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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

आई.पी.सी. की धारा 383 क्या है? विस्तार से बताइए।IPC What is section 383 of IPC? Explain in detail.

भारतीय दंड संहिता की धारा 383 में उद्दीपन की परिभाषा दी गई है। जो इस प्रकार है- कोई किसी व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर क्षति पहुंचाने का भय उत्पन्न करता है और इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई मूल्यवान संपत्ति या प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके किसी व्यक्ति को प्रदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है वह उद्दापन करता है।      यदि हम उद्दापन को आम बोलचाल की भाषा में बात करें तो यह अलग-अलग रूप से हमें समझ में आती है अगर हम यूपी और बिहार स्टेट में बात करें तो यहां पर इस प्रकार के कृत्य को रंगदारी के नाम से जाना जाता है रंगदारी एक प्रकार से दबंगों गुंडों द्वारा किसी व्यक्ति को जान से मारने की धमकी और उस धमकी की एवज में उनसे एक मोटी रकम या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी की मांग करना भी उद्यापन की श्रेणी में आता है। अगर हम अन्य राज्यों में बात करते हैं तो मुंबई मैं जिस प्रकार अंडरवर्ल्ड का दौर था वहां पर उद्यापन को या रंगदारी वसूलने के या धन उगाही करने का तरीका अंडरवर्ल्ड का प्रमुख व्यवसाय था। ऐसी परिस्थितियों में अगर हम बात करें तो आईपीसी की सेक्शन 386 यहां पर ल

भारतीय दंड संहिता में धारा 100 क्या होती है? धारा 100- शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने पर कब होता है ? What is section 100 in the Indian Penal Code? Section 100- When does the right of private defense of the body extend to causing death?

धारा 100 में उन छ: परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें अभियुक्त को व्यक्तिगत प्रति रक्षा के अधिकार या शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अन्तिम  धारा में वर्णित निर्बन्धनों के अधीन रहते हुये हमलावर की मृत्युकारित करने पर भी अपराध नही माना जाता है क्योंकि उसका कृत्य निजी प्रतिरक्षा के अधिकार तक नही किया गया होता है। यदि अभियुक्त की धारा 100 में उपबन्धित किसी क्षति की युक्ति युक्त, आंशका हो  तो  वह हमलावर की मृत्युकारित कर सकेगा और ऐसी दशा में यह नही माना  जायेगा कि उसने निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का उल्लघंन किया है।  निम्नलिखित अवस्थाओं में निजी सुरक्षा का अधिकार किसी की मृत्यु कारित कर दिये जाने तक विस्तृत हो जाता है। ये अवस्थाये  निम्नलिखित हैं-   (i) ऐसा हमला जिसका परिणाम मृत्यु होने की आंशका से→ ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कार्य हो जाएगी अन्यथा हमले का परिणाम मृत्यु होगी।                                                           धारा 100 Section 100 mentions six circumstances in which the accused is not considered to be guilty of the of

अवश्यम्भावी दुर्घटनाएँ क्या है ? यह दैवीय कृत्य से किस प्रकार भिन्न है?What are inevitable accidents? How is it different from act of God?

अवश्यम्भावी दुर्घटनाएँ (Inevitable Accidents):- अवश्यम्भावी दुर्घटनाओं से तात्पर्य ऐसी दुर्घटनाओं से है जिन्हें किन्हीं सावधानियों से बचाया नहीं जा सकता है। इसका तापर्त्य ऐसी दुर्घटना नहीं है जिसका घटित होना पूर्णतया असम्भव हो, वरन् इसका तात्पर्य है कि उसे एक सामान्य व्यक्ति द्वारा युक्तियुक्त सतर्कता द्वारा रोकना सम्भव नहीं था। विधि किसी व्यक्ति से युक्तियुक्त सम्भावनाओं के प्रति सचेत होने की आशा करती है। परन्तु वह विलक्षण घटनाओं के प्रति सचेत होने के लिए बाध्य नहीं है। जैसे-यदि एक कार के ड्राइवर को कार चलाते समय दौरा पड़ता है और उससे दुर्घटना हो जाती है या वह गैराज से मरम्मत करवा के गाड़ी निकालने समय ब्रेक फेल हो जाने के कारण कोई दुर्घटना हो जाती है तो इन दोनों मामलों में अवश्यम्भावी दुर्घटना का बचाव लागू होगा। Inevitable Accidents:- Inevitable accidents refer to such accidents which cannot be avoided by taking any precautions.  It does not mean such an accident which is completely impossible to happen, but it means that it was not possible to prevent it by an ordinary person by taki

क्षति की दूरस्थता क्या होती है ? क्षति की दूरस्थता को निश्चित करने के लिये क्या नियम है?What is remoteness of damage? What are the rules for determining the remoteness of injury?

अपकृत्य हो जाने के बाद प्रतिवादी के दायित्व का प्रश्न उठता है। किसी दोषपूर्ण कार्य के अन्तहीन (endless) परिणाम हो सकते हैं, अथवा उसके परिणामों के भी परिणाम हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, एक साइकिल सवार असावधानी के साथ एक ऐसे पदयात्री को ठोकर मारता है, जो अपने जेब में एक बम लेकर जा रहा था। पदयात्री जैसे ही भूमि पर गिरता है, बम का विस्फोट हो जाता है। पदयात्री और चार अन्य व्यक्ति जो सड़क पर से जा रहे थे, इस विस्फोट के कारण मृत्यु ग्रस्त हो जाते हैं। सड़क के समीप का एक भवन बम विस्फोट के परिणामस्वरूप आग में जलने लगता है, और असमें कुछ महिलायें और बच्चे गम्भीर रूप से जल जाते हैं। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि साइकिल सवार इन समस्त परिणामों के लिये उत्तरदायी है ? After the commission of the tort, the question of the liability of the defendant arises.  A wrongful act can have endless consequences, or its consequences can also have consequences.  For example, a cyclist may inadvertently hit a pedestrian who was carrying a bomb in his pocket.  The bomb explodes as the pedestrian falls to the ground.  Pe

उसी जब इसी रेमिडियम का सूत्र जहां अधिकार है वहां उपचार भी है का क्या अर्थ है?What is the meaning of this Remidium formula, where there is authority, there is also a remedy?

जहाँ अधिकार है, वहाँ उपचार भी है (Ubi Jus Ibi Remidium) यह अपकृत्य विधि का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के माध्यम से "विधिक क्षति" का अभिप्राय और अधिक स्पष्ट हो जाता है। विधिशास्त्रियों के अनुसार जहाँ कानूनी उपचार नहीं उपलब्ध है, वहाँ यह समझना चाहिए कि कानूनी, क्षति नहीं हुई है।" यदि किसी व्यक्ति को कोई अधिकार प्राप्त है तो उसे अधिकार की सुरक्षा के साधन भी प्राप्त होने चाहिए और अगर उस अधिकार के उपयोग में किसी तरह का अवरोध उत्पन्न किया जाता है तो उसके खिलाफ उपचार भी होना चाहिए। बिना उपचार के किसी अधिकार की कल्पना व्यर्थ होती है। अधिकार का अभाव तथा उपचार का अभाव परस्पर अभिन्न है। इस सूत्र से यह नहीं समझना चाहिए कि प्रत्येक नैतिक अथवा राजनैतिक दोष के लिए कानूनी उपचार प्राप्त हैं। इसके अंतर्गत तो सिर्फ कानूनी दोष तथा कानूनी उपचार का ही संबंध स्थापित होता है। ब्रेडले बनाम गॉसेट में न्यायमूर्ति स्टीफेन ने कहा था कि जहाँ कानूनी उपचार नहीं होता, वहाँ कानूनी दोष भी नहीं होता। Where there is a right, there is also a remedy (Ubi Jus Ibi Remidium)  This is an

सभी सिविल क्षतियाँ अपकृत्य नहीं होती का क्या मतलब है ? (All Civil Injuries are Not Tort)

सभी सिविल क्षतियाँ अपकृत्य नहीं होती (All Civil Injuries are Not Tort) किसी भी सिविल क्षति के अपकृत्य होने के लिए यह आवश्यक है कि उस क्षति में किसी व्यक्ति के कृत्य द्वारा दूसरे व्यक्ति में निहित तथा विधि द्वारा संरक्षित अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। किसी वास्तविक हानि का होना अपकृत्य के दोष के लिए आवश्यक नहीं है। दूसरी तरफ यदि किसी कृत्य से वास्तविक हानि तो हुई है परन्तु किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है तो वह क्षति अपकृत्य की श्रेणी में नहीं आती है। अपकृत्य की यह अवधारणा दो सूत्रों बिना हानि के अपकृति (Injuria Sine Damno) तथा विधिक अधिकार के उल्लंघन के बिना क्षति (Damno Sine Injuria) पर आधारित है। All Civil Injuries are Not Tort  For any civil injury to be a tort, it is necessary that in that injury, by the act of one person, the rights vested in another person and protected by law have been violated.  The existence of an actual loss is not essential to the culpability of tort.  On the other hand, if an act has caused actual loss but no legal right has been violated,

दुष्कृत्य कितने प्रकार के होते हैं?How many types of misdeeds are there?

दुष्कृत्यों के प्रकार (Kinds of Torts) अपकृत्य विधि में दुष्कृति के दो प्रकार माने जाते हैं- (1) बिना हानि के क्षति (Injuria Sine Damno) (2) बिना क्षति के हानि (Damno Sine Injuria) ( 1) बिना हानि के क्षति (Injuria Sine Damno)— इस सूत्र का तात्यर्य है कि बिना किसी वास्तविक क्षति के वादी के विधिक अधिकारों का उल्लंघन । यहाँ वादी को कोई वास्तविक क्षति होना आवश्यक नहीं है। इस सूत्र के अनुसार दुष्कृति के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति में निहित विधिक अधिकारों का प्रतिवादी द्वारा अतिक्रमण किया गया हो, किसी वास्तविक क्षति अथवा नुकसान को सिद्ध करना आवश्यक नहीं है। विधि में व्यक्ति के अधिकारों को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। विशुद्ध अधिकार (absolute rights) एवं विशेषित अधिकार (Qualified rights)। विशुद्ध अधिकार विधि द्वारा संरक्षित अधिकार होते हैं इन अधिकारों का उल्लंघन मात्र अपने आप में वाद योग्य होता है। वादी को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है कि उसे किसी प्रकार की वास्तविक हानि हुई है जैसे अतिचार (Tresspass) का अपकृत्य । Kinds of Torts   In tort law, two types of tort ar