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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 84 के अन्तर्गत पागलपन कब एक अच्छा बचाव (प्रतिरक्षा) होता है?When is insanity a good defense under section 84 of the Indian Penal Code?

 भारतीय दण्ड संहिता की धारा 84 यह उपबंधित करती है कि “ कोई बात अपराध  नहीं है , जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो उसे करते समय चित्त - विकृति के कारण उस कार्य  की प्रकृति या यह कि जो कुछ वह कर रहा है , वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है , जानने मे असमर्थ है । "    धारा 84 के अन्तर्गत आपराधिक विधि में पागल व्यक्तियों को पूर्ण संरक्षण प्रदान किया गया है । जब कोई व्यक्ति मानसिक विकृति से पीड़ित होता है , तो उसे विकृत - चित्त व्यक्ति कहा जाता है और ऐसा व्यक्ति कोई अपराध करता है तो उसे दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसे विकृत चित्त व्यक्तियों में अच्छे और बुरे को समझने की क्षमता नहीं होती है । इन विकृत - चित्त व्यक्तियों के बारे में ब्लैक स्टोन ने कहा है कि ये व्यक्ति अपने पागलपन मात्र से ही स्वयं दण्डित है , अतः उन्हें विधि द्वारा दण्डित किया जाना उचित नहीं है । Section 84 of the Indian Penal Code provides that “nothing is an offense which is done by a person who, at the time of doing it, is of unsound mind as to the nature of the act or that what he is doing is wrongful.

भारतीय दण्ड संहिता मे 7 वर्ष से लेकर 12 वर्ष की आयु के लिये क्या प्रावधान है? वर्णन कीजिए ।What is the provision in the Indian Penal Code for the age of 7 years to 12 years? Describe.

सात वर्ष से कम आयु के शिशु के कार्य - भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 में यह कहा गया है कि कोई बाल अपराध नहीं है जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है । प्रस्तुत धारा का यह प्रावधान कि सात वर्ष से कम आयु के बच्चे द्वारा किया गया कोई कार्य अपराध नहीं माना जायेगा , इस मान्यता पर  आधारित है कि सात वर्ष से कम आयु  का शिशु आपराधिक दुराशय के अभाव में अपराध करने के लिये अयोग्य (doli incapex )होता है । ब्लैक स्टोन का कहना है कि विवेक का निर्माण न कर सकने वाली आयु के बाल को किसी भी आपराधिक विधि के अधीन दण्डित नहीं किया जाना चाहिए ।  आंग्ल विधि में ऐसी आयु के शिशुओं को ' अपराध करने में अक्षम माना गया है चोरी अच्छाई बुराई के बीच अन्तर स्थापित करने में असमर्थ हो ।  Acts of a child under seven years of age - Section 82 of the Indian Penal Code states that nothing is a juvenile offense which is committed by a child under seven years of age.  The provision of the present section that no act done by a child below the age of seven years shall be deemed to be an offence, is based on the beli

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 80 क्या कहती है ?What does section 80 of the Indian Penal Code say?

कोई भी कार्य अपराध नही है जो किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना कानूनी ढंग और कानून के अनुसार पूर्ण असवाधानी द्वारा किये जाने पर भी ककिसी दुर्घटना या दुर्भाग्य के कारण हो जाये ।  भारतीय दण्ड संहिता की धारा 80 में यह उपबन्धित किया गया है कि वह कोई भी कार्य अपराध नहीं है जो किसी कानूनी काम ( lawful act ) को करते समय किसी दुर्घटना  ( accident ) या दुर्भाग्य ( misfortune ) से हो परन्तु उसके लिए निम्नलिखित शर्त होगी - ( अ ) वह कार्य दुर्घटना या दुर्भाग्यवश हुआ हो । ( ब ) वह किसी विधियुक्त ( lawful act ) कार्य करने में हो ।  ( स ) वह किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना हुआ हो ।  ( द ) कानूनी ढंग से किया गया हो ।  ( य ) कानूनी साधनों से हुआ हो ।  (र ) उस कार्य को पूरा करने में पूरी सावधानी और सतर्कता बरती गई हो ।  Any act is an offence  is not done without any criminal intention or knowledge, in a lawful manner and in accordance with law, but by sheer negligence, which may result in an accident or misfortune. Section 80 of the Indian Penal Code provides that it is not an offense to d

भारतीय दण्ड संहिता मे दण्ड को कैसे परिभाषित किया गया है ? भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार दिये जाने वाले दण्ड कौन से हैं ?How is punishment defined in the Indian Penal Code? What are the punishments given according to the Indian Penal Code?

समाज में शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना राज्य का एक आवश्यक कर्त्तव्य है । राज्य अपने इस कर्त्तव्य का निर्वाह अपराधों पर रोकथाम करके करता है । राज्य अपराधों की रोकथाम अपराधियों को दण्डित करके करता है । अतः दण्ड का मुख्य उद्देश्य अपराधों की  रोकथाम करना है । यह विचारणीय प्रश्न है कि किसी अपराधी को उसके अवैध कृत्य के लिए किस प्रकार दण्डित किया जाए । दण्ड का निर्धारण उनको किये जाने की परिस्थितियों और समय के साथ बदलते हुए स्वरूप के अनुसार किया जाता है । उदाहरण के लिए सभ्यता के प्रारम्भिक काल में दण्ड की व्यवस्था बड़ी क्रूर और असभ्य रूप में थी जिसके अनुसार ' बदला लेना ' ( To take revenge ) ही मुख्य उद्देश्य होना था । अतः किसी व्यक्ति की यदि हत्या हो जाती थी तो मृतक के घर वाले जब तक अपराधी से बदला नहीं लेते थे चैन से नहीं बैठते थे । उसके बाद स्थिति यह बनी कि ' आँख के बदले आँख ' ' दांत के बदले दाँत ' और ' नाखून के बदले नाखून ' की व्यवस्था आई जिसका तात्पर्य यह था कि अपराधी को उतनी ही हानि पहुंचायी जाये जितनी उसने स्वयं की है ।  Maintaining peace and order in

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 21मे लोक सेवक शब्द की क्या परिभाषा दी गयी है ?What is the definition of the word public servant in section 21 of the Indian Penal Code?

लोक सेवक ( Public Servant ) - भारतीय दण्ड संहिता की धारा 21 के अन्तर्गत  निम्नलिखित श्रेणियों के सभी व्यक्ति लोक सेवक ( Public servant ) हैं   ( 1 ) भारत की स्थल , जल और वायु सेना का प्रत्येक कमीशन प्राप्त ऑफिसर  ( 2 ) प्रत्येक न्यायाधीश जिसमें वह शक्ति भी सम्मिलित है जिसको चाहे वह स्वयं अथवा  मनुष्यों के समूहों के सदस्यों की हैसियत से किसी न्याय निर्णयन के कर्त्तव्यों के पालन कराने का अधिकार है ।  ( 3 ) न्यायालय का प्रत्येक ऐसा पदाधिकारी जिसका उस पद के कारण यह कर्त्तव्य हो कि वह किसी तथ्य या विधि के मामले पर अनुसन्धान और रिपोर्ट प्रस्तुत करे अथवा किसी दस्तावेज को रखे या किसी न्यायिक क्रिया को कार्यान्वित करे या उसकी व्याख्या करे ।  ( 4 ) जूरी का प्रत्येक सदस्य ( Jury man ) असेसर ( Assessor ) या पंचायत का कोई  अधिकारी जो न्यायालय की सहायता कर रहा हो या लोक सेवक । Public Servant - All the following categories of persons are public servants under section 21 of the Indian Penal Code  (1) Every commissioned officer in the land, naval and air forces of India  (2) Every Judge, including any

अपराध की क्या परिभाषा होती है ?अपराध और दुष्कृति मे क्या अन्तर होता है ?What is the definition of crime? What is the difference between crime and torts?

अपराध वह कृत्य है जो न केवल विधि द्वारा वर्जित है बल्कि वह समाज की नैतिक मान्यताओं के प्रतिकूल भी है जिसके लिये किसी देश की दण्ड विधि के अधीन दण्ड का प्रावधान हो । उदाहरणार्थ - हत्या , चोरी , डकैती , बलात्कार आदि अपराध हैं क्योंकि ये न केवल दण्ड विधि के अन्तर्गत दण्डनीय हैं , बल्कि समाज विरोधी कृत्य भी हैं । इसके ठीक विपरीत संपरिवर्तन ( conversion) मानसिक आघात आदि समाज के हित में न होते हुए भी अपराध नहीं है बल्कि केवल अपकृत्य है क्योंकि इनके लिए दण्ड का प्रावधान न होकर अपकृत्य विधि में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था है ।    वास्तव में अपराध एक ऐसा रोग और बुराई है जिससे सम्पूर्ण सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन उद्वेलित हो उठता है । समाज के लिए यह घातक है । इसी रोग के निदान के लिए दण्ड विधि का प्रादुर्भाव हुआ ।          अपराध शब्द जितना प्रचलित है उसकी परिभाषा देना ही कठिन है । रसेल का भी ऐसा ही विचार है । वे कहते हैं कि " अपराध को परिभाषित करना एक ऐसा कार्य है जो अब तक किसी लेखक ने सन्तोषजनक रूप से नहीं किया है । वास्तव में अपराध मूल रूप से समय - समय पर समाज के उन वर्गों द्वारा अपनाई गई नीति