Skip to main content

Posts

क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

समागम की पुन र्प्राप्ति क्या होती है ? इसका मुस्लिम विवाह से या मुस्लिम विधि से किस प्रकार सम्बन्ध है?

समागम की पुनर्प्राप्ति का अधिकार ( The restitution of Conjugal Right ) – मुस्लिम विधि के अनुसार , निकाह की पूर्णता तभी होती है जब पुरुष अपनी पत्नी के साथ सहवास करके उस निकाह को पूर्ण करे । कोई निकाह तब तक पूरा नहीं होता जब तक कि उसका भोग ( Consummation ) न किया गया हो और तभी सम्बन्धित स्त्री भी मेहर की अधिकारिणी होती है । अतः किसी मामले में यदि पति या पत्नी दोनों में से कोई सहवास के अधिकार के बिना किसी मामले में यदि पति या पत्नी दोनों में से कोई सहवास के अधिकार के बिना उचित कारण से वंचित कर दिया जाये तो इससे पीड़ित पक्ष ( aggrieved party ) को यह अधिकार होता है कि वह सहवास के अधिकार भी पुनश्राप्ति ( restitution ) के लिए  न्यायालय में वाद स्थापित कर सके ।            यदि पति द्वारा अपनी पत्नी के विरुद्ध सहवास के अधिकारक पुनर्प्राप्ति के लिए वाद दायर किया जाता है तो पत्नी निम्नलिखित तथ्यों को अपने लिए अच्छे बचाव ( good defence ) के रूप में प्रस्तुत कर सकती है  ( 1 ) अमान्य रीति से विवाह  ( 2 ) कानूनी निर्दयता  ( 3 ) तुरन्त मेहर न दिया जाना ।  ( 4 ) लियन तथा जिहार ।  ( 5 ) पति

मुता विवाह क्या होता है? इसके कानूनी प्रभाव क्या है?मुता विवाह और वैध विवाह में क्या अन्तर होता है?

 ( Muta marriage ) - मुता ' का शाब्दिक अर्थ है ' उपभोग ' (enjoyment) या उपयोग ।हेफनिंग के अनुसार , कानूनी संदर्भ में इसे ' आनन्द के लिए विवाह कहा जाता है । मुता विवाह एक अस्थायी विवाह होता है जिसमें पत्नी को देय मेहर की धनराशि निश्चित रहती है और विवाह का समय निश्चित रहता है । मुस्लिम विधि के अनुसार , निकाह विवाह दीवानी संविदा होती है जो कि स्थायी ( Permanent ) और अस्थायी ( Temporary ) दो प्रकार से हो सकती है । अतः जब किसी निकाह के लिए अस्थायी रूप से और किसी विशिष्ट अवधि के लिए संविदा की जाये तो उसे मुता ( Muta ) निकाह कहा जायेगा ।    " मुता ' का शाब्दिक अर्थ है — आनन्द के लिए ( For enjoyment ) । निकाह के सन्दर्भ में इसका अर्थ है ' आनन्द के लिए निकाह ' ( Marriage for Pleasure ) । मुता निकाह के अनुसार कोई मुस्लिम स्त्री  के एक निश्चित अवधि के लिए किसी मुस्लिम व्यक्ति के साथ पत्नी के रूप में उसके साथ रहती है और वह व्यक्ति भोग करता है । अवधि समाप्त होने के पश्चात् वह स्त्री  उस पुरुष के बन्धन से मुक्त हो जाती है । उस मुता निकाह के उपलक्ष में उसक

इद्दत क्या होती है? मुस्लिम विवाह मे इद्दत का पालन करना क्यों इतना आवश्यक है?

इद्दत(Iddat):- इद्दत वह अवधि है जिसका पालन करना एक ऐसी मुस्लिम स्त्री के लिए आवश्यक है जिसके पति की मृत्यु हो गई हो या उसका अपने पति से विवाह विच्छेद( तलाक) हो गया हो। यह विशुद्धता की अवधि है । विवाह भंग हो जाने के पश्चात् इसका पालन इसलिये आवश्यक है कि इस अवधि में बच्चे का पितृत्व का निश्चय होता है । यह वह अवधि है , जिसके समाप्त होने पर नया विवाह वैध होता है । वास्तव में ' इद्दत ' वह अवधि है जिससे जिस स्त्री के पति की मृत्यु हो गई हो या तलाक द्वारा विवाह विच्छेद हो गया हो , उसे एकान्त में रहना और दूसरे पुरुष से विवाह न करना अनिवार्य है । मुस्लिम विधि में जब कोई विवाह विच्छेद या पति की मृत्यु के कारण विघटित हो जाता है , तो स्त्री कुछ समय तक पुनः विवाह नहीं कर सकती । इस निश्चित समय को ' इद्दत ' कहा जाता है ।          अमीर अली का कहना है कि " यह मृत्यु या तलाक द्वारा एक वैवाहिक सम्बन्ध की समाप्ति और दूसरे के आरम्भ के बीच ऐसा अन्तराल ( interval ) है , जिसका पालन करना स्त्री के लिए अनिवार्य है । "        न्यायमूर्ति महमूद ' इद्दत ' की परिभाषा ए

यौवनागमन का विकल्प क्या है?किसी अवयस्क लडके या लडकी द्वारा विवाह निरस्त किये जाने की शक्ति और उसकी सीमायें क्या होंगीं ?

  यौवनागमन का विकल्प ( ख्यार - उल - बुलूग ) ( option of puberty ) - यौवनागमन का विकल्प ऐसे अवयस्क लड़के या लड़की का जिसके विवाह की संविदा अभिभावक द्वारा की गई हो , वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह की अस्वीकृति या पुष्टि करने का अधिकार है । " कुछ विशेष परिस्थितियों में किसी मुसलमान लड़के या लड़की को जिसके विवाह की संविदा , वैवाहिक अभिभावक द्वारा की गई हो , वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह को अस्वीकार कर देने का विकल्प प्राप्त होता है । यह अधिकार अवयस्क बालकों को वयस्कता प्राप्त कर लेने पर विवाह को अस्वीकार करने का विकल्प प्राप्त होता है । अवयस्क बालकों के इस अधिकार को वयस्कता का विकल्प ( ख्यात - उल - बुलूग ) कहते हैं । अस्वीकार के समय तक यह विवाह मान्य होता है ।   अब्दुल करीम बनाम अमीना बाई के वाद में बम्बई उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया है कि पत्नी को दिया गया अस्वीकार का विकल्प ऐसे सिद्धान्तों पर आधारित है जिन पर कुरान में बार - बार जोर दिया गया है । यह अभिरक्षा के उन साधनों में से एक है जिनके द्वारा इस्लाम स्त्रियों और बच्चों पर कठोर दबाव डालने वाली इस्लाम के पूर्व की

वैद्य विवाह में कौन-कौन से कानूनी परिणाम होते हैं? पति पत्नी द्वारा कर्तव्यों की अवहेलना करने पर प्रतिकार की क्या व्यवस्थाएं होती हैं?( what are the legal consequences of valid marriage? What remedies are available for the breach of duties by wife and husband?)

   वैध निकाह ( Valid marriage ) - जिस निकाह में निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हो वह वैध या मान्य ( Valid ) निकाह कहा जाता है - ( 1 ) एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव ( इजाब ) ।  ( 2 ) दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकृति ( कबूल ) ।  ( 3 ) दोनों पक्ष विवाह करने में समर्थ ( Competent ) हो ।  ( 4 ) दोनों पक्ष वयस्क ( adult ) हों , सचेत ( conscious ) और स्वतन्त्र सहमति देने  ( 5 ) निकाह में किसी प्रकार की रुकावट ( disturbance ) न हो जैसे रक्त सम्बन्धी ( blood relation ) , निकट सम्बन्धी ( affinity ) या दुग्धजात सम्बन्ध ( osterage ) इत्यादि ।  फतवा - ए - आलमगीरी में विवाह के विधिक परिणाम इन शब्दों में व्यक्त हैं-  " पति पत्नी में से प्रत्येक एक - दूसरे के संग विधि द्वारा आज्ञापति रूप से समागम ( मैथुन करने के हकदार हो जाते हैं , ' ख ' पत्नी पति के नियन्त्रण के अधीन हो जाती है , अर्थात् पति की आशा के बिना वह बाहर जाने और किसी से मिलने से वंचित हो जाती है , पत्नी मेहर और भरण - पोषण पाने एवं पति के घर में निवास करने की अधिकारिणी हो जाती है , दोनों पक्षों के मध्य विवाह सम्बन्ध से उत्पन्न निष

कौन-कौन से विवाह मुस्लिम विधि के अनुसार निष्प्रभावी और अमान्य होते हैं? What marriages are void and invalid? What Are legal consequences of such marriages? State the difference between void and in regular marriages.

 ( 1 ) शून्य (बातिल) विवाह  ( Void Marriage )  -  निरपेक्ष असमर्थता वाले पक्षकारों  द्वारा किये गये विवाह अर्थात् एक वैवाहिक अथवा धात्रेय सम्बन्धों के कारण निषिद्ध विवाह शून्य होते हैं । ऐसे विवाहों का कोई वैधानिक प्रभाव नहीं होता है । निम्न विवाह शून्य  होते है -  ( 1 ) विवाहित स्त्री से किया गया विवाह  ( 2 ) रक्त - सम्बन्ध (कराबत) के उल्लंघन में किया गया विवाह  ( 3 ) विवाह - सम्बन्ध ( मुशारत ) के निषेध के उल्लंघन में किया गया विवाह   ( 4 ) छात्रेम सम्बन्ध ( रिजा ) के उल्लंघन में किया गया विवाह  ( 5 ) अपनी ही तलाकशुदा स्त्री से पुनर्विवाह ।                                         यद्यपि ऐसे सम्बन्ध विवाह की तरह लगते हैं किन्तु विधि की दृष्टि में यह विवाह नई माना जाता है । शून्य विवाह के पक्षकारों को कोई पारस्परिक अधिकार या कर्तव्य प्राप्त नही प्राप्त  होते हैं । कोई भी पक्षकार न्यायालय से डिक्री प्राप्त किये बिना भी किसी अन्य व्यक्ति से विवाह  कर सकता है । पति से भरण - पोषण की अधिकारिणी नहीं होती है । किसी एक की  मृत्यु  हो जाने पर दूसरा उसकी सम्पत्ति में उत्तराधिकार पान

मुस्लिम विधि के अनुसार निकाह की परिभाषा क्या होती है? मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह एक संविदा है ना ही कोई संस्कार यह कथन स्पष्ट रूप से व्याख्या के साथ बताओ?( define nikah. Do you agree with the statement that muslim marriage is a contract and not a sacrament? Reason for in support of your opinion?)

                                  मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह कोई संस्कार न होकर एक संविदा है । निकाह ( विवाह ) शाब्दिक अर्थ है — स्त्री और पुरुष का यौन - संयोग ( Carnal conjunction ) और विधि में इनका अर्थ है- " विवाह " । बेली के सार संग्रह में विवाह की परिभाषा स्त्री पुरुष के समागम को वैध बनाने और सन्तान उत्पन्न करने के प्रयोजन के लिये की गई संविदा ( Coatract ) के रूप में की गयी है । मुसलमानों में निकाह एक बहुत ही पुण्य कार्य माना गया है  ।शब्द विवाह ( निकाह ) को मुस्लिम विधि वेत्ताओं ने कई प्रकार से परिभाषित किया है - परिभाषा - हेदाया के अनुसार , " विवाह एक विधिक प्रक्रिया है , जिसके द्वारा स्त्री और पुरुष के बीच समागम और बच्चों की उत्पत्ति तथा औरसीकरण पूर्णतया वैध और मान्य होते हैं । "           असहाबा का कथन है कि " विवाह स्त्री और पुरुष की ओर से पारस्परिक अनुमति पर आधारित स्थायी सम्बन्ध में अन्तर्निहित संविदा है .       डॉक्टर मोहम्मद उल्लाह एस . जंग कहते हैं कि " विवाह सारतः एक संविदा होते हुए भी एक श्रद्धात्मक कार्य है , जिसके उद्देश्य