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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमें मानव वध हत्या नहीं होती है?In which condition provocation reduces the offence of murder to culpable homicide not amounting to murder .

भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अंतर्गत उन अपवादों  का उल्लेख किया गया है  जिनमें सदोष मानव वध हत्या नहीं होती। ये अपवाद निम्नलिखित हैं: अपवाद  (1) सदोष मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी गंभीर तथा अचानक प्रकोपन(grave and sudden provocation) के कारण अपना संयम खो कर उस व्यक्ति की मृत्यु कर दे जिसने उसे उत्तेजित किया हो या अपराधी ने भूल से या दुर्घटना वश किसी व्यक्ति की मृत्यु कर दी हो।       उपर्युक्त अपवाद में लिखित हो सकते हैं (अ) यह कि प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा चाही गई या स्वेच्छा  में उत्तेजित ना की गई। (ब) यह कि वह  प्रकोपन किसी ऐसी बात के द्वारा ना किया गया हो जो की विधि के किसी लोक सेवक द्वारा ऐसी लोक सेवक की शक्तियों के विधि पूर्ण प्रयोग में की गई हो। (स) यह की प्रकोपन  किसी ऐसी बात द्वारा ना किया गया हो जो व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार के विधि पूर्ण प्रयोग में की गई हो । स्पष्टीकरण: यह तथ्य का प्रश्न है कि क्या प्रकोपन इतना गंभीर और अचानक था कि अपराधी हत्या करने में बच जाए। अपवादी(2 ) वैयक्तिक प्रतिरक्षा के अधिकार का अतिक्रम

सदोष मानव वध क्या होता है?कब सदोष मानव वध हत्या हो सकता है ?(what do you understand by culpable homicide?)

सदोष मानव वध(Culpable Homicide ): भारतीय दंड संहिता की धारा 299 में सदोष मानव वध की परिभाषा इस प्रकार की गई है कि जो व्यक्ति मृत्यु करने के आशय से या ऐसा शारीरिक आघात पहुंचाने के आशय से जिससे कि मृत्यु किया जाना संभव हो और यह जानते हुए कि उस कार्य से मृत्यु होने की संभावना है कोई कार्य करके मृत्यु करता है तो वह सदोष मानव वध का अपराध करता है। स्पष्टीकरण: इस संबंध में निम्नलिखित स्पष्टीकरण है: (1) वह व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति की जो किसी विकार रोग यह अंग शैथिल्य  से पीड़ित हो शारीरिक क्षतिकारित करता है जिससे दूसरे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो यह समझा जायेगा कि उसने सदोष मानव वध का अपराध किया है। (2) जब मृत्यु किसी शारीरिक क्षति से हो तो ऐसी क्षति  करने वाले व्यक्ति के लिए यह समझा जायेगा कि उसने वह मृत्युकारित की है यद्यपि उचित उपचार या कौशलपूर्ण चिकित्सा से वह मृत्यु रोकी जा सकती हो। (3) मां के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्युकारित करना मानव वध नहीं है परंतु किसी जीवित शिशु की हत्या करना उस समय अपराध की श्रेणी में आ जाएगा जब शिशु का कोई भाग बाहर निकल आया हो चाहे उस

मिथ्या साक्ष्य देना और मिथ्या साक्ष्य गढना क्या होता है? दोनो में क्या अन्तर है?

मिथ्या साक्ष्य  देना(Perjury of giving false evidence): भारतीय दंड संहिता की धारा 191 में मिथ्या साक्ष्य देने के संबंध में यह प्रावधान किया गया है कि जब कोई व्यक्ति शपथ पूर्वक या कानून द्वारा किसी स्पष्ट उपबंध द्वारा सत्य कथन के लिए कानूनी तौर पर होते हुए भी या किसी मामले पर घोषणा करने के लिए कानून द्वारा बाध्य  होते हुए भी ऐसा कथन करता है जो झूठा है और जिसके झूठ होने का उनको ज्ञान या विश्वास नहीं है या जिस की सत्यता पर उसे विश्वास नहीं है तो यह कहा जाता है कि उसने झूठ  साक्ष्य  दिया है। स्पष्टीकरण(1) कोई कथन चाहे मौखिक हो या अन्यथा किया गया हो इस धारा के अर्थ के अंतर्गत आता है। स्पष्टीकरण(2) अनुप्रमाणित करने वाले व्यक्ति के अपने विश्वास के बारे में मिथ्या कथन इस धारा के अंतर्गत आता है और कोई व्यक्ति है कहने से की बात को जानता है और विश्वास है जिस बात पर उसे विश्वास नहीं था यह कहने से की वह उस बात को जानता है जिस बात को वह जानता नहीं मिथ्या साक्ष्य  देने का दोषी हो सकेगा। आँग्ल विधि में मिथ्या साक्ष्य  देने(giving false evidence ) का अपराध शपथ भंग के नाम से जाना जाता है।

भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत लोक सेवकों द्वारा या उनसे संबंधित अपराध का प्रावधान( various provisions provided in I.P.C. regarding offence related to public servants)

लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को क्षतिकारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करना  : भारतीय दंड संहिता की धारा 166  ऐसे लोक  सेवक के दायित्व से संबंधित है जो किसी व्यक्ति को क्षतिकारित करने के आशय से विधि की अवज्ञा करता है। इसके अनुसार यदि कोई लोक सेवक जो लोक सेवक के नाते उसे आचरण करने वाले ढंग के विधि के निर्देश को जानते हुए उसकी इस आशय से अवज्ञा करेगा या यह संभावना जताते हुए अवज्ञा करेगा कि ऐसी अवज्ञा से वह किसी व्यक्ति को क्षतिकारित करेगा  वह 1 वर्ष के सादा कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा । उदाहरण A जो एक ऑफिसर  है और न्यायालय द्वारा  B के पक्ष में  दी गयी  डिक्री की तुष्टि के लिए निष्पादन में संपत्ति लेने के लिए विधि द्वारा निर्देशित यह ज्ञान रखते हुए की यह सम्भाव्य है कि एतद् द्वारा वह B को क्षतिकारित करेगा जानते हुये विधि के उस निर्देश की अवज्ञा करता है। A ने इस धारा को परिभाषित अपराध किया है। (2) लोक सेवक द्वारा क्षतिकारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज की रचना करना: धारा 167 के अनुसार जो कोई लोकसेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते किसी दस्तावे

विधि विरुद्ध जमाव किसे कहते हैं? What do you mean by unlawful assembly ?

विधि विरुद्ध जमाव(Unlawful Assembly ): भारतीय दंड संहिता की धारा 141 में विधि विरुद्ध जमाव की परिभाषा इस प्रकार दी गई है: 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का जमाव विधि विरुद्ध सम्मेलन(unlawful assembly ) कहा जाता है यदि उन व्यक्तियों का जिससे जमाव गठित हुआ है उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन हो (1) केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या संसद या राज्य विधानमंडल अथवा किसी लोकसेवक को जो की विधि पूर्वक शक्ति का प्रयोग कर रहा हो  आपराधिक बल द्वारा या उसके प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना। या (2) किसी कानून के या किसी कानून  प्रक्रिया  के पालन को रोकना। (3) किसी रिष्टि(mischief) या आपराधिक अनाधिकृत प्रवेश या अन्य अपराध करना (4) किसी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल प्रदर्शन द्वारा उसकी संपत्ति पर किसी अन्य अधिकार जिसका कि वह कब्जा रखता है अथवा उपयोग करता हो रोकना या किसी कल्पित अधिकार(assumed right) के आधार पर अधिकार लागू करना। (5) आपराधिक शक्ति या शक्ति प्रदर्शन द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसे कार्य करने के लिए जिसे वह कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य  ही नहीं है या उसका लोप करने के

राजद्रोह क्या होता है?define Sedition and explain the law relation to it.

राजद्रोह(Sedition): भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (क) में राजद्रोह की परिभाषा निम्न प्रकार दी गई है: " राजद्रोह का अपराध तब होता है जब वादी द्वारा लिखे गए शब्दों द्वारा अथवा संकेतों द्वारा अथवा दृश्य प्रदर्शन द्वारा अथवा किसी अन्य तरीके से (क) भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या तिरस्कार पैदा किया जाता है अथवा (ख) पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है या (ग) शत्रुता बढ़ाई जाती है अथवा (घ) शत्रुता बढ़ाने का प्रयत्न किया जाता है । इस अपराध के लिए ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास एवं जुर्माने से अथवा 3 वर्ष के कारावास तथा जुर्माने दोनों से दंडित किया जा सकता है ।       उपर्युक्त परिभाषा के अंतर्गत कुछ व्याख्या भी की गई है जो कि निम्नलिखित हैं (1) द्वेष(Disaffection ) मे धमकी और शत्रुता की भावना भी सम्मिलित है। (2) घृणा द्वेष या उपेक्षा को उत्तेजित किए बिना या उत्तेजित करने के प्रयास के बिना सरकार के प्रति कार्यों के प्रति कानूनों द्वारा उनको परिवर्तन करने की दृष्टि से असहमति प्रकट करने वाली आलोचनाएं इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है। (3) घृणा , उपेक्षा या द्वेष  क

आत्मरक्षा के अधिकार तथा संपत्ति की रक्षा के अधिकार कौन-कौन किस-किस प्रकार के होते हैं?( the right of private defence and defence of property)

संपत्ति की प्रतिरक्षा का अधिकार(Right of private defence of property ): भारतीय दंड संहिता की धारा 97 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की चल या अचल संपत्ति को  किसी ऐसे आपराधिक कार्य जो की चोरी डकैती सैतानिया आपराधिक अनाधिकार प्रवेश के अंतर्गत आते हो से या ऐसे कार्यों को करने के प्रयत्न से बचाने के अधिकार है ।       भारतीय दंड संहिता की धारा 103 में उपबंधित किया गया है कि कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित  करने तक का होता है।        संपत्ति की प्रतिरक्षा का अधिकार निम्नलिखित परिस्थितियों में मृत्यु कारित  करने तक विस्तृत हो जाता है (1) लूट (2) रात में गृह भेदन (3) अग्नि द्वारा रिष्टि जो किसी ऐसे भवन तंबू या जलयान पर की गई हो जो कि मनुष्यों के आवास के रूप में या संपत्ति के स्थान के रूप में प्रयोग हो रहा हो। (4) चोरी रिष्टि (mischief)  या गृह  अतिचार(house trespass) जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया हो जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका हो कि व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग ना किए जाने पर उसका परिणाम मृत्यु