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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

प्रथम सूचना रिपोर्ट से क्या तात्पर्य है? किसी संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर किसी पुलिस अधिकारी के कर्तव्य तथा उसके अनुसंधान की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए . What do you mean by FIR? Duties of police officers and procedure of Investigation on the receipt of report

प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित सूचना से अभिप्राय ऐसी सूचना से जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को दी जाती है एवं जो किसी अपराध के कार्य किए जाने से संबंधित होती है इसका मुख्य उद्देश्य किसी अपराध की पुलिस अधिकारी से शिकायत करना ताकि वह आपराधिक विधि को गति दे सके (स्टेट ऑफ असम बनाम यू एन ए राजखोवा 1974 क्इ लॉज354 एवं हासिब बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार एआईआर 1970 ए  288 सू चना लिखित या मौखिक किसी भी रूप में दी जा सकती है जब ऐसी सूचना मौखिक रूप से दी गई हो तो उसे पुलिस अधिकारी द्वारा लेख बंद किया जाएगा एवं उसे सूचना देने वाले व्यक्ति को पढ़ा कर सुनाया जाएगा फिर ऐसी प्रत्येक सूचना पर सूचना देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर लिए जाएंगे। सुरजीत सरकार बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल( ए आई आर 2013एस सी 807) के मामले में फूट टेलीफोन एक सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं माना गया है.           जहां आहत व्यक्ति को अनेक गंभीर चोट एक आयत हुई हो और वह अचेतन अवस्था मैं रहा हो वहां पुलिस कांस्टेबल द्वारा प्रत्यक्ष दर्शी साक्षी से शिकायत लिखाया जाना उचित है ( मुरूगन बनाम स्टेट एआईआर 2009 एस सी 72)    

प्रथम सूचना रिपोर्ट क्या है? विवेचना कीजिए. संज्ञेय के मामलों में अन्वेषण करने के लिए पुलिस अधिकारी की शक्तियों का वर्णन कीजिए?What is the first information report? Discuss its important. State the power of a Police Officer to investigate cognizable offence

प्रथम सूचना रिपोर्ट से आशय ऐसी सूचना से है जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी को की जाती है एवं जो किसी अपराध के कारित किए जाने से संबंधित होती है. प्रथम सूचना रिपोर्ट का मुख्य उद्देश अपराध की पुलिस अधिकारी से शिकायत करना जिससे वह आपराधिक विधि की गति दे सके. स्टेट आफ असम बनाम यू एन राजखोवा1974 क्रि. लॉज354 एवं हसीब बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार ए आई आर 1972 एस सी 283). ऐसी सूचना लिखित अथवा मुंह जवानी अर्थात मौखिक किसी भी रूप में दी जा सकती है. जब ऐसी सूचना मौखिक दी जाती है तो उसे पुलिस अधिकारी के द्वारा लेख बंद किया जाएगा तथा उसे सूचना देने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुनाया जाएगा एवं ऐसी हर एक सूचना पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर लिए जाएंगे. सुरजीत सरकार बनाम स्टेट ऑफ़ बंगाल एआई r2013a सी 807) के केस में फास्ट टेलिफोनिक सूचना को प्रथम सूचना रिपोर्ट नहीं माना गया है.                 लेकिन जहां कोई चोटिल व्यक्ति को कई पर्याप्त गहरी चोटें लगी हो तथा वह अचेतन अवस्था में हो वहां पुलिस कांस्टेबल द्वारा प्रत्यक्षदर्शी साक्षी से शिकायत किया जाना उचित है.( मुरूगन बनाम स्टेट ए आई आर 2009 ए

भारत में राजद्रोह कानून (sedition law in India)

सुर्खियों में क्यों? हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (indian Penal Code: IPC) की धारा 124A की संवैधानिक वैधता के पुनर परीक्षण की याचिका को अस्वीकार कर दिया है. पृष्ठभूमि इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थामस बैबिंगटन मैकाले( लॉर्ड मैकाले के नाम से विख्यात) द्वारा तैयार किया गया था हालांकि वर्ष 1860भारतीय दंड संहिता( आईपीसी) के क्रियान्वयन के दौरान इसे आईपीसी में शामिल नहीं किया गया था. वर्ष 1870 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर धारा 124A को समाविष्ट किया गया था यह संशोधन सर जेम्स स्टीफन द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिन्होंने भारत में स्वतंत्रता के विचारों का दमन करने के लिए एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता पर बल दिया था. ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कानून उस समय उत्पन्न किसी भी प्रकार के असंतोष को दबाने के लिए अधिनियमित किए गए विभिन्न कठोर कानूनों में से एक था. भारत में राष्ट्रद्रोह का पहला मामला वर्ष 1891 में दर्ज किया गया था जब समाचार पत्र बंगवासी के संपादक जोगेंद्र चंद्र बोस पर एज ऑफ कंसेंट

क्या कई अपराधों की दो सिद्धि के लिए एक ही विचारण में दंड आदेश दिया जा सकता है? इस संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता में किए गए प्रावधानों को समझाइए? can a person on convention for several offence at one trial be sentenced for such offence? State the provisions made in Criminal Procedure Code in this regard

Arrest by private person and procedure on such arrest   प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर अंगीकृत प्रक्रिया भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 के अनुसार कोई प्राइवेट व्यक्ति अर्थात ऐसा व्यक्ति जो ना तो मजिस्ट्रेट है और ना ही कोई पुलिस अधिकारी निम्नलिखित अवस्थाओं में किसी व्यक्ति को  बिना वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है (1) कोई भी प्राइवेट व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति में अजमानतीय  और संज्ञेय अपराध करता है या किसी उद्घोषित अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है या करवा सकता है और ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को आवश्यक विलंब के बिना पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा या पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में निकटतम पुलिस थाने ले जाया जाएगा । (2) यदि यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण है कि ऐसा व्यक्ति धारा 41 के उपबंधों  के अंतर्गत आता है तो पुलिस अधिकारी उसे फिर से गिरफ्तार करेगा (3) अगर यह विश्वास करने का लक्षण है उसने असंज्ञेय अपराध किया है और वह पुलिस अधिकारी की मांग पर अपना निवास बताने से इनकार करता है या ऐसा नाम या निवास

राज्य के विधान मंडल एवं उसके सदस्यों की शक्तियां तथा विशेषाधिकार: Describe the power and privilege rights of state and their members

विधायिका के सदस्यों का मुख्य कार्य राज्य की जनता की समस्याओं को सदन के समक्ष रखना उन पर चर्चाएं करना संबंधित मंत्रियों अधिकारियों से प्रश्न करना उनका समाधान एवं तक संबंधी समुचित विधि का निर्माण करनाहै कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है इसके लिए सदस्यों में निरंतर निर्भीकता एवं निष्पक्षता का होना आवश्यक है। यही कारण है कि विधान मंडल के सदस्यों को विधानमंडल के साधनों की चारदीवारी में  विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं जो अधिकार उन्हें सदन की चारदीवारी में है वह उन्हें सदन के बाहर को उपबंध  नहीं है यही कारण है कि हम उन्हें अधिकार नहीं विशेषाधिकार कहते हैं। अनुच्छेद 194 में इन्हीं विशेषाधिकार और शक्तियों एवं उन्मुक्त क्यों का उल्लेख किया गया है. ( 1)वाक् स्वातन्त्र इसे हम भाषण अथवा बोलने की स्वतंत्रता भी कह सकते हैं विधान मंडल के सदस्यों को अपने मन की बात सदन में रखने का पूर्ण अधिकार है वह जन समस्याओं को निर्भीकता से सदन में रख सकते हैं एवं संबंधित मंत्रियों एवं अधिकारियों से इस संबंध में प्रश्न कर सकते हैं उनका मुंह बंद नहीं किया जा सकता है उन्हें वॉक स्वतंत्र पर जो कुछ भी प्

गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक निरुद्ध ना रखा जाएगा और उसे गिरफ्तारी के आधारों तथा जमानत के अधिकार से अवगत कराया जाएगा: (no person shall be detained in custody for more than 24 hours and person arrested to be informed the grounds of arrest and of right to bail)

यदि गिरफ्तार किए जाने वाला व्यक्ति गिरफ्तारी का बल पूर्वक प्रतिरोध करें अथवा गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करें वहां गिरफ्तार करने वाला पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति उसे गिरफ्तार करने के लिए भी आवश्यक साधनों का प्रयोग कर सकेगा.             इस प्रकार जहां चौकीदार को किसी भागते हुए चोर को गिरफ्तार करना हो और उसे गिरफ्तार करने के लिए उसके पास कोई साधन नहीं हो वहां वह उस को गिरफ्तार करने के लिए आवश्यक हिंसा का प्रयोग कर सकेगा.                 लेकिन ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसकी मृत्यु कार्यत नहीं की जा सकेगी जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय  अपराध के लिए अभियुक्त नहीं है. हथकड़ी का प्रयोग: - गिरफ्तारी के समय हथकड़ी का प्रयोग आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए. हथकड़ी का प्रयोग करते समय  गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की हैसियत को ध्यान में रखा जाना अपेक्षित है. एक मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार किए जाने उसे हथकड़ी लगाने एवं उसके साथ बल प्रयोग किए जाने की प्रवृत्ति को उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुचित माना गया है. ( दिल्ली न्यायिक सेवा संघ तीस हजारी कोर्ट बनाम

Women's property related important judgement supreme courts

अपने आसपास आपने भी इस बात को नोटिस किया होगा कि निसंतान विधवा स्त्रियों की प्रॉपर्टी पर उसके पति के भाई के बेटे अपना हक जमा लेते हैं लेकिन हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद आप किसी स्त्री को इस बात के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है कि वह अपनी प्रॉपर्टी का उत्तराधिकारी ससुराल के रिश्तेदारों को ही बनाए. क्या था पूरा मामला: -         खुशीराम बनाम नवल सिंह नामक इस मामले में एक निसंतान विधवा स्त्री के इस निर्णय को वैद्य माना गया कि वह अपने पति की संपत्ति मायके पक्ष के लोगों को दे सकती है इस केस में जागो नामक एक निसंतान विधवा स्त्री ने पति की मृत्यु के बाद स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर प्राप्त होने वाली जमीन को पारिवारिक रजामंदी से उपहार स्वरूप उसने अपने भाई के बेटे को सौंप दिया था. इसके बाद उस स्त्री के ससुराल पक्ष के नतीजों ने अपनी चाची के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती देते हुए यह कहा कि उनके भाई के बेटे हमारे परिवार के लिए बाहरी व्यक्ति हैं इसलिए यह संपत्ति उन्हें नहीं दी जा सकती है और इसके असली हकदार हमें लेकिन गुरु राम की निचली अदालतों पंजाब हरियाणा हाईकोर