि उसे वयस्क के रूप में मुकदमे का सामना करना चाहिए, तो उसे वयस्क अदालत में भेजा जा सकता है (आमतौर पर यह सिर्फ गंभीर अपराधों में होता है)।
3. नाबालिग अपराधी के खिलाफ सजा दी जा सकती है, लेकिन यह सजा सुधारात्मक होती है, न कि प्रतिशोधात्मक। 

महत्वपूर्ण केस उदाहरण:→

1.Pratap Singh v. State of Jharkhand (2005)
   •मामला→ इस केस में आरोपी की उम्र विवाद का विषय था। आरोपी ने यौन उत्पीड़न का अपराध किया था, लेकिन उसका दावा था कि वह अपराध के समय नाबालिग था।
   •निर्णय:→सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी की आयु अपराध के समय के आधार पर तय की जाएगी। यदि आरोपी नाबालिग साबित होता है, तो उस पर किशोर न्याय अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाएगा, न कि POCSO अधिनियम के तहत।
   •महत्व:→इस केस ने यह स्पष्ट किया कि किसी आरोपी की आयु का निर्धारण उसके अधिकार और उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2.राजस्थान उच्च न्यायालय का मामला (2020)
   •मामला:→एक नाबालिग लड़के पर 16 साल की लड़की के साथ यौन शोषण का आरोप था। लड़की के परिवार ने POCSO अधिनियम के तहत केस दर्ज किया।
   •निर्णय:→अदालत ने यह पाया कि लड़का खुद नाबालिग था और मामले को किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया। किशोर न्याय बोर्ड ने पुनर्वास पर ध्यान दिया, न कि सजा पर।
   •महत्व:→यह केस दिखाता है कि नाबालिग आरोपियों के साथ कानून किस तरह सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है और वयस्कों की तरह सख्त सजा देने की बजाय उन्हें सुधारने पर जोर देता है।

3.{Murugan vs. State (2021)}
   •मामला→ एक नाबालिग लड़के पर यौन अपराध का आरोप था और उसे POCSO अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया। मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा गया।
  •निर्णय →किशोर न्याय बोर्ड ने आरोपी को सुधारगृह में भेजने का आदेश दिया, क्योंकि वह नाबालिग था। अदालत ने यह भी कहा कि नाबालिग आरोपियों के मामलों में सुधारात्मक न्याय का पालन किया जाना चाहिए।
  •महत्व:→यह मामला यह दर्शाता है कि कानून नाबालिग अपराधियों के सुधार को प्राथमिकता देता है, उन्हें सजा देकर समाज से अलग करने के बजाय उन्हें फिर से सामाजिक मुख्यधारा में शामिल करने पर जोर देता है।

निष्कर्ष:→
अगर आरोपी नाबालिग है, तो उसे POCSO अधिनियम के बजाय  किशोर न्याय अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ता है। कानून की यह संरचना इस बात को सुनिश्चित करती है कि नाबालिग अपराधियों को सुधारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए और उनके लिए सुधारगृह या अन्य पुनर्वासात्मक विकल्पों का इस्तेमाल किया जाए। 

हालांकि, अगर मामला बहुत गंभीर हो, तो किशोर न्याय बोर्ड यह भी तय कर सकता है कि नाबालिग आरोपी को वयस्क अदालत में पेश किया जाए। Pratap Singh v. State of Jharkhand जैसे केस यह साबित करते हैं कि कानूनी प्रक्रिया में आरोपी की उम्र का निर्धारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और अगर वह नाबालिग है, तो उसे सुधारात्मक प्रक्रिया से गुजारा जाएगा, न कि प्रतिशोधात्मक सजा दी जाएगी।



POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग आरोपियों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है, इसे कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझाया जा सकता है:→
1.मामला: Pratap Singh बनाम झारखंड राज्य (2005)→
   
मामले के तथ्य:→
Pratap Singh नाम के एक लड़के पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था। आरोपी ने यह दावा किया कि घटना के समय वह नाबालिग था, और उसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत सुनवाई का अधिकार है, न कि POCSO अधिनियम के तहत। 

निर्णय:→
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी की आयु का निर्धारण अपराध के समय के आधार पर होगा। अगर वह अपराध के समय नाबालिग था, तो उसे किशोर न्याय अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। 

महत्व:→
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि नाबालिग आरोपियों को विशेष सुरक्षा प्राप्त होती है, और उनके मामलों की सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) द्वारा की जाती है, न कि सामान्य अदालतों में।

2.मामला: XYZ बनाम राज्य सरकार (2019, राजस्थान)→
   
मामले के तथ्य:→ 
16 वर्षीय एक नाबालिग लड़के पर 15 वर्षीय लड़की के साथ यौन शोषण का आरोप था। लड़की के परिवार ने POCSO अधिनियम के तहत केस दर्ज किया। मामले की जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि लड़का भी नाबालिग है।

निर्णय:→ 
मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा गया। बोर्ड ने आरोपी को सुधारात्मक देखरेख (rehabilitation) के तहत सुधारगृह भेजा, जहाँ उसके मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सुधार पर ध्यान दिया गया।

महत्व:→
यह मामला दर्शाता है कि नाबालिग आरोपियों के मामले में POCSO अधिनियम के तहत सजा के बजाय सुधारात्मक प्रक्रिया अपनाई जाती है। ऐसे मामलों में कानून का उद्देश्य नाबालिग को सुधारने और उसे समाज का हिस्सा बनाए रखने का होता है।

 3. मामला: Murugan बनाम तमिलनाडु राज्य (2021)→

मामले के तथ्य:→
Murugan नाम का एक नाबालिग लड़का अपनी ही कक्षा की 14 वर्षीय लड़की के साथ यौन दुर्व्यवहार के आरोप में गिरफ्तार हुआ था। इस मामले में लड़की के परिवार ने POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था।

निर्णय:→ अदालत ने आरोपी को POCSO अधिनियम के तहत सजा देने के बजाय, किशोर न्याय अधिनियम के तहत केस की सुनवाई के लिए किशोर न्याय बोर्ड (JJB) को मामला भेजा। बोर्ड ने यह निर्णय किया कि आरोपी को सुधारगृह भेजा जाएगा और उस पर पुनर्वास कार्यक्रम लागू किए जाएंगे।

महत्व:→
यह केस भी यह दिखाता है कि नाबालिग अपराधियों को किशोर न्याय बोर्ड के अधीन लाकर सुधारात्मक कार्यवाही पर अधिक ध्यान दिया जाता है। बोर्ड ने आरोपी को सुधारने और उसका पुनर्वास सुनिश्चित करने का प्रयास किया।

4. मामला: Jitendra Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2020)→

मामले के तथ्य:→
Jitendra Kumar नाम के एक 17 वर्षीय लड़के पर उसकी पड़ोस की 13 वर्षीय लड़की के साथ यौन दुर्व्यवहार का आरोप था। POCSO अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज हुई और पुलिस ने उसे
  हिरासत में लिया।

निर्णय:→☺:
इस मामले को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लाया गया, जहाँ यह पाया गया कि आरोपी लड़के के सुधार के लिए उसे सुधारगृह भेजा जाना चाहिए। बोर्ड ने इस बात पर ध्यान दिया कि आरोपी नाबालिग है और उसे सुधारने का अवसर मिलना चाहिए।

महत्व:→
इस केस में यह साबित हुआ कि नाबालिग आरोपियों के मामले में सुधारात्मक न्याय का सिद्धांत महत्वपूर्ण है। बोर्ड ने सख्त सजा की बजाय आरोपी को सुधारने पर जोर दिया, ताकि वह समाज में एक जिम्मेदार नागरिक बन सके।


निष्कर्ष:→
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि जब कोई नाबालिग आरोपी POCSO अधिनियम के तहत अपराध करता है, तो उसकी सुनवाई सामान्य अदालत में नहीं होती। उसकी सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड द्वारा की जाती है, और उसका पुनर्वास और सुधार सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है। इन मामलों में सुधारात्मक दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि नाबालिग अपराधी को समाज में पुनः शामिल किया जा सके और उसका सुधार किया जा सके।






    

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