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क्या कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा हैं तो क्या वह दूसरी शादी धर्म बदल कर कर सकता है?If a person is already married, can he change his religion and marry again?

शून्यकरणीय विवाह ( voidable marriage)

शून्यकरणीय विवाह विधि मान्य विवाह है जब तक कि उसके शून्यकरणी होने की डिक्री  पारित ना कर दी जाए वह वैद्य और अमान्य रहता है। शून्यकरणी विवाह जब तक शून्यकरणी घोषित नहीं हो जाता तब तक उसके अंतर्गत विधि मान्य विवाह की  सब परिस्थितियां और सब अधिकार कर्तव्य और दायित्व जन्म लेते हैं ऐसे विवाह से उत्पन्न संतान धर्मज होती है.             हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12  शून्यकरणीय विवाह के संबंध में उप बंधित है इस धारा के अनुसार कोई भी विवाह चाहे वह अधिनियम में लागू होने से पूर्व या बाद में संपन्न किया गया हो निम्नलिखित आधारों पर शून्यकरणीय समझा जाएगा - ( 1) नपुंसकता (impotency): - सर्वप्रथम विवाह नपुंसकता के आधार पर शून्यकरणीय  करार दिया जा सकता है विवाह का प्रमुख उद्देश्य संतान उत्पन्न करना है जिसके लिए पुंसत्व आवश्यक है इसलिए हिंदू विधि में एक नपुंसक का विवाह चाहे वह पुरुष हो या स्त्री पूर्णतया शून्य माना गया है नपुंसक से तात्पर्य लैंगिक संभोग की अक्षमता से है यह अक्षमता शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की हो सकती है नपुंसकता स्थाई तथा असाध्य होनी चाहिए यदि पति पत्नी के साथ मानसि

अवयस्क , संरक्षक तथा एक हिंदू अवयस्क के प्राकृतिक संरक्षक की परिभाषा बताइए. Define the terms minor guardians and natural Guardians

अवयस्क (minor): - हिंदू अवयस्क एवं संरक्षण अधिनियम 1955 की धारा 4 के अंतर्गत अवयस्क  की परिभाषा इस प्रकार दी गई है अवयस्क  का तात्पर्य उन व्यक्तियों से होगा जिन्होंने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है अतः इस अधिनियम के अंतर्गत वह सभी व्यक्ति जिन्होंने 18 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है अवयस्क  कहलाएंगे ।अधिनियम के द्वारा उल्लेखित नियम विवाह को छोड़कर अवयस्कता तथा संरक्षण से संबंधित सभी मामलों में अनुवर्तनीय होगा.             अधिनियम की धारा 4 के अनुसार अवयस्कता 18 वर्ष की आयु में समाप्त हो जाएगी का नियम सभी दशाओं में लागू होगा. संरक्षक (guardian): - संरक्षक से तात्पर्य है उन व्यक्तियों से जो दूसरों के शरीर या संपत्ति की या शरीर और संपत्ति दोनों की देखभाल का दायित्व रखते हैं हिंदू विधि अनुसार सिद्धांततः एवं मूलतः राजा  समस्त अवयस्कों का संरक्षक होता है किंतु वह स्वयं कोई कार्य  संपादित नहीं कर सकता अतः वह इसे अवयस्क के हित में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को सौंपता है जो प्रतिनिधि के रूप में इस कार्य को करते हैं उनके द्वारा कार्य सुचारू रूप से ना किए जाने पर राजा कभी भी हस्तक्षेप क

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत किन आधारों पर न्यायालय से तलाक की डिक्री पति और पत्नी द्वारा प्राप्त की जा सकती है? On what grounds Court may pass decree for divorce under Hindu Marriage Act 1955?

तलाक (Divorce ): - हिंदू विधि में विवाह विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं था क्योंकि विवाह एक आवश्यक संस्कार माना जाता था ।परंतु वर्तमान हिंदू विधि (हिंदू विवाह अधिनियम 1955) ने तलाक के संबंध में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है अधिनियम की धारा 13 में उन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है । जिनके आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त की जा सकती है. Divorce: - There was no provision of dissolution of marriage in Hindu law because marriage was considered an essential sacrament. But the current H indu law (Hindu Marriage Act 1955) has made a revolutionary change in relation to divorce in section 13 of the act  Those circumstances have been described.  On the basis of which a decree of divorce can be obtained. तलाक के आधार (grounds of divorce): - वे आधार जो पति-पत्नी को समान रूप से प्राप्त हैं - ( 1) जारता (adultery): - विवाह के किसी भी पक्षकार  के लिए विवाह विच्छेद का प्रथम आधार यह है कि दूसरे पक्ष कार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात अपनी पत्नी या पति से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ स्वेच

दांपत्य अधिकारों का पुनरस्थापन (restitution of conjugal rights), न्यायिक पृथक्करण (judicial separation), अभित्याग (Desertion)

( 1) दाम्पत्य अधिकारों का का पुनर्स्थापना (Restitution of conjugal rights): - हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के अंतर्गत दांपत्य अधिकार की पुनर्स्थापना का प्रावधान किया गया है । दांपत्य कर्तव्यों में सर्वप्रथम एवं महत्वपूर्ण कर्तव्य दंपत्ति का परस्पर एक दूसरे को सहचार्य प्रदान करना है क्योंकि हिंदू विवाह का उद्देश्य दांपत्य जीवन की सुख एवं सुविधा से संबंधित है ।विवाह के पक्षकारों को एक दूसरे के साथ सहवास करने का अधिकार है ।यदि एक पक्ष दूसरे पक्ष को इस अधिकार से वंचित किया जाता है तो धारा 9 के अंतर्गत दांपत्य अधिकार की पुनर्स्थापना के लिए न्यायालय मे प्राथना पत्र दिया जा सकता है.              धारा 9 के अंतर्गत इस अधिकार की पुनर्स्थापना के संबंध में यह कहा गया है कि जहां पर पति या पत्नी के बिना युक्तियुक्त कारण के एक दूसरे के साथ रहना त्याग दिया है तो ऐसा परित्याग व्यक्ति जिंदा न्यायालय से याचिका द्वारा दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए प्रार्थना कर सकता है और यदि न्यायालय याचिका में वर्णित प्रार्थना और तथ्यों पर विश्वास करता है और उसकी दृष्टि में ऐसा अन्य कोई वैद्य अधिकार नहीं

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के द्वारा एक वैद्य विवाह के लिए कौनसी अनिवार्य शर्तें निर्धारित की गई हैं? What compulsory condition have been prescribed for a valid marriage under the Hindu Marriage Act 1955?

वैद्य विवाह के लिए अनिवार्य शर्तें (compulsory condition for a valid marriage): - हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 के अंतर्गत एक वैद्य विवाह के लिए निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गई हैं - ( 1) एक विवाह - धारा 5 (1) के अनुसार विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न वधू का कोई जीवित पति हो इस धारा 5 (1) के अन्तर्गत कहा गया है कि हिंदू अब केवल एक ही विवाह कर सकता है इस अधिनियम से पूर्व हिंदू एक से अधिक विवाह कर सकता था चाहे उसकी स्त्री जीवित हो या ना हो अब वैद्य विवाह के लिए आवश्यक है कि एक स्त्री अथवा पति के जीवित रहने पर कोई दूसरा विवाह नहीं कर सकता यदि कोई इस प्रकार का विवाह करता है तो वह भारतीय दंड संहिता की 494 एवं 495 के अंतर्गत दंडनीय होगा. (धारा 17) एक नवीनतम वाद श्रीमती यमुना बाई अनंतराव आधव बनाम अनंतराव शिवराज आधव में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभि निर्धारित किया गया की धारा 5 की इस प्रथम शर्त के उल्लंघन में विवाह अकृत एवं शून्य हो जाता है और इस प्रकार के विवाह प्रारंभतः एवं स्वतः शून्य  होता है शून्य विवाह में पत्नी दंड प्रक्रिया संहिता की धा