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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

कंपनी का क्या अर्थ है? कंपनी तथा साझेदारी कंपनी में अंतर कीजिए. What is meant by company? Distinguish between company and partnership firm.

कंपनी का अर्थ (meaning of company): - व्यवहारिक रूप में कंपनी ऐसे व्यक्तियों के समूह को कहते हैं जिन्होंने कंपनी अधिनियम के अंतर्गत अपने को कंपनी के रूप में रजिस्ट्री कृत करवाया हो. जो व्यक्ति संयुक्त रूप से कारोबार करना चाहते हैं विधि उन्हें भागीदारी या कंपनी बनाने का विकल्प प्रदान करती है. कंपनी अधिनियम के अनुसार कंपनी शब्द से तात्पर्य ऐसी कंपनी से है जो कंपनी अधिनियम के अंतर्गत रजिस्ट्री कृत हुई हो. धारा 2 (20) विधि के अनुसार कंपनी एक विधिक व्यक्ति है या विधिक संस्था है जो अपने सदस्यों से भिन्न होती है तथा उनके जीवनकाल के पश्चात भी जीवित रह सकती है. किसी लीगल व्यक्ति की तरह कंपनी का भी अपना अस्तित्व होता है यह अपने सदस्यों से भिन्न होती है और अधिकार दायित्व एवं शाश्वत (respectual) उत्तराधिकार के लिए स्वयं सक्षम होती है. लेकिन कंपनी केवल एक विधिक संस्था ही नहीं है. यह किसी भी तरह के सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों को संगठित रूप से प्रदान करने का एक तरीका है. कंपनी एक मिश्रित राजनीतिक सामाजिक आर्थिक (economic) एवं विधिक संस्था है. यह किसी उद्योग को चलाने का एक सहकारी (cooperative) तरीका

कंपनी को परिभाषित कीजिए? किसी निगमित कंपनी की प्रमुख विशेषताएं बताइए. Define company give the main characteristic of incorporated company

कंपनी की परिभाषा (definition of company): - lord  लिंडले के अनुसार कंपनी से आशय अनेक व्यक्तियों के ऐसे संघ से है जिसकी संयुक्त पूंजी में वे अपना धन या कोई अन्य संपत्ति लगाते हैं एवं किसी सामान्य उद्देश्य के लिए उसका उपयोग करते हैं, इस प्रकार एकत्रित की गई पूंजी धन से संबोधित की जाती है और यही कंपनी की पूंजी होती है. वो  व्यक्ति जो इस पूंजी में अंशदान करते हैं कंपनी के सदस्य होते हैं. पूंजी का यह अनुपातिक भाग जिसका प्रत्येक सदस्य अधिकारी होता है उसका अंश कहलाता है.         हैने के श ब्दों में ज्वाइंट स्टॉक कंपनी लाभ अर्जित करने के उद्देश्य निर्मित ऐच्छिक  संस्था है जिसकी पूंजी अन्तरणीय अंशों में विभक्त होती है तथा जिसके स्वामित्व के लिए सदस्यता आवश्यक है. निगमित कम्पनी की प्रमुख विशेषताएं (Main characteristics of a Incorporated Company) किसी निगमित कम्पनी की प्रमुख विशेषताएं  निम्नलिखित  है - ( 1) विधान द्वारा निर्मित कृत्रिम व्यक्ति: - कंपनी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसका विधिक अस्तित्व है. विधिक अस्तित्व प्राप्त करने के लिए कंपनी का निगमन या पंजीयन कंपनी अधिनियम के अंतर

भरण पोषण शब्द से आप क्या समझते हैं? What do you understand by the terms maintenance? What are the circumstances under colich a Hindu wife is entitled to live separately from her husband profecting her right to claim maintenance?

भरण पोषण क्या है: - समान्यतःहिंदू विधि में भरण-पोषण को वृहद रूप से लिया गया है और उसके अंतर्गत भोजन वस्त्र आवास शिक्षा और चिकित्सा परिचर्या के लिए उपलब्ध खर्चे आते हैं. अविवाहित पुत्री की दशा में उसके विवाह के युक्ति युक्त और प्रसांगिक व्यय भी आते हैं. Maintenance is a right to necessities which are responsible e.g. food, clothing and shelter by a person from another.           भरण पोषण का अधिकार संयुक्त परिवार के सिद्धांत से उत्पन्न होता है. परिवार का सिद्धांत यह है कि परिवार का मुखिया परिवार के सभी सदस्यों के भरण-पोषण संस्कारों की पूर्ति तथा विवाह के  व्ययों की पूर्ति करने के लिए उत्तरदाई होता है. संयुक्त परिवार के सदस्यों को संयुक्त परिवार के कोष में से भरण-पोषण पाने का अधिकार है चाहे उनकी कुछ भी आयु या संस्थिति क्यों ना हो. पोषण के अधिकार में जीवन की वे युक्तियुक्त आवश्यकतायें सम्मिलित है जिसके बिना मनुष्य का समाज में जीवित रहना असंभव है. यह आवश्यकता है रोटी कपड़ा और मकान है. एक प्रकार का आभार है जो कि विधिक संबंध से उत्पन्न होता है.           धर्म शास्त्रों के अनुसार

किन परिस्थितियों में हिंदू विधवा पृथक भरण पोषण की हकदार होती है? Under what circumstances is a Hindu widow entitled to separate maintenance?

विधवा पुत्र वधू: - प्राचीन विधि के अनुसार विधवा पुत्रवधू को भरण-पोषण देना ससुर का ना तो विधिक दायित्व और ना व्यक्तिगत. यह केवल एक नैतिक दायित्व है. अधिनियम की धारा 19 मे  पुत्रवधू के भरण-पोषण के बारे में कहा गया है किंतु वह ससुर के दायित्व को व्यक्तिगत दायित्व नहीं बनाती ।जैसा कि  मु.रूपा बनाम ग्रियावती के वाद में कहा गया है कि पुत्रवधू के भरण-पोषण का ससुर का केवल नैतिक दायित्व है कि वह विधवा पुत्र वधू का भरण पोषण करें किन्तु  ससुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र से उसकी स्वार्जित संपत्ति को प्राप्त करता है वह कानूनी रूप से विधवा पुत्रवधू के भरण पोषण देने के लिए बाध्य रहता है. हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम की धारा 19 यह  उपबंधित  करती है - ( 1) कोई हिंदू पत्नी चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व या पश्चात विवाहित हो अपने पति की मृत्यु के पश्चात अपने ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी.               परंतु यह सब अब तक और उस विस्तार तक जहां कि वह स्वयं अर्जन से या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो या उस दशा में जहां उसके पास अपनी स्वयं की कोई भ

क्या हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम के अंतर्गत एक बच्चे तथा वृद्ध माता-पिता को पोषण पाने का अधिकार है तथा विशुद्ध हिंदू विधि के अंतर्गत क्या अधिकार प्राप्त थे? What is the right of maintenance of children and parents under the Hindu adoption and maintenance act and under the pure Hindu law?

Right of maintenance of children and aged parents under the Hindu adoption and maintenance act ( वृद्ध माता-पिता तथा संतान के भरण पोषण का अधिकार) : - हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत वृद्ध माता-पिता तथा संतानों के भरण पोषण का अधिकार प्रदान किया गया है. यह धारा उपबंधित करती है कि - ( 1) इस धारा के उपबंधों  के अधीन रहते हुए कोई हिंदू अपने जीवनकाल के दौरान अपने धर्मज अवयस्को और वृद्ध तथा शिथिलांग माता-पिता का भरण पोषण करने के लिए बाध्य है. ( 2) जब कोई धर्मज अवयस्क  अप्राप्तवय रहे वह अपने माता या पिता से भरण-पोषण का दावा कर सकेगा. ( 3) किसी व्यक्ति को अपने वृध्द या शिथिलांग  माता-पिता का किसी स्त्री का जो अविवाहित हो भरण पोषण करने की बाध्यता का विस्तार वहां तक होगा जहां तक माता-पिता या अविवाहित पुत्री यथास्थिति स्वयं उपार्जन हो या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.             इस धारा में माता के अंतर्गत निसंतान सौतेली मां भी आती है इस प्रकार सौतेली मां भी भरण पोषण की अधिकारी है.             इस प्रकार धारा 20 के अंतर्गत वृद्ध तथा निर्बल माता

हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम के अंतर्गत भरण पोषण के प्रयोजन के लिए कौन व्यक्ति आश्रित है तथा इनके पोषण संबंधी नियम की व्याख्या कीजिए. Who are dependents for the purpose of maintenance under the Hindu adoption and maintenance act and also discuss the provision of maintenance of these person.

हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 21 में उन व्यक्तियों की सूची दी गई है जो भरण-पोषण के प्रयोजन के लिए आश्रित है इस धारा के अंतर्गत भरण पोषण के प्रयोजन के लिए मृतक व्यक्ति को निम्नलिखित संबंधी उनके आश्रित माने गए हैं - ( 1) उसका पिता ( 2) उसकी माता ( 3) उसकी विधवा जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं करती ( 4) उसका पुत्र या उसके पूर्व मृत पुत्र का पुत्र या उसके पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र जब तक कि वह अवयस्क है किंतु यह उस दशा में और वहां तक कि होगा जब तक कि वह और जहां तक कि वह यदि पौत्र है तो अपने पिता या माता की संपदा से और यदि प्रपौत्र है तो अपने पिता या माता की या पितामही या पिता माही की संपदा से भरण-पोषण करने में असमर्थ है. ( 5) उसकी अविवाहित पुत्री या पुत्र की अविवाहित पुत्री या उसके पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की अविवाहित पुत्री जब तक कि वह अविवाहित रहती है यह भरण-पोषण उस दशा में सीमा तक ही प्राप्त होगा जब और जहां तक वह यदि पोत्री है तो पिता या माता की संपदा से और प्रा पुत्री है तो अपने पिता या पिता या माता या माता महि या पितामह की संपदा से भरण पोषण

भरण पोषण की धनराशि कौन निश्चित करता है और किन सिद्धांतों के आधार पर यह निर्धारित की जाती है. Who determines the amount of maintenance and on what principles is it determined?

भरण पोषण की धनराशि (amount of maintenance): - हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 23 में पोषण की धनराशि निर्धारित करने का सर्वोपरि अधिकार न्यायालय को दे रखा है. प्रत्येक मामले के तथ्यों पर विचार करके और उसकी विशेष परिस्थितियों का अध्ययन करके भरण-पोषण दिलाने का निश्चय करना और उसकी राशि निर्धारित करना न्यायालय का कर्तव्य है भरण पोषण अधिनियम द्वारा भरण पोषण के हकदार घोषित किए गए व्यक्ति को भी न्यायालय भरण-पोषण दिलवाना अस्वीकार कर सकता है यदि ऐसा करना उसके सम्मुख उचित कारण है. न्यायालय पोषण की धनराशि का निर्धारण अपने विवेक के आधार पर करेगा. इस संबंध में अधिनियम की धारा 23 उप बंधित है - ( 1) इस बात को आधारित करना न्यायालय के विवेकाधिकार में होगा कि क्या कोई भरण पोषण इस अधिनियम के उप बंधुओं के अधीन दिलाया जाए और दिलाया जाए तो कितना और ऐसा करने में न्यायालय यथास्थिति उप धारा (2) या उप धारा (3)  ऊपर ने तो बातों को जहां तक वह लागू है सम्यक रूप से ध्यान में रखेगा. ( 2) बालाकिया वृद्ध माता-पिता के पोषण की धनराशि निर्धारित करते समय न्यायालय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगा - a)