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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

स्त्री धन से आप क्या समझते हैं? What do you understand by streedhan?

स्त्रीधन (stridhan ) :- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के पारित होने के पूर्व किसी स्त्री के पास दो प्रकार के संपत्ति हो सकती थी - ( 1) वह संपत्ति जिस पर उसका पूर्ण स्वामित्व होता था , तथा  ( 2) ऐसी संपत्ति जिस पर सीमित स्वामित्व होता था. प्रथम को स्त्री धन तथा दूसरे को नारी संपदा कहा जाता था. स्त्रीधन का अर्थ: - स्त्रीधन से तात्पर्य नारी की उस संपत्ति से है जिस पर उसका पूर्ण स्वामित्व होता है शब्द स्त्रीधन सर्वप्रथम स्मृतियों में पाया जाता है और गौतम के धर्मसूत्र में पाया जाता है वर्तमान हिंदू विधि में शब्द स्त्रीधन ना केवल विशिष्ट प्रकार की संपत्ति संचित करती है जो स्मृतियों में परीगणित है किंतु संपत्ति के विभिन्न प्रकारों को परिगणित करती हैं जो किसी स्त्री द्वारा अर्जित अथवा उसके स्वामित्व में हैं जिसके ऊपर उसका पूर्ण नियंत्रण है और ऐसी संपत्ति के संबंध में वह वंशजों की संपत्ति का निर्माण करती है जो तदनुसार उस के निजी उत्तराधिकारीगण पर न्याय गत होती है स्त्री धन की परिभाषा बहुत से स्मृति कारों ने दी है जिनमें से कुछ निम्नलिखित परिभाषाएं हैं - (a) मनु के अनुसार अध्याग्नि वैवाहिक आदम

किसी स्त्री के उसकी स्त्री धन संपत्ति पर क्या अधिकार है? What are the rights of women over her stridhan property?

स्त्री धन के ऊपर स्त्री के अधिकार को उसकी प्रस्थिति के अनुसार निर्धारित किया जाता है. ( 1) अविवाहित अवस्था: - कोई भी स्त्री जो अविवाहित है तथा वयस्क है अपनी संपत्ति को किसी को भी हस्तांतरण कर सकती है परंतु यदि वह अवयस्क है तो वह अपनी संपत्ति का हस्तांतरण नहीं कर सकती है. ( 2) विवाहित अवस्था: - विवाहित अवस्था में स्त्री अपनी सौदायिक धन अर्थात पिता व भाई द्वारा प्राप्त धन का निर्वतन पति की बिना अनुमति के भी कर सकती है ऐसा धन जो स्त्री पति से प्राप्त करती थी जिसे वह बिना पति के अनुमति के अन्य संक्रमण नहीं कर सकती थी.             जहां पति पत्नी साथ रहते हैं वहां असौदायिक धन के निर्वचन के लिए पति की अनुमति आवश्यक नहीं है.                  नियम यह है कि पति का पत्नी के स्त्रीधन पर कोई अधिकार नहीं होता है किंतु आपत्ति काल में वह स्त्री की सहमति के बिना भी उसके धन का उपयोग कर सकता है दुर्भिक्ष धर्म कार्य तथा व्याधियों आदि की दशा में यदि पति के स्त्रीधन को लिया हो तो उसको लौटाना अथवा उसकी अदायगी करना पति की इच्छा पर निर्भर करता है. विधवा अवस्था में: - विधवावस्था में स्त्री को संपत

हिंदू विधि की मिताक्षरा शाखा के अंतर्गत कौन सी संपत्तियां बंटवारे के योग्य है ? What properties are liable to partition under mitakshara School of Hindu law?

बंटवारे में विभाजनीय संपत्ति:: - बंटवारा उसी संपत्ति का होता है जो परिवार के सदस्यों द्वारा बंटवारे के पूर्व अविभक्त संपत्ति के रूप में धारण की गई है परिवार के सदस्यों के पृथक संपत्ति का बंटवारा नहीं होता है.          कुछ ऐसे प्रकार की संपत्तियां भी होती हैं जो अपने स्वरूप के कारण अविभाजित मानी जाती हैं मनु के अनुसार पोशाक ,सवारी ,आभूषण, पका पकाया भोजन ,पत्नी ,दासिया ,देव और इष्ट के लिए निर्धारित संपत्ति गोचर इत्यादि विभाजित नहीं हो सकती । विज्ञानेश्व र ने कहा है कि जल का जलाशय और ऐसी वस्तुएं विभाजित नहीं की जा सकती है उन्हें उनके मूल्य द्वारा भी विभाजित नहीं करना चाहिए उन्हें संयुक्त प्रयोग के लिए संभव रखना चाहिए या बारी-बारी से प्रयोग में लाना चाहिए आगे विज्ञानेश्वर ने कहा है कि सार्वजनिक मार्ग भवन तक आने जाने का मार्ग उद्यान और इसी भांति की वस्तुएं विभाजित  नहीं की जा सकती है सवारी घोड़े गाय बैल आभूषण पोशाक इत्यादि विभाजित नहीं किए जा सकते हैं इनके संबंध में यह नियम है कि या तो इन्हें बेच कर इनका मूल्य  सहदायित्वों में वितरित कर दिया जाए अथवा इनके मूल्य का अनुमान लगाकर इन्हें किसी

संयुक्त तथा अविभाज्य परिवार के कर्ता की स्थिति पर विचार: Who Is manager discuss his position in a joint an undivided Hindu family

कर्ता (प्रबंधक): - अविभाजित परिवार की संपत्ति की व्यवस्था तथा देखभाल एवं परिवार का संचालन जिस व्यक्ति द्वारा किया जाता है वह कर्ता कहलाता है. साधारणत: हिंदुओं में परिवार का कर्ता पिता होता है यदि वह जीवित है हिंदू विधि की यह अवधारणा है कि जेष्ट सहदायिक संयुक्त परिवार का कर्ता होता है जेष्ट सहदायिक कर्ता का पद अपनी जेष्ठाता के आधार पर प्राप्त करता है ना कि अन्य सदस्यों की सर्वसम्मति से जब तक यह जीवित है कर्ता बना रहेगा परिवार का एक समय के अंदर केवल एक ही कर्ता होता है जहां पिता जीवित नहीं है तथा परिवार भाइयों से निर्मित होता है वहां जेष्ठ भाई प्रतिकूल साक्ष्य के अभाव में परिवार का प्रबंधक मान लिया जाता है कमिश्नर आफ इनकम टैक्स बनाम स्टेट गोविंद राम शुगर मिल के वाद में यह निर्णय लिया गया है कि प्रबंधक होने के लिए सहदायिक ( Coparcenership ) एक आवश्यक अर्हता है अतएव एक विधवा जो सहदायिकी नहीं है होती है संयुक्त परिवार की प्रबंधक नहीं हो सकती है. (ब)कर्ता का स्थान: - ए क विद्वान के अनुसार संयुक्त परिवार में कर्ता का स्थान अद्वितीय  है कर्ता संयुक्त परिवार की धुरी है कर्ता की स्थ

सहदायिकी संपत्ति पृथक संपत्ति तथा पैतृक संपत्ति के बीच संबंध: Write a brief note on Coparcenary property ,separate property and Ancestral property

सहदायिकी संपत्ति: - सहदायिकी संपत्ति को संयुक्त परिवार की संपत्ति भी कहा जाता है सहदायिकी संपत्ति वह होती है जिसमें सहदायिकी का हक जन्म से होता है तथा उन्हें संपत्ति का बंटवारा करने का  तथा उत्तरजीविता का अधिकार होता है सहदायिकी  संपत्ति में निम्नलिखित सम्मिलित है - ( 1) पैतृक  संपत्ति ( 2) संयुक्त परिवार के सदस्य द्वारा संयुक्त रूप से अर्जित की गई संपत्ति ( 3) सदस्यों की पृथक संपत्ति में जो पृथक कोष में डाल दी गई है. ( 4) वह संपत्ति जो सभी सदस्यों द्वारा अथवा किसी सहभागी द्वारा संयुक्त परिवार के कोष की सहायता से अर्जित की गई है.               यह सहदायिकी  संपत्ति के संबंध में उसको बेचे जाने का इकरारनामा किया गया हो वा  एक हिस्सेदार इकरारनामा में पक्षकार ना हो वह विशिष्ट अनुपालन के वाद में उस सहदायिकी  के हिस्से को छोड़ते हुए खरीदे सौदे की  पूरी रकम देने को तैयार हो तो बिक्री पारित की जा सकती है. पृथक  सम्पत्ति : - हिंदू विधि के अंतर्गत सयुक्त परिवार का कोई भी सदस्य चाहे वह सहभागीदारी हो या नहीं स्वयं संपत्ति अर्जित कर सकता है इसे पृथक संपत्ति कहा जाता है अतः पृथक  संपत्त

सहदायिक के अधिकार rights of Coparcenary

सहदायिक के अधिकार (Rights of the copercenner) :- सहदायिक संपत्ति में सहदायिको के निम्न लिखित अधिकार है - ( 1) जन्म से अधिकार: - सहदायिकी संपत्ति में एक सहदायिक जन्म से अधिकार प्राप्त करता है और पुत्र द्वारा प्राप्त किया गया हित अपने पिता के हित के बराबर होता है सहदायिक संपत्ति  में प्रत्येक सहदायिक  का जन्म से अधिकार होने का कारण यह है कि वह किसी अन्य सहदायिकों  द्वारा सहदायिक  की संपत्ति के संबंध में दिए गए किसी अनुचित अथवा विधि विरुद्ध विधवा संयुक्त हित या उपभोग के लिए क्षतिकर कृत्य को रोकता है. (2)सम्पत्ति के सम्मिलित कब्जे का अधिकार : - एक सहदायिक को सहदायिकी संपत्ति के संयुक्त कब्जे और उपभोग का अधिकार है क्योंकि अविभक्त परिवार के सदस्यों के बीच परिवार के संपत्ति का स्वामित्व होता है और उस पर उनका सम्मिलित कब्जा होता है अविभक्त परिवार के सदस्यों को उस संपत्ति पर सामूहिक रूप से उपभोग करने का अधिकार होता है.                इस प्रकार जहां संयुक्त परिवार का कोई सदस्य अपने कब्जे में से किसी कमरे में प्रवेश पाने के किसी दरवाजे या जीने के प्रयोग से रोका जाता है वहां वह उस सदस

संयुक्त हिंदू परिवार एवं हिंदू सहदायिकी :joint Hindu family and Hindu Coparcenery

सहदायिकी(Coparcenery) मिताक्षरा विधि के अंतर्गत संयुक्त हिंदू परिवार: - हिन्दुओं  में परिवार प्राचीनतम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानव संस्थाएं है किसी भी मनुष्य की सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकास संयुक्त परिवार द्वारा ही होता है आदि प्राचीन काल से ही हिंदू संयुक्त परिवार में रहने के अभ्यस्त थे हिंदुओं के अनुसार व्यक्ति नहीं बल्कि परिवार समाज की इकाई है एक संयुक्त और अविभक्त परिवार ही हिंदू समाज की सामान्य स्थिति है संयुक्त परिवार की परिभाषा में वे सभी व्यक्ति आते हैं जिनसे परिवार निर्मित होता है वास्तव में हिंदू संयुक्त परिवार एक विस्तृत और व्यापक शब्द है इसके अंतर्गत वे लोग भी आते हैं जो दायभागी नहीं है संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों पर का परिवार है जिसके सदस्य एक सामान्य पूर्वज के वंशज है और जिन का निवास खानपान और पूजा-पाठ एक साथ होता है इसमें पत्नियां तथा अविवाहित  पुत्रीयाँ भी सम्मिलित हैं पुत्री विवाहित होने पर अपने पिता के परिवार की सदस्या ना रहकर अपने पति के परिवार की सदस्या हो जाती है.             मिताक्षरा विधि के अंतर्गत यह उप धारणा है कि संयुक्त परिवार