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Showing posts with the label Pleading and Conveyance

क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

अभिहस्तान्तरण लेखन से क्या अभिप्राय है ? What is meant by writing of assignment?

अभिहस्तान्तरण लेखन से हमारा अभिप्राय ऐसे लेखन से है जिसमें किसी सम्पति का या उसमें के किसी हित का हस्तान्तरण अन्तरक और आन्तरिती के बीच किसी संविदा के अन्तर्गत होता है । सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 2 ( 10 ) के अनुसार हस्तान्तरण लेखन से अभिप्राय एकजीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीवित व्यक्ति को चल या अचल सम्पत्ति के अन्तरण से है । चूँकि अभिहस्तान्तरण का कार्य किसी विलेख द्वारा ही किया जा सकता है , इसलिए ऐसे विलेख का निर्माण दूसरे प्रकार के हस्तान्तरण से या पक्षकारों से संविदा से उत्पन्न होने वाले अधिकार व दायित्व से होता है । हस्तान्तरण लेखन शब्द में वे सभी सत्यव्यवहार सम्मिलित होते हैं जिनके द्वारा कानूनी अधिकार उत्पन्न होते हैं और व्यक्तियों के बीच कानूनी सम्बन्ध की उत्पत्ति होती है । वास्तव में अभिहस्तान्तरण लेखन का अभिप्राय है कि उससे यह स्पष्ट रूप से पता चल सके कि किन परिस्थितियों में और किन अनुबन्धों सहित संविदा करने वाले व्यक्तियों का किसी सम्पत्ति से सम्बन्धित अधिकारों तथा दायित्वों में परिवर्तन हुआ । गिब्सन के अनुसार , " हस्तान्तरण लेखन की विषय वस्तु सम्बन्धी अन्तरण से सम्ब

न्यायालय किन आधारों पर वाद - पत्र को खारिज कर सकता है ?On what grounds can the court dismiss the plaint?

वाद - पत्र का अर्थ: वाद का प्रारम्भ वाद - पत्र के दाखिल करने पर होता है और यह वाद का प्रथम अभिवचन है । यह वादी के दावे का कथन होता है जिसके आधार पर वह न्यायालय से अनुतोष की माँग करता है । अतः वाद - पत्र वादी की वह आधारशिला है जिस पर वह अपने मामले की इमारत खड़ी करता है । यदि वादी का वाद - पत्र उचित है तो उसके दावे में कानूनी गलतियों के होने का डर नहीं रहता है , परन्तु जहाँ वाद - पत्र त्रुटिपूर्ण होते हैं वहाँ कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं तथा जो कभी कभी इतना गम्भीर रूप धारण कर लेते हैं कि उनको दूर करना असम्भव हो जाता है । वाद - पत्र के निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं -  ( 1 ) वाद - पत्र का शीर्षक और नाम ,  ( 2 ) वाद - पत्र का शरीर ,  ( 3 ) दावा किया गया अनुतोष ,  ( 4 ) सत्यापन ।  Meaning of plaint:  The suit begins with the filing of the plaint and it is the first pleading of the suit.  It is the statement of claim of the plaintiff on the basis of which he demands relief from the court.  Therefore, plaint is the foundation stone of the plaintiff on which he builds the building of h

आपराधिक मामलों मे प्रारुप तैयार करने के लिये कौन से नियमों का पालन करना आवश्यक होता है?Which rules are necessary to be followed for drafting in criminal cases?

भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता अपराधों को दो भागों के विभाजित करती है । पहला संज्ञेय अपराध (Cognizable offence ) दूसरा   अंसज्ञेय अपराध ( Non Cognizable  )  संज्ञेय  अपराध ( Cognizable offence)  संज्ञेय  अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसमें पुलिस अधिकारी  प्रथम अनुसूची के या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकती है । ऐसे अपराध जो गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के होते है । दूसरे शब्दों में संज्ञेय  अपराध के अन्तर्गत गम्भीर प्रकृति के अपराध आते हैं , जैसे- हत्या ,  डकैती , अपराध अपहरण , किसी के घर या खलिहान  में आग लगा देना । कुछ अपराध ऐसी प्रणाली के होते हैं जिनमें राज्य सरकार का कर्तव्य हो जाता है कि वह ऐसे अपराधों से अपने नागरिकों की रक्षा करे तथा सम्पत्ति की क्षति को रोकें । जैसे बल्वा , चोरी , संघातिक  चोटें | ऐसे अपराधों के लिये पुलिस को न्यायालय में चार्जशीट प्रस्तुत करने का अधिकार है ।  The Indian Criminal Procedure Code divides crimes into two parts.  First Cognizable offense Second Non Cognizable offense   Cognizable offense  Cognizable offense mean

जमानत प्रार्थना पत्र का प्रारुप कैसे लिखें यदि मुल्जिम जेल मे है? How to write bail application format if the criminal is in jail?

    न्यायालय श्रीमान जिला एवं सत्र न्यायाधीश महोदय ,  मु ० अ ० सं ०               थाना   कोतवाली नगर                                            दादूराम         बनाम             सरकार                                                                                                                                                                                                                                                                                          धारा   प्रथम जमानत प्रार्थना पत्र मिनजानिब दादूराम पुत्र कल्लूराम निवासी ग्राम पहुई थाना कोतवाली नगर जिला बांदा निम्नलिखित है-  1. यह कि प्रार्थी निर्दोष है उक्त मुकदमें में सरासर झूठा व गलत नामजद रंजिशन व साजिशन किया  गया है ।     २.यह कि एफ ० आई ० आर ० व्यापक बिलम्ब से है विलम्ब का कोई  स्पष्टीकरण नहीं है । 3. यह कि प्रार्थी  का घटना घटित करने का कोई हेतुक  नहीं है । प्रथम सूचना रिपोर्ट में कथित किया गया  हेतुक बनावटी है ।  4. यह कि प्रथम सूचना रिपोर्ट मनगढंत व झूठी है तथा अपहरण किये जाने का प्रथम सूचना रिपोर्ट में नतो कोई  चक्ष

अन्तर्राभिवचनीय वाद में वाद पत्र की रचना कीजिए । ( Draft a plaint in an inter pleader suit . )

                        न्यायालय श्रीमान सिविल जज ( जू ० डि ० ) महोदय ,बांदा वाद संख्या ........                                                                                                        ........सन् 2022                         अ पुत्र क आयु लगभग ....... वर्ष निवासी मुहल्ला (जिला ) ........वादी                                                                                      बनाम . ..  ( i ) ब पुत्र ख आयु लगभग ...... वर्ष मुहल्ला  , निवासी (जिला ) प्रतिवादी संख्या 1 ( ii ) स विधवा ग आयु लगभग .... वर्ष , निवासनी मुहल्ला (जिला ) प्रतिवादनी संख्या - 2  वादी निम्नलिखित सादर निवेदन करता है  1. यह कि 4 जनवरी  2022 ई ० को ग ने आभूषणों का एक सन्दूक सुरक्षित अभिरक्षा के लिए वादी के पास जमा किया था ।  2. यह कि उक्त ग दिनांक 27 जनवरी  , 2022 ई ० को मर गया ।  3. यह कि प्रतिवादी नं ० । मृतक ग के दत्तक पुत्र की हैसियत से वादी से उन आभूषणों के सन्दूक को प्राप्त करने का दावा करता है ।  4. यह कि प्रतिवादी नं ० 2 भी उपर्युक्त ग की विधवा के रूप में उक्त सन्दूक को लेने का दावा ककरती है और

प्रलेख शास्त्र क्या होते हैं ? इसके उद्देश्य इंगित करते हुए एक बिलेख के आवश्यक अंगों की व्याख्या कीजिए । ( What do you understand by conveyancing . Discuss the essential party off a dood . )

प्रलेख शास्त्र से आशय ( Meaning of Conveyancing )  कोई व्यक्ति अपने साम्पत्तिक अधिकारों को विभिन्न प्रकार से अन्तरित कर सकता है । उदाहरणार्थ - विक्रय , पट्टे दान आदि के विलेखों द्वारा तथा इन्हीं क्लेिखों एवं दस्तावेजों के लिखने को प्रलेखन कहते हैं । पिब्सन के अनुसार , “ किसी पक्षकार के कार्य द्वारा एक दस्तावेज के माध्यम से सम्पत्ति और सम्पत्ति के अधिकारों के अन्तरण के सम्बन्धी विधि को प्रलेखशास्त्र की विधि कहा जा सकता है । " Meaning of Conveyancing  A person can transfer his property rights in various ways.  For example - through the deeds of sale, lease donation etc. and the writing of these writings and documents is called documentation.   According to Pibson, “ The law relating to the transfer of property and rights to property by means of a document by the act of a party may be called the law of documentation”.  ,  सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम की धारा 2 ( 10 ) के अनुसार , हस्तान्तरण लेखन से तात्पर्य एक जीवित व्यक्ति द्वारा दूसरे जीक्ति व्यक्ति को चल या अचल सम्पत्ति क

विशिष्टयाँ क्या हैं ? अभिवचनों में किन विशिष्टियों का दिया जान आवश्यक है ? विशिष्टियों एवं सारभूत तथ्यों में प्रभेद कीजिए । ( What are particulars ? What particulars are required to be given in the particulars ? Distinguish between particulars and material facts . )

 विशिष्टियों से आशय ( Meaning of Particulars )                 विशिष्टियों से तात्पर्य पक्षों द्वारा वाद - पत्र में उठाई गई घटनाओं के स्पष्ट और निश्चित वर्णन से है । विशिष्टियों के अन्तर्गत दावों के विभिन्न कथन शामिल हैं जो वादी या प्रतिवादी अपने वाद - पत्र या लिखित कथन या मौखिक ब्यान में देते हैं । किसी वाद में किसी घटना का कितनी मात्रा में विवरण दिया जाना चाहिये , इसका कोई निश्चित नियम नहीं है । किन्तु उतनी निश्चितता और विवरण पर जोर दिया जाना चाहिये जितना जरूरी समझा जाये । उदाहरणार्थ- किसी बेनामी लेन देन सम्बन्धी वाद में उन तथ्यों की विशिष्टियाँ ( विवरण ) दिये जाने चाहिये जिनसे यह ज्ञात हो सके कि अभिवचन का पक्ष या विपक्ष किस प्रकार बेनामी हुआ ; जैसे - वादी ने प्रतिफल दिया और बयनामा प्रतिवादी के नाम लिखाया गया ।                 सामान्यत : विवरण के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं- पहला यह कि वादी द्वारा प्रतिवादी को इस बात की जानकारी देना कि यह किन - किन बातों पर अपना वाद पेश करके न्यायालय से अनुतोष पाना चाहता है ; दूसरे अभिवचनों की व्यापकता को सीमित करना ताकि पूछ ताछ के समय पक्

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील एवं साम्यिक प्रतिसादन तथा विधिक प्रतिसादन क्या होते है?

प्रति आपत्ति तथा प्रति अपील ( Cross objection and Cross Appeal )  प्रति आपत्ति ( Cross objection ) — जहाँ कि पारित की गई डिक्री भागतः उत्तरवादी के खिलाफ है तथा भागत : उसके पक्ष में है और ऐसी डिक्री से अपील की जाती , वहाँ उत्तरवादी डिक्री के इस भाग पर तो उसके खिलाफ है , ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जो एक पृथक् अपील के रूप में की जा सकती थी । ऐसी आपत्तियों को प्रति आपत्तियाँ ( Cross - objection ) कहते हैं और वे एक ज्ञापन के रूप में प्राप्त की जाती है ।          कोई भी उत्तरवादी ( Respondent ) किसी आधार पर जो उसके खिलाफ , निचली अदालत में फैसला किये गये हैं , उस डिक्री का केवल समर्थन ही नहीं कर सकेगा बल्कि इस डिक्री पर कोई भी ऐसी आपत्ति कर सकेगा , जिसे उसने अपील द्वारा किया होता ।           प्रति आपत्तियाँ उत्तरवादी ( Respondent ) द्वारा अपीलीय न्यायालय में उस तारीख से एक महीने के अन्दर जिस तारीख पर तामील की गई है , या ऐसे अतिरिक्त समय के अन्दर जैसी कि ..अपीलीय अदालत मंजूर करे , दायर की जा सकेगी ।            प्रति आपत्ति की तामील - यदि उत्तरवादी ( Respondent ) अपनी आपत्ति के साथ - सा

शपथ पत्र क्या होते हैं ? शपथ पत्र का प्रारूप तैयार करने के कौन से नियम है का वर्णन कीजिए । ( What do you understand by affidavit ? Describe the rules for making he affidavit . )

    शपथ पत्र का अर्थ ( Meaning of Affidavit ) शपथपत्र से आशय ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे शपथ पत्र लेकर किसी प्राधिकारी के सम्मुख किया गया हो । दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 19 नियम 3 के अनुसार वाद में प्रयोग किए जाने वाले शपथ पत्र को छोड़कर शेष समस्त शपथ पत्रों में केवल ऐसे तथ्यों को ही लिखा जाना चाहिए जिसे शपथग्रहीता निजी ज्ञान पर सिद्ध कर सके तथा बाद में उपयोग आने वाले शपथ पत्रों के विश्वास पर आधारित कथन को भी ग्रहण कर सकता है किन्तु विश्वास से ग्रहण करने के कारण का भी कथन करना आवश्यक है ।               इस प्रकार शपथ पत्र न्यायालय की विभिन्न कार्यवाहियों में पक्षकारों द्वारा दाखिल किये जाते हैं । इसके द्वारा किसी ऐसे तथ्य की साक्ष्यता के बारे में प्रतिज्ञा की जाती है जिसका या तो लिखित प्रमाण नहीं होता है अथवा किसी साक्ष्य द्वारा साबित नहीं किया जा सकता । शपथ पत्र का अर्थ शपथ पर किये हुए ऐसे लिखित कथन से होता है जिसे किसी प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष किया गया हो ।           शपथ पक्ष में साधारणतया वही तथ्य होने चाहिए जिन्हें शपथ पर लेने वाला अपने ज्ञान से सिद्ध कर सके ।